होली का त्योहार

होली का त्योहार

सुपरिचित लेखक। लेखन क्षेत्र में बाल-साहित्य के साथ बाल-कहानियाँ, रचनाएँ निरंतर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। माँ की सीख, आदमी से रक्षा, जंगल में दीवाली आदि अनेक कहानियाँ प्रकाशित।

मंकू बंदर और उसका टोल एक बार जंगल में मौज-मस्ती कर रहा था। अचानक उधर से हाथियों का एक दल अपनी मस्ती में झूमता हुआ आ धमका। सभी जानवर अपना-अपना बचाव करते हुए उनके रास्ते से दूर चले गए, परंतु बंदरों का वह दल अपनी ही धुन पर सवार उन हाथियों को तंग करने लगा। कभी उनकी पीठ पर चढ़ जाता, कभी पूँछ खींचता, कभी कान खींचता, कभी किसी के लंबे दाँतों पर चढ़ जाता। जब वे हाथी उन्हें डराने की कोशिश करते तो वे आसपास खड़े पेड़ों की चोटियों पर जा चढ़ते। इस प्रकार वे हाथियों को तंग करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे।

सभी हाथी अपनी मस्ती में निकल रहे थे, परंतु गज्जू नाम के एक हाथी के बच्चे को क्रोध आ गया। उसने आव देखा न ताव, बंदरों के दल के मुखिया मंकू को अपनी सूँड़ से एक हल्का सा झटका दे मारा, जिससे वह दूर छिटक गया। यदि वह झटका थोड़ा भी जोर से लगता तो उसको अपनी जान से हाथ धोना पड़ जाता। किसी तरह बचता-बचाता मंकू हाथियों के दल से दूर चला गया। वह और उसका दल भी उसके पीछे-पीछे वहाँ से भाग निकला।

तब से मंकू बंदर गज्जू हाथी से खार खाए बैठा था और वह उससे बदला लेने की योजना बनाने लगा । वह एक अदना सा बंदर व गज्जू एक भारी-भरकम हाथी। भला वह उससे बदला कैसे ले सकता था? क्योंकि शरीर की बनावट व डीलडौल से बंदर और हाथी का क्या मुकाबला, परंतु बलवान प्रतिद्वंद्वी से तो केवल बुद्धि द्वारा ही बदला दिया जा सकता है। पर जानवर के पास ऐसी बुद्धि कहाँ? मंकू बंदर हमेशा गज्जू हाथी से बदला लेने की सोचता रहता था।

लंबी व ठंडी सर्दी के बाद मौसम बदल गया तथा बसंत का मौसम आ गया था। हर तरफ हरियाली छाने लगी थी। सभी जानवर मौसम बदलने के उपलक्ष्य में कोई मौज-मस्ती वाला उत्सव मनाना चाह रहे थे। मंकू बंदर, गज्जू हाथी, लौमू लोमड़, गिदू सियार, भोलू भालू, चंकी हिरण आदि सभी जानवर होली मनाने की तैयारियों में लग गए। गज्जू हाथी तो खुश था, क्योंकि उसे अपनी सूँड़ से रंग भरकर सभी जानवरों को रंगों से भिगाने का मौका मिल गया था, मंकू बंदर तो मौके की तलाश में था ही। उसने सोचा कि गज्जू हाथी से बदला लेने का यही समय उचित है।

होली के लिए सभी जानवरों ने जंगल में जहाँ-तहाँ खिले फूलों और पत्तियों को मसलकर कुदरती रंग बनाए, जिससे किसी को कोई नुकसान न हो, परंतु मंकू बंदर गज्जू हाथी से बदला लेना चाहता था और वह ऐसे रंगों की तलाश में था, जिससे गज्जू हाथी को नुकसान पहुँचे । घूमते-घूमते वह जंगल से शहर की ओर निकल गया। शहर में भी होली की तैयारियाँ चल रही थीं। बाजार में जहाँ खाने-पीने की कई प्रकार की चीजें थी, वहीं तरह-तरह के कृत्रिम रंग भी उपलब्ध थे। मंकू बंदर एक ठेले वाले की दुकान के सामने से निकल रहा था। वहाँ पर कई प्रकार के कृत्रिम रंग उपलब्ध थे। मंकू बंदर ने उन्हें खाने की सामग्री समझकर चुपके से रंगों की कुछ थैलियाँ झपट लीं। जैसे ही ठेले वाले ने उसे देखा तो वह भाग खड़ा हुआ। जंगल के नजदीक पहुँचकर वह उसे खाने की वस्तु समझकर खाने के लिए उद्यत हुआ। जैसे ही उसने थैली फाड़ी तो उससे एक तीखी सुगंध वाला पाउडर निकला जो कि कृत्रिम रंग था। उसने उसे अपनी मुट्ठी में भरकर खा लिया। जैसे ही उसने उसे खाया उसके रंग से उसके हाथ मुँह में वह रंग चढ़ गया। थोड़ी देर बाद उसके हाथ व मुँह में खुजली होने लगी, साथ ही उसका जी भी मिचलने लगा। अपनी परेशानी भूलकर वह जो सोचकर खुश हो गया कि इस रंग से रँगे पानी को जब गज्जू हाथी अपनी सूँड़ में भरेगा तो उसको भी हो सकता है, ऐसी ही परेशानी हो। यह सोचकर वह उछलता-कूदता हुआ वह जंगल की ओर भाग गया।

होली के दिन सभी जानवर अपने-अपने प्राकृतिक रंगों के साथ एक खुले स्थान पर आ गए। मंकू बंदर भी अपने कृत्रिम रंगों के साथ उछलता कूदता वहाँ आ पहुँचा। उसने एक बड़ी नांद में वह कृत्रिम रंग घोल लिया और अन्य जानवरों के साथ होली खेलने में मस्त हो गया। तब तक गज्जू हाथी भी अपनी मस्ती में झूमता हुआ आ पहुँचा। गज्जू हाथी को आया देख मंकू बंदर फूलकर कुप्पा हो गया, क्योंकि उसने उससे बदला जो लेना था। वह अन्य जानवरों के बजाए गज्जू हाथी को अपने कृत्रिम रंग को सूँड़ में भरकर सभी जानवरों पर फेंकने के लिए उकसाता रहा।

गज्जू हाथी भी मंकू बंदर के उकसाने पर कृत्रिम रंगों को अपनी सूँड़ में भर-भरकर अन्य सभी जानवरों पर फेंकने लगा। होली कि मौज-मस्ती में सभी खुश थे, परंतु उनकी यह खुशी अधिक समय तक नहीं टिक सकी। सभी जानवरों के शरीर में एक अजीब सी खुजली होने लगी, जिसके कारण सभी जानवर परेशान होकर इधर-उधर भागने लगे। गज्जू हाथी का तो कहना ही क्या? उसकी सूँड़, आँखें इत्यादि में सूजन आ गई व अत्यधिक खुजली होने लगी। गज्जू हाथी परेशान होकर इधर-उधर भागने लगा। उसे परेशान देखकर मंकू बंदर वहाँ से खिसक गया और दूर जाकर एक बड़े वृक्ष की पत्तियों के बीच छुपकर सारा तमाशा देखता रहा।

सभी जानवर पास के तालाब में जाकर खूब डुबकी लगा-लगाकर नहाने लगे, जिससे उनके शरीर की खुजली धीरे-धीरे कम होती गई और सभी अपने-अपने ठिकाने की ओर चल दिए। गज्जू हाथी की परेशानी दूर होने का नाम नहीं ले रही थी, क्योंकि कृत्रिम रंगों के अत्यधिक प्रयोग के कारण उसके सूँड़, आँख, नाक और कान इत्यादि में कुछ संक्रमण हो गया था, जो तालाब में नहाने या डुबकी लगाने ले दूर नहीं हो सकता था। इसके लिए केवल कुशल चिकित्सा व लंबे समय कि आवश्यकता थी। गज्जू हाथी मारे दर्द के तड़पने लगा, उसकी यह हालत देखकर सभी जानवर चिंतित हो गए। मंकू बंदर तो पहले ही खिसक गया था, इसलिए सभी जानवरों को यह समझते देर नहीं लगी कि यह सब करतूत मंकू बंदर द्वारा चुराकर लाए गए कृत्रिम रंगों के कारण ही हुई है, अन्यथा वह वहाँ से खिसकता ही क्यों?

आखिर मामला वनराज सिंह के पास चला गया। वनराज सिंह ने सारे मामले को ध्यान से सुना व मंकू बंदर को दरबार में हाजिर होने के लिए आदेश दे दिया। मंकू बंदर डर के मारे थरथर काँपता हुआ वनराज सिंह के दरबार में पहुँचा, इससे पहले कि वनराज सिंह उससे कुछ पूछते, मंकू बंदर जोर-जोर से रोने व गिड़गिड़ाने लगा तथा अपने किए पर क्षमा-याचना माँगने लगा। उसके गिड़गिड़ाने व क्षमा-याचना के कारण वनराज सिंह व अन्य जानवरों का दिल पसीज गया, पर उसे उसके किए की सजा देना तो आवश्यक था, अन्यथा वह फिर कभी ऐसी कोई और हरकत कर डालता, जिससे अन्य जानवरों को परेशानी हो सकती।

वनराज सिंह ने उसे चेतावनी देते हुए आदेश दिया कि कस्बों व बाजारों में उपलब्ध बनावटी चीजें मानव द्वारा अपने इस्तेमाल के लिए ही होती हैं। हम जानवरों को कुदरत द्वारा प्रदान की गई खाने-पीने की वस्तुएँ ही प्रयोग करनी चाहिए। आदमी अपनी बुद्धि व विवेक से कुछ भी कर सकता है, विपत्ति आने पर उसका समाधान खोज सकता है, परंतु हम जानवर ऐसा नहीं कर सकते। इसलिए कोई भी जानवर आदमी की नकल न करें और उनके द्वारा प्रयोग किए जाने वाली वस्तुएँ भी प्रयोग न करें, अन्यथा ऐसे भयंकर परिणाम भुगतने पड़ेंगे, साथ ही यह भी आदेश दिया कि जब तक गज्जू हाथी पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाए, मंकू बंदर उसकी पूरी सेवा शुश्रूषा करे। वह उसके चारे-पानी का भी प्रबंध करे, अन्यथा उसे भेड़िए या लकड़बग्घे के पास फेंक दिया जाएगा।

मरता क्या नहीं करता, मंकू बंदर रात-दिन गज्जू हाथी की सेवा में जुट गया।

 

बरोली, पत्रालय-दनावली,

तहसील-ननखरी,

जिला-शिमला-१७२०२१ (हि.प्र.)

दूरभाष : 9817216355

—हरदेव सिंह धीमान

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