महाराज की जय हो

सुसज्जित हाथी से उतरकर आलीशान राज महल के सभागार में राजा का प्रस्थान हुआ शंख ढोल तासे, नगाड़े, काँसे, बाँसुरिया, झाल करताल, तुरही, मृदंग जोर-जोर से बजने लगे। सभागार में उपस्थित पंडितों ने मंत्र पाठ किया और मित्र, मंत्री, मुँहलगे, बड़े-बूढ़े जवान, फरियादी, पंच, सेनापति, दास-दासियाँ सभी एक सुर में जय-जयकार करने लगे। अपने दाहिने हाथ में रेशमी पटका डाले बड़े-बड़े डगों से चलते हुए राजा प्रसन्न मुद्रा में स्वाभिमान के साथ सिंहासन पर विराजमान हुआ।

पुष्प अर्पण, जयकारों, स्वागत सत्कार और शोर-शराबे के साथ-साथ राजा ने बैठते-बैठते पूरी सभा पर एक दंभभरी दृष्टि डाली और अपने दोनों हाथों को ऊपर करके सभी को बैठने का इशारा किया। सभा शांत हो चुकी थी।

“सभा की काररवाई प्रारंभ की जाए”...इसी आदेश के साथ काररवाई प्रारंभ हुई। पिछले कई दिनों से एक विशेष पुरस्कार देने हेतु किसी परम विद्वान व्यक्ति को राजपुरोहित के पद से सुशोभित करने हेतु विशेष चर्चा एवं विचार-विमर्श चल रहा था। आखिरकार निर्णय का दिन आया। राजा को उस दिन दो घोषणाएँ करनी थीं, प्रथम राजपुरोहित की नियुक्ति एवं एक अन्य पुरुस्कार की घोषणा।

सभी लोग राजा के मुख की ओर नजरें गड़ाए साँस रोककर निर्णय सुनने की प्रतीक्षा में थे तभी राजा ने घोषित किया, “काफी दिनों के विचार-विमर्श एवं चर्चा के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि राजबल्लभ को राजपुरोहित का पद दिया जाए, अतः राजबल्लभ को राजपुरोहित नियुक्त किया जाता है।”

महाराज की जय हो, महाराज की जय हो, बहुत अच्छा निर्णय है। सर्वश्रेष्ठ निर्णय हेतु ही हमारे महाराज को जाना जाता है। इस तरह तरह-तरह के वाक्यों से महाराज के निर्णय को सर्वोत्तम कहा जा रहा था।

उसी दिन रात्रि में रानी ने राजा के समक्ष अपना विरोध दर्ज कराया महाराज राजबल्लभ का निर्णय मुझे बिल्कुल पसंद नहीं मेरे भतीजे में क्या बुराई थी, वह भी तो सुशिक्षित व्यक्ति है।

परंतु...परंतु कुछ नहीं, मुझे अपने भतीजे की नियुक्ति ही चाहिए। प्रिये, इस पद को सुशोभित करनेवाले व्यक्ति का चरित्र सर्वोत्तम और बेदाग होना चाहिए लेकिन तुम तो जानती ही हो, मुझे कुछ नहीं पता...बीच में ही बात काटते हुए महारानी ने कहा क्या हुआ अगर भ्रष्टाचार के मामलों में दो बार पकड़ा गया, राजनीति में ये सब चीजें चलती रहती हैं। रानी रूठी तो रतनजीत के पद पर आसीन होने के निर्णय से कम पर बिल्कुल तैयार न थी। अंततः रातोरात निर्णय को पलटने का निश्चय कर लिया गया।

अगले दिन पुष्प अर्पण, जयकारों, स्वागत सत्कार और शोर-शराबे के साथ-साथ राजा ने बैठते-बैठते पूरी सभा पर एक दृष्टि डालते हुए दोनों हाथों को ऊपर करके सभी को बैठने का इशारा किया। सभा के शांत होने के साथ ही राजा ने कहा, “मैंने काफी विचार-विमर्श के पश्चात् कल के निर्णय को बदलने का निश्चय किया है”, सभा में बैठे सभी लोग टकटकी लगाकर राजा की ओर देखने लगे कि अचानक से इस निर्णय को बदलने का क्या कारण हो सकता है, राजा ने भरी सभा में अपना निर्णय सुनाते हुए कहा राजबल्लभ से अधिक विद्वान् व्यक्ति रतनजीत है अतः रतनजीत को इस राज्य का राजपुरोहित घोषित किया जाता है।”

राजा द्वारा उद्घोषणा किए जाते ही सभा में उपस्थित सभी लोग राजा की जय-जयकार करने लगे, “महाराज की जय हो...महाराज की जय हो...सर्वोत्तम निर्णय...हमारे महाराज अच्छे निर्णयों के लिए ही देश में जाने जाते हैं। रतनजीत का फूलों के हार और जय-जयकार से स्वागत किया गया। सभी को राजा द्वारा किए गए निर्णय पर बहुत प्रसन्नता और विश्वास था।


प्रतिभा चौहान
अपर जिला न्यायाधीश, बिहार
दूरभाष : ०८७०९७५५३७७

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