कौन था...

कौन था...

जाने-माने बाल-साहित्यकार। ‘हास्य-व्यंग्य कथाएँ’, ‘उत्तराखंड की लोक-कथाएँ’, ‘किलकारी’, ‘यमलोक की यात्रा’, ‘ऐसे बदला खानपुर’, ‘बदल गया मालवा’, ‘बिगड़ी बात बनी’, ‘खुशी’, ‘अब बजाओ ताली’, ‘बोडा की बातें’, ‘सवाल दस रुपए का’ आदि। बाल कहानियाँ मराठी में अनूदित।

गिलहरी उचककर पैरों पर खड़ी हो गई। बुदबुदाई, “साँप, नेवला, खरगोश और मेढक एक साथ हैं! कोई तो वहाँ है।” गिलहरी दबे पांव चलना जानती थी। वह वहाँ जा पहुँची, जहाँ सब थे। वह एक बिल के चारों ओर इकट्ठा थे। सब बिल में झाँक रहे थे। बिल का मुँह बड़ा था। बिल गहरा था। अचानक मेढक आगे बढ़ता हुआ बोला, “मैं जाकर देखता हूँ।” मेढक ने छलाँग लगाई और बिल में जा घुसा। लेकिन यह क्या! वह दूसरे ही पल बिल से बाहर आ गया। हाँफता हुआ बोला, “कोई तो है! वह बिल में आग जलाए बैठा है!”

खरगोश ने हँसते हुए कहा, “आग की लपटें घटती-बढ़ती हैं। जहाँ आग होती है, वहाँ धुआँ भी तो होता है। लेकिन यहाँ धुआँ नहीं है। पीछे हटो। मैं देखता हूँ।” यह कहकर खरगोश बिल में जा घुसा। पर यह क्या! वह दूसरे ही क्षण लौट आया। उसकी लाल आँखें सिकुड़ गईं। वह घबराते हुए बोला, “कोई तो है! उसने सूरज के बच्चे को पकड़ा हुआ है!”

गिलहरी भला क्यों चुप रहती। वह हँसते हुए बोली, “सूरज का बच्चा! सूरज आग का गोला है। वह अकेला है। उसका कोई बच्चा नहीं है। पीछे हटो। मैं देखती हूँ।” यह कहकर गिलहरी बिल में जा घुसी। परंतु वह उलटे पांव लौट आई। उसकी झाड़ू जैसी पूँछ हवा में काँप रही थी। वह बोली, “नागमणि है। नाग भी बिल में ही है।” साँप हँसने लगा। तभी नेवला बोला, “यह बात गलत है। कोई भी साँप मणि नहीं रखता। पीछे हटो। मैं देखता हूँ।” नेवला बिल में घुस गया। तुरंत ही लौट आया। उसके दाँत किटकिटा रहे थे। बोला, “कोई तो है। वह एक आँख वाला है।”

चूहा आगे आया। बोला, “एक आँख वाला कोई कहाँ होता है? मैं देखता हूँ। पीछे हटो।” यह सुनकर सब हँसने लगे। बंदर ने मुँह में हाथ रखते हुए कहा, “तुम तो रहने ही दो।” लेकिन चूहा नहीं माना। वह बिल में चला गया। बिल से आवाज आने लगीं, ‘सररर। सरसर। खररर। खरखर।’ साँप ने कहा, “चूहे की तो वाट लग गई।” तभी नेवले ने कहा, “देखो। चूहे की पूँछ बिल से बाहर आ रही है!” गिलहरी ने जवाब दिया, “नहीं! नहीं! कोई चूहे को बाहर धकेल रहा है।” खरगोश बोला, “नहीं! नहीं! चूहा किसी को खींच कर बाहर ला रहा है।”

चूहा बिल से बाहर आ गया। चूहे के दाँतों में एक डोर थी। डोर से टॉर्च बँधी हुई थी। टॉर्च जल रही थी। “ओह! ये तो टॉर्च है!” सब ने गहरी सांस लेते हुए एक साथ कहा।

 

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