शिक्षा के क्षेत्र में भारत कहाँ है?

शिक्षा के क्षेत्र में भारत कहाँ है?

रामकृष्ण मिशन से मेरा घनिष्ठ संबंध १९६३ से है। नरेंद्रपुर कलकत्ते के निकट में इनका आवासीय विद्यालय कक्षा सात से स्नातक बी.ए. तक का था। उन दिनों हायर सेकेंडरी परीक्षा में से उच्चतम अंक प्राप्त करनेवालों में एक या दो विद्यार्थी उनके रहते।

प्रत्येक वर्ष मैं देखता कि विश्व में अनेक देशों से कुछ नोबल लायरेट निकलते हैं। भारत में भी पहले रवींद्रनाथ टैगोर, रमन, चंद्र शेखर को पराधीन भारत में नोबल लायरेट प्राप्त हुआ। आजाद भारत में कैलास सत्यार्थी को नोबल पुरस्कार प्राप्त हुए। सत्यार्थी सेवा के क्षेत्र में थे शिक्षा के क्षेत्र में नहीं थे। अमर्त्यसेन का भी सारा जीवन इंग्लैंड में ही बीता।

मैंने अनेक बार रामकृष्ण मिशन के उच्चतम अधिकारियों से एक विश्वविद्यालय के लिए अनुरोध किया। पर उनकी प्रतिक्रिया थी कि हमारा काम संन्यासी बनाने का है, नोबेल लारेट बनाने का नहीं।

२००२ की बात है। अर्जुन सिंहजी ह्यूमेन डवलपमेंट कैबिनेट मंत्री थे। वे मध्य प्रदेश से थे। मध्य प्रदेश में मेरे उद्योग होने के कारण मेरे उनसे अच्छे संबंध थे। रामकृष्ण मिशन भी यह जानता था। एक दिन उनका फोन आया कि हमारे वरिष्ठ संन्यासी अर्जुन सिंह से मिलने आ रहे हैं। तुम्हें भी हमारे साथ चलना है। इनमें एक संन्यासी स्वामी मुमुक्षानंदजी थे। नरेंद्रपुर में वे अध्यक्ष थे। मैं उनके पास १९५२ में दो दिन ठहरा था। वे बेलूड़ मठ में ब्रह्मचारियों के विद्यालय के शिक्षक थे। मैं उनसे मिला था। शायद १९९६ के आस-पास की बात है। वहीं पहुँचकर उन्हें सूचना दी तो पता चला कि ब्रह्मचारी विद्यालय के भीतर किसी गृहस्थ को आने की अनुमति नहीं है। पर मुमुक्षानंदजी विद्यालय के बाहर आकर मुझसे मिलेंगे।

मैंने उनसे अनुरोध किया कि नरेंद्रपुर जैसा विद्यालय हमारे भीलवाड़ा में खोलें। उन्होंने कहा कि तुम एक बार स्वयं खोलो। हम रामकृष्ण मिशन से एक व्यक्ति तुम्हें दे देंगे। वह तुम्हारी सहायता करेगा। हमने विद्यालय आरंभ कर लिया। नरेंद्रपुर के ही स्वामी मुमुक्षानंदजी ने भूमि पूजन किया। स्वामी असक्तानंदजी ने विद्यालय आरंभ के लिए पूजन किया।

यह सब मैं मेरे उनसे घनिष्ठ परिचय की जानकारी के लिए लिख रहा हूँ।

अर्जुन सिंहजी से हम लोग मिले। मैंने उनसे पहले मिलकर प्रार्थना की थी कि रामकृष्ण मिशन विश्वविद्यालय खोलने में आपकी सहायता चाहते हैं। भारत से नोबल लायरेट निकालने का यह अवसर है। आप इन पर नोबल लायरेट निकालने पर जोर दें। विश्व के सर्वोच्च ५०० विश्वविद्यालय मध्य में ४८० से ५०० के बीच केवल हमारी तीन आई.आई.टी. हैं। रामकृष्ण मिशन को प्रेरणा दें।

हम लोग अर्जुन सिंहजी से मिले। वे अत्यंत उत्साहित थे। उन्होंने कहा कि मैं सोनियाजी से बात कर लेता हूँ। उनसे उद्घाटन करवा दूँगा। आप सरकार से क्या चाहते हैं, यह मुझे बता दें। थोड़ा विस्तृत अध्ययन कर उनको बताया कि चालीस करोड़ रुपयों की आवश्यकता होगी। उन्होंने मुझसे पूछा कि इतने रुपए कहाँ लगेंगे। मैंने उनको समझाया कि विश्वविद्यालय के विषय Rural Development, Poverty alleviation, disaster management रखना चाहते थे। मैंने उन पर Mathematics पर जोर दिया, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्वविद्यालय की तुलना हो सके। Mathematics की उच्च शिक्षा की पुस्तकें अमेरिका व जर्मनी की खरीदनी होंगी। एक-एक पुस्तक सात सौ डालर के आस-पास की है। अर्जुन सिंहजी मान गए। वे बोले कि यदि मैं प्लानिंग कमीशन जाऊँगा तो बरसों लग जाएँगे। मेरे मंत्रालय के बजट से मैं यह दे दूँगा। इसके भूमिपूजन में पधारने के लिए मैं सोनियाजी से अनुरोध करूँगा।

स्मरणानंदजी महाराज उस समय रामकृष्ण मिशन के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष थे। सोनियाजी के नाम से उन्होंने कहा कि यह राजनीति का खेल है। रामकृष्ण मिशन इसमें नहीं जाएगा। विश्वविद्यालय का प्रस्ताव छोड़ दो। मैंने उन्हें कहा कि आप छोड़‌िए मत। मैं अर्जुन सिंहजी को समझाऊँगा।

मैंने उन्हें मिलकर समझाया कि स्वामी विवेकानंद ने स्वयं संविधान बनाया है तथा उसमें लिखा है कि रामकृष्ण मिशन राजनीति से किसी प्रकार का सीधा व दूर-दूर का भी संबंध नहीं रखेगा। मैंने उन्हें विवेकानंद संबंधी साहित्य दिखाया तो उन्होंने कहा कि मैं भी तो राजनीति में डूबा हुआ हूँ तो मेरे पास क्यों आते हैं। तो मैंने उनसे कहा कि हम शिक्षा मंत्री के पास आ रहे हैं, राजनेता के पास नहीं आ रहे हैं।

आखिर अर्जुन सिंहजी भूमि पूजा के लिए गए। उन्होंने मुझे भी चलने के लिए कहा, पर रामकृष्ण मिशन ने मुझे नहीं कहा था। अत: मैं नहीं गया। उनके समक्ष मेरी प्रतिभा व्यापारी की थी। अत: नहीं कहा। मैं प्रथम बार नरेंद्रपुर के गृहस्थ भक्त शुक्लाजी के अनुरोध से गया, पंद्रह वर्ष से वे नरेंद्रपुर ही रह रहे थे। लोकेश्वरानंदजी महाराज नरेंद्रपुर के अध्यक्ष थे। मैं २४ घंटे रहने के लिए गया था। शाम को वहाँ पहुँचा। लोकेश्वरानंदजी ने शुक्लाजी को फटकारा कि व्यापारी लोग चोरी से पैसा कमाते हैं ऐसे लोगों को तुम ले आते हो। अतिथि कक्ष में मुझे स्थान नहीं दिया। शुक्लाजी ने दफ्तर में तीन टेबल लगाकर गद्दा बिछाकर मेरे सोने की व्यवस्था की। वे भी अत्यंत शर्मिंदा थे। प्रात: होते ही मैं वहाँ से निकल पड़ा। पीछे जाकर लोकेश्वरानंदजी महाराज का मेरे पर अत्यंत स्नेह हो गया। मैं नरेंद्रपुर गया। लोकेश्वरानंदजी ने एक घंटा मुझे समझाया कि कैसे आजादी के बाद मेहर चंद महाराज की सहायता से नरेंद्रपुर बना।

विश्वविद्यालय शुरू हुआ। Management Commetee में चार संन्यासी तथा चार सरकारी प्रतिनिध‌ि रखे गए। अर्जुन सिंहजी ने जब मेरा नाम नहीं देखा तो उन्होंने सरकार की ओर से मुझे नामित किया। कमिटी मीटिंग के लिए मैं दिल्ली से कलकत्ते जाता। भारत में योग्य गणितज्ञ नहीं मिला तो विश्व में खोज की।

बंगाली सज्जन जापान में उच्चकोटि के जापानियों को गणित के अनुसंधान में मार्गप्रदर्शन करते थे। वे भी भारत आना चाहते थे। वे आ गए। गणित पर शिक्षा आरंभ हुई। कलकत्ते के गणित के उच्चकोटि के विद्यार्थी मार्गदर्शन लेते थे। ऐसा लगा कि कुछ वर्षों में एक नोबल लायरेट रामकृष्ण मिशन निकाल लेगा। ये बंगाली सज्जन हाफपेंट आदि पहनकर रहते थे। शारदा मठ की प्रब्रजाकियों ने उन्हें देखा तो उन्हें अच्छा नहीं लगा। रामकृष्ण मिशन ने तो क्योटो के विद्वान् से कुछ नहीं कहा, पर फिर भी उनको लगा कि रामकृष्ण मिशन को मेरी शैली अनुकूल नहीं है। वे छोड़कर वापस क्योटो चले गए।

यहाँ एक बात कहूँ। मैं अर्जुन सिंहजी के पास रामकृष्ण विश्वविद्यालय संबंधी किसी काम से गया था। उन्होंने यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन के अध्यक्ष को बुलाया। उसे बैठने के लिए भी नहीं कहा। खड़े-खड़े ही वे बात कर रहे थे। मैं बैठा हुआ शर्मिंदा अनुभव कर रहा था। पर दुःख इस बात का था कि इतने उच्चकोटि के शिक्षाविद् को स्वाभिमान नहीं था। कुरसी से स्नेह अधिक था। जब तक शिक्षा के क्षेत्र में उच्च पदों पर स्वाभिमान का भाव नहीं जगेगा तो शिक्षा में उन्नति नहीं होगी।

रामकृष्ण मिशन को यह अनुभव हुआ कि भारत से गणित में नोबेल लायरेट निकालना संभव नहीं है। वैसा वातावरण नहीं है।

अमरीका में नोबल लायरेट आपस में मिलते रहते हैं। एक-दूसरे से प्रेरणा लेते हैं। विद्यार्थियों का भी नोबल लायरेट से संपर्क होता रहता है। नोबल लायरेट बनने की अकांक्षा उत्पन्न होती है। भारत से हजारों विद्यार्थी अमेरिका पढ़ने जाते हैं। अरबों रुपयों की विदेशी मुद्रा खर्च होती है। वही के विश्वविद्यालयों में नोबल लायरेट रहते हैं। यद्यपि उनका लाभ अत्यंत उच्च दर्जे के विद्वानों को ही मिलता है, पर उन्हें देखकर प्रेरणा प्राप्त होती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मैं मिला था। शिक्षा के संबंध में काफी चर्चा हुई थी। वे काफी उत्साहित थे। मुझे आशा है कि रामकृष्ण विश्वविद्यालय अवश्य किसी दिन नोबल लायरेट निकालेगा। उनके भक्तिनिष्ठ प्रयास अवश्य कभी प्रभाव दिखाएँगे।

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