RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
द्रौपदी की ऊहापोह : 'व्यथा कहे पांचाली' से...![]() द्रौपदी का ऊहापोह : ‘कुंती’ काश वचन स्वीकार न करती। मैं भी रेखा पार न करती।। * पाँच पिया स्वीकारे क्यूँ थे। खुद ही भाग बिगाड़े क्यूँ थे।। * काश विरोधी हो जाती मैं। थोड़ा क्रोधी हो जाती मैं।। * काश नहीं जो भिक्षा होती। कभी न खुद को ऐसे खोती।। * काश न मेरे हिस्से होते। शुरू नहीं ये िक़स्से होते।। * काश मुझे वरदान न मिलता। तो फिर ये शमसान न मिलता॥ * काश जरा मैं जिद पर अड़ती। व्यथा ना मुझको कहनी पड़ती॥ * खुला शिव का नेत्र न होता। तो शायद कुरुक्षेत्र न होता॥ * * * द्रौपदी का ऊहापोह : कर्ण काश कर्ण को वर लेती मैं। वाणी वश में कर लेती मैं॥ * काश कर्ण न छोड़ा होता। कष्ट न साथ निगोड़ा होता॥ * काश जाति को बीच न लाती। दुख इतना मैं फिर क्यूँ पाती॥ * कर्ण पे यों तो रीझ गई थी। जाति सुनी तो खीज गई थी॥ * काश कर्ण जो हितकर होता। क्यों परिणाम भयंकर होता॥ * काश कर्ण समझाया होता। राज-पाट फिर साझा होता॥ * काश नहीं ठुकराया होता। कर्ण कभी न पराया होता॥ * कर्ण अगर ना रोता शायद। फिर संग्राम न होता शायद॥ * * * द्रौपदी का ऊहापोह : अर्जुन क्यों अर्जुन ने घुटने टेके। क्यों परिणाम न उसने देखे॥ * चुप था जो मुझको वर लाया। माँ के सम्मुख क्यों घबराया॥ * अपनी बात न कटने देता। काश न मुझको बँटने देता॥ * काश धर्नुधर साथ निभाता। अपनी माता को समझाता॥ * कितना सुंदर साथ मिला था। अर्जुन का जो हाथ मिला था॥ * यों ना काश विभाजन होता। अर्जुन ही बस साजन होता॥ * काश न मुझको वर के लाता। अर्जुन सारे दुख का दाता॥ * सत्य यही जो समर न होता। कुरुक्षेत्र फिर अमर न होता॥ * * * द्रौपदी का ऊहापोह : दुर्योधन दुर्योधन से ज़बाँ लड़ायी। सचमुच कृष्णा अब पछताई॥ * काश नहीं मैं उसपर हँसती। जान मुसीबत में क्यों फँसती॥ * काश न कसती उसपर ताना। सभा न पड़ता मुझको जाना॥ * काश न उसको अंधा कहती। क्यों फिर इतनी पीड़ा सहती॥ * मैंने तो परिहास किया था। वो समझा उपहास किया था॥ * शब्दों के ना बाण चलाती। फिर क्यों इतना दुख मैं पाती॥ * अगर नहीं जो आपा खोती। मारा-मारी फिर क्यों होती॥ * जो दुर्योधन क्रुद्ध न होता। तो शायद ये युद्ध न होता॥ * * * द्रौपदी का ऊहापोहः दुः: शासन दुःशासन को माफ़ जो करती। लाल न होती फिर ये धरती॥ * काश बाँध मैं वेणी लेती। मुझ पर ध्यान सभा ना देती॥ * काश द्रौपदी क़सम न लेती। लहराती फिर घर की खेती॥ * दुष्ट यदि नहीं भाई होता। किस्सा क्या दुखदायी होता? * काश दुःशासन मेरी सुनता। ऐसी फिर वो मौत न मरता॥ * उसको था कितना समझाया। दुष्ट मगर कुछ समझ न पाया॥ * काश अगर ये प्रण ना लेती। कष्टों के ये क्षण ना लेती॥ * दुःशासन मतिमंद न होता। रिश्तों में फिर, द्वंद्व न होता॥ * * * द्रौपदी का ऊहापोह : ध्रतराष्ट्र काश न होते राजा लोभी। हुआ न होता, हुआ है जो भी॥ * काश न पांडु से वो जलते। पांडव उनको कभी न खलते॥ * भीष्म, विदुर की सुनते बातें। कभी न मिलती फिर आघातें॥ * काश न होने देते क्रीड़ा। नहीं झेलते दारुण पीड़ा॥ * नहीं मोह में अंधे होते। फिर हालात न ऐसे होते।। * नहीं अगर जो विग्रह होता। इंद्रप्रस्थ क्यों दुखड़ा ढोता॥ * राजा यदि अंजान न होते। इतने फिर नुकसान न होते॥ * जो यह वाद-विवाद न होता। इतना कभी फ़साद न होता॥ * * * द्रौपदी का ऊहापोह : गांधारी काश न पट्टी बाँधी होती। नहीं युद्ध की आँधी होती॥ * पतिव्रता थी यों तो रानी। अँधियारे को वर कर मानी॥ * राजा की आँखें बन जाती। दुनिया उसको यों दिखलाती॥ * सिर्फ पतिव्रत धर्म निभाया। घर-गृहस्थी का कर्म भुलाया॥ * बच्चों को थोड़ा समझाती। संस्कार-शिक्षा दे पाती॥ * झगड़ों को सुलझाती माता। रहती बनकर साथी माता॥ * लड़े भिड़े सब भाई माता। मिली तुझे रुसवाई माता॥ * यदि जो हठ के संग न होती। शायद फिर ये जंग न होती॥ * * * द्रौपदी का ऊहापोह : भीष्म भीष्म प्रतीज्ञा काश न लेते। जीवन से अवकाश न लेते॥ * पितृभक्ति में डूबे थे वो। लक्ष्य इसे ही समझे थे वो॥ * पाप! द्यूत क्रीड़ा को कहते। फिर क्यों वो पीड़ा को सहते॥ * काश! सत्य का साथ निभाते। और भीष्म भी कुछ कह पाते॥ * सच के साथ खड़े जो होते। क्यों फिर शरशैय्या पर सोते॥ * चारों ओर न होती जड़ता। क्यों फिर युद्ध देखना पड़ता॥ * भीष्म सभा में बोले होते। क्यों जलते फिर शोले होते॥ * भीषण ये परिणाम न होता। रिश्तों में संग्राम न होता॥ * * * द्रौपदी का ऊहापोह : जयद्रथ जयद्रथ को यदि दंडित करते। दर्प दुष्ट का खंडित करते॥ * काश उसे न छोड़ा होता। दंभ दुष्ट का तोड़ा होता॥ * पति दुःशाला का नहीं होता। अपने प्राणों को वो खोता॥ * जी सबका यहीं पसीजा था। वो कौरव दल का जीजा था॥ * काश न उसका सिर मुँडवाती। और मृत्यु की नींद सुलाती॥ * पार्थ नंदन को मारा था। जयद्रथ ही तो हत्यारा था॥ * काश उसे मरवाया होता। ‘रावण’ तभी जलाया होता॥ * उसमें दंभ-प्रकर्ष न होता। तो शायद संघर्ष न होता॥ * * * द्रौपदी का ऊहापोह : प्रतिशोध काश न जाना होता वन में। कभी न जलती ज्वाला तन में॥ * अगर न होती आँखें गीली। नहीं आत्मा जाती छीली॥ * खुले केश मैं नहीं दिखाती। काश की आँसू नहीं बहाती॥ * आग नहीं मैं अगर उगलती। रण की ज्वाला कभी न जलती॥ * काश नहीं मैं उनसे लड़ती। बातें ऐसे नहीं बिगड़ती॥ * काश न पतियों को उकसाती। बात न इतनी फिर बढ़ पाती॥ * मैं खुद को मर जाने देती। काश न उनको ताने देती॥ * लिया अगर वो प्रण ना होता। तो शायद फिर रण ना होता॥ * * * द्रौपदी का ऊहापोह : ‘काश’ कैसे कह दूँ द्वेष नहीं है। सुत मेरा इक शेष नहीं है॥ * पाँच सुतों को माता थी मैं। उनकी जीवन दाता थी मैं॥ * काश न रब को प्यारे होते। जीवित राज दुलारे होते॥ * काश अगर समझौता होता। ऐसा फिर बिल्कुल ना होता॥ * वक्त बना क्यूँ हाय क़साई। जीवित बचा ना मेरा भाई॥ * सर पर हाथ बड़ों के होते। सारे पेड़ जड़ों के होते॥ * काश न खेला चौसर जाता। कभी नहीं यह अवसर आता॥ * जो ये नहीं लड़ायी होती। फिर भी तो पछतायी होती॥ * * * द्रौपदी का ऊहापोह : द्यूत-क्रिया खुले अगर ये बाल न होते। श्वेत पृष्ठ फिर लाल न होते॥ * यदि मेरा अपमान न होता। गिद्धों का जलपान न होता॥ * मौन अगर गुरुदेव न होते। रण आँगन में प्राण न खोते॥ * काश! सत्य का साथ निभाते। और बड़े भी कुछ कह पाते॥ * द्रोण अगर दुर्भाव न होते। अपनों में अलगाव न होते॥ * द्यूत-क्रिया का काम न होता। चीर-हरण अंजाम न होता॥ * भरी सभा में कितना रोयी। काश व्यथा को सुनता कोई॥ * नारी का अपमान न होता। कुरुक्षेत्र शमशान न होता॥ उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’ ४/१९ आसफ अली रोड नई िदल्ली-११०००२ दूरभाष : ९९५८३८२९९९ |
मई 2023
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