उसकी पहली उड़ान

उसकी पहली उड़ान

सुपरिचित लेखक। हिंदी के प्रतिष्ठित कथाकार, कवि तथा साहित्यिक अनुवादक। सात कथा-संग्रह, तीन काव्य-संग्रह तथा विश्व की अनूदित कहानियों के छह संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।

मुद्री चिड़िया का बड़ा हो चुका बच्चा पत्थर के उठे हुए किनारे पर अकेला था। उसकी बहन और उसके दो भाई कल ही उड़कर जा चुके थे। वह डर जाने की वजह से उनके साथ नहीं उड़ पाया था। जब वह पत्थर के उठे हुए किनारे की ओर दौड़ा था और उसने अपने पंखों को फड़फड़ाने का प्रयास किया था, तब पता नहीं क्यों वह डर गया था। नीचे समुद्र का अनंत विस्तार था और उठे हुए पत्थर के कगार से नीचे की गहराई मीलों की थी। उसे ऐसा पक्का लगा था कि उसके पंख उसे नहीं सँभाल पाएँगे, इसलिए अपना सिर झुकाकर वह वापस पीछे उठे हुए पत्थर के नीचे मौजूद उस जगह की ओर भाग गया था, जहाँ वह रात में सोया करता था। जबकि उससे छोटे पंखों वाली उसकी बहन और उसके दोनों भाई कगार पर जाकर अपने पंख फड़फड़ाकर हवा में उड़ गए थे, वह उस किनारे के बाद की गहराई से डर गया था और वहाँ से कूदकर उड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था। इतनी ऊँचाई से कूदने का विचार ही उसे हताश कर दे रहा था। उसकी माँ और उसके पिता तीखे स्वर में उसे डाँट रहे थे। वे तो उसे धमकी भी दे रहे थे कि यदि उसने जल्दी उड़ान नहीं भरी तो पत्थर के उस उठे हुए किनारे पर उसे अकेले भूखा रहना पड़ेगा। लेकिन बेहद डर जाने की वजह से वह अब हिल भी नहीं पा रहा था।

यह सब चौबीस घंटे पहले की बात थी। तब से अब तक उसके पास कोई नहीं आया था। कल उसने अपने माता-पिता को पूरे दिन अपने भाई-बहनों के साथ उड़ते हुए देखा था। वे दोनों उसके भाई-बहनों को उड़ान की कला में माहिर बनने और लहरों को छूते हुए उड़ने का प्रशिक्षण दे रहे थे। साथ ही वे उन्हें पानी के अंदर मछलियों का शिकार करने के लिए गोता लगाने की कला में पारंगत होना भी सिखा रहे थे। दरअसल उसने अपने बड़े भाई को चट्टान पर बैठकर अपनी पहली पकड़ी हुई मछली खाते हुए भी देखा था, जबकि उसके माता-पिता उसके बड़े भाई के चारो ओर उड़ते हुए गर्व से शोर मचा रहे थे। सारी सुबह समुद्री चिड़िया का पूरा परिवार उस बड़े पठार के ऊपर हवाई-गश्त लगाता रहा था। पत्थर के दूसरे उठे हुए किनारे पर पहुँचकर उन सब ने उसकी बुजदिली पर उसे बहुत ताने मारे थे।

सूरज अब आसमान में ऊपर चढ़ रहा था। दक्षिण की ओर उठे हुए पत्थर के नीचे मौजूद उसकी बैठने की जगह पर भी तेज धूप पड़ने लगी थी। चूँकि उसे पिछली रात के बाद से खाने के लिए कुछ नहीं मिला था, धूप की गरमी उसे विचलित करने लगी। पिछली रात उसे कगार के पास मछली की पूँछ का एक सूखा टुकड़ा पड़ा हुआ मिल गया था। किंतु अब खाने का कोई कतरा उसके आस-पास नहीं था। उसने चारो ओर ध्यान से देख लिया था। यहाँ तक कि अब गंदगी में लिपटे, घास के सूखे तिनकों से बने उस घोंसले के आस-पास भी कुछ नहीं था, जहाँ उसका और उसके भाई-बहनों का जन्म हुआ था। भूख से व्याकुल हो कर उसने अंडे के टूटे पड़े सूखे छिलकों को भी चबाया था। यह अपने ही एक हिस्से को खाने जैसा था। परेशान होकर वह उस छोटी सी जगह में लगातार चहलकदमी करता रहा था। बिना उड़ान भरे वह अपने माता-पिता तक कैसे पहुँच सकता है, इस प्रश्न पर वह लगातार विचार कर रहा था, किंतु उसे कोई राह नहीं सूझी। उसके दोनों ओर कगार के बाद मीलों लंबी गहराई थी, और बहुत नीचे गहरा समुद्र था। उसके और उसके माता-पिता के बीच में एक गहरी, चौड़ी खाई थी। यदि वह कगार से उत्तर की ओर चलकर जा पाता, तो वह अपने माता-पिता तक पहुँच सकता था। लेकिन वह चलता किस पर? वहाँ तो पत्थर थे ही नहीं, केवल गहरी खाई थी! और उसे उड़ना आता ही नहीं था। अपने ऊपर भी वह कुछ नहीं देख पा रहा था, क्योंकि उसके ऊपर की चट्टान आगे की ओर निकली हुई थी, जिसने दृश्य को ढक लिया था। और पत्थर के उठे हुए किनारे के नीचे तो अनंत गहराई थी ही, जहाँ बहुत नीचे था—हहराता समुद्र।

वह आगे बढ़कर कगार तक पहुँचा। अपनी दूसरी टाँग पंखों में छिपाकर वह किनारे पर एक टाँग पर खड़ा हो गया। फिर उसने एक-एक करके अपनी दोनों आँखें भी बंद कर लीं और नींद आने का बहाना करने लगा। लेकिन इस सब के बावजूद उसके माता-पिता और भाई-बहनों ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया। उसने अपने दोनों भाइयों और बहन को पठार पर अपना सिर अपने पंखों में धँसाकर ऊँघते हुए पाया। उसके पिता अपनी सफेद पीठ पर मौजूद पंखों को सजा-सँवार रहे थे। उन सब में केवल उसकी माँ ही उसकी ओर देख रही थी। वह अपनी छाती फुला कर पठार के उठे हुए भाग पर खड़ी थी। बीच-बीच में वह अपने पैरों के पास पड़े मछली के टुकड़े की चीर-फाड़ करती, और फिर पास पड़े पत्थर पर अपनी चोंच के दोनों हिस्सों को रगड़ती। खाना देखते ही वह भूख से व्याकुल हो उठा। ओह, उसे भी मछली की इसी तरह चीर-फाड़ करने में कितना मजा आता था। अपनी चोंच को धारदार बनाने के लिए वह भी तो रह-रहकर उसे पत्थर पर घिसता था। उसने एक धीमी आवाज की। उसकी माँ ने उसकी आवाज का उत्तर दिया, और उसकी ओर देखा। उसने “ओ माँ, थोड़ा खाना मुझ भूखे को भी दे दो” की गुहार लगाई।

लेकिन उसकी माँ ने उसका मजाक उड़ाते हुए चिल्लाकर पूछा, “क्या तुम्हें उड़ना आता है?” पर वह दारुण स्वर में माँ से गुहार लगाता रहा, और एक-दो मिनट के बाद उसने खुश होकर किलकारी मारी। उसकी माँ ने मछली का एक टुकड़ा उठा लिया था और वह उड़ते हुए उसी की ओर आ रही थी। चट्टान को पैरों से थपथपाते हुए वह आतुर होकर आगे की ओर झुका, ताकि वह उड़कर उसके पास आ रही माँ की चोंच में दबी मछली के नजदीक पहुँच सके। लेकिन जैसे ही उसकी माँ उसके ठीक सामने आई, वह कगार से जरा सा दूर हवा में वहीं रुक गई। उसके पंखों ने फड़फड़ाना बंद कर दिया और उसकी टाँगें बेजान होकर हवा में झूलने लगीं।

अब उसकी माँ की चोंच में दबा मछली का टुकड़ा उसकी चोंच से बस जरा सा दूर रह गया था। वह हैरान होकर एक पल के लिए रुका—आखिर माँ उसके और करीब क्यों नहीं आ रही है? फिर भूख से व्याकुल होकर उसने माँ की चोंच में दबी मछली की ओर छलाँग लगा दी।

एक जोर की चीख के साथ वह तेजी से हवा में आगे और नीचे की ओर गिरने लगा। उसकी माँ ऊपर की ओर उड़ गई। हवा में अपनी माँ के नीचे से गुजरते हुए उसने माँ के पंखों के फड़फड़ाने की आवाज सुनी। तभी एक दानवी भय ने जैसे उसे जकड़ लिया, और उसके हृदय ने जैसे धड़कना बंद कर दिया। उसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। पर यह सारा अहसास केवल पल भर के लिए हुआ। अगले ही पल उसने अपने पंखों का बाहर की ओर फैलना महसूस किया। तेज हवा उसकी छाती, पेट और पंखों से टकरा कर गुजरने लगी। उसके पंखों के किनारे जैसे हवा को चीर रहे थे। अब वह सिर के बल नीचे नहीं गिर रहा था, बल्कि हवा में तैरते हुए धीरे-धीरे नीचे और बाहर की ओर उतर रहा था। अब वह भयभीत नहीं था। बस उसे जरा अलग सा लग रहा था। फिर उसने अपने पंखों को एक बार फड़फड़ाया और वह ऊपर की ओर उठने लगा। खुश होकर उसने जोर से किलकारी मारी और अपने पंखों को दोबारा फड़फड़ाया। वह हवा में और ऊपर उठने लगा। उसने अपनी छाती फुला ली और हवा का उससे टकराना महसूस करता रहा। खुश होकर वह गाना गाने लगा। उसकी माँ ने उसके ठीक बगल से होकर गोता लगाया। उसे हवा से टकराते माँ के पंखों की तेज आवाज अच्छी लगी। उसने फिर एक किलकारी मारी।

उसे उड़ता हुआ देख कर उसके प्रसन्न पिता भी शोर मचाते हुए उसके पास पहुँच गए। फिर उसने अपने दोनों भाइयों और अपनी बहन को खुशी से उसके चारो ओर चक्कर लगाते हुए देखा। वे सब प्रसन्न होकर हवा में तैर रहे थे, गोते लगा रहे थे और कलाबाजियाँ खा रहे थे।

यह सब देखकर वह पूरी तरह भूल गया कि उसे हमेशा से उड़ना नहीं आता था। मारे खुशी के वह भी चीखते-चिल्लाते हुए हवा में तैरने और बेतहाशा गोते लगाने लगा।

अब वह समुद्र की अथाह जल-राशि के पास पहुँच गया था, बल्कि उसके ठीक ऊपर उड़ रहा था। उसके नीचे हरे रंग के पानी वाला गहरा समुद्र था, जो अनंत तक फैला जान पड़ता था। उसे यह उड़ान मजेदार लगी और उसने अपनी चोंच टेढ़ी करके एक तीखी आवाज निकाली। उसने देखा कि उसके माता-पिता और भाई-बहन उसके सामने ही समुद्र के इस हरे फर्श-से जल पर नीचे उतर आए थे। वे सब जोर-जोर से चिल्लाकर उसे भी अपने पास बुला रहे थे। यह देखकर उसने भी अपने पैरों को समुद्र के पानी पर उतार लिया। उसके पैर पानी में डूबने लगे। यह देखकर वह डर के मारे चीखा और उसने दोबारा हवा में उड़ जाने की कोशिश की। लेकिन वह थका हुआ था और खाना न मिलने के कारण कमजोर हो चुका था। इसलिए चाह कर भी वह उड़ न सका। उसके पैर अब पूरी तरह पानी में डूब गए और फिर उसके पेट ने समुद्र के पानी का स्पर्श किया। इसके साथ ही उसकी देह का पानी में डूबना रुक गया। अब वह पानी पर तैर रहा था और उसके चारों ओर खुशी से चीखता-चिल्लाता हुआ उसका पूरा परिवार जुट आया था। वे सब उसकी प्रशंसा कर रहे थे, और अपनी चोंचों में ला-लाकर उसे खाने के लिए मछलियों के टुकड़े दे रहे थे।

उसने अपनी पहली उड़ान भर ली थी।

 

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सुशांत सुप्रिय

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