अँजुरी भर गीत

अँजुरी भर गीत

:  एक :

ना सुलगती रात, ना दिन आँसुओं से भीगते।

प्यार के बदले अगर तुम प्यार देना सीखते॥

हमने जब भी गुनगुनाई

नेह की आसावरी,

खुद-ब-खुद बहने लगी

तब शब्द की गोदावरी,

इक सुखद स्पर्श पाकर

गीत अनगिन हो गए,

देह तो जगती रही

मन प्राण दोनों सो गए,

मुँह छिपाते ना उजाले, ना अँधेरे रीझते।

प्यार के बदले अगर तुम प्यार देना सीखते॥

गोद में सर रख के मेरा

तुम जो देते थपकियाँ,

आँसुओं को पोंछ देते

बंद करते सिसकियाँ,

धड़कनों, साँसों, निगाहों ने

निभाया हर धरम

पर तुम्हारे एक ही जुमले ने

तोड़े सब भरम,

फूल मुँह ना फेरते, काँटे न दामन खींचते।

प्यार के बदले अगर तुम प्यार देना सीखते॥

एक तितली फूल के

कहती है जब कुछ कान में,

तो समझ लो रुत

बसंती सी है ब‌ियाबान में,

तुम भी छू लेते जो पत्थर

तो ये बनता देवता,

माफ कर देता तुम्हारी

अगली पिछली सब खता

जख्म जो अंदर छिपे, गर वो भी तुमको दीखते।

प्यार  के बदले अगर तुम प्यार देना सीखते।

:  दो :

मत घबरा तुझमें और मंजिल में थोड़ी सी दूरी है।

चाहे जितना भी मुश्किल हो पहला कदम जरूरी है।

सूरज को मत देख घूरकर,

तुझको अंधा कर देगा,

तेरे जीवन में पूनम की जगह

अमावस धर देगा,

क्यों भटका फिरता जब तेरे पास एक कस्तूरी है।

चाहे जितना भी मुश्किल हो पहला कदम जरूरी है।

तट पर बैठे-बैठे तेरे

हाथ कहाँ कुछ आएगा,

रत्न मिलेंगे तुझको जब

सागर के तह में जाएगा,

कुछ ना आया हाथ समझना डुबकी अभी अधूरी है।

चाहे जितना भी मुश्किल हो पहला कदम जरूरी है।

घने तिमिर के जंगल से

इक दिया अकेला जूझ रहा,

और उजाले में भी तू

चलने का रस्ता बूझ रहा,

हिम्मत से बढ़ता जा प्यारे सुबह बहुत सिंदूरी है।

चाहे जितना भी मुश्किल हो पहला कदम जरूरी है।

पकड़ के उँगली जो हमको

पैरों चलना सिखलाते हैं,

उनको हम मुश्किल राहों पर

इकलौता कर जाते हैं,

फर्ज, वफा, रिश्ते भूले सब ये कैसी मजबूरी है।

चाहे जितना भी मुश्किल हो पहला कदम जरूरी है।

:  तीन :

फोन पर बात जब से हुई

जिंदगी जिंदगी हो गई,

दिल की बगिया जो वीरान थी

एकदम से हरी हो गई,

 

उम्र-भर तैरते ही रहे

पर न कोई किनारा मिला,

यों तो काँधे मिले थे बहुत

पर न कोई सहारा मिला,

जिस्म की सब थकन मिट गई

ये क्या जादूगरी हो गई।

फोन पर बात जब से हुई

 

उसका मन मुझको मथुरा लगा

वृंदावन से ये तन का भवन,

सोच गोकुल के जैसी लगी

गंगा जमुना से दोनों नयन,

आचमन को अधर ज्यों बढ़े

वो मेरी बाँसुरी हो गई।

फोन पर बात जब से हुई

 

जाने कितने ही पनघट गया

प्यास मेरी रही जस की तस,

ना तो सरिता से शिकवा कोई

ना ही सागर से कोई बहस,

आज बातों की मीठी छुअन

तृप्ति की गागरी हो गई।

फोन पर बात जब से हुई

 

आज बगिया में ज्यों ही गया

शूल सब मुसकराने लगे,

मेरे स्वागत में भँवरे सभी

झूमकर गीत गाने लगे,

इक कली मुझसे ऐसे मिली

पाँखुरी पाँखुरी हो गई।

फोन पर बात जब से हुई

 

कल मुझे राह में चाँद मेरा मिला

दूधिया दूधिया ये बदन हो गया।

थोड़ा मैंने कहा थोड़ा उसने कहा

हल्का-हल्का सा दोनों का मन हो गया।

 

फिर अचानक ही ठंडी हवाएँ चलीं

जो कि पानी बरसने का संकेत था,

कितनी बारिश हुई कुछ पता न चला

इतना तन का ये झुलसा हुआ रेत था,

कौन बरसा था और कौन भीगा बहुत

प्यासे अधरों का बस आचमन हो गया।

 

मुद्दतों से जो कलियाँ खिली ही नहीं

पँखुडी खोलकर मुसकराने लगीं,

देखकर के बबूलों के घर रौनकें

नागफनियाँ भी मेहँदी रचाने लगीं,

शाख भी झुक गई साँस भी रुक गई

इतना मदहोश मेरा चमन हो गया।

 

बात-ही-बात में साँझ होने लगी

रातरानी की कुछ टहनियाँ हिल गईं,

हाथ जैसे ही मैंने बढ़ाया तभी

इस शहर की सभी बत्तियाँ जल गईं,

ढेर से स्वप्न हैं नींद आती नहीं

मेरी पलकों पे कितना वजन हो गया।

विष्‍णु सक्सैना

८ कृष्‍णा अपार्टमेंट, मॉडल टाउन वेस्ट,

जी.टी. रोड, होटल सिटी गार्डन के पास,

एल.आई.सी. बिल्डिंग के सामने

गाजियाबाद-२०१००१ (उ.प्र.)

दूरभाष : ९४१२२७७२६८

हमारे संकलन