कर्मफल

रामप्यारी अपनी सभी पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूर्ण कर अपने पति के साथ बैठी थी। अचानक ही न जाने उसे क्या सूझी जो अपने पति से बोली,  सुनो जी, अपने सभी काम पूर्ण हो गए, अब हमें भी यात्रा पर जाना चाहिए। यह सुनकर पति बोला,  भाग्यवान, कहती तो तुम ठीक हो, लेकिन इस घर और इन जानवरों की देखभाल कौन करेगा? यह सुनकर रामप्यारी थोड़ा सोचने लगी और घर के अंदर पति के लिए पानी लेने के लिए चली गई। पानी लेकर पति के पास आकर रामप्यारी बोली, ‘सुनो जी, मेरी सहेली अपनी पड़ोसन कमला कब काम आएगी। मैं उसे कहूँगी तो वह कभी मेरा काम मना नहीं करेगी। मैं उसे अपनी बहन से ज्यादा मानती हूँ। मैं उसे सभी जिम्मेदारी देकर चलूँगी। रामप्यारी की बात सुनकर पति भी सोचकर बोला, तो बात करके देख ले, अगर वह मानती है तो हम यात्रा पर जा सकते हैं।’ रामप्यारी बिना देर किए अपनी सहेली कमला के घर जाकर अपनी सारी बात उसे बताती है। कमला कहती है,  क्यों नहीं तेरी यहाँ की सारी जिम्मेदारी मैं सँभाल लूँगी, तू तो जाने की तैयारी कर।

कमला के आश्वासन के बाद रामप्यारी एवं उसका पति सभी जिम्मेदारी कमला को सुपुर्द कर यात्रा पर चले जाते हैं। पीछे से कमला उनकी समस्त जिम्मेदारियों का निर्वहन करती है। एक दिन कमला रामप्यारी गोदाम में जाती है, वहाँ ढेरों बोरी गेहूँ की देखती हैं तो उसके मन में लालच आ जाता है कि रामप्यारी के पास इतना गेहूँ है और मेरे पास नहीं, यह सोचकर वह मन ही मन कहती है, ‘अगर थोड़ा-थोड़ा करके दो बोरी गेहूँ मैं ले लूँ तो किसी को क्या पता चलेगा?’ यह सोचकर कमला अपने घर चली जाती है।

दूसरे दिन कमला गेहूँ लेकर अपने घर जाती है तो उसे किसी के हँसने की आवाज आती है, वह इधर-उधर देखती है किंतु उसे कोई नजर नहीं आता। दूसरे दिन भी यही क्रम चलता है, वह गेहूँ लेकर जाती है और उसे किसी के हँसने की आवाज आती है तो वह जोर से कहती है, ‘‘कौन है यहाँ?  उसे कोई जवाब नहीं मिलता, वह गेहूँ लेकर चली जाती है। अगले दिन उसे हँसने की आवाज आती है तो वह सभी तरफ देखती है तो उसे रामप्यारी का बैल हँसता हुआ नजर आता है, तो वह उससे पूछती है,  क्या तुम हँस रहे हो?  तो वह बोलता है, ‘‘हाँ, मैं ही हँस रहा हूँ तेरी नादानी पर।’’ यह सुनकर कमला थोड़ा डरते हुए कहती है,  नादानी क्यों?  बैल कहता है,  सुन मेरी बात, पिछले जन्म मैं मैंने रामप्यारी के खेत से बिना पूछे गेहूँ की चार बाली तोड़कर खाई थीं, जिसका कर्ज १६ साल बैल बनकर चुका रहा हूँ, और तुमने तो दो बोरी गेहूँ विश्वासघात करके लिये हैं तो तेरा कर्मफल क्या होगा, यही सोचकर हँस रहा हूँ।

७३ महाराणा प्रताप कॉलोनी

                        हिरण मगरी, सेक्टर १३, उदयपुर (राज.)

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