ताबूतसाज

ताबूतसाज आद्रियान प्रोखोरोव के घरेलू सामान की आखिरी चीजें भी गाड़ी पर लद गईं। गाड़ी में जुते मरियल घोड़ों की जोड़ी ने चौथी बार सस्मान्नाया गली से निकीत्स्काया गली तक का चक्कर लगाया, जहाँ ताबूतसाज अपने समूचे घर-बार के साथ जा बसा था। दुकान में ताला डालकर उसने दरवाजे पर एक तख्ती लगा दी कि यह घर बिक्री या किराए के लिए खाली है और अपने नए निवास-स्थान की ओर पैदल ही चल पड़ा, लेकिन जब वह उस नए पीले घर के निकट पहुँचा, जिसे खरीदने के लिए कितनी मुद्दत से उसके मन में चाह थी, और जिसे अब वह खासी रकम देकर खरीद पाया था, तो वह यह जानकर हैरान रह गया कि अब उसके दिल में कोई उमंग या खुशी नहीं है। अनजानी दहलीज लाँघकर नई जगह में पाँव रखते समय, जहाँ अभी तक सबकुछ अस्त-व्यस्त और उल्टा-पुल्टा था, उसके मुँह से उस जर्जर दड़बे के लिए एक आह निकल गई, जिसे छोड़कर वह आया था। अठारह साल उसने वहाँ बिताए थे और व्यवस्था इतनी सख्त थी कि एक तिनका भी इधर से उधर नहीं हो सकता था।

उसने अपनी दोनों लड़कियों और घर की नौकरानी को सुस्त कहकर डाँटा और खुद भी उनका हाथ बँटाने में जुट गया। जल्द ही घर करीने से सज गया—देवमूर्ति का स्थान, चीनी के बरतनों की अलमारी, मेज, सोफे और पलंग, ये सब पिछले कमरे के विभिन्न कोनों में अपनी-अपनी जगह पर जमा दिए गए। घर के मालिक का सामान, हर रंग और माप के ताबूत, मातमी लबादों-टोपियों और मशालों से भरी अलमारियाँ रसोई और बैठक में जँचा दी गईं। बाहर दरवाजे के ऊपर एक साइन बोर्ड लटका दिया गया, जिस पर उल्टी मशाल हाथ में लिये हृष्ट-पुष्ट आमूर की तसवीर बनी थी और उसके नीचे लिखा था—‘सादे और रंगीन ताबूत यहाँ बेचे और तैयार किए जाते हैं, किराए पर दिए जाते हैं और पुराने ताबूतों की मरम्मत भी की जाती है।’ उसकी लड़कियाँ अपने कमरे में आराम करने चली गईं और आद्रियान ने अपनी नई जगह का मुआयना करने के बाद खिड़की के पास बैठते हुए समोवार गरम करने का आदेश दिया।

ताबूतसाज का स्वभाव उसके धंधे के साथ पूर्णतया मेल खाता था। आद्रियान प्रोखोरोव खामोश और मुहर्रमी सूरतवाला आदमी था। वह बिरले ही अपनी खामोशी तोड़ता था और सो भी उस समय, जब वह अपनी लड़कियों को निठल्लों की भाँति खिड़की से बाहर झाँकते और राह चलतों पर नजर डालते देखता या उस समय जब वह अपने हाथ की बनी चीजों के लिए उन अभागों से (या भाग्यशालियों से, मौके के अनुसार जैसा भी हो) कसकर दाम माँगता था, जिन्हें उन चीजों की जरूरत आ पड़ती थी। सो, आद्रियान चाय का सातवाँ खयालों में डूबा हुआ था।

यकायक किसी ने बाहर के दरवाजे को तीन बार खटखटाया। ताबूतसाज के विचारों का ताँता टूट गया। वह चौंककर चिल्लाया, “कौन है?” तभी दरवाजा खुला और एक आदमी, शक्ल-सूरत से जिसे तुरंत पहचाना जा सकता था कि यह कोई जर्मन दस्तकार है, भीतर कमरे में चला आया और ताबूतसाज के निकट आकर प्रसन्न मुद्रा में खड़ा हो गया। “मुझे माफ करना, पड़ोसी महोदय!” टूटी-फूटी रूसी भाषा में उसने कुछ इतने अटपटे अंदाज से बोलना शुरू किया कि उस पर आज भी हम अपनी हँसी नहीं रोक पाते हैं। “मुझे माफ करना, अगर मेरे आने से आपको काम में कोई बाधा हुई हो, लेकिन आपसे जान-पहचान करने के लिए मैं बड़ा उत्सुक हूँ। मैं मोची हूँ। गात्तिलब शूल्त्स मेरा नाम है। सड़क के उस पार ठीक सामनेवाले उस छोटे से घर में रहता हूँ, जिसे आप अपनी खिड़की से देख सकते हैं। कल मैं अपने विवाह की रजत जयंती मना रहा हूँ और मैं आपको तथा आपकी लड़कियों को आमंत्रित करता हूँ कि मेरे यहाँ आएँ और प्रीतिभोज में शामिल हों।”

ताबूतसाज ने सिर झुकाकर निमंत्रण स्वीकार कर लिया और मोची से बैठने तथा चाय पीने का अनुरोध किया। मोची बैठ गया। वह कुछ इतने खुले दिल का था कि शीघ्र ही दोनों अत्यंत घुल-मिलकर बातें करने लगे।

“कहिए, आपके धंधे का क्या हाल-चाल है?” आद्रियान ने पूछा।

शूल्त्स ने जवाब दिया, “कभी अच्छा, कभी बुरा, सब चलता है। यह बात जरूर है कि मेरा माल आपसे भिन्न है। जो जीवित हैं, वे बिना जूतों के भी रह सकते हैं, लेकिन मरने के बाद तो ताबूत के बिना काम चल नहीं सकता।”

“बिल्कुल ठीक कहते हो,” आद्रियान ने सहमति प्रकट की, “लेकिन एक बात है। माना कि अगर जीवित आदमी के पास पैसा नहीं है, तो वह बिना जूतों के रह जाए और तुम्हें टाल जाए, लेकिन मृत भिखारी के साथ ऐसी बात नहीं। बिना कुछ खर्च किए ही वह ताबूत पा जाता है।” इस तरह बातचीत का यह सिलसिला कुछ देर और चलता रहा। आखिर मोची उठा और अपने निमंत्रण को एक बार फिर दोहराते हुए उसने ताबूतसाज से विदा ली।

अगले दिन, ठीक दोपहर के समय ताबूतसाज और उसकी लड़कियाँ नए खरीदे हुए घर के दरवाजे से बाहर निकले तथा अपने पड़ोसी से मिलने चल दिए।

मोची का छोटा सा कमरा अतिथियों से भरा था। उनमें अधिकांश जर्मन दस्तकार, उनकी पत्नियाँ और ऐसे युवक मौजूद थे, जो उनकी शागिर्दी कर रहे थे। रूसी सरकारी कारिंदों में से केवल एक ही वहाँ मौजूद था, पुलिस का सिपाही यूर्को। जाति का वह चूखोन था और बावजूद इसके कि उसका पद निम्न स्तर का था, मेजबान उसकी आवभगत में खासतौर से जुटा था। पच्चीस साल से पूरी फरमाबरदारी के साथ वह अपनी नौकरी बजा रहा था। १८१२ के अग्निकांड ने प्राचीन राजधानी को ध्वस्त करने के साथ-साथ उसकी पीली-संतरी चौकी को भी खाक में मिला दिया था, लेकिन दुश्मन के दुम दबाकर भागते ही उसकी जगह पर एक नई संतरी चौकी का उदय हो गया—सलेटी रंग की और सफेद यूनानी ढंग के पायों से अलंकृत, और सिर से पाँव से लैस यूर्को उसके सामने अब फिर, पहले की ही भाँति, इधर से उधर गश्त लगाने लगा।

निकीत्स्की दरवाजे के इर्द-गिर्द बसे सभी जर्मनों से वह परिचित था और उनमें से कुछ तो ऐसे थे, जो इतवार की रात उसकी संतरी चौकी में ही काट देते थे। आद्रियान भी उससे जान-पहचान करने में पीछे नहीं रहा और जब अतिथियों ने मेज पर बैठना शुरू किया, तो ये दोनों एक-दूसरे के साथ बैठे। शूल्त्स, उसकी पत्नी और उनकी सत्रह वर्षीय लड़की लोत्खेन अपने अतिथियों के साथ भोजन में शामिल होते हुए भी परोसन और रकाबियों में चीजें रखने में बावर्ची को मदद दे रही थीं। बीयर खुलकर बह रही थी। यूर्को अकेले ही चार के बराबर खा-पी रहा था। आद्रियान भी किसी से पीछे नहीं था। उसकी लड़कियाँ बड़े सलीके से बैठी थीं। बातचीत का सिलसिला, जो जर्मन भाषा में चल रहा था, हर घड़ी जोर पकड़ रहा था।

सहसा मेजबान ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा और कोलतार पुती एक बोतल का कॉर्क खोलते हुए रूसी भाषा में जोरों से चिल्लाकर कहा, “नेकदिल लूईजा की सेहत का जाम!” कॉर्क के निकलते ही तरल शैंपेन का फेन उड़ने लगा। मेजबान ने अपनी अधेड़ जीवनसंगिनी का ताजा रंगतदार चेहरा चूमा और अतिथियों ने हल्ले-गुल्ले के साथ नेक लुईजा के स्वास्थ्य का जाम पिया। इसके बाद एक दूसरी बोतल का कॉर्क खोलते हुए मेजबान चिल्लाया, “प्यारे अतिथियों के स्वास्थ्य का जाम।” और अतिथियों ने बदले में धन्यवाद देते हुए फिर गिलास खाली कर दिए। इसके बाद स्वास्थ्य कामना के लिए गिलास खनकाने और खाली करने का जैसे ताँता लग गया। जितने अतिथि थे, एक-एक करके उन सबकी सेहत के जाम पिए गए। फिर मॉस्को और करीब एक दर्जन छोटे-मोटे जर्मन नगरों के नाम पर गिलास खनके, फिर सब धंधों के नाम पर एक साथ और उसके बाद अलग-अलग करके गिलास खाली हुए और इन धंधों में काम करनेवाले कारीगरों तथा सभी नए शागिर्दों के स्वास्थ्य के नाम बोतलों के कॉर्क खुले।

आद्रियान ने इतनी अधिक पी कि उस पर भी ऐसा रंग सवार हुआ कि उसने सचमुच एक अनूठे से जाम का प्रस्ताव किया। अचानक एक हट्टे-कट्टे अतिथि ने, जो डबलरोटी-बिस्कुट बनाने का काम करता था, अपना गिलास उठाते हुए चिल्लाकर कहा, “उन लोगों के स्वास्थ्य के लिए, जिनकी खातिर हम काम करते हैं।” इस कामना का भी पहले की भाँति सभी ने खुशी से स्वागत किया। अतिथि एक-दूसरे के सामने झुक-झुककर गिलास खाली करने लगे—दर्जी मोची के सामने, मोची दर्जी के सामने, नानबाई इन दोनों के सामने और सभी अतिथि एक साथ मिलकर नानबाई के सामने। एक-दूसरे के सामने झुककर पारस्परिक अभिवादन का यह सिलसिला अभी चल ही रहा था कि यूर्को ने ताबूतसाज की ओर मुँह करते हुए चिल्लाकर कहा, “आइए, पड़ोसी! आ​कर मृत असामियों के स्वास्थ्य का जाम पिएँ।” इस पर सभी हँस पड़े, केवल ताबूतसाज चुप रहा। उसे यह बुरा लगा और उसकी भौंहें चढ़ गईं, लेकिन इधर किसी का ध्यान नहीं गया। अतिथियों का दौर चलता रहा और जब वे मेज से उठे, तो उस समय रात की आखिरी प्रार्थना के लिए गिरजे की घंटियाँ बज रही थीं।

काफी रात ढल जाने पर अतिथि विदा हुए। अधिकांश नशे में धुत्त थे। हट्टा-कट्टा नानबाई और जिल्दसाज, पुलिस के सिपाही की दोनों बगलों में अपने हाथ डाले उसे उसकी चौकी की ओर ले चले। ताबूतसाज भी अपने घर लौट आया था। वह गुस्से से भरा था और उसका दिमाग अस्त-व्यस्त सा हो रहा था। आखिर उसने सोचा, ‘मेरा धंधा क्या अन्य धंधों से कम सम्मानपूर्ण है? ताबूतसाज और जल्लाद क्या भाई-भाई हैं? क्या उन्हें एक साथ रखा जा सकता है? तो फिर इन विदेशियों के हँसने में क्या तुक थी? वे क्यों हँसे? क्या वे ताबूतसाज को रंग-बिरंगे कपड़ोंवाला विदूषक समझते हैं? फिर मजा यह कि मैं इन सबको गृह-प्रवेश के प्रीतिभोज में बुलाने जा रहा था। ओह नहीं, मैं ऐसी बेवकूफी नहीं करूँगा। मैं उन्हें ही बुलाऊँगा, जिनके लिए मैं काम करता हूँ—अपने ईसाई मृतकों को।’

“ओह मालिक!” नौकरानी, जो उस समय ताबूतसाज के पाँव से जूते उतार रही थी, ने कहा, “जरा सोचिए तो सही कि यह आप क्या कर रहे हैं? सलीब का चिह्न बनाइए। कहीं मृतकों को भी गृह-प्रवेश के लिए बुलाया जाता है? कितनी भयानक बात है यह?”

“ईश्वर साक्षी है, यह मैं जरूर करूँगा,” आद्रियान ने कहना जारी रखा, “और कल ही। ऐ मेरे असामियो, मेरे शुभचिंतको! कल रात भोज में शामिल होकर मुझे सम्मानित करना। जो कुछ रूखा-सूखा मेरे पास है, सब तुम्हारा ही दिया हुआ तो है।”

इन शब्दों के साथ ताबूतसाज ने बिस्तर की शरण ली और कुछ ही देर बाद खर्राटे भरने लगा।

सुबह जब आद्रियान की आँखें खुलीं, तो उस समय काफी अँधेरा था। सौदागर की विधवा त्रूखिना रात में ही मर गई थी और उसके कारिंदे द्वारा भेजे गए एक आदमी ने आकर इसकी खबर दी थी। वह घोड़े पर सवार तेजी से उसे दौड़ाता आया था। ताबूतसाज ने वोदका के लिए दस कोपेक उसे इनाम में दिए, झटपट कपड़े पहने, एक गाड़ी पकड़ी और उस पर सवार होकर राज्गुल्याई पहुँचा। मृतक के घर के दरवाजे पर पुलिसवाले पहले से तैनात थे और सौदागर इधर से उधर इस तरह मँडरा रहे थे, जैसे सड़ी लाश की गंध पाकर कौवे मँडराते हैं। शव मेज पर रखा था, चेहरा मोमियाई मालूम होता था, लेकिन नाक-नक्श अभी बिगड़ा नहीं था। सगे-संबंधी, अड़ोसी-पड़ोसी और नौकर-चाकर उसके चारों ओर खड़े थे। खिड़कियाँ सभी खुली थीं, मोमबत्तियाँ जल रही थीं और पादरी मृतक स्त्री के भतीजे के पास पहुँचा। वह युवक सौदागर था और फैशनदार कोट पहने था। आद्रियान ने उसे सूचना दी कि ताबूत, मोमबत्तियाँ, ताबूत ढकने का कफन और अन्य मातमी साज-सामान बहुत ही बढ़िया हालत में तुरंत जुटाए जाएँगे। यों ही, लापरवाही से, मृतक के उत्तराधिकारी ने उसे धन्यवाद दिया और कहा कि दामों के सवाल पर वह झिक-झिक नहीं करेगा और सबकुछ खुद ताबूतसाज के ईमान और नेकनीयती पर पूर्णतया छोड़ देगा।

ताबूतसाज ने अपनी आदत के अनुसार शपथ लेकर कहा कि वह एक पाई भी ज्यादा वसूल नहीं करेगा और इसके बाद कारिंदे ने उसकी ओर और उसने कारिंदे की ओर भेद भरी नजर से देखा और सामान तैयार करने के लिए गाड़ी पर सवार होकर घर लौट आया। दिन भर वह इसी तरह राज्यगुल्याई और निकीत्स्की दरवाजे के बीच भाग-दौड़ करता रहा। कभी जाता, कभी वापस लौटता। शाम तक उसने सभी कुछ ठीक-ठाक कर दिया और गाड़ी को विदा कर पैदल ही घर लौटा। चाँदनी रात थी। सही-सलामत वह निकीत्स्की दरवाजे पहुँच गया। गिरजे के पास से गुजरते समय हमारे मित्र यूर्को ने उसे ललकारा, लेकिन जब देखा कि अपना ही ताबूतसाज है, तो उसका अभिवादन किया। देर काफी हो गई थी। जब वह अपने घर के पास पहुँचा तो यकायक उसे ऐसा लगा, मानो कोई दरवाजे के पास रुक गया है और दरवाजे को खोलकर अंदर जाकर गायब हो गया है। ‘यह क्या तमाशा है?’ आद्रियान अचरज से भर उठा, ‘इस समय भला कौन मुझसे मिलने आ सकता है? कहीं कोई चोर तो नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई सैलानी युवक हो, जो रात को मेरी नन्ही निठल्ली लड़कियों से साँठ-गाँठ करने आया हो?’ एक बार तो उसने यहाँ तक सोचा कि अपने मित्र यूर्को को मदद के लिए बुला लाए। तभी एक और व्यक्ति दरवाजे के पास पहुँचा और भीतर पाँव रख ही रहा था कि ताबूतसाज को घर की ओर तेजी से लपकते हुए देखकर वह निश्चल खड़ा हो गया और अपने तिरछे टोप को उठाकर अभिवादन करने लगा।

आद्रियान को ऐसा लगा, जैसे उसने यह शक्ल कहीं देखी है, लेकिन जल्दी में उसे ध्यान से नहीं देख सका। हाँफते हुए बोला, “क्या आप मुझसे मिलने आए हैं? चलिए, भीतर चलिए।”

“तकल्लुफ के फेर में न पड़ें, मित्र,” अनजान ने थोथी आवाज में कहा, “आगे-आगे आप चलिए और अपने अतिथियों का पथ-प्रदर्शन कीजिए।”

आद्रियान खुद इतना उतावला था कि चाहने पर भी वह तकल्लुफ निभा न पाता। उसने दरवाजा खोला और घर की सीढ़ियों पर पाँव रखा। दूसरा भी उसके पीछे-पीछे चला। आद्रियान को ऐसा लगा कि उसके कमरों में लोग टहल रहे हैं। ‘हे भगवान्, यह सब क्या तमाशा है?’ उसने सोचा, और लपककर भीतर पहुँचा। उसके पैर लड़खड़ा गए। कमरा प्रेतों से भरा था। खिड़की में से चाँदनी भीतर पहुँच रही थी, जिसमें उनके पीले-नीले चेहरे, लटके हुए मुँह, धुँधली अधखुली आँखें और चपटी नाकें दिखाई दे रही थीं। आद्रियान ने भय से काँपकर पहचाना कि ये सब वही लोग हैं, जिनको दफनाने में उसने योग दिया था और वह, जो उसके साथ भीतर आया था, वही ब्रिगेडियर था, जिसे मूसलधार वर्षा के बीच दफनाया गया था। वे सब पुरुष और स्त्रियाँ भी ताबूतसाज के चारों ओर इकट्ठे हो गए और सिर झुका-झुकाकर अभिवादन करने लगे।

भाग्य का मारा केवल एक ही ऐसा था, जो कुछ दिन पहले मुफ्त दफनाया गया था, वही पास नहीं आया। बेबसी की मुद्रा बनाए वह सबसे अलग कमरे के एक कोने में खड़ा था, मानो अपने फटे हुए चिथड़ों को छिपाने का प्रयत्न कर रहा हो। उसके सिवा अन्य सभी बढ़िया कपड़े पहने थे। स्त्रियों के सिरों पर फीतेदार टोपियाँ थीं, स्वर्गवासी अफसर वरदियाँ डाले थे, लेकिन उनकी हजामतें बढ़ी थीं, सौदागरों ने एक-से-एक बढ़िया कपड़े छाँट कर पहने थे। “देखो, प्रोखोरोव।” सबकी ओर से बोलते हुए ब्रिगेडियर ने कहा, “हम सब तुम्हारे निमंत्रण पर अपनी-अपनी कब्रों से उठकर आए हैं। केवल वे, जो एकदम असमर्थ हैं, जो पूरी तरह गल-सड़ चुके हैं, नहीं आ सके। इसके अलावा उन्हें भी मन मसोसकर रह जाना पड़ा, जो केवल हड्ड‍ियों का ढेर भर रह गए हैं और जिनका मांस पूरी तरह गल चुका है, लेकिन इनमें से भी एक अपने आप को नहीं रोक सका। तुमसे मिलने के लिए वह इतना बेचैन था कि कुछ न पूछो।”

उसी समय एक छोटा कंकाल कोहनियों से सबको धकेलता आगे निकल आया और आद्रियान की ओर बढ़ने लगा। उसका मांसहीन चेहरा आद्रियान की ओर बड़े चाव से देख रहा था। तेज हरे और लाल रंग की धज्जियाँ उसके ढाँचे से जहाँ-तहाँ लटकी थीं, जैसे बाँस से लटका दी जाती हैं और उसके घुटने से नीचे की हड्ड‍ियाँ घुड़सवारी के ऊँचे जूतों के भीतर इस तरह खटखटा रही थीं, जैसे खरल में मूसली खटखटाती है। “मुझे पहचाना नहीं, प्रोखोरोव?” कंकाल ने कहा, “गार्द के भूतपूर्व सार्जेंट प्योत्र पेत्रोचिव मुरील्किन को भूल गए, जिसके हाथ तुमने 1799 में अपना पहला ताबूत बेचा था। वही, जिसे तुमने बलूत का बताया था, लेकिन निकला वह चीड़ की खपच्चियों का।”

यह कहते हुए आद्रियान का आलिंगन करने के लिए कंकाल ने अपनी बाँहें फैला दीं। अपनी समूची शक्ति बटोरकर आद्रियान चिल्लाया और कंकाल को उसने पीछे धकेल दिया। प्योत्र पेत्रोचिव लड़खड़ाकर फर्श पर गिर पड़ा, बिखरी हुई हड्ड‍ियों का ढेर मात्र। मृतकों में विक्षोभ की एक लहर दौड़ गई। अपने साथी के अपमान का बदला लेने के लिए वे आद्रियान की ओर लपके—चीखते-चिल्लाते, कोसते और धमकियाँ देते।

अभागे मेजबान के होश गुम थे। चीख-चिल्लाहट ने उसके कान बहरे कर दिए थे और वे उसे कुचल देना चाहते थे। उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया और लड़खड़ाकर अब वह भी मृत सार्जेंट की हड्ड‍ियों के ढेर पर गिर पड़ा। वह बेसुध हो गया था।

सूरज की किरणें उस बिस्तर पर पड़ रही थीं, जिस पर ताबूतसाज सो रहा था। आखिर उसने आँखें खोलीं और देखा कि नौकरानी समोवार में कोयले दहकाने के लिए फूँक मार रही है। रात की घटनाओं की याद आते ही आद्रियान के शरीर में कँपकँपी-सी दौड़ गई। त्रूखिना, ब्रिगेडियर और सार्जेंट कुरील्किन के धुँधले चेहरे उसके दिमाग पर छाए हुए थे। वह चुपचाप प्रतीक्षा करता रहा कि नौकरानी खुद बातचीत शुरू करेगी और रात की घटनाओं का बाकी हाल उसे बताएगी।

“मालिक, आज आप कितनी देर तक सोए?” सुबह के समय पहनने का चोगा उसे थमाते हुए ऑक्सीन्या ने कहा, “हमारा पड़ोसी दर्जी आपसे मिलने आया था और पुलिस का सिपाही भी एक चक्कर लगा गया है। वह यह कहने आया था कि आज पुलिस इंस्पेक्टर का जन्मदिन है, लेकिन आप सो रहे थे तो हमने जगाना ठीक नहीं समझा।”

“अच्छा, स्वर्गवासी विधवा त्रूखिना के यहाँ से भी कोई आया था?”

“क्यों? क्या त्रूखिना मर गई, मालिक?”

“तुम भी बस यों ही हो। उसका मातमी साज-सामान तैयार करने में कल तुम्हीं ने तो मेरा हाथ बँटाया था?”

“आप पागल तो नहीं हो गए, मालिक?” ऑक्सीन्या ने कहा, “या कल का नशा अभी तक दिमाग पर छाया हुआ है? कल किसी की मैयत का सामान तैयार नहीं हुआ। आप दिन-भर जर्मन के यहाँ दावत उड़ाते रहे। रात को नशे में धुत्त लौटे और अपने इसी बिस्तर पर गिर पड़े, जिस पर कि आप अभी तक सोए हुए थे। प्रार्थना के लिए गिरजे की घंटी भी बजते-बजते आखिर थककर चुप हो गई।”

“सचमुच?” ताबूतसाज ने संतोष की साँस लेते हुए कहा, “और नहीं तो क्या झूठ?” नौकरानी ने जवाब दिया।

“तो फिर जल्दी से चाय बनाओ और लड़कियों को यहीं बुला लाओ।”

—अलेक्जेंडर पुश्किन

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