RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
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शुद्ध श्वेत पन्ने मेंमैं, लगता है हमेशा कि वह हूँ हम नहीं अलग-अलग उसकी बातचीत, आचार-विचार सबकुछ मेरे ही जैसे इधर जब से यौवन की देहरी पर रखा है पाँव दीख रही है हू-ब-हू मुझ जैसे ही। सोचा जा सकता है मुझ ही जैसा अगर देखते ही रहे लगता है कि अपनी खोई हुई जवानी फिर देख रही हूँ इसलिए तो वह बहुत पसंद है मुझे! मगर उसे मैं पसंद हूँ कि मालूम नहीं! अब रोज प्रार्थना कर रही हूँ। ‘वह मुझे देखती रहे तो उसे बस क्या जिंदगी इतना ही...’ यह उसे न लगे। बिक्री के लिए हैं बिक्री के लिए हैं आधी लिखी हुई तसवीर आधा बनाया हुआ घर आधा देखा हुआ सपना... जो चाहे खरीद सकता है बिक्री के लिए हैं आधी लिखी हुई डायरी आधा मन... आधी उम्र। × × × शुद्ध श्वेत पन्ने में कभी खींचा हुआ बहुवर्ण चित्र अब जहाँ-तहाँ फीका हुआ है थोड़ा धब्बा लगा है... थोड़ा गंदा हुआ है। घुन खाकर बचा हुआ आधा चित्र बिक्री के लिए है, जिसे कला का ज्ञान है, खरीद सकता है नहीं तो फेंक सकता है। × × × बिना छत के अकेले घर में पीठ के बल लेटकर चाँद के चारों ओर प्रदक्षण करनेवाले तारों को गिनते हुए एक अच्छे कल के इंतजार में बाँधा हुआ आधा सपना बिक्री के लिए है सपने देखनेवाले खरीद सकते हैं मन नहीं माना तो भूल सकते हैं। × × × किसी की दिनचर्या को अपना ही मानकर उसी चिंता में दिन-रात बिताकर कराहते हुए, लुढ़कते हुए अपने को ही खोजकर मेरा लिखा, मेरे बिना का आधी दिनचर्या के पन्ने बिक्री के लिए हैं... खरीद सकते हैं लेखक इच्छा नहीं हुई तो जला सकते हैं। × × × भोग लालसा में पिघल गया है आधी उम्र नशे की दिशा में खो गया है आधा मन बिना मन के मन में बिना उम्र की उम्र में बेच रहा हूँ अपने आपको... जिनके मन में प्यार है, खरीद सकते हैं नीति चूक गई तो मार सकते हैं! पाप हे प्रभु, साँस लेनेवाले रोबोटों की सृष्टि करो मत अगर सृष्टि की भी उसके छोटे से सिर में दिमाग रखना नहीं चाहिए अगर रखा तो भी पंख फैलाकर उल्लासित होनेवाले मन को अंकुरित मत होने दो अंकुरित होने पर भी दिल की नीड़ हर पल प्रस्फुरण न हो प्रस्फुरण होने पर भी तनी हुई रीढ़ की हड्डी सीधा मत खड़ा होना चिहिए आँख कान नाक न हो होने पर भी चमकनेवाले खाल-पत्तर को स्पर्श का ज्ञान न हो हाथ पैर कान खाल दिमाग दिल मन रीढ़ की हड्डी... चाहिए या न चाहिए, पूछे बिना रख दिए मुँह देकर आवाज देना भूल क्यों गए? गति का पाठ जो पढ़ाया पंख देना क्यों भूल गए? हे प्रभु! तेरे पाप को साफ किया नहीं जा सकता भूल के गुनाह की सजा माफ नहीं हो सकती फिर भी पेट में एक छोटी थैली रखकर ब्रह्मांड के बीज प्रसव के लिए छोड़ दिया न? तुम्हें क्षमा किए हैं हम जाओ... नक्काशी करने गया... नक्काशी करने गया नक्काशी करते-करते बैठ गया वहीं पहले सिर फिर आँखें, नाक, कान, मुँह गरदन, बाँह, पेट, नाभि, जाँघ, पैर आखिर में चरण सिर उठाकर खड़ा होना चाहिए उस आधार के लिए पीठ इस प्रकार करते वक्त पूछी प्रतिमा ने कर क्या रहे हो? पल भर के लिए मैं अवाक् मानो पिता से पूछा बेटा सवाल बोली प्रतिमा— नहीं बना रहे हो तुम मुझे मैं पहले थी अब भी हूँ रहूँगी कल भी तुम बना रहे हो अपने को सावधान, एक-एक प्रहार का करो सावधानी से!
नवनीत, द्वितीय क्रॉस, अन्नाजी राव ले आउट प्रथम स्टेज, विनोबा नगर, शिमोगा-५७७२०४ (कर्नाटक) दूरभाष : ०९६११८७३३१० |
अप्रैल 2024
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