पॉलीथिन और गौ-हत्या

पॉलीथिन और गौ-हत्या

सुपरिचित साहित्यकार। ‘अर्चना’ (कविता-संग्रह); ‘रजनीगंधा’, ‘नौनी लगे बुंदेली’ (बुंदेली हाइकु संग्रह); ‘विश्व में बुंदेली कौ पैलो हाइकु-संग्रह, ‘राना का नजराना’ (गजल-संग्रह); ‘लुक-लुक की बीमारी’ (बुंदेली व्यंग्य-संग्रह) तथा पत्र-पत्रिकाओं में दो हजार रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी से रचनाएँ प्रसारित; कई संस्थाओं के अध्यक्ष एवं पदाधिकारी। कुल ७४ साहित्यिक सम्मान प्राप्त।

क दिन मैं अपनी छोटी बच्ची के साथ देवीजी के मंदिर में दर्शन करने गया, तो वहाँ पर मंदिर के बाहर प्रसाद व अगरबत्ती के खाली पैकिट और पॉलीथिन यहाँ-वहाँ फैली पड़ी थीं। उस क चरे के ढेर में से एक गाय उन पॉलीथिनों को खाकर अपना पेट भर रही थी। यह देख बच्ची ने पूछा कि पापा, लोग यहाँ पॉलीथिन क्यों फेंक देते हैं? उन्हें यह गाय खा रही है, जो कि बहुत नुकसानदायक होती है। हमें स्कूल में पर्यावरण में पढ़ाया जाता है कि पॉलीथिन बहुत समय तक नष्ट नहीं होती है। अत्यधिक मात्रा में खाने से यह गाय के पेट में एकत्र हो जाती है, जिससे गाय का पेट फूल जाता है और अंत में गाय मर जाती है। इस प्रकार पूरे देश में हजारों गाय असमय ही मौत के मुँह में चली जाती हैं। गाय के अलावा बकरी, भैंस, कुत्ते, सुअर आदि जानवर भी इन पॉलीथिनों को खा जाते हैं।

हम लोग मंदिर में प्रसाद चढ़ाकर पुण्य कमाने के लिए जाते हैं, किंतु अनजाने में ही इन पॉलीथिनों को फेंककर हम गाय की मौत के भागीदार भी बन जाते हैं और गौ-हत्या का कुछ पाप हमारे ऊपर भी लग जाता है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम कचरे को एक स्थान पर ही फैंके? मैंने कहा, हाँ, हो सकता है, इसीलिए तो एक कोने में कचरे का बड़ा सा डिब्बा रख दिया जाता है, किंतु लोग लापरवाही एवं आलस में पॉलीथिन यहाँ-वहाँ ही फेंक देते हैं।

घर आकर मैंने विचार किया कि बच्चे ने सही कहा है, हम मंदिर में पुण्य कमाने जाते हैं, लेकिन उल्टे गौ-हत्या का पाप कमाकर आ जाते हैं। मैंने सोचा कि कुछ तो हमें करना पड़ेगा। मैंने एक योजना बनाई और उसमें अपनी बच्ची को भी शामिल कर लिया। उस पर अमल करने के लिए शुक्रवार का दिन चुना और सुबह से ही शुक्रवार को मैं बच्ची के साथ देवीजी के मंदिर में पहुँच गया। अगरबत्ती व प्रसाद चढ़ाने के बाद अगरबत्ती की पॉलीथिन को गेट की जाली में एक गाँठ लगाकर बाँध दिया, ऐसा ही बच्ची ने भी किया। यह देख मंदिर के पुजारी ने पूछा कि यह क्या कर रहे हो? मैंने कहा, पंडितजी, देवी माँ आज रात में इस बच्ची के सपने में आई थीं और माँ ने कहा था कि जो भी भक्त मेरे मंदिर में सच्चे मन से पाँच शुक्रवार पूजा करके पॉलीथिन से एक गाँठ बाँधकर जो भी मनौती माँगेगा, उसकी मनौती अवश्य पूरी होगी। मेरा व्यापार इस समय बहुत घाटे में चल रहा है, मेरी उधारी बहुत है, लोग पैसा वापस करने ही नहीं आ रहे हैं, इसीलिए मैंने देवीजी से मनौती माँगी है कि मेरा उधार मिल जाए तथा मेरे व्यापार में लाभ होने लगे। इस प्रकार मैंने पाँच शुक्रवार जाकर देवीजी के मंदिर के पॉलीथिन बाँधकर मनौती माँगी।

संयोग से कहें या सचमुच, माँ की कृपा से मेरा उधार में डूबा पैसा धीरे-धीरे वापस मिलने लगा और मुझे व्यापार में भी दिनोदिन अधिक लाभ होने लगा। मेरा व्यापार खूब चलने लगा। यह देख मेरे पड़ोसी को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने हमसे पूछा तो हमने वही देवीजी के सपनेवाला किस्सा उन्हें सुना दिया, मंदिर के पंडितजी ने भी अनेक लोगों को यह बात बताई, इस प्रकार यह बात धीरे-धीरे पूरे गाँव में आग की तरह फैल गई। अब जो भी लोग देवीजी के मंदिर जाते, वे पॉलीथिन को यहाँ-वहाँ नहीं फैंकते बल्कि उन्हें वहीं गेट पर ही जालियों में बाँध देते। जो लोग पॉलीथिन नहीं लाते, वे लोग वहीं पर पड़ी हुई पॉलीथिनों को उठाकर ही बाँधकर मनौती माँग लेते। इस प्रकार अब मंदिर में कहीं भी पॉलीथिन नीचे गिरी हुई नहीं दिखाई देती। अब मैं संतुष्ट था कि इस मंदिर के पास से कोई भी गाय पॉलीथिन खाकर नहीं मरेगी। मेरे एक झूठ से यदि सैकड़ों गायों की जान बचती है तो यह मुझे उचित लगा।

 

नई चर्च के पीछे, शिवनगर कॉलोनी

टीकमगढ़-४७२००१ (म.प्र.)

दूरभाष : ९८९३५२०९६५

—राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’

हमारे संकलन