अगुए

दोनों पादरी के घर में नौकर थे—वह अस्तबल का लड़का था जबकि वह घरेलू दासी थी। वह घोड़ों को चलाता था और यह घर में व्यस्त रहती। खाने के समय जब वे मेज के अलग-अलग कोनों पर बैठते तो कभी-कभी आपस में मजाक करते थे, परंतु प्रायः झगड़ते ही रहते थे। उनके मालिक एवं मालकिन का खयाल था कि वह जोड़ा अपूर्व और सबसे पृथक् था; वास्तव में कुत्ते और बिल्ली की तरह—जैसाकि लोग कहते थे।

परंतु रात को मछली पार्टियों में और दिन में घास सुखाने में एक-दूसरे की सहायता करने में या फिर दिन में मकई काटने में जो बातें होतीं, उससे दोनों में अपना घर बसाने का विचार धीरे-धीरे दृढ़ होता गया। दूर दलदल की ओर सुनसान स्थान में उन्होंने घर के लिए एक स्थान निश्चित कर लिया। वहाँ जंगल की भूमि थी और उसे केवल साफ करना था। विशाल समतल भूमि पर उगे भोजपत्र के पेड़ों को जोतने-बोने योग्य बनाना था और छोटी नदी के दोनों किनारों पर नीची भूमि को चरागाह में बदलना था। यदि वे घर बनाते तो मजदूरी कम थी और आरंभ में कम-से-कम एक घोड़े और एक गाय की जरूरत तो थी ही। इस अवस्था में विवाह में देर हो गई, परंतु एक वर्ष में उनका बंधन और दृढ़ हो गया और प्रतिदिन उनको भविष्य उज्ज्वल होने के आसार दिखाई देने लगे। अब तक जितनी बचत कर चुके थे, उसमें थोड़ा-बहुत जोड़ने तथा यह सोचने में कि जरूरत के अनुसार धन जुटाने में उन्हें कितनी देर प्रतीक्षा करनी होगी—अपना खाली समय व्यतीत करते थे। कोई स्वप्न में यह नहीं सोच सकता था कि स्वतंत्रता की तीव्र इच्छा और अपना घर स्वयं बनाने की लालसा उनमें धीरे-धीरे कितनी बढ़ रही थी—कितनी बढ़ रही थी उस लड़के और लड़की में! पादरी के घर में समय इतनी अच्छी तरह कटा कि उन्हें खाने और कपड़े की कोई चिंता नहीं थी। फिर भी उनके दिल सुनसान स्थान से जुड़े थे।

जब गरमी के मौसम में उन्होंने काम करना बंद कर दिया तो उन्हें हर कोई चेतावनी देने लगा—‘‘वहाँ दूर केवल पाले की भीषणता और उत्पात है और तुम केवल उधार के नीचे दब जाओगे। परिवार जल्दी बढ़ता है और हमारे यहाँ पहले ही काफी भिखारी हैं।’’ परंतु उन्होंने गत पाँच वर्षों में मामला ठीक कर लिया था और अपने निर्णय पर दृढ़ थे। पुजारी को उन दोनों के विवाह की घोषणा करनी थी। शरद् ऋतु में उन्हें घर छोड़ देना था।

आनेवाली सर्दियों में वे छोटे मकान में रहते रहे। विले अपनी झोंपड़ी बनाने में लगा रहा और नियमित पादरी के घर काम करता रहा तथा एनी पुजारी की पत्नी की सीने-पिरोने और बुनने में सहायता करती रही।

विटसनटाईड में उनका विवाह संपन्न हुआ। उसका खर्च पादरी के घरवालों ने दिया और पादरी ने स्वयं अपने इन भूतपूर्व नौकरों का विवाह भी अपने घर के बड़े कमरे में किया, परंतु जब नव-विवाहित जोड़ा चला गया और पुजारी ने खिड़की के पास खड़े होकर उन्हें रास्ते में लुप्त होते देखा तो चिंतित होकर अपना सिर झुकाया और कहा, ‘‘युवा जोड़े को प्रयत्न करने दो कि वे क्या कर सकते हैं, परंतु सुनसान स्थान लड़के और लड़की के पास एकत्र पूँजी से साफ होनेवाला नहीं है।’’

फिनलैंड का जंगली स्थान इस प्रकार की पूँजी से साफ हो गया, फिर भी पादरी का कहना सत्य निकला।

हम पादरी के क्षेत्र के युवा लोग अपने प्यारे मित्रों को उनके नए घर तक छोड़ने गए। हमने गरमियों का दिन—लंबा दिन, वसंत ऋतु की-सी हरियाली से भरे जंगल में से जाने में गुजारा और रात नई झोंपड़ी में नाचते-गाते हुए काटी। नए घर के तख्ते अभी थोड़े खुरदरे थे; अनचिरी लकड़ी के नुकीले सिरे लकड़ी की गाँठों से असमतल ढंग से निकल रहे थे और भूरी नदी नई सुधारी गई भूमि पर चारों ओर फैल रही थी, परंतु पहाड़ी की ढलान पर काले तनेवाले वृक्षों के बीच ताजा राई की हरी शाखें तेजी से चमक रही थीं; मकई के लिए साफ किए गए स्थान पर वृक्ष दुर्बलता से लटक रहे थे और सूखे थे। मालकिन ने साफ स्थान पर होलिका जलाई और पहली बार गाय का दूध निकाला। विले और मैंने एक पत्थर पर बैठे सायंकाल की दुबली, चमकीली धूप में उसे इधर-उधर तल्लीनता से काम करते देखा। वह अभी तक विवाहवाले कपड़े पहने हुए थी।

विले को अपनी सफलता पर कोई संदेह नहीं था।

‘‘यदि हमारा स्वास्थ्य बना रहता है और पाला न पड़ा,’’ जैसे मेरे विचारों को पहले से जानते हुए उसने आगे कहा, ‘‘मैं जानता हूँ कि यह दलदल नियमित रूप से पाले का घर है, परंतु यदि कोई व्यक्ति अपने हाथ-पैर चलाता रहता है तो जंगल को और आगे ले जा सकता है और धूप के लिए स्थान बना सकता है; फिर—यहाँ अभी सायंकाल की कुछ सर्दी है, परंतु अगली गरमियों में आओ और फिर देखो।’’

मैं गरमियों में नहीं गया और उससे अगली गरमियों में भी उन्हें मिलने नहीं जा सका। मैं मानता हूँ कि मैं उन्हें भूल गया था, परंतु एक बार जब मैं घर पर था, मैंने पूछा, ‘‘वे कैसे हैं।’’

‘‘उनको उधार लेना पड़ा था।’’ मेरे पिता ने उत्तर दिया।

‘‘और एनी बीमार रही थी।’’ मेरी माँ ने कहा।

कुछ वर्ष बीत गए। अब मैं विद्यार्थी था और मेरे पास बंदूक और एक शिकारी कुत्ता था; मैं शरद् ऋतु की छुट्टियाँ देहात में व्यतीत कर रहा था।

अक्तूबर के एक नीरस दिन मैं जंगल में घूम रहा था; मुझे एक तंग रास्ता मिला जो मेरा जाना-पहचाना प्रतीत होता था। बूँदाबाँदी शुरू हो गई; कुत्ता आगे-आगे दौड़ रहा था। एकाएक वह गुर्राने लगा, फिर तेजी से भौंकने लगा। मैंने अपने सामने घोड़े के चलने की आवाज सुनी। उसी समय सड़क के मोड़ पर घोड़ा नजर आया; उसके दोनों तरफ पतले डंडे लगे थे जिनके किनारे भूमि पर खिसक रहे थे। गले की लकड़ी से एक सफेद कपड़ा लटक रहा था और पतले डंडों के ठीक ऊपर बँधा हुआ एक कफन का बक्सा था जिसके पीछे विले चल रहा था जैसे हलवाहा अपने हल के पीछे चलता है। उसे अपने बोझ के संतुलन के लिए काफी प्रयत्न करना पड़ रहा था।

वह थका-थका सा लगता था। उसके गाल पीले और आँखें बुझी-बुझी सी लगती थीं।

मेरा नाम सुनने के बाद ही उसने मुझे पहचाना।

‘‘लेकिन यह तुम्हारा बोझा कैसा है?’’ मैंने पूछा।

‘‘मेरी मृतक पत्नी।’’ उत्तर मिला।

‘‘मृतक?’’

‘‘हाँ, वह मर गई है।’’

थोड़ी पूछताछ के बाद मैंने उनकी संक्षिप्त कहानी सुनी—पहले उधार, बहुत बच्चे, बीमारी और अंत में काम की अधिकता से मृत्यु। अब वह उसे कब्र तक ले जा रहा था, परंतु सड़कें बहुत ही खराब थीं। वह केवल यही आशा कर रहा था कि अर्थी चर्च तक ठीक-ठाक पहुँच जाए। उसने झटके से लगाम को खींचा क्योंकि घोड़ा रास्ते से हट गया था और सूखे पत्तों में थोड़ी घास ढूँढ़ रहा था। ‘‘वोह हो!’’

वह अपनी भूख मिटाने की कोशिश कर रहा था। घोड़े की भी वैसी ही बुरी दशा थी जैसी उसके मालिक की; वे दोनों हड्डियों का ढाँचा प्रतीत हो रहे थे।

विले ने जाने के लिए कहा और अपने बोझे से बिना अपनी आँखें हटाए अपने रास्ते पर चल दिया। पतले डंडों ने रेतीले रास्ते में दो समानांतर नालियाँ बना दीं।

मैं उलटी दिशा में दलदल की ओर गया जहाँ उन्होंने गड्ढा खोदा था, परंतु आधा खोदने के बाद काम बंद कर दिया था। विवाह संबंधी यात्रा से ही मैं रास्ते से परिचित था जो झोंपड़ी तक जाता था।

बाड़ के पीछे एक दुर्बल गाय धीरे से डकार रही थी और सूअर सेहन में गुर्रा रहा था; बाड़ का छोटा दरवाजा खुला था। सेहन के मध्य में एक खाली चारपाई पड़ी थी और मृतक औरत की चारपाई के कमड़े बाड़ के ऊपर पड़े थे। लकड़ी के नुकीले सिरे, जिनसे झोंपड़ी बनाई गई थी, लकड़ी की गाँठों में अब भी लगे हुए थे। लकड़ी के चौखटे, जिनके शीशे धुँधले और शुष्क थे, में भोजपत्र की लकड़ी के छोटे डिब्बे में मुरझाया हुआ गुलमेहंदी का पौधा था।

जंगली स्थान को थोड़ा-बहुत साफ करने में वह सफल अवश्य हुआ था। मकई बोने का टुकड़ा जो दो-एक एकड़ था और इससे आधी भूमि, जिसको बोने के लिए खोदा गया था, जंगल का आरंभ थे, परंतु इस बिंदु पर उसकी शक्ति टूटती प्रतीत हुई थी। उसने भोजपत्र को काट गिराया था और वहाँ के जंगल को चरागाह में बदल दिया था, परंतु इन के पीछे देवदार का काला जंगल अजेय दीवार की तरह खड़ा था। वहीं उसको रुकना पड़ा।

पहले अगुए ने अपना काम पूरा कर दिया; जितना अच्छा यहाँ किया जा सकता था। उसकी शक्ति और उमंग समाप्त हो चुकी थी, आँखों की चमक बुझ गई थी और विवाह की सुबह का उसका आत्मविश्वास समाप्त हो चुका था।

उनके बाद कोई दूसरा अवश्य आएगा और झोंपड़ी के स्थान को ग्रहण करेगा। संभवतः उसका भाग्य अच्छा हो, परंतु हलके काम से आरंभ करना पड़ेगा क्योंकि उसके सामने, आदमी से अनछुआ, क्रूर जंगल खड़ा नहीं होगा। वह बनी-बनाई झोंपड़ी में रह सकेगा और भूमि के उस भाग में बोएगा जिसमें उससे पहले व्यक्ति ने हल चलाया था।

झोंपड़ी का स्थान निस्संदेह एक बड़ा और कीमती स्थान बन जाएगा और समय आने पर इसके आसपास गाँव बस जाएगा।

जिन लोगों ने भूमि को अपनी सारी पूँजी, युवावस्था की शक्ति से पहली बार खोदा था, उनकी बाबत कोई नहीं जानता। वह केवल सरल लड़का और लड़की थे और वे दोनों वहाँ खाली हाथ आए थे।

परंतु ऐसे ही लोगों की पूँजी से फिनलैंड के जंगली स्थान को जड़ से साफ करके बड़े एकड़ों में बदला गया है। यदि वे दोनों पादरी के घर पर ही रहते तो वह कोचवान और यह घर की नौकरानी! संभवतः इनका जीवन चिंताओं से मुक्त रहता, परंतु जंगली स्थान उपजाऊ न बन पाता और सभ्यता के पहले स्तंभ ये जंगल के मध्य में न गाड़े जाते।

हमारे खेतों में जब राई के फूल खिलें और मकई की बालें पकें, तो आओ, हम उपनिवेश के इन पहले शहीदों को याद करें।

हम उनकी कब्रों पर यादगारें स्थापित नहीं कर सकते, क्योंकि उनकी कहानियाँ हजारों में हैं और हम उनके नाम तक नहीं जानते!

हमारे संकलन