पोटेट की कीमत

“हेलो समीर, कहाँ हो? अच्छा जनाब अभी तक सो रहे हैं, अंकल-आंटी मंदिर चले गए तो पूरे दिन सोने की आजादी मिल गई।” समीर को रूम में सोता देख सीमा नाराज हो उठी।

“ऐ सीमा की बच्ची, क्यों सवेरे-सवेरे शोर मचा रही है? संडे को भी चैन से नहीं सोने देती। आज कौन सी आफत आ गई?” आँखें खोलता समीर झुँझला रहा था।

“अच्छा जरा घड़ी तो देखो, साढ़े दस बजे हैं। हम ही मूर्ख हैं, जो सबसे पहला कार्ड देने तुम्हें भागे आए।”

“क्या तेरी शादी का कार्ड है, जो भागी आई है।” समीर ने परिहास किया।

“वाह! क्या बात कही है। अरे, हमारी शादी के कार्ड बाँटने की जिम्मेदारी तो तुम्हारी होगी। जैसे भी हो, पर भाई का फर्ज तो निभाना ही होगा। हम तो तुम्हें अपने हिंदी डिपार्टमेंट के वार्षिकोत्सव यानी एन्युएल फंक्शन का कार्ड देने आए थे।” सीमा ने जवाब दिया।

“तब तो सचमुच तूने अपना और मेरा भी समय बरबाद किया है। भला तेरे हिंदी-साहित्य के वही पौराणिक या पुराने जमाने के नाटक देखने क्यों जाऊँगा?”

“देखो समीर, हमारे हिंदी-साहित्य के विषय में कुछ मत बोलना। तुम जानते ही कितना हो, विज्ञान के विद्यार्थी तो कठोर सत्य में जीते हैं, उन्हें राग-अनुराग के बारे में ज्ञान कैसे होगा। वैसे भी इस बार का नाटक और दूसरे कार्यक्रम देखकर लोग दंग रह जाएँगे।”

“क्यों क्या इस बार बॉलीवुड से कैथरीना कैफ आ रही है?” समीर ने चिढ़ाया।

“अरे, कैथरीना कैफ तो उसके अभिनय के सामने पानी भरेगी। अगर विश्वास न हो तो चलो शर्त रही, अगर तुम्हें प्रोग्राम पसंद नहीं आया तो हम तुम्हें ट्रीट देंगे और अगर पसंद आया तो तुम हमें ट्रीट दोगे, वह भी किसी अच्छे होटल में।” सीमा ने यकीन से कहा, “ठीक है, अगर तुम हारने को तैयार हो तो मुझे शर्त मंजूर है।”

“यह लो कार्ड, इसे सँभाल के रखना वरना बिना कार्ड के एंट्री नहीं मिलेगी। एक और खास बात, ठीक समय पर पहुँच जाना वरना बैठने की जगह नहीं मिलेगी।”

“वाह, इसका मतलब तुम लड़कियों ने अपने प्रोग्राम का अच्छा प्रचार किया है, देखें, कितनी सच्चाई है।”

“वह तो देख ही लोगे, और हमारी जीत के लिए तैयार रहना। अब जा रही हूँ और बहुत से काम हैं। अंकल-आंटी को नमस्ते कह देना।” समीर को कार्ड थमा सीमा चली गई।

समीर और सीमा चचेरे–तयेरे भाई-बहिन थे, पर दोनों के बीच भाई-बहिन से ज्यादा दोस्ती का रिश्ता था। दोनों एक-दूसरे के साथ दिल खोलकर बातें किया करते। समीर के एस.पी. पिता अपने एकमात्र मेधावी बेटे को आई.एएस. बना देखना चाहते थे, पर समीर ने एम.एससी. फिजिक्स में टॉप करके यून‌िवर्सिटी में टीचिंग जॉब ही पसंद किया। सीमा भी इस वर्ष हिंदी विषय में एम.ए. फाइनल कर रही थी। समीर की माँ अपने बेटे की नौकरी लगी देख उसके लिए एक सुंदर अच्छी बहू लाने के सपने देख रही थी, पर समीर अभी विवाह के लिए तैयार नहीं था।

नियत दिन फिर सीमा ने फोन करके समीर को प्रोग्राम में ठीक समय पहुँचने की याद दिला दी थी। समीर ने ठीक समय में जाने में ही भलाई समझी, वरना सीमा उसे आसानी से नहीं छोड़ेगी। हिंदी विभाग दूर से ही चमक रहा था। कार्यक्रम के लिए बड़ा सा हॉल विद्युत् लड़ियों और रंगीन फूलों से सजाया गया था। वार्षिक कार्यक्रम में नगर के सभी गण्यमान्य व्यक्ति आमंत्रित थे। द्वार पर दो लड़कियाँ अतिथियों को गुलाब के फूल देकर स्वागत कर रही थीं। धन्यवाद कहते हुए मुसकरा के समीर ने फूल लिये थे। हॉल के भीतर जाने पर समीर को सीमा की कथन की सत्यता ज्ञात हो गई। लोगों की उपस्थिति से हॉल लगभग भर चुका था। सौभाग्यवश एक अच्छी जगह पर समीर को बैठने के लिए एक चेयर मिल गई।

ठीक समय पर दीप प्रज्वलन के बाद सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम शुरू हुआ था। एक के बाद एक कार्यक्रम समय पर शुरू हो रहे थे, व्यर्थ की प्रतीक्षा की आवश्यकता नहीं थी। समूह नृत्य और गीत सभी मनभावन थे। कार्यक्रमों की गुणवत्ता से यह स्पष्ट था, प्रतिभागियों ने बहुत मेहनत की थी। बीच-बीच में संचालिका मनोरंजक बातें करके खुशियाँ बिखेर रही थीं। हँसी की फुलझड़ियों के रूप में हास्य कविताओं ने भी दर्शकों का अच्छा मनोरंजन किया।

अब अंतिम कार्यक्रम की उद्घोषणा की जा रही थी। आचार्य चतुरसेन की लेखनी से निखरी अपने युग की प्रसिद्ध ‘वैशाली की नगर वधू’ की नायिका आम्रपाली स्टेज पर नूपुर की मधुर ध्वनि के साथ हलके कदमों से स्टेज पर आ रही थी। जैसे-जैसे मंच का हल्का प्रकाश आम्रपाली के मंच पर आने के साथ तेज होता गया, लोग उस प्रकाश में आम्रपाली के सौंदर्य से अभिभूत होते गए। मंच पर बनाए गए दरबार में आम्रपाली के नृत्यों ने ही नहीं उसके अभिनय ने भी सबको विस्मित कर दिया। इतने सुंदर और स्वाभाविक अभिनय और मनोहारी नृत्य ने मानो उस युग को साकार कर दिया था। समीर ने याद किया उस लड़की का नाम पूजा ही अनाउंस किया गया था। सीमा से उसके बारे में पूछना होगा।

दूसरे दिन समीर ने अपनी हार मानते हुए सीमा से कहा—

“यह तो उस लड़की पूजा का कमाल था, जो तू शर्त जीत गई। तुझे ट्रीट तो दूँगा, पर मेरी भी शर्त है कि तुझे अपने साथ पूजा को भी ट्रीट के लिए ले चलना होगा।”

“क्यों, क्या पूजा का जादू चल गया है, आंटी को बता दूँ, वह तेरा प्रपोजल भिजवा देंगी।” सीमा ने कहा।

“खबरदार जो ऐसा किया, मैं तो उसकी परफॉर्मेंस पर उसे बधाई देना चाहूँगा।”

“उसमें क्या मुश्किल है, पूजा मेरी फ्रेंड है, कल ही उसके घर चलते हैं, वहीं बधाई दे देना। पूजा तो हमारे विभाग की शान है। हमेशा टॉप करती है। तुम्हारी साइंस फैकल्टी के लड़के भी उसे देखने आते हैं।”

“नॉ वे, उसके घर जाकर बधाई नहीं देनी है, कहीं बाहर जैसे अचानक मिल कर बधाई देना चाहूँगा।”

“अगर ऐसा है तो पूजा हर संडे सवेरे योग के लिए रवींद्र पार्क जाती है। तुम क्या सवेरे जल्दी उठ सकोगे? तुम तो संडे को छुट्टी मनाते हो।” सीमा ने बात बनाई।

“अरे, एक दिन जल्दी उठना इतना मुश्किल तो नहीं है। तो पक्का रहा, हम साथ चलेंगे।”

“समझ गई, तीर निशाने पर लगा है। मुझे तो बस अपनी ट्रीट चाहिए।”

“संडे को योग क्लास समाप्त कर के आती पूजा पार्क में सीमा को देखकर चौंक गई। आश्चर्य से बोली—

“अरे सीमा, तू यहाँ, क्या तू भी योग क्लास ज्वॉइन करेगी?”

“हम तो नहीं, पर यह मेरा कजिन समीर सोच रहा है। टॉपर है, अभी यूनिवर्सिटी में लैक्चाररशिप ली है। मेरे चाचाजी तो इसे एडमिनिस्ट्रेटिव जॉब में भेजना चाहते थे, पर इसने टीचिंग लाइन पसंद की है।”

“पता नहीं क्यों, हमारे पापा भी यही चाहते हैं कि एम.ए. कंप्लीट करके कंपटीशन में ट्राय करें, पर हमें तो टीचिंग लाइन ज्यादा पसंद है।”

“यह जान कर खुशी हुई आप भी ऐसा ही सोचती हैं, वरना ज्यादातर लड़कियाँ प्रशासनिक सेवा को प्रिफर करती हैं।” समीर के चेहरे पर खुशी थी।

“समीर, तुम पूजा को बधाई देना चाहते थे, पर उससे मिलकर भूल ही गए।”

“सॉरी, पूजाजी, आपको बहुत–बहुत बधाई। आपका अभिनय बहुत अच्छा था। आपकी वजह से मैं सीमा से शर्त हार गया, अब आपके साथ इसे भी ट्रीट देनी है।”

“मेरी वजह से आप शर्त क्यों हार गए?” पूजा विस्मित थी।

“समीर को विश्वास नहीं था, हमारे विभाग का कार्यक्रम खास तौर पर तेरा अभिनय इतने कमाल का होगा। बस हमने शर्त लगाई थी, अगर इसे प्रोग्राम पसंद आया तो सबसे अच्छी प्रस्तुति देने वाले के साथ हम दोनों होटल में पार्टी करेंगे। हम जीत गए अब हम दोनों को समीर होटल में डिनर देगा।”

“नहीं, यह तो अन्याय है, कार्यक्रम की सफलता में सभी कलाकारों का हाथ है, तब तो सबको पार्टी के लिए ले जाना होगा।” पूजा ने न्यायोचित बात कही।

“सच्चाई यह है कि समीर ने पहले ही कह दिया था, जो बेस्ट परफॉर्मेंस देगा, बस उसी को पार्टी दी जाएगी। देख पूजा, तू मेरा चांस मिस नहीं करा सकती। तुझे तो मेरे लिए चलना ही होगा।”

“हमें माँ से पूछना होगा, पता नहीं वह परमीशन देंगी या नहीं।” पूजा शंकित थी।

“तुझे सोचने की जरूरत नहीं है, हम आंटी से परमीशन ले लेंगे।” सीमा ने यकीन से कहा।

“तो तय रहा शर्त हारने के उपलक्ष्य में इस शनिवार की शाम को सात बजे डिनर के लिए आपको इनवाइट कर रहा हूँ। पूजाजी, आपको हम पिक-अप कर लेंगे।” खुशी से समीर ने कहा।

समीर को शनिवार का बेसब्री से इंतजार था। सीमा से पहले ही पता कर चुका था कि उसने पूजा की माँ से डिनर में जाने की इजाजत ले ली है। पहली बार समीर अपने कपड़ों के लिए कंसर्न था। अंतत: अपनी फेवरिट ब्लू शर्ट उसने चुनी थी। उसे स्वयं आश्चर्य था, क्यों न वह पूजा के प्रति जो इतना आकृष्ट था?

शनिवार को सीमा के साथ पूजा को पिक-अप करके वे शहर के नामी होटल पारिजात पहुँचे थे।

“कमाल है समीर, आज बड़े दरियादिल बन रहे हो। हमें तो तुम कॉफी हाउस से आगे कहीं ले ही नहीं गए। यह समीर महा कंजूस है, पूजा। आज तुझे इंप्रेस करने के लिए इस होटल में लाया है।”

“जो जिस लायक होगा, उसे वही तो मिलेगा। आज तो एंज्वॉय कर। फिर कभी चांस मिले या नहीं।”

सबके बैठ जाने पर वेटर ने मेनू-कार्ड थमाया था। समीर ने पूजा से कहा, “आज आप चीफ गेस्ट हैं, आप ही ऑर्डर कीजिए।”

“माफ कीजिए, हम पहले कभी इस होटल में नहीं आए हैं, हमें यहाँ की स्पेशलिटीज के बारे में कुछ पता नहीं है, आप ही ऑर्डर कर दीजिए।” पूजा ने सच्चाई की सादगी से कहा, “अगर आप नॉनवेज पसंद करती हों तो यहाँ का चिकन...”

“नहीं-नहीं, हम तो वेजीटेरियन हैं, पर आप अपनी पसंद का नॉनवेज ऑर्डर कर दीजिए, हमारे पापा भी नॉनवेज पसंद करते हैं। हमें कोई ऑब्जेक्शन नहीं होगा।”

समीर को वेजीटेरियन डिनर का ऑर्डर करते देख पूजा संकुचित थी, पर समीर ने कहा, “आप परेशान न हों, घर में माँ के साथ वेजीटेरियन खाना ही पसंद करता हूँ।” डिनर समाप्त हो जाने के बाद समीर ने पूजा से पूछा, “आपको यहाँ का खाना कैसा लगा, कहीं ऊँची दूकान और फीके पकवान वाली बात तो नहीं थी?”

“जी नहीं, डिनर बहुत अच्छा था, पर यहाँ के सुंदर फूलों की सजावट ने मुझे मुग्ध किया है। फूलों के इतने रंग और वैरायटी पहले कभी नहीं देखी। काश! इन फूलों को इनकी शाखों पर हवा में झूलता देख पाती।” पूजा की सपनीली आँखें फूलों पर निबद्ध थीं।

“आपने ठीक कहा, कई लोग, विशेषकर पर्यटक इस होटल में इन फूलों की सजावट देखने आते हैं।”

“लगता है, पूजा की आज की कविता में ये फूल जरूर आ जाएँगे। फूलों से इसे बेहद प्यार है। जानते हो, समीर हमारी पूजा कवयित्री है। यूनिवर्सिटी में अकसर इसका कविता-पाठ होता है।”

“अगर आप फूलों को इनकी शाखों पर झूलते देखना चाहती हैं, तब तो आपको नूरी बाग चलना होगा। कार से दो-ढाई घंटों में पहुँच जाएँगे। वहाँ रंग-बिरंगे नायाब फूलों का मेला देखने कितने ही लोग जाते हैं।”

“सच यह तो अपूर्व अनुभव होगा, इतने सारे फूल एक साथ, एक जगह।” पूजा जैसे सपना देख रही थी।

“ग्रेट, मुझे एक मैगजीन के लिए फूलों पर एक लेख देना है। पूजा फूलों का मेला देखेगी और हम अपना लेख पूरा कर लेंगे। चलेगी न, पूजा?” सीमा ने पूजा से पूछा।

अंतत: इतवार की प्रात: नूरी बाग जाने का प्रोग्राम तय कर लिया गया। इतवार की सवेरे नूरी बाग जाने के लिए सीमा और पूजा को पिकअप करके समीर ने कार में गीत लगा दिया।

“आपको म्यूजिक से कोई परेशानी तो नहीं है?” पूजा से समीर ने पूछा।

“जी नहीं, संगीत मुझे बहुत प्रिय है। सोते समय भी गीत सुनना मेरी हॉबी है।”

सौभाग्य से मौसम बेहद खुशगवार हो गया था। बदली के साथ हलकी हवा अच्छी लग रही थी। दूर से ही नूरी बाग के रंग-बिरंगे फूलों को हवा में झूलते देख पूजा विस्मय से कह उठी—“ऐसा लग रहा है रंगीन धागों से बुना गया किसी का रेशमी आँचल हवा में लहरा रहा है।”

“आपकी कल्पना भी आपकी तरह से ही सुंदर है, पूजाजी।” अचानक समीर कह गया।

पार्किंग में कार खड़ी कर के समीर के साथ सब बाग में पहुँच गए।

“हम तो बाग के मुख्य अधिकारी के पास बाग की जानकारी लेने जा रहे हैं, वैसे भी हम तो समीर के साथ कई बार इन फूलों से मिल चुके हैं। तुम दोनों फूलों की दुनिया देखो। वैसे समीर तुम्हारे लिए इस बार नया अनुभव होगा। ठीक कहा न समीर?” समीर को देख मुसकराती सीमा चली गई।

“चलिए पूजाजी, हम बाग के इस भाग से फूलों का सौंदर्य देखते हैं।”

“सबसे पहली बात प्लीज, हमें आप सिर्फ पूजा कहें, हम आपसे छोटे हैं। पूजाजी और अपने लिए आप, सुनकर लगता है, हम उम्र में बहुत बड़े हैं।”

“ठीक है, अगर आपकी मेरा मतलब, सॉरी, अगर आपकी इसी में खुशी है तो आज से नहीं अभी से सिर्फ पूजा कहूँगा?” समीर हँस पड़ा।

“थैंक्स, समीरजी!”

फूलों को देखती पूजा जैसे दूसरी ही दुनिया में पहुँच गई थी। अपने कैमरे में फूलों को कैद करती वह अपने को भूल गई थी। कहीं कोई फूलों वाला कोई हिस्सा छूट न जाए। उसे पता नहीं था, उसकी बेध्यानी में समीर उसके कितने ही चित्र खींचता जा रहा था। शाम दस्तक दे रही थी। समीर ने पूजा से कहा, “काफी देर हो गई है, चलिए कुछ स्नैक और कोल्ड ड्रिंक ले लें।”

“माफ कीजिए, हम तो सबकुछ भूल ही गए थे।” पूजा संकुचित थी।

“वह तो देख ही रहा था। सामने ही छोटा सा स्नैक बार है, चलें?”

कुछ स्नैक और कोल्ड ड्रिंक लेकर दोनों ताजगी महसूस कर रहे थे। एक कॉर्नर में एक आदमी फूलों के सुंदर गुलदस्ते बेच रहा था। एक छोटा लड़का फूलों की डंडी काटकर गुलदस्ते बनाने के लिए तैयार कर रहा था। पूजा अब उन तरह-तरह के फूलों वाले गुलदस्तों के चित्र खींच रही थी। समीर ने चुपचाप उस लड़के से एक बहुत सुंदर सुर्ख गुलाब खरीद लिया।

पूजा को गुलाब थमाकर समीर सहास्य बोला, “फूलों की प्रेमिका के लिए सप्रेम यह गुलाबी राजा, भेंट स्वीकार करें।” समीर ने परिहास किया।

“ओह, यह गुलाब कितना सुंदर है, काश इसे इसकी शाख पर खिला देख पाती। शाख पर यह गुलाब कितने गर्व से मुसकराता।” पूजा मायूस दिखी।

“सॉरी, मुझे पता नहीं, किसने इसे इसकी शाख से अलग किया। इस गुलाब ने अगर आपका दिल दुखाया है तो गलती के लिए माफी चाहूँगा।”

“अरे नहीं, यह तो हमारी गलती है जो ऐसी उलटी-सीधी बात कह दी। इस सुंदर गुलाब को तो हम हमेशा अपने पास रखेंगे। सूख जाने पर भी इसे अपनी कविता की किताब में हमेशा रखेंगे।” पूजा भावुक हो उठी।

“थैंक्स, यह मेरी खुशकिस्मती है।” समीर ने गंभीरता से कहा।

घर लौटने का समय आ पहुँचा था। सीमा भी अपने लेख की जानकारी लेकर वापस आ गई थी।

“उम्मीद करती हूँ, तुम दोनों ने साथ में खूब एंज्वॉय किया होगा। हमारा भी काम पूरा हो गया।”

“यहाँ से लौटने का तो मन नहीं है, पर हर अच्छी चीज हमेशा स्थायी तो नहीं हो सकती।” सीमा ने कहा।

“ऐसा क्यों सोचती हो, जब फिर आना चाहोगी, समीर तुम्हें इस फूलों की दुनिया में ले आएगा, ठीक कह रही हूँ न समीर?” सीमा शरारत से मुसकराई।

“नहीं, एक बार ही क्या इनका इतना समय व्यर्थ नहीं किया है? फिर परेशान करना उचित नहीं होगा।”

थैंक्स देकर पूजा अपने घर उतर गई। उसके जाने के बाद समीर ने सीमा से कहा, “तेरी फ्रेंड पूजा तो बहुत भावुक और कोमल दिल वाली है, उसे फूल को तोड़े जाने पर भी दुःख होता है।”

“सच कहो समीर, तुम्हें पूजा पसंद है न? कहो तो आंटी को तुम्हारी पसंद बता दूँ? वैसे इतना तो विश्वास दिला सकती हूँ, पूजा बहुत अच्छी लड़की है। वह सिर्फ मेधाविनी ही नहीं है, वरन् बहुत सच्ची-स्नेही, उदार और बड़ों के आदर-सम्मान में विश्वास रखने वाली लड़की है। उसका पति बहुत लकी होगा।”

“मेरी पसंद से ही तो बात नहीं बनेगी, उसकी भी तो पसंद-नापसंद होनी चाहिए।” समीर ने कहा।

समीर को पूजा अच्छी जरूर लगी थी, पर पूजा का मन जाने बिना वह कोई निर्णय नहीं लेना चाहता था। वह लड़कियों की आजादी में पूरा यकीन रखता था।

“क्यों, क्या मेरे भाई समीर में कोई कमी है? समीर हैंडसम है, बुद्धिमान है, टॉपर है, अच्छी नौकरी में लगा हुआ है, शिक्षित संपन्न परिवार का एकमात्र बेटा है। सबसे बड़ी बात सच्चा और चरित्रवान है। जो लड़की उसकी पत्नी बनेगी, वह भाग्यवान होगी।” सीमा दृढ़ता से समीर से बोली।

“आज पता लगा, मेरी बहिन मुझे इतना प्यार करती है। वरना तो हमेशा मुझ पर रोब ही जमाती है।” समीर ने प्यार से कहा।

दिन बीत रहे थे। समीर अपनी क्लासेज में व्यस्त था, पर जब भी समय मिलता, अपने कंप्यूटर पर सेव की गई पूजा की फोटो अवश्य देख लेता। उसे यही दुःख था फंक्शन के दिन मोबाइल से आम्रपाली के सुंदर रूप में पूजा की फोटो क्यों नहीं खींच ली थी। अचनाक फोन पर सीमा की चहकती आवाज सुनकर समीर चौंक गया।

“समीर, एक खुशखबरी है, कुछ देने का वादा कर तो बताऊँ?”

“देख सीमा अपनी सौदेबाजी की आदत छोड़ दे, बताना है तो बता, वरना आगे भी कभी कुछ नहीं दूँगा।”

“कोई बात नहीं, नुकसान तुम्हारा ही होगा, बाद में मत पछताना। फोन रखती हूँ।”

“ओके, ठीक है बता, कौन सी खबर है, जिसके लिए कुछ देना पड़ेगा।” समीर ने सौदा मान लिया।

“सुनेगा तो खुशी से पागल हो जाएगा। कल शाम पूजा ने हम दोनों को उसके साथ न्यू भारत रेस्टोरेंट में इनवाइट किया है।”

“क्यों क्या कोई खास बात है? कहीं पूजा की सगाई तो नहीं हो गई है?”

“वाह क्या सोच है? अपनी सगाई में तुम्हें क्यों बुलाएगी, तुम उसके उम्मीदवार का मर्डर नहीं कर दोगे?” सीमा ने मजाक में कहा।

“हो सकता है, उसका जन्मदिन हो। उस स्थिति में कोई अच्छी गिफ्ट तो ले जानी चाहिए।”

“उसे फूल बहुत पसंद हैं, एक अच्छा सा बुफे ले चलेंगे।” सीमा ने सलाह दी।

“बिल्कुल नहीं, उसे फूलों को तोड़ा जाना पसंद नहीं है।” समीर को उसे अपना दिया गुलाब याद हो आया।

“वाह, कुछ ही समय में तुम उसके बारे में इतना जान गए। फिर तुम ही सोचो।”

“ठीक है, कुछ सोचता हूँ, तू परेशान मत हो।” कुछ देर सोचने के बाद समीर के ओठों पर मुसकान आ गई।

हाँ, यही गिफ्ट ठीक होगा। एक गोल्डन कलर की फुल साइज सुंदर डायरी के पृष्ठों के कोनों में अपने खीचें हुए पूजा के फोटो लगाने से डायरी खिल उठी। खाली पृष्ठों पर पूजा अपनी कविताएँ लिख सकेगी।

दूसरी शाम सीमा को साथ लेकर समीर रेस्टोरेंट पहुँचा था। उसे कोई गिफ्ट न लाते देख सीमा नाराज हो उठी।

“हम खाली हाथ जाएँगे, कम-से-कम जो कहा था एक बुके ही ले लेते, मेरी बदनामी कराओगे।”

आसमानी परिधान में सज्जित पूजा ने उनका खुशी से स्वागत किया।

“वाह आज तो तू आसमानी परी दिख रही है। बता, आज क्या बात है जो हमें बुलाया है?” सीमा ने पूछा।

“अपनों के साथ खुशी शेयर करने के लिए क्या कोई खास अवसर होना चाहिए?” पूजा ने कहा।

“चलिए, आपने हमें अपना तो माना। हम तो गेस कर रहे थे, शायद आपका जन्मदिन है।” समीर बोला।

“जी नहीं, आपने नूरी बाग दिखाकर हमारा अनगिनत रंगों वाले सुंदर फूलों से परिचय कराया, उसके लिए केवल धन्यवाद शब्द तो बहुत कम है। उस रात हमने दो कविताएँ लिखीं, एक लाल गुलाब पर दूसरी नूरी बाग पर। यही खुशी आपके साथ शेयर करना चाहते थे।” हलकी मुसकान के साथ पूजा ने रहस्य खोला।

“वाह, तब तो आपका नूरी बाग जाना सफल हो गया, आपकी लाल गुलाब कविता में तो दर्द होगा, बेचारे को उसकी शाख से अलग जो कर दिया।”

“जी नहीं, वह तो किसी की भेंट है, बहुत सँभालकर रखा है।” पूजा अचानक कह गई।

“किसकी भेंट है, पूजा? यह तो कोई प्रेम-प्रसंग लग रहा है।” सीमा उत्सुक हो उठी।

“अरे नहीं, हमें तो बस फूलों से प्यार हो गया था। जी चाह रहा था, सारे फूल वैसे ही शाखों पर खिले मुसकराते रहें। समीरजी हमारी उसी कही बात की हँसी बना रहे हैं।” पूजा ने बात बनाई।

खाना खाते हुए हास-परिहास चलता रहा। वापसी के पहले समीर ने कहा, “मेरा एक जरूरी सामान कार में छूट गया है, अभी लेकर आता हूँ।”

समीर ने पूजा के हाथों में सुनहरे कागज में लाल रिबन से बाँधी गई डायरी जब पूजा को दी तो वह चौंक गई। “यह क्या है, आपने व्यर्थ तकल्लुफ किया।” पूजा संकुचित थी।

“खोलकर तो देखो, आपके काम की चीज है।” समीर ने कहा।

डायरी के पृष्ठ खोलते ही पूजा खुशी से कह उठी—“ये सुंदर डायरी तो नूर बाग के फूलों की मेरी यादों को अमर कर देगी, पर आपने मेरी फोटो कब लीं?” डायरी में लगी फूलों के साथ अपनी फोटोज देखकर पूजा विस्मित थी।

“जब आप फूलों से दोस्ती करने में मुझे भूल गई थीं।” समीर ने मजाक में कहा।

“बहुत थैंक्स, इस पर अपनी कविताएँ लिखूँगी।” खुशी से पूजा का सुंदर चेहरा और भी कमनीय हो उठा।

“तब तो आपसे एक वादा चाहिए, जब डायरी के सारे पृष्ठों पर कविताएँ होंगी, तब हम आपकी कविताएँ सुनकर वह दिन सेलीब्रेट करेंगे। कहिए मंजूर है?” समीर ने अपनी मुग्ध दृष्टि पूजा पर निबद्ध की थी।

“ठीक है, कोशिश करूँगी वादा पूरा कर सकूँ।” हलकी मुसकान के साथ पूजा न कहा।

“वाह समीर भाई, तुम तो छिपे रुस्तम निकले। उसके दिल में जगह बनाने के लिए क्या नायाब गिफ्ट दी है।” लौटते हुए सीमा ने समीर को छेड़ा।

“मानती है न मेरे दिमाग को, तेरा बुके दो दिन में सूख जाता, पर मेरी गिफ्ट हमेशा उसके पास रहेगी, मुझे ऐसे याद नहीं करती, पर मेरी गिफ्ट उसे हमेशा मेरी याद दिलाती रहेगी।” गंभीरता से समीर बोला।

“तुम्हारे दिमाग को तो पढ़ लिया, अब जल्दी ही कुछ करना होगा।” सीमा ने मन में तय कर लिया।

सीमा ने फिर देर नहीं की थी, समीर की माँ की खुशी का ठिकाना नहीं था। उनका सपना पूरा होने वाला था। सीमा ने पूजा की तारीफों के पुल बाँध दिए थे। इतना ही नहीं, खुद जाकर पूजा की माँ से समीर के बारे में सारी जानकारी देकर पूजा और समीर के विवाह की बात भी कर ली थी। अंतत: इस संबंध में सीमा के दो लाभ थे। एक तो समीर से बड़ी गिफ्ट मिलने वाली थी। दूसरी, उसकी सहेली पूजा उसकी भाभी बनने वाली थी। पूजा के पेरेंट्स भी उसके विवाह के लिए कोई अच्छा संबंध ढूँढ़ रहे थे। सीमा ने समीर की जो जानकारी दी, वह पूजा के पेरेंट्स के मनोनुकूल थी।

दोनों परिवार आपस में मिल लिये कहीं कोई कमी नहीं थी। सगाई का दिन निश्चित कर लिया गया। सबकुछ इतनी जल्दी तय हो गया। खुशी की बात यह थी कि पूजा ने समीर के साथ अपने विवाह के लिए आपत्ति नहीं की, निश्चित था उसे भी समीर पसंद था और समीर के दिल में तो पूजा ने पहले दिन से ही जगह बना ली थी।

धूमधाम से सगाई की रस्म पूरी हुई थी। लाल साड़ी में पूजा का सौंदर्य और अधिक खिल उठा था। सिल्वर कलर की शेरवानी में समीर भी किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था। हीरे की अँगूठी पहनाते समीर की निगाह पूजा से हट ही नहीं रही थी। सीमा ने चिढ़ाया—

“समीर भाई, अभी शादी के लिए इंतजार करना होगा। पूजा की शर्त है, शादी उसकी एम.ए. फाइनल की परीक्षा के बाद ही होगी। इंतजार तो कर सकोगे?”

“पूजा के लिए तो पूरी जिंदगी इंतजार कर सकता हूँ, इन कुछ दिनों की क्या बात है।?”

दोनों परिवार आधुनिक विचारधारा के पोषक थे, अत: सगाई के बाद पूजा और समीर को मिलने की आजादी मिल गई थी। साथ में पिक्चर जाना, रेस्त्राँज में डिनर लेने के अलावा समीर पूजा को दर्शनीय स्थानों की सैर कराने भी ले जाता। उनके साथ कभी-कभी सीमा भी होती, पर अकसर वह साथ जाना टाल जाती। दिन खुशी के साथ बीत रहे थे। इन सबके बीच पूजा अपनी पढ़ाई के लिए भी कंसर्न थी, उसे टॉप जो करना था।

दिल्ली में पूजा की मौसी के बेटे रोहित की शादी में पूजा के परिवार को खास इनवीटेशन था। पूजा की माँ की बस यही एक बहिन थी। मौसी की बड़ी बेटी की शादी दो साल पहले हुई थी। रोहित और पूजा में खूब बनती थी। एक साल पहले रोहित लंदन में पी-एचडी. करने चला गया था। रोहित ने पूजा के साथ समीर को खास निमंत्रण दिया था। पूजा को लिखा था—“तेरी पसंद के हीरो समीर से खास मिलना है। देखना है, मेरी बहिन की टक्कर का है या नहीं? मेरी पूजा तो बहुत खास है, अपने साथ समीर को जरूर लाना। दोनों से मिलने का इंतजार है।”

“समीर, तुम्हें भी हमारे साथ दिल्ली चलना होगा, वरना रोहित नाराज हो जाएगा।” पूजा ने खुशी से कहा।

“मुझे रोहित से मिलकर बहुत खुशी होती, पर उसकी शादी के समय मेरे डिपार्टमेंट में इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस है, मुझे कई जिम्मेदारियाँ दी गई हैं। मेरी तरफ से रोहित से माफी माँग लेना, अब रिश्ता हो रहा है तो भविष्य में तो जरूर मिलेंगे।” अंतत: उदास मन से पूजा दिल्ली गई थी।

पूजा के बिना समीर को दिन काटने कठिन लग रहे थे। फोन पर बातें करके मन नहीं भरता था। शादी की धूमधाम में पूजा खुश थी, पर समीर की याद आनी स्वाभाविक थी। सात-आठ दिनों का समय बीत गया था। वापिसी के पहले पूजा का फोन आया था, आवाज में खुशी थी—

“हम वापस आ रहे हैं। तुम्हारे लिए एक खास भेंट ला रहे हैं, देखकर विश्वास नहीं कर पाओगे।”

“कहीं दिल्ली से कोई नया ब्वॉय फ्रेंड तो नहीं ला रही हो?” समीर ने मजाक किया।

“क्या करूँ, तुमने उसके लिए कोई जगह ही कहाँ छोड़ी है, वरना कई दीवाने हैं।” पूजा ने जवाब दिया।

दोनों हँस पड़े। अब बस दोनों को मिलने का इंतजार था।

पूरे आठ दिनों बाद पूजा अपने पेरेंट्स के साथ वापस आई थी। समीर उन्हें रिसीव करने स्टेशन गया था। कुली के हाथ में एक बड़े से चौकोर फ्रेम में कागज में पैक किया गया किसी पेंटिंग या चित्र जैसा सामान देखकर समीर ने कहा, “लगता है दिल्ली से कोई कलात्मक पेंटिंग लाई हो।” समीर जानता था पूजा की फूलों में ही नहीं, सुंदर पेंटिंग्स में भी बहुत रुचि थी। उसके कमरे में प्रसिद्ध कलाकारों की पेंटिंग्स सजी हुई थीं।

घर में पेंटिंग के ऊपर पैक किए गए कागज को हटाते ही पूजा का एक बेहद सुंदर पोट्रेट देखकर समीर विस्मित रह गया। पोट्रेट में मुसकराती पूजा इतनी सजीव लग रही थी, मानो अभी कुछ बोल उठेगी।

“देखा, चौंक गए न? शादी में लंदन से रोहित भैया का एक आर्टिस्ट फ्रेंड साइमन आया था। असल में शादी के बहाने वह दिल्ली घूमने आया था। मुझे देखते ही उसके अंदर का आर्टिस्ट जाग गया। रोहित भैया से मेरा पोर्टे्रट बनाने की जोरदार तरीके से परमीशन माँगी थी।”

“इतनी ब्यूटीफुल इंडियन लड़की का पोर्टे्रट नहीं बनाया तो मेरा आर्ट बेकार है। रोहित, प्लीज पूजा का पोर्टे्रट बनाने की परमीशन दे दे।”

रोहित भैया को तो एतराज नहीं था, पर बात समय की थी। शादी के घर में अपना चित्र बनवाना कैसे संभव हो? साइमन रोहित के घर के सामने वाले होटल में ठहरा था। साइमन ने तरीका निकाल लिया।

“दिन भर तो दिल्ली की रोमांटिक गलियाँ छानूँगा, होटल में सवेरे सात बजे से दो-ढाई घंटे पोर्टे्रट बना सकता हूँ। ज्यादा टाइम नहीं लूँगा, पूजा को कैनवास पर उतारना बहुत आसान होगा, दिमाग में तो तस्वीर उतर गई है। अगर पूजा दो घंटों का समय दे दें तो वादा करता हूँ, तीन-चार दिनों में पोर्टे्रट बना लूँगा।”

“तू मेरी शादी अटैंड करने आया है या बस दिल्ली घूमेगा और पोर्टे्रट बनाएगा?” रोहित भैया ने पूछा।

तेरे और तेरी पत्नी के साथ तो जिंदगी भर लंदन में रहना है, पर ये तेरी दिल वालों की दिल्ली और एक इंडियन ब्यूटी दोबारा कहाँ मिलेगी। हाँ, तुझे मुझ पर यकीन तो है, पोर्टे्रट बनवाने के लिए पूजा को होटल आने में कोई बाधा तो नहीं होगी?”

“बिल्कुल नहीं, तुझ पर अपने से ज्यादा यकीन है।” रोहित भैया ने विश्वास से कहा।

सवेरे का समय देने की बात पूछने पर पोर्टे्रट बनवाने की खुशी में पूजा ने खुशी से स्वीकृति दी थी।

“क्या यह पोट्रेट सिर्फ तीन-चार दिनों में बनाया गया है?” समीर विस्मित था।

“हाँ तय हुआ था ज्यादा-से-ज्यादा चार दिनों तक दो घंटों का समय पोर्टे्रट बनाने के लिए दिया जा सकता है। सवेरे सात बजे का समय साइमन को दे देते थे और देखो उसका कितना अच्छा परिणाम आया है। साइमन इस पोर्टे्रट का फोटो ले गया है, कहता था लंदन में इसे कैनवास पर उतारेगा।”

“सच में बहुत सुंदर चित्र है, पर मेरी पूजा इससे बहुत ज्यादा सुंदर है। गनीमत है साइमन तुम्हें अपने साथ नहीं ले गया, वरना मैं बेमौत मारा जाता। वैसे पोर्टे्रट में तुमने कमाल का कलात्मक पोज दिया है।”

“उसमें मेरी कोई तारीफ नहीं है, साइमन अपने हाथों से मेरा पोज ठीक करता था।”

“इसी बहाने उसने मजे लिये, ये गोरे सीधे नहीं होते।” समीर जैसे ईष्या कर रहा था।

“बेकार जल रहे हो, बेचारा मुझे सिस्टर कहता था, कभी कोई लाभ उठाने की कोशिश भी नहीं की।

बातों के बीच अचानक अपने घर से आए फोन से समीर घबरा गया। “पापा को हास्पिटल ले जाया गया है, मुझे जाना होगा।” तेज कार चलाकर समीर हॉस्पिटल पहुँचा था।

हॉस्पिटल में समीर के पापा सुरेंद्र प्रतापजी को आई.सी.यू. में रखा गया था। डॉक्टर ने बताया उन्हें मैसिव हार्ट अटैक पड़ा है। बहुत परवाह की जरूरत है। माँ को रोते देख समीर ने सांत्वना दी थी—“घबराने की कोई बात नहीं है, पापा ठीक हो जाएँगे। डॉक्टर नाथ बहुत बड़े हार्ट स्पेशलिस्ट हैं।”

पूजा के फोन पर समीर ने उसे हास्पिटल आने को मना कर दिया था। “तुम अभी दिल्ली से लौटी हो, आराम करो। यहाँ का हाल बताता रहूँगा। डॉक्टर ने लोगों को आई.सी.यू. में न आने के सख्त आदेश दिए हैं।”

दो–तीन दिन बीत गए सुरेंद्र प्रतापजी की स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई थी। समीर पूरे समय हॉस्पिटल में ही रहता था। इस बीच पूजा के पेरेंट्स हॉस्पिटल में समीर से मिलने आए थे। उन्होंने बताया पूजा को खाँसी-जुकाम हो गया है। समीर को परेशान देख पूजा की माँ ने कहा—

“परेशान होने की बात नहीं है, दिल्ली में नवंबर के आखिरी हफ्ते में काफी सर्दी थी, लड़कियों का फैशन तो जानते हो, ऊनी कपड़े नहीं पहने, ठंड लग गई। दो-चार दिनों में ठीक हो जाएगी। हॉस्पिटल आने की जिद कर रही थी, मुश्किल से रोका है।”

“आपने ठीक किया, हॉस्पिटल में तरह-तरह के मरीज होते हैं, उसे ठीक होने तक घर में ही रहने दीजिए। पापा की स्थिति बेहतर होने पर मैं खुद ही मिलने आ जाऊँगा। अभी फोन पर बात करना ही ठीक है।”

पूजा रोहित से मिलने को बेचैन थी, पर शहर में चीन से आई महामारी कोरोना के मरीजों की संख्या भारत में बढ़ने लगी थी। उस दिन फोन पर बात करते हुए समीर को खाँसते हुए सुनकर पूजा चिंतित हो उठी थी। समीर ने भी मजाक में पूजा से कहा था—“लगता है मुझे कोरोना हो गया है। अगर मैं न रहूँ तो किसी सुपात्र से विवाह जरूर कर लेना वरना मेरी आत्मा को दुख होगा”। समीर की फिर बनावटी खाँसी सुनकर पूजा व्याकुल हो उठी, “भगवान् के लिए ऐसा मत कहो, समीर, हम मर जाएँगे। हम अभी तुम्हारे पास आ रहे हैं।”

पूजा की व्याकुलता पर समीर हँस पड़ा। “माफ करना, तुम्हें डरा दिया? जिस पूजा का अपनी जिंदगी में फूलों से सजी डोली में आने का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूँ, भला उसे अकेली छोड़कर इस दुनिया से जा सकता हूँ क्या?”

“अब फिर कभी ऐसा मजाक करोगे तो तुमसे बात नहीं करूँगी।” पूजा ने मन भरे स्वर में कहा।

“क्या बात है, आज तुम्हारी आवाज कुछ भारी सी लग रही है, ठीक तो हो? क्या तुम्हारा खाँसी-जुकाम अभी ठीक नहीं हुआ है?” समीर की आवाज मे कंसर्न था।

“कुछ खास नहीं, बस सर्दी-जुकाम के साथ हल्का बुखार हो गया है। डॉक्टर अंकल ने कहा, यह फ्लू का मौसम है। दवा ले रही हूँ। बुखार उतरते ही तुमसे मिलने और अंकल को देखने आऊँगी।”

अचानक समीर के पास दिल्ली से पूजा के कजिन रोहित का फोन आया था—“समीर, ध्यान से मेरी बात सुनो, पूजा ने बताया होगा, मेरे आर्टिस्ट फ्रेंड साइमन ने मेरी परमीशन लेकर पूजा का पोर्ट्रेट बनाया है। साइमन एक सप्ताह बाद लंदन लौट गया था। जब तक वह इंडिया में था, सामान्य दिखता रहा, पर लंदन पहुँचने के कुछ दिनों बाद उसमें दिखने वाले सिमटम के टेस्ट्स में उसे कोरोना पॉजिटिव पाया गया। पूजा कुछ समय तक उसके संपर्क में रही है, अच्छा हो, तुम उसका कोरोना टेस्ट करा लो। मौसी को बताने से वह डर जाएँगी। मैं अभी इंडिया में हूँ, भगवान् से प्रार्थना है, पूजा का टेस्ट नेगेटिव निकले, पूजा का रिजल्ट फोन से बताना।”

समीर संज्ञाशून्य सा हो रहा था, नहीं उसकी पूजा को कोरोना नहीं हो सकता। पिछले कुछ दिनों से कोरोना के चीन के अलावा दूसरे देशों में फैलने की खबरें आ रही थीं। भारत में तो अभी तक कुछेक केसेज छोड़कर सब सामान्य सा चल रहा था। समीर समझ नहीं पा रहा था, कैसे वह पूजा के पापा से बेटी का कोरोना का टेस्ट कराने को कहे।

अभी वह अपने पापा के लिए चिंतित था, अब पूजा के लिए परेशान हो गया। नहीं पूजा को कुछ नहीं होगा, पूजा की माँ ने बताया है, जुकाम की वजह से पूजा के गले में हलकी खराश थी, हॉस्पिटल मे गंभीर हालत में पापा और माँ को अकेले छोड़कर जाना मुश्किल था। अंतत: समीर ने पूजा के पापा से बेटी को अस्पताल ले जाने पर जोर दिया था।

कुछ ही दिनो में पूजा का खाँसी-जुकाम ठीक होने की जगह बिगड़ने लगा, उसे साँस लेने में तकलीफ होने लगी थी। अंतत: उसके पापा ने पूजा को अस्पताल ले जाने का निर्णय लिया था। मामूली सर्दी-जुकाम और बुखार अब सामान्य कष्ट जैसा नहीं रह गया था। पूजा के चेहरे पर दर्द दिखने लगा था। बोलने में कष्ट होता। हॉस्पिटल ले जाने की बात सुनकर पूजा चैतन्य सी हो गई।

“हॉस्पिटल नहीं...समीर।” कठिनाई से पूजा कह सकी।

“हाँ बेटी, समीर आता होगा। तुम परेशान मत हो।” पापा ने तसल्ली दी।

“लाल...गुलाब...डायरी...वादा...”

पूजा क्या कह रही थी, पूरी तरह समझ पाना कठिन था। कैसा लाल गुलाब, कौन सी डायरी?

हॉस्पिटल ले जाने पर जिस सत्य का सामना करना पड़ा, वह बेहद भयावह था पूजा के सिंपटम देखकर डॉक्टरों को कोराना संक्रमण का संदेह हुआ था। यह वह समय था, जब भारत में कोरोना के अधिक मरीज नही थे। पूजा का टेस्ट करने के लिए पूजा के माँ-बाप को दूसरे कमरे में भेज दिया गया था। टेस्ट से भय सत्य में बदल गया। पूजा उस हॉस्पिटल की पहली कोरोना पॉजिटिव युवती थी। पूजा के माता-पिता तो जड़ हो गए। टेस्ट में पूजा अंतिम स्टेज में कोरोना पॉजिटिव निकली थी।

“हमें दुःख है, आपने मरीज को लाने में बहुत देर कर दी, यकीन रखिए, हम पूरी कोशिश करेंगे, इतनी यंग लड़की कोरोना से हार नहीं मान सकती। आप लोग प्रार्थना कीजिए।” डॉक्टर्स पूजा की चिकित्सा में जुट गए थे।

पूजा के माँ-बाप को अलग कमरे में रहने को विवश कर दिया गया था। जब तक उनके टेस्ट नहीं हो जाते, वे अलग ही रहने को मजबूर थे। माँ अपनी बेटी को छोड़कर जाने को तैयार नहीं थी, पर कोई दूसरा विकल्प नहीं था।

डॉक्टरों की हर कोशिशों के बावजूद बंद होती आँखों में लाल गुलाब और सुनहरी डायरी के साथ समीर का सपना देखती पूजा ने हॉस्पिटल में दूसरे ही दिन आधी रात में हमेशा के लिए आँखें मूँद लीं।

माँ पछाड़ खाकर गिर पड़ी। पिता सूनी आँखों से शून्य में निहारते रह गए। रात का अँधेरा उनके जीवन में हमेशा के लिए गहरा अंधकार कर गया था।

रात के दो बजे अचानक समीर बेहद बेचैन हो उठा। नर्स से कुछ देर के लिए बाहर जाने की अनुमति लेकर कार पूजा के हॉस्पिटल की तरफ दौड़ा दी थी। हॉस्पिटल में सन्नाटा पसरा हुआ था। पूजा के पेरेंट्स का पता नहीं था। नाइट ड्यूटी के डॉक्टर से जो सूचना मिली, उसने समीर को बेजान सा कर दिया। उसकी पूजा उसे छोड़कर कैसे जा सकती है। आँखों के आगे अँधेरा छा गया था। बहुत विनती करने पर डॉक्टर ने समीर को पूजा के पेरेंट्स से दूर से बात करने की इजाजत दी थी।

“हमारी पूजा हमें छोड़कर चली गई। जाते-जाते तुम्हें याद कर रही थी।” आँसू पोंछते पूजा के पापा ने कहा।

“पूजा के बिना हमें नहीं जीना है, हम कैसे जिएँ?” माँ का करुण क्रंदन दिल चीर गया।

“नहीं आंटी, पूजा कहीं नहीं गई है। अपने पोर्ट्रेट में वह हमेशा अपने घर में आपके साथ रहेगी।” बात कहते समीर की आवाज रुँध गई।

“पूजा तुम्हारे नाम के साथ किसी लाल गुलाब और डायरी के बारे में कुछ कहना चाहती थी; डायरी में कुछ लिखकर कोई वादा पूरा करना चाहती थी। क्या तुम जानते हो, पूजा कौन सा वादा पूरा करना चाहती थी?” कुछ शांत होकर पूजा के पापा ने पूछा।

“मैं जानता हूँ, उसका लाल गुलाब और डायरी मुझे जीने का संबल देगी। काश उसकी पुकार सुन पाता। विश्वास रखिए, वह हमेशा मेरे साथ रहेगी।” नम आँखों के साथ समीर ने जैसे अपने से वादा किया।

एक पोर्टे्रट की कीमत पूजा की जान से नहीं चुकाई जा सकती। यह अन्याय है। समीर स्तब्ध था।

सवेरे पूजा की हॉस्पिटल से अंतिम विदाई नियत की गई थी। कोरोना से मृत शरीर को अधिक देर नहीं रखा जा सकता था।

“डाक्टर पूजा की अंतिम यात्रा में मुझे साथ जाने की इजाजत दे दीजिए, वह मेरी होने वाली पत्नी थी।” डॉक्टर से अनुरोध करते समीर का कंठ भर आया।

“ठीक है, पर उसके लिए आपको हर सावधानी बरतनी होगी और दूर से ही पूजा को विदा करना होगा।”

“मुझे मंजूर है।”

कब सोचा था, समीर के सपनों की राजकुमारी पूजा की अंतिम विदाई एंबुलेंस में होगी? उसे तो नूरी बाग के फूलों से सजी डोली में विदा होना था। बेरंग फूलों से पूजा को अंतिम विदाई देकर समीर ने आँसू हथेली से पोंछ लिये।

 

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—पुष्पा सक्सेना

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