तीन फकीर

आर्चएंजल नगर से सोलोवकी, जो डवीना नदी पर एक बंदरगाह था, के लिए एक पादरी जहाज में सवार हुआ। उसके साथ कई और लोग भी पवित्र मंदिरों की तीर्थयात्रा के लिए जा रहे थे। मंद-मंद वायु चल रही थी, सागर शांत था और आकाश नीला। जैसे-जैसे तीर्थयात्री आगे बढ़ रहे थे। उन्होंने जहाज की छत पर लेटकर, बैठकर अथवा भोजन करते समय परस्पर बातचीत की।

एक दिन प्रातःकाल जहाज की छत पर आकर पादरी ने उसके पिछले भाग में चहलकदमी की। फिर उसने जहाज के कर्मचारियों और यात्रियों को जहाज के अगले भाग में एकत्र होते देखा और उनमें सम्मिलित होने के लिए आगे बढ़ा। एक छोटा लड़का दूर सागर के ऊपर इशारा कर रहा था और जो कुछ वह कह रहा था, उसके आसपास खडे़ लोग उसे सुन रहे थे। पादरी ने क्षितिज का सूक्ष्म निरीक्षण किया, जिसकी ओर लड़का इशारा कर रहा था, परंतु दूर चमकते सागर के अतिरिक्त उसे कुछ भी नजर नहीं आया। यह सुनने के लिए कि लड़का क्या कह रहा था, जब पादरी उसके निकट गया तो एकत्र हुए सभी लोगों ने आदर से उसको सलाम किया।

‘‘मैं तुम्हें टोकना नहीं चाहता, मेरे भाइयो!’’ उसने कहा, ‘‘मैं तो केवल वह सुनना चाहता हूँ, जो तुम कह रहे हो।’’

‘‘इस सागर का मछुआ, यह लड़का,’’ एक व्यापारी ने कहा, ‘‘हमें किन्हीं फकीरों के बारे में बता रहा था।’’

‘‘कैसे फकीर? मैं जानना चाहूँगा।’’ बाँध के पास अपना स्थान ग्रहण करते हुए पादरी ने कहा, ‘‘तुम किसकी ओर इशारा कर रहे हो?’’

‘‘वह छोटा टापू, जो बंदरगाह के अग्रिम भाग में नजर आ रहा है।’’ मछुए ने उत्तर दिया—‘‘आत्मोत्थान के लिए वहाँ तीन फकीर रह रहे हैं।’’

‘‘परंतु वह टापू है कहाँ?’’ पादरी ने पूछा।

‘‘मेरे हाथों के सामने देखो, श्रीमान्! उस छोटे बादल से थोड़ा हटकर बाईं तरफ उसे देख सकते हो।’’

पादरी ने सागर के पार देखा, परंतु लंबे-चौडे़ फैलाव में कुछ भी नहीं देख सका। ‘‘मुझे कुछ भी दिखाई नहीं देता!’’ उसने कहा, ‘‘ये किस प्रकार के फकीर हैं?’’

‘‘वे एक प्रकार के योगी लोग हैं,’’ लड़के ने उत्तर दिया—‘‘मैंने प्रायः उनके बारे में सुना है और पिछली गरमियों में उनको देखा भी था।’’ फिर उसने बताया कि किस प्रकार उलटी हवा उसे टापू के छोर तक ले गई थी। उसे मालूम नहीं था कि वह कहाँ था। उसने टापू को खोजा और मिट्टी से बनी एक निर्जन झोंपड़ी के पास गया। यहाँ उसने फकीरों में से एक को देखा और तत्पश्चात् बाकी दोनों भी झोंपड़ी में आ गए। उन्होंने उसे खाना खिलाया और उसके कपडे़ सुखाए तथा मछली पकड़नेवाली उसकी नाव की मरम्मत में उसकी सहायता की।

‘‘वे किस तरह के दिखाई देते थे?’’ पादरी ने पूछा।

‘‘श्रीमान्, जिसको पहले झोंपड़ी में देखा, वह बहुत ही बूढ़ा था। मेरा अनुमान है, सौ वर्ष का होगा। वह बहुत ही छोटा था, गोल पीठ थी और पुरानी गंजी पहने हुए था। उसकी दाढ़ी सफेद थी और वह मुसकराता था, श्रीमान्, संत की तरह! दूसरा भी वृद्ध था और उसकी लंबी पीली दाढ़ी थी। वह लंबा था और फटा कोट पहने था। उसका शरीर पुष्ट था और वह अकेला ही मेरी नाव को पलट सकता था। वह उत्साही और प्रसन्नचित्त था। तीसरा अत्यंत लंबा, चाँद की तरह सफेद था। उसकी दाढ़ी घुटनों तक पहुँचती थी। वह देखने में तीक्ष्ण और उदास था। उसकी आँखें गुफा में से चमकती मालूम होती थीं। वह अपने पेट पर पेटी के अतिरिक्त कुछ भी पहने हुए नहीं था।’’

‘‘उन्होंने क्या कहा था?’’

‘‘उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा, श्रीमान्! वे आपस में भी कम बोलते थे; केवल एक के देखने मात्र से ही दूसरा समझ जाता था। मैंने लंबे से पूछा कि वे कब से वहाँ थे, तो वह कु्रद्ध हो गया और मुझपर गरजा, परंतु छोटे वृद्ध ने उसका हाथ थाम लिया और मुसकराया; तब लंबा आदमी चुप हो गया। फिर वृद्ध आदमी ने मुसकराकर मुझसे कहा, ‘तुम हमें क्षमा करो।’ ’’

जैसे-जैसे ये बातें चल रही थीं, वैसे-वैसे जहाज भी टापू के निकट पहुँच रहा था। ‘‘वह वहाँ, पूज्य पिता,’’ व्यापारी ने पुकारा—‘‘टापू अब साफ दिखाई दे रहा है।’’ और सागर के ऊपर इशारा किया। पादरी ने छोटा काला बिंदु देखा, जो वस्तुतः टापू ही था। पादरी ने उसे देर तक देखा और कुछ निश्चय करके जहाज के चालक के पास गया और उससे पूछा, ‘‘उस टापू का क्या नाम है?’’

‘‘श्रीमान्, मैं नहीं समझता कि उसका कोई नाम है। इस सागर में उस जैसे कई टापू हैं।’’

‘‘मुझे बताया गया है कि वहाँ फकीर रहते हैं। क्या यह बात सत्य है?’’

‘‘जो कुछ भी तुम सुनते हो, उसपर विश्वास नहीं कर सकते,’’ आदमी ने उत्तर दिया—‘‘कहा जाता है कि वहाँ फकीर रहते हैं और मछुआरों ने उन्हें देखा है। मैं विश्वास से नहीं कह सकता।’’

‘‘मैं किनारे पर जाना चाहता हूँ,’’ पादरी ने कहा, ‘‘और फकीरों से मिलना चाहता हूँ। क्या ऐसा किया जा सकता है?’’

‘‘ठीक है, आदरणीय। हम जहाज को किनारे पर नहीं ले जा सकते। तुम नाव में बैठ सकते हो, परंतु यह मामला कप्तान के हाथ में है। वह सामने आ रहा है।’’

‘‘कप्तान!’’ पादरी ने कहा, ‘‘मैं उन फकीरों से अवश्य मिलना चाहता हूँ। क्या किसी तरीके से तुम मुझे टापू के किनारे तक पहुँचा सकते हो?’’

इस प्रकार का कोई काम करने के लिए कप्तान सहमत नहीं था। ‘‘यह काफी आसान है, माइ लॉर्ड, परंतु इससे समय नष्ट होगा। मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वे तुम्हारे कष्ट के योग्य नहीं हैं। मुझे बताया गया है कि वे बुद्धिहीन हैं। जो कुछ तुम कहोगे, वे समझ नहीं पाएँगे और न ही स्वयं कुछ कहेंगे!’’

‘‘हो सकता है,’’ पादरी ने कहा, ‘‘परंतु मैं टापू पर जाना चाहता हूँ; इस कष्ट और फालतू समय के लिए मैं भुगतान करूँगा।’’

इतनी प्रतिष्ठावाले आदमी को मना करना कठिन था। आवश्यक आदेश दे दिए गए। जहाज को दूसरी कील पर डालकर शीघ्रता से टापू पर लाया गया। वे पादरी के लिए आसन लाए, जिसके अग्र भाग पर बैठकर उसने ध्यानपूर्वक टापू को देखा, जबकि जहाज के लोग उसके पीछे एकत्र हो गए। शीघ्र ही तीव्र दृष्टिवाले नाविकों ने चट्टानों और छोटी झोंपड़ी को देखा। अंततः उनमें से एक ने कहा कि उसने तीन फकीर देखे हैं। फिर कप्तान ने अपनी दूरबीन उठाई और किनारे का निरीक्षण करने के बाद पादरी को देते हुए कहा, ‘‘वहाँ सामने देखो! किनारे की चट्टान पर तीन आदमी खडे़ हैं।’’ पादरी ने दूरबीन ले ली और तीनों आदमियों को देखा—एक बहुत लंबा, दूसरा उससे छोटा और तीसरा वास्तव में बहुत ही छोटा था। वे तीनों एक-दूसरे का हाथ थामे तट पर खडे़ थे।

फिर कप्तान ने कहा, ‘‘हम आगे नहीं जा सकते, श्रीमान्, हमें यहीं लंगर डालना होगा। यदि तुम अब भी चाहते हो तो जहाज की नाव में किनारे पर जा सकते हो।’’ अतः पतवार को नीचे किया गया और जहाज हवा में भागा। लंगर उठा लिया गया और बादबान नीचे कर दिए गए। जहाज सागर की लहरों पर तैरने लगा। नाव को एक तरफ डाला गया था, जिसकी देखभाल मल्लाहों का जत्था कर रहा था। पादरी सीढ़ी द्वारा उतरा और नाव के पिछले भाग में बैठ गया। मल्लाहों ने पानी को काटना शुरू किया और नाव झलुए की तरह अपने रास्ते पर तेज दौड़ने लगी। एक-दूसरे का हाथ थामे तीनों फकीर पास-पास खडे़ साफ नजर आने लगे। शीघ्र ही नाव चट्टान के निकट आई। एक नाविक ने कुंडी से उसको पकड़ा और पादरी किनारे पर कूद गया। फकीर आगे आए और झुककर सलाम किया। उसने उनको अपना आशीर्वाद दिया और उन्होंने पुनः सिर झुकाया।

फिर पादरी बोला, ‘‘मुझे बताया गया है कि तुम हमारे लॉर्ड ईसा के अनुयायी बनकर परमात्मा की उपासना और अपनी मुक्ति के लिए काम कर रहे हो। परमात्मा की कृपा से मैं भी लॉर्ड का सेवक हूँ, भले ही मैं अयोग्य हूँ और उसकी भेड़ों के झुंड का चरवाहा कहलाता हूँ। अतः मैं चाहता हूँ कि यदि संभव हो तो मैं तुम्हें कुछ उपदेश दूँ; क्योंकि तुम भी परमात्मा के सेवक हो।’’

फकीरों को कहने के लिए कुछ नहीं सूझा, वे केवल एक-दूसरे को ताकते हुए मुसकराए।

‘‘क्या तुम बताओगे कि अपनी मुक्ति कैसे पाना चाहते हो और परमात्मा की सेवा कैसे करते हो?’’ पादरी ने पूछा।

दो लंबे फकीरों ने गहरी साँस ली और तीसरे आदरणीय छोटे आदमी की ओर देखा। वह मुसकराया और बोला, ‘‘परमात्मा के सेवक! हम परमात्मा की सेवा के योग्य नहीं हैं। हम अपने लिए भोजन ढूँढ़कर अपनी सेवा करते हैं।’’

‘‘परंतु तुम परमात्मा से प्रार्थना कैसे करते हो?’’ पादरी ने पूछा। फिर बूढे़ आदमी ने कहा, ‘‘हम जो कहते हैं, वह यह है—तुम तीन हो, हम भी तीन हैं, हम पर दया करो।’’

ज्यों ही उसने यह कहा, तीनों फकीरों ने अपनी नजरें आकाश की ओर उठाईं और मिलकर बोले, ‘‘हम तीन हैं, तुम भी तीन हो, हमपर दया करो।’’

यह पादरी के हृदय को स्पर्श कर गया और वह मुसकराया।

‘‘तुम्हें पवित्र त्रिमूर्ति की ठीक शिक्षा दी गई है,’’ उसने कहा, ‘‘परंतु प्रार्थना करने का यह तरीका नहीं है। तुम्हारी धर्मनिष्ठा ने मुझे प्रसन्न किया है, मेरे बच्चो! यह स्पष्ट है कि तुम परमात्मा की सेवा करना चाहते हो, परंतु करना जानते नहीं। मुझसे सुनो। मैं तुम्हें सिखाता हूँ। तुम्हें मैं अपने शब्दों में शिक्षा नहीं दूँगा बल्कि पवित्र धार्मिक पुस्तकों से बताऊँगा कि परमात्मा किस प्रकार चाहता है कि तमाम मनुष्य उसकी प्रार्थना कैसे करें।’’ तत्पश्चात् उसने फकीरों को पिता परमात्मा, परमात्मा के बेटे तथा पवित्र प्रेम के बारे में सबकुछ बताते हुए दैवी प्रकाश के बारे में बताया और कहना जारी रखा—‘‘परमात्मा का बेटा हम सबको बचाने और प्रार्थना करने के तरीके को सिखाने के लिए पृथ्वी पर आ गया। सुनो और मेरे पीछे इन शब्दों को कहो—हमारा पिता।’’

पहले फकीर ने दोहराया—‘‘हमारा पिता!’’ और उसके पीछे दूसरे ने और अंत में तीसरे ने भी।

‘‘जो स्वर्ग में है।’’

फकीरों ने कहने का प्रयास किया—‘‘जो स्वर्ग में है।’’ परंतु उनमें से कोई भी इसे समझ नहीं पाया। लंबे फकीर के होंठ अजीब थे, इस कारण वह बोल नहीं सका। तीनों में से सबसे बूढ़ा फकीर शब्दों को समझ नहीं सका और तीसरे ने शब्दों को निराशाजनक ढंग से आपस में मिला दिया।

निरुत्साहित न होते हुए पादरी चट्टान पर बैठ गया। तीनों फकीर उसके सामने खडे़ रहे और वाक्यखंड को दोहराते रहे, जब तक बार-बार कहने से याद नहीं हो गया। रात तक पादरी निरंतर प्रयत्न करता रहा और एक-एक शब्द को सौ-सौ बार दोहराता रहा, जब तक फकीर पूरा वाक्यखंड बोलना सीख नहीं गए। और फिर जैसा कभी-कभी होता है, शब्द परस्पर मिलाए जाने लगे तो पादरी रुक गया और पुनः नए सिरे से शुरू किया। पादरी ने उसको तब तक नहीं छोड़ा, जब तक उन्होंने परमात्मा की पूरी प्रार्थना याद नहीं कर ली और व्यक्तिगत या सामूहिक तौर पर दोहरा नहीं सके।

रात गहरी हो चुकी थी और चाँद सागर के ऊपर आ चुका था। इसके पहले कि पादरी विदा होने के लिए उठे, उन्होंने पहले की तरह झुककर सलाम किया। उसने सिखाए गए तरीके से प्रार्थना करने के लिए कहते हुए उन्हें चूमा। फिर वह पुनः नाव पर बैठ गया। ज्यों ही नाविक उसे जहाज की ओर लेकर चले, ‘हमारा पिता’ कहते हुए फकीरों की आवाजों ने उसका पीछा किया। जहाज पर चढ़ जाने के बाद वह प्रार्थना की आवाज को सुन नहीं सका, परंतु चाँदनी में तीन बूढे़ आदमी तट पर खडे़ थे।

बादबानों को खोल दिया गया और लंगर उठाया गया। जहाज तेजी से अपने रास्ते पर चल दिया। जहाज के पिछले भाग में बैठा पादरी अब भी चट्टानी टापू को निहार रहा था। जल्दी ही फकीर उसकी आँखों से ओझल हो गए और चाँद के चौडे़ रास्ते के लिए केवल सागर ही सामने था। तीर्थयात्री सो गए थे और जहाज पर पूरी तरह शांति थी, परंतु जहाज के पिछले भाग में बैठे पादरी की आँखों में नींद नहीं थी। वह फकीरों और उनको दी गई अपनी शिक्षा से आनंदित हो रहा था और परमात्मा को इस बात के लिए धन्यवाद दे रहा था कि वह उनकी सहायता कर पाया।

इस प्रकार सोचता हुआ वह बैठा था और लहरों पर नाचती हुई चाँदनी उसकी आँखों को चुँधिया रही थी कि एकाएक उसे कोई चमकती सफेद वस्तु चाँदनी में उड़ती हुई नीचे आती दिखाई दी। क्या यह कोई बादल था अथवा कोई पक्षी, जो उनका पीछा कर रहा था। पादरी ने सागर को सावधानी से देखा। विचित्र वस्तु शीघ्र ही जहाज पर छा गई। यह बादल नहीं था और न ही कोई पक्षी या बड़ी मछली, परंतु एक विशाल डीलडौलवाले आदमी की आकृति थी। फिर भी यह नहीं हो सकता था, क्योंकि एक आदमी सागर के धरातल पर भला कैसे उड़ सकता है?

पादरी ने जहाज चालक को पुकारा—‘‘देखो, भाई!’’ वह इशारा करते हुए चिल्लाया—‘‘वह क्या है?’’ परंतु वह पहले ही जानता था। तीन फकीर अपनी सफेद दाढि़यों के साथ सागर पर उड़ रहे थे और उन्होंने जहाज को ऊपर-नीचे से देखा, जैसे वह लंगर डाले हुए हो। जहाज-चालक ने भयभीत होकर हैंडल को छोड़ दिया और चीखा—‘‘परमात्मा, हमारी रक्षा करो। फकीर, फकीर! वे ऐसे भाग रहे हैं, जैसे भूमि पर भाग रहे हों।’’

भयसूचक चेतावनी जहाज के सभी लोगों को जहाज की छत पर ले आई और वे भयभीत हो जहाज के पिछले भाग में एकत्र हो गए। एक-दूसरे का हाथ पकडे़ अब भी फकीर, चाँदनी में चमकते सागर पर, जहाज को रोकने के लिए हाथ हिलाते उड़ रहे थे। भले ही वे खुश्क भूमि पर दौड़ते हुए प्रतीत होते थे, परंतु उनके पैर चलते हुए दिखाई नहीं देते थे। इसके पहले कि जहाज हवा को पकड़ता, फकीर वहाँ आ गए और एक ओर सवार हो गए। एकत्र हुए लोगों के सामने खड़े होकर उन्होंने कहा, ‘‘ओ, परमात्मा के सेवक! जो कुछ भी तुमने सिखाया था, हम वह सब भूल गए हैं। जब तक हम उसे दोहराते रहे, वह हमें याद रहा, परंतु जब हमने एक घंटे तक दोहराना बंद कर दिया तो शब्दों में से एक को भूल गए। हम उसको पुनः याद नहीं कर सके और इस प्रकार सब भूल गए। हमें एक भी शब्द याद नहीं है; कृपया हमें पुनः सिखाओ।’’

पादरी ने क्रॉस का चिह्न बनाया और फकीरों के सामने घुटनों के बल यह कहता हुआ झुक गया, ‘‘ओ पवित्र फकीरो! परमात्मा ने तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार कर ली है। अब सिखानेवाली कोई बात नहीं रही। केवल हम पापियों के लिए प्रार्थना करो।’’ तत्पश्चात् वह उनके पैरों पर झुक गया।

एक क्षण के लिए फकीर रुके और फिर सागर पर उड़ने के लिए मुडे़। अगले दिन प्रातःकाल जहाज की छत का वह भाग, जहाँ वे खडे़ हुए थे, चमक रहा था।

 

(पुस्तक ‘रूस की श्रेष्ठ कहानियाँ’ से साभार)

—टॉलस्टॉय

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