RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
क्या युद्ध जरूरी है![]() सुपरिचित रचनाकार। गीत, गजल, कहानी, एकांकी, निबंध, हास्य-व्यंग्य, बाल साहित्य एवं समालोचना विधाओं में विपुललेखन। ढेरों पुरस्कार एवं सम्मानों से सम्मानित।
क्या युद्ध जरूरी है बहुत शोर है अंदर भी और बाहर भी बड़ा आतंक है अंदर दिल में बैठा हुआ और बाहर वातावरण को बहलाता हुआ बहुत डर है अंदर धमनियों में बहता हुआ और बाहर हवा में समाया हुआ।
हम जिंदगी को यों ही चलाते रहना चाहते हैं कौन ऐसा चाहेगा आदमी तो इस शोर, आतंक और डर से अंदर और भीतर से मर जाएगा।
क्या कोई चाहता है कि युद्ध हो कौन चाहता है गोलियों की गूँज और बारूद की गंध से साँस रुक जाए और हम आतंक के साए और डर के खौफ के सामने झुक जाएँ।
पर चाहने से क्या होता है होता तो वही है जो सत्ताओं की महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने की जद्दोजहद में होता है।
सत्ताएँ चाहती हैं सीमा का विस्तार दूसरे के साधनों पर अधिकार और फिर धुआँधार बम बरसाकर कर देना चाहती हैं नेस्तनाबूद उन घरों को जहाँ बच्चे रहते हैं उन अस्पतालों को जहाँ मासूम इनसानियत को बचाया जाता है या स्कूलों को जिनमें मानवता का पाठ पढ़ाया जाता है उन कारखानों को जिनमें जीवन की खुशियों को बनाया जाता है।
हम लड़ रहे हैं युद्ध कर रहे हैं बारूद का विस्फोट कर रहे हैं लेकिन अपने जुनून में सोचा है कभी कि उसके बाद क्या रह जाएगा साँस रहित धरती मलबा और राख के ढेर और देर-सवेर जब हमारी आत्मा जागेगी तो हम त्याग देंगे सभी कुछ ‘अशोक’ की तरह।
फिर महत्त्वाकांक्षा क्यों क्यों युद्ध की विभीषिका क्यों गोलियों का नर्तन क्यों सैनिकों की पलटन और उनके बूटों की आवाज
सोचो और अपनी आत्मा में झाँको या फिर जिंदगी के विष को पियो जैसा पश्चात्ताप किया था ‘पांडवों’ ने स्वयं को बर्फ में गलाकर हम सोचें और विचारें बस भला कर, बस भला कर।
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मई 2022
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