मेरी बेटी

उसकी पसंद की कौन सी नई ड्रेस खरीदी है,

न सिर्फ उसके लिए, उसके स्वामी के लिए

बल्कि उसके सास-ससुर और करीबी रिश्तेदारों,

पड़ोसियों व पड़ोसियों के बच्चों के लिए भी।

शहर की खास मिठाइयों के साथ

फिर भी लगता, कुछ ढंग से खिला-पिला नहीं पाए,

जितना सोचा था उतना भी कर नहीं पाए,

मेरी बेटी है, मेरे जिगर का टुकड़ा है,

फोन पर आज भी उससे रोज बात होती है

उसकी आवाज से मैं जान जाती हूँ उसका हाल,

वह खुश है या उदास किसी बात से

खुलकर बताती नहीं है मुझे, बहुत जिद्दी है,

दोनों तरफ का, बड़ी संजीदगी से रखती है खयाल।

लेकिन मैं भी माँ हूँ, पता लग जाता है मुझे

क्यों उसकी आवाज में भारीपन है,

क्यों काट दिया उसने फोन बीच में ही

कुछ पूछने से पहले?

—भविष्य कुमार सिन्हा

 

कुछ पूछने से पहले?

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