निर्वाचन

कुछ वर्ष पूर्व डेनबई नाम का एक भद्र पुरुष नगर के गंदगी भरे इलाके में रहने के लिए आया। नगर ‘विल्टशायर’ में था अथवा ‘कोर्नवाल’ में, हमारी कहानी से इसका कोई संबंध नहीं है, चाहे दोनों प्रांतों में से संभवत: वह कथित नगर किसी एक में स्थित था। दोनों निकटवर्ती इलाके कहलाते थे और दो कुलीन परिवारों की साझा संपत्ति थे।

मिस्टर डेनबई प्रत्यक्ष रूप से काफी धनी था और वह धन उसने मुख्य रूप से व्यापार से कमाया था। उसने वस्तुत: अपनी पहली अवस्था की अपेक्षा दूसरी को अधिक नहीं छिपाया था। उसने अपने लिए, बड़ा चौकोर लाल मकान बनवाया था जो जितना उपयुक्त था उतना ही भद्दा भी। किचन गार्डन के लिए कुछ एकड़ जमीन को दीवार से घेरा था। एक घोड़े की भारी गाड़ी रखी। उसने एक पुष्ट टट्टू और भूरे शिकारी कुत्तों की जोड़ी रखी; इस तरह घर को तैयार करने तथा घरेलू मामलों का संतोषजनक प्रबंध करने के बाद उसने अपने पड़ोसियों के बारे में देखना शुरू किया। उसने वकील अत्तार और मुख्य व्यापारियों से अपनी जान-पहचान को खुरच दिया। वह वाचनालय तथा बिलियर्ड कक्ष का सदस्य बन गया। वह बाऊलिंग ग्रीन और क्रिकेट क्लब का भी सदस्य बन गया। उसने अपने नए निवास स्थान में इतनी रुचि ली, जैसे वह इसी इलाके में जनमा और पला हो।

अब यह रुचि किसी तरह, जो उसके अपने अनुकूल थी, उस स्थान की शांति और आराम के लिए सहायक नहीं थी। मिस्टर डेनबई उठी हुई नाकवाला, थोड़ा चपटा और काला आदमी था। हँसमुख स्वभाव के साथ-साथ उसके पास प्रखर काली आँखों की जोड़ी, ऊँची चंचल बोलचाल और शरीर तथा मन दोनों की विलक्षण तीव्रता थी। उसकी दृष्टि से ही उसके चरित्र का पता चलता था और वह चरित्र अंग्रेजों के मध्यवर्गी लोगों में असामान्य नहीं था।

संक्षेप में, पूरी तरह से जॉन बुल होते हुए, जिसकी वह शेखी मारता था, के साथ-साथ वह भद्र पुरुष सुधारक था। वह उत्साही था और इतना दृढ़ निश्चयी था कि उसने कभी भी क्राउन या एंकर में रात का खाना नहीं खाया था और न ही पैलेस यार्ड में जोरदार भाषण दिया था। उसने कोबेट को पढ़ा और दसवें भाग की वसूली से मुक्ति पाने की उसकी अपनी योजना थी—एक उपाय था, जिसको न समझते हुए, मुझे खेद है कि बिना किसी को क्षति या चोट पहुँचाए राष्ट्रीय ऋण से मुक्त करने के लिए, मैं उसके वर्णन की जिम्मेदारी नहीं ले सकता।

अतिरिक्त इन बड़े मामलों के, जिनको व्यावहारिक सुधार की अपेक्षा काल्पनिक कहा जा सकता था और जो पूर्णतया अवरोध-रहित थे, मिस्टर डेनबई ने उनको छोटे और अधिक पीड़ाकुल व्यवहारों में झुका दिया और वह वस्तुत: निगम और चर्च में कपड़े रखनेवाले कमरे की शुद्धता का इतना कठोर और ईर्ष्यालु रक्षक था कि अधिकारों, स्वतंत्रताओं तथा लोगों के पैसों के इस संरक्षक को हिसाब दिए बिना कोई भी सम्मानित आदमी अपनी अंगुली नहीं उठा सकता था और न ही चर्च का रखवाला पैर हिला सकता था।

वह पादरी के क्षेत्र में निस्संदेह अत्यंत कष्टकारी व्यक्ति था, ऐसा सब जगह कहा जाता था। रिपोर्टों और छानबीन के मामलों में मिस्टर ह्यूम अनोखी किस्म का आदमी था। पादरी के क्षेत्र के रात के भोज में वह कमखर्ची से काम लेता और मेयर के भोज पर काम करने की बात करता था। सड़क के आयुक्तों के लिपिक और खजांची के विरुद्ध टर्नपाइक ऐक्ट के अंतर्गत उसने कार्यवाही करवाई। खैराती स्कूल के निक्षेपधारियों के खिलाफ चांसरी में मुकदमा शुरू किया और अंतत: इलाके को खोलने की धमकी दी। कहने का अभिप्राय यह है कि उस उम्मीदवार की सहायता की जाएगी जो दो बड़े परिवारों—बिगज और टोरी—के मनोनीत उम्मीदवार का विरोध करने का वायदा करेगा। विग और टोरी परिवारों के पास पार्लियामेंट की दो सीटें इस प्रकार पक्की थीं जैसे उनकी पैतृक संपत्ति हो—एक परीक्षण जिसने दूसरे स्थानों में हुए सफल विरोध में हाल की घटनाओं ने कुलीन मालिकों को जरा भी भयभीत नहीं किया था।

जिन चीजों ने डेनबई की कष्टकारक छानबीन में बढ़ोतरी की, वे थीं—एक व्यक्ति की सामान्य चतुराई, उसकी योग्यता और जानकारी। उसकी शिक्षा उच्चकोटि की नहीं थी और न ही वह पुस्तकों के बारे में कुछ जानता था, परंतु चीजों की विशेष रूप से जानकारी थी। भले ही यह निश्चित था कि मिस्टर डेनबई व्यापार करता रहा था, परंतु कोई भी व्यक्ति अनुमान नहीं लगा सकता था कि वह व्यापार क्या और कैसा था। कोई भी व्यक्ति कभी से उसके पास नहीं आया। उसने कानून और बाड़े के मामलों को एक जैसी दक्षता से संभाला। चरबी को गाढ़ा करने के रहस्य के बारे में अपने निरीक्षण से कसाई को विस्मित किया और चीनी तथा कॉफी के बाजार की अपनी अच्छी जानकारी से पंसारी को हैरानी में डाला। एक दक्ष लेखाकार के कौशल से पादरी की पुस्तकों में हिसाब-किताब को देखकर व्याकुल जनता की व्यग्रता को दूर किया। वह कानून के बिंदुओं पर बहुत निपुण था—रिपोर्टों, मामलों और पूर्व दृष्टांतों के उद्धरण में सदा तैयार और अचूक था। वह वास्तव में सरकारी वकील के रूप में अवकाश प्राप्त करता, परंतु अपनी फुरती और जोश के कारण अपने खर्च पर मुकदमेबाजी के लिए टूट पड़ता था।

उपद्रव के लिए अद्भुत कल्पनाशक्ति के साथ यह शंका नहीं की जा सकती कि मिस्टर डेनबई कई विशिष्ट और शुद्ध गुणों के बावजूद अपने लिए काफी घृणा जुटाने में सफल हो गया। सरकारी तौर पर सब निगमवाले उसके शत्रु बन गए। उसका मुख्य विरोधी, या कहो कि जिस आदमी को वह अपना विरोधी समझता था, चर्च का पादरी मिस्टर कॉर्डोनेल था, जिसके साथ उसके कई आपसी झगड़े लटक रहे थे। (एक विशिष्ट झगड़ा चर्च के बाजे को उचित स्थान पर न रखने को लेकर था। उस सुरीले साज को वर्तमान स्थान पर रखने के कारण गत बारह महीनों से नगर में विरोध चल रहा था।) उसने ‘बी’ के नवाब, जो इलाके का संरक्षक भी था, की बहन लेडी एलिजाबेथ से विवाह किया था; उसकी पत्नी होने के साथ-साथ वह सुशील और लोकप्रिय थी। इसलिए मिस्टर डेनबई ने ठीक ही विचार किया, वह उसके आयोजित सुधारों के मुख्य बाधकों में से एक थी, जबकि हमारा सुधारक देशप्रेम से प्रेरित होकर मिस्टर कॉर्डोनेल से घृणा करके अच्छा या बुरा कर रहा था। उनको पास-पास लाने के लिए विभिन्न प्रकार की घटनाएँ घटनी आरंभ हो गई थीं।

मिस्टर डेनबई के परिवार में उसकी पत्नी थी जो शांत स्वभाव और दुर्बल स्वास्थ्यवाली महिला थी। वह केवल अपनी चारपाई से सोफे तक जाने के अतिरिक्त कुछ नहीं करती थी, वह केवल माँड़ और सोडा वाटर पीती थी। केवल एक बेटी थी उसकी, जिसको यदि एक शब्द में कहा जाए तो वह अपने पिता की आँखों का तारा थी।

रोज डेनबई वास्तव में ऐसी बेटी थी जिसपर कोई भी पिता गर्व कर सकता था—मध्यम कदवाली, अति उत्तम, सुडौल शरीर, गहरे काले चमकते रंग के साथ सुंदर बालों की चमकीली घनी लटें, प्यारी-प्यारी आँखें और एकदम मधुर और प्रसन्नचित्त चेहरा, जिसका बड़ा प्रभाव था—दूसरे चेहरों को मुसकराहट प्रदान करना।

उसका स्वभाव और सूझबूझ भी उसके चेहरे के अनुरूप थे—खिलाड़ी, सुशील, चतुर और दयालु। उसकी सिद्धियाँ एवं अभ्यास अत्यंत उच्च श्रेणी के थे। जब उसके पिता ने अपने नए निवास स्थान में प्रवेश किया था, तभी उसने अपने पंद्रह वर्ष पूरे किए थे। पिता ने अपने साथ रखने की इच्छा के कारण उसको लंदन के पास उस अति उत्तम स्कूल से अपने पास बुला लिया था जहाँ वह अब तक पढ़ रही थी तथा उसने निश्चय किया कि अब घर पर अध्यापकों के द्वारा उसकी शिक्षा पूरी की जाएगी।

इस छोटे नगर में एक प्रसिद्ध कलाकार रहता था—नृत्य का प्राध्यापक, जो युवा महिलाओं के लिए एक साप्ताहिक स्कूल चलाता था, जिसमें इलाके के कुलीन परिवारों में से आधे की युवतियाँ वहाँ उपस्थित होती थीं। एम ला ग्रांड (वह नृत्य सिखानेवाला उत्साही फ्रांसीसी था) रोज के साथ अति प्रसन्न था। उसने घोषणा की कि वह उसकी श्रेष्ठ शिष्या है, ऐसी अन्य शिष्या जीवन में उसे नहीं मिली।

“मेस वेइज, डोंक मोनश्योर?” उसने एक दिन उसके पिता से कहा, जिसने ‘कहिए, क्या हाल है’ के लिए फ्रांसीसी शब्दों को जानने के लिए घृणा की। ‘वेइज कामे ऐले मेट डे ल एपलोम्ब डे ला फार्से, एट पैट्रे डे गे्रसिस ला पेटाइट।’

और मिस्टर डेनबई ने यह समझते हुए कि कलाकार उसकी प्यारी बेटी की प्रशंसा कर रहा था, दृढ़ता से कहा ‘मोनश्योर अच्छा आदमी था’ और अभिवादन का उत्तर अंग्रेजी ढंग से दिया। उसने अगले दिन उसके पास हिरन की टाँग भेजी।

परंतु सिर्फ एम ला ग्रांड ही रोज का प्रशंसक नहीं था, जिसको वह नृत्य के स्कूल में मिली थी। दैवयोग से कॉर्डोनेल की भी एक ही बेटी थी लगभग उसी आयु की, जिसका पालन-पोषण माँ की आँखों तले हुआ और जो प्राध्यापक के स्कूल में निरंतर उपस्थित होती थी। दोनों लड़कियों का एक-सा कद था और दोनों अच्छी नर्तकी थीं। दोनों की जोड़ी बना दी गई थी। दोनों का व्यक्तित्व और ढंग एक जैसा होने के कारण (क्योंकि मैरी कॉर्डोनेल मधुर, कोमल, सुंदर थी, उसकी हलकी नीली आँखें हर एक को आकर्षित करती थीं जिसको भी वह देखती थी) दोनों में शीघ्र ही एक-दूसरे के लिए अनंत रुचि पैदा हो गई। मिलते या जुदा होते समय जब भी उनकी नजरें मिलतीं तो हाथ भी मिल जाते। शीघ्र ही नृत्य के मध्यांतरों में कुछ मधुर शब्दों की अदला-बदली उनमें शुरू हो गई और नृत्य की समाप्ति पर खुलकर बातें होने लगीं।

लेडी एलिजाबेथ रोज से लगभग उतनी ही मोहित हुई थी, जितनी उसकी लड़की, यह देखते हुए कि उसमें हर चीज पसंद आनेवाली थी और कोई भी चीज ऐसी नहीं थी जिसको अस्वीकार किया जाता। जब भी वर्षा होती तो वह उसके चोगे और शाल का माता सदृश्य ध्यान रखकर उसे गाड़ी में अपने घर ले जाती थी और अंतत: मिस्टर डेनबई, जो स्वयं अपनी प्यारी बेटी को लेने आया करता था, को एक तरफ हटना पड़ता। एक दिन उसने विनीत मुसकराहट से मिस डेनबई से प्रार्थना की कि वह पार्टी में पधारें जो वह अपनी बेटी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में युवा लोगों को देने वाली थी। मुझे डर है कि कठोर सुधारक ‘नहीं’ कहने वाला था, परंतु रोज का ‘ओ, पापा’ कहना अप्रतिहत था और वह पार्टी में गई।

इसके पश्चात् युवा लोग प्रतिदिन और सुपरिचित हो गए। लेडी एलिजाबेथ श्रीमती डेनबई से मिलने जाती और श्रीमती डेनबई उसका रूपांतर करती, परंतु उसकी अस्वस्थता मिलने-मिलाने में बाधक होती थी और उसका पति निरंतर कठोरता से अपने पर क्रोध करता था तथा पादरी के मित्रतापूर्वक आगे बढ़ने और उसके निमंत्रणों को टालता था, भले ही यह उसके दयालु स्वभाव के लिए एक प्रकार का उत्पात था।

दोनों लड़कियाँ किसी तरह आपस में प्रतिदिन मिलती थीं। यह उनकी रोजालिंड एवं सीलिथा जैसी मित्रता थी और स्वभाव तथा चरित्र में प्रत्येक दूसरी के अनुरूप थी—रोज के पास एक बहन को भड़कानेवाला प्रमोद था और मैरी के पास दूसरी बहन का सौम्य और लचीला आकर्षण। दोनों मिलकर घुड़सवारी करतीं, सैर करतीं और गाना गातीं तथा जुदा होकर कभी प्रसन्न न होतीं। वे एक जैसा संगीत बजातीं, एक-सी पुस्तकें पढ़तीं, एक जैसे कपड़े पहनतीं, एक-दूसरे का काम करतीं और अपने सस्ते गहनों की छोटी संपत्ति और फूलों का आदान-प्रदान करतीं। यह सब उनकी उदारता का प्रतीक था, जिससे समानता को बढ़ावा मिलता था।

पादरी के प्रति रोज के स्नेह की बाबत पहले तो डेनबई ईर्ष्या करता था, परंतु वह उन लोगों को इतना चाहती थी और उनकी प्रसन्नता के लिए इतनी सचेत थी कि डेनबई उसे रोक नहीं सका; और मैरी की लंबी तथा भयानक बीमारी के बाद, जिससे वह हमेशा प्रभावित होती थी, मिस्टर कॉर्डोनेल अपनी आँखों में आँसू भरकर डेनबई के पास गया और उसे अपने विश्वास से बताया कि ईश्वर की इच्छा के अनुसार उसकी बेटी का जीवन रोज के अनथक ध्यान पर निर्भर करता था, तो पिता की ईर्ष्या दूर हो गई। उसने अच्छे पादरी का हाथ सिकोड़ा और फिर कभी उनकी लंबी मुलाकातों की बाबत दु:खी नहीं हुआ।

भावनाओं में परिवर्तन उत्पन्न करने में लेडी एलिजाबेथ का भी योगदान था। वह बदले में आड़ुओं, खरबूजों और अंगूरों से भरी कई टोकरियाँ भेजती थी (जिसकी संस्कृति के बारे में वह हैरान था) और उसने उनके साथ रोज का चित्र भी भेजा, जो उसने स्वयं बनाया था और जो पूरी सुंदरता के साथ उसके अनुरूप था। चित्र में उसका भूरा शिकारी कुत्ता भी उसके पाँव के पास बैठा दिखाया गया था। वह ऐसा चित्र था कि आकार के परिवर्तन के लिए भी वह उसे बदलना नहीं चाहता था।

संभवत: डेनबई अपने आपको जितना अधिक दृढ़ समझता था, वास्तव में वह उतना था नहीं, विशेषकर जन्म और स्थान के प्रति जिनसे घृणा करने का वह बहाना करता था और कम-से-कम वह बेटी की उस प्रशंसा पर गर्व करता था जिसने विशेष अधिकारयुक्त समाज को उत्तेजित किया था, जैसेकि उसने अपने आपको अकेला रखकर अपनी प्रबल स्वतंत्रता का प्रदर्शन किया था। यह निश्चित था कि सुधार के प्रति उसका जोश अब ढीला पड़ गया था, विशेषकर पादरी की तरफ से; और उसने न केवल बाजे के विवाद को समाप्त कर दिया था बल्कि चर्च के मंच के ऊपर लटकाया जानेवाला शानदार झाड़-फानूस भी चर्च को उपहार के रूप में दे दिया।

समय बीतता गया। रोज ने नगर और पड़ोस के शिष्टाचार के आधे प्रस्तावों को ठुकरा दिया था। उसका हृदय अभेद्य प्रतीत होता था। उसकी सादगीपसंद सहेली के बारे में प्राय: समझा जाता था (क्योंकि रोज ने इसका विरोध नहीं किया था, इसलिए इसे निश्चित माना गया) कि उसकी सगाई उसकी माँ के भतीजे सर विलियम फ्रेम्पटोन से होने जा रही थी। सर विलियम फ्रेम्पटोन एक भद्र युवक था और अच्छी-खासी संपत्ति का मालिक था। उसने पड़ोस के अपने सुंदर स्थान पर काफी समय गुजारा था।

समय गुजरता चला गया और अब रोज उन्नीस वर्ष की हो गई। तब एक घटना घटी, जिसने उसकी प्रसन्नता में पीड़ादायक बाधा पहुँचाई। नवाब बी का सदस्य मर गया। उसके भतीजे सर विलियम फ्रेम्पटोन ने अपने चाचा की शक्तिशाली सुविधाओं की सहायता से अपने आपको इलाके की सदस्यता के लिए पेश किया। उसी समय उसका स्वतंत्र प्रत्याशी भी निर्वाचन में खड़ा हो गया और मिस्टर डेनबई ने अपनी वृथाभिमानी दृढ़ता से विवश होकर अपनी बेटी को पादरी के घर न जाने के लिए जोर दिया—कम-से-कम उस समय तक, जब तक निर्वाचन की प्रक्रिया समाप्त नहीं हो जाती। रोज ने व्यर्थ बहस की और रोई। उसका पिता हठी था; वह मैरी कॉर्डोनेल को एक प्यार भरा पत्र लिखकर अत्यंत दु:खी मन से अपने शयनकक्ष में चली गई। संभवत: अपने जीवन में वह पहली बार इतना दु:खी हुई थी।

लगभग आधे घंटे के पश्चात् सर विलियम और मिस्टर कॉर्डोनेल लालघर पर आए।

“हम आ गए हैं, मिस्टर डेनबई।” पादरी ने कहा—“तुम्हारी रुचि को उपलब्ध करने के लिए।”

“नहीं-नहीं, मेरे अच्छे मित्र!” सुधारक ने कहा—“तुम जानते हो, मेरी रुचि वचनबद्ध है और मैं अपनी दृढ़ता से नहीं...।”

“रोज, मैं तुम्हारी रुचि के लिए...” पादरी ने कहना जारी रखा।

“रोज से!” मिस्टर डेनबई ने टोका।

“ऐ, उसके दिल और हाथ उपहार के लिए—ऐसा होते हुए मैं विश्वास करता हूँ कि मेरा भतीजा यहाँ का वोट लेने के लिए अत्यंत उत्सुक है।” मिस्टर कॉर्डोनेल ने प्रत्युत्तर दिया।

“रोज से!” मिस्टर डेनबई पुन: एकाएक बोल उठा—“क्यों, मैंने सोचा था कि तुम्हारी बेटी...।”

“तो उस छोकरी ने तुम्हें नहीं बताया?” पादरी ने उत्तर दिया।

“क्यों, विलियम और वह गत छह महीनों से रोमियो और जूलियट का अभिनय करते आ रहे हैं।”

“मेरी रोज,” डेनबई ने पुन: हैरानी से पुकारा—“क्यों, रोज, मैं कहता हूँ, रोज...” और विस्मृति की-सी स्थिति में शीघ्रता से कमरे के बाहर चला गया और दूसरे ही क्षण शरमाती लड़की को हाथ से पकड़कर उसने पूछा—“रोज, क्या तुम इस युवक से प्रेम करती हो?”

“ओ पापा!” रोज ने कहा।

“क्या तुम इससे विवाह करोगी?”

“ओ पापा!”

“क्या तुम चाहती हो कि मैं इससे कह दूँ कि तुम इससे विवाह नहीं करोगी?”

रोज ने इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया। वह गहराई से शरमा गई और मुसकराकर नीचे देखने लगी। “फिर ले जाओ इसको।” मिस्टर डेनबई ने पुन: कहा—“मैं देखता हूँ कि लड़की तुम्हें प्यार करती है। मैं तुम्हें वोट नहीं दे सकता, भले ही मैंने वचन दिया है। तुम जानते हो, मेरे अच्छे श्रीमान्, कि एक ईमानदार आदमी का शब्द...।”

“मैं तुम्हारा वोट नहीं चाहता, मेरे प्यारे श्रीमान्।” सर विलियम फ्रेम्पटोन ने टोका—“मैं तुमसे वोट माँगता भी नहीं, भले ही इससे मेरे चाचा का इलाका और मेरी सीट हाथ से निकल जाए। यही निर्वाचन है, जिसका मुझे ध्यान है और मेरे लिए केवल यही निर्वाचन ध्यान देने योग्य है। क्या यह मेरी मधुर रोज नहीं? निर्वाचन, जिसका उद्देश्य जीवन भर चलता है और जिसका परिणाम प्रसन्नता है। ऐसा ही निर्वाचन ध्यान रखने योग्य है। ऐसा नहीं है क्या, मेरी अपनी रोज?”

और रोज ने शरमाकर ‘हाँ’ कहा; और मिस्टर डेनबई ने अपने होनेवाले दामाद से हाथ मिलाया। तब तक मिलाया, जब तक वह सिकुड़ नहीं गया। वह बार-बार कहता रहा—“मैं तुम्हें वोट नहीं दे सकता, क्योंकि आदमी को दृढ़ रहना चाहिए, परंतु तुम संसार में सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हो और तुम मेरी रोज के अच्छे जीवनसाथी बनोगे तथा रोज एक महान् महिला बनेगी।” प्रसन्न पिता ने कहना जारी रखा—“अंतत: मेरी रोज एक महान् महिला होगी!”

—मैरी रस्सल मिटफोर्ड

अनुवाद  भद्रसैन पुरी

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