RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
कहावतों-मुहावरों में कविता![]() जाने-माने रचनाकार। मूलत: गीतकार। ‘मेरा रूप तुम्हारा दर्पण’, ‘जो नितांत मेरी हैं’, ‘जिद बाकी है’ (गीत-संग्रह), ‘राग-विराग’ (ऑपेरा), ‘राही को समझाए कौन’ (गजल-संग्रह), ‘दादी अम्माँ मुझे बताओ’, ‘हम जब होंगे बड़े’, ‘बंद कटोरी मीठा जल’, ‘हम सबसे आगे निकलेंगे’, ‘गाल बने गुब्बारे’, ‘सूरज का रथ’ (बाल-गीत-संग्रह, हिंदी व अंग्रेजी में)। उत्कृष्ट लेखन के लिए प्रकाशवीर शास्त्री पुरस्कार, साहित्यकार सम्मान, अक्षरम् सम्मान, परंपरा पुरस्कार सहित अन्य अनेक सम्मान।
काला अक्षर भैंस बराबर पढ़ते-पढ़ते ऊबी बबली, खूब पढ़ी वह ध्यान लगाकर, समझ न पाई थककर बोली, ‘काला अक्षर भैंस बराबर?’ बबलूजी ने भी दुहराया, ‘काला अक्षर भैंस बराबर!’ फिर उसने जोड़ा मजाक में— पढ़ना मच्छर भैंस बराबर! बबली चौंकी तुकबंदी पर, बोली और अधिक घबराकर, ‘पढ़ो न मन से तो लगता है काला अक्षर भैंस बराबर!’ अँगूठा दिखाना उँगली से है बड़ा अँगूठा, होता इसका खेल अनूठा, उँगली भले दिखाओ सबको किंतु दिखाना नहीं अँगूठा। वह सोचेगा मित्र नहीं हो प्रेम-व्रेम सारा है झूठा, हँसकर बातें नहीं करेगा, तुम पाओगे वह है रूठा। काम तुम्हें जो सौंपा उसने तुम न करोगे वह समझेगा, मौका लगा कभी तो वह भी ऐसा ही कौतुक कर देगा। ऊँची दुकान फीका पकवान ऊँची दुकान फीका पकवान सुना जब से, स्वीटीजी बेहद परेशान हैं बस तब से। जब भी शॉपिंग करने जातीं वह कहीं कभी, सब से पहले तो यही देखतीं छोड़ सभी— कैसी दुकान है, क्या इसकी ऊँची है छत, ऊँची दुकान होगी तो होगा बड़ा गलत। हम इस दुकान से जो भी माल खरीदेंगे, फीका होगा कितने ही पैसों में लेंगे! ऊँची दुकान का मतलब समझ नहीं पाई, बस इसीलिए वह बाजारों में चकराई। ऊँची दुकान का मतलब तामझाम होता, जिसमें जाकर ग्राहक अपने पैसे खोता। छत नाप-नापकर शंका करना है फजूल, स्वीटीजी कब समझेंगी अपनी यही भूल। दाल में काला बस तो ठीक समय पर आई गौरव लौटा नहीं मगर, मम्मी को चिंता ने घेरा बैठ गई दरवाजे पर। उसको लगा कि कुछ गड़बड़ है कहीं दाल में काला है, किसी मित्र के साथ चल दिया बच्चा जरा निराला है। गौरव ने आकर बतलाया, ‘निकल गए थे हम पिक्चर, इसीलिए अपनी बस छूटी आए हैं लेकर स्कूटर।’ मम्मी की आशंका सच थी यही दाल में काला था, गौरवजी ने बिना बताए प्रोग्राम रच डाला था। जिसकी लाठी उसकी भैंस लल्लू ने आकर दादू से माँगे रुपए दो सौ बीस, दादू बोले—‘भर तो दी है हमने कब की तेरी फीस।’ लल्लू बोला—‘दादूजी मैं परसों जाऊँगा बाजार, लाठी एक खरीदूँगा मैं नहीं करूँगा कुछ बेकार।’ जिसकी लाठी भैंस उसी की सुनी आप ने होगी बात, लाठी ले आऊँगा मैं तो भैंस मिलेगी हाथोहाथ।’ दादू हँसे जोर से, बोले— ‘लल्लू, तू तो है मासूम, यह तो एक कहावत भर है तुझे नहीं यह भी मालूम!’ इसका मतलब बस इतना है— बलवानों का चलता राज, जो समर्थ है बस उसके ही सध पाते हैं सारे काज। डी-१३ ए/१८ द्वितीय तल, मॉडल टाउन, दिल्ली-११०००९ दूरभाष : ०११-२७२१३७१६ —बालस्वरूप राही |
जनवरी 2021
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