RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
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आखिरी बिदाईनैऋत्य नामक एक उदयोन्मुख कवि और कहानीकार था। आप पूछेंगे कि अब नहीं है? वह अब भी है। मगर ‘था’ के लिए एक ‘अभिप्राय’ है। अगर आप सुनेंगे तो अचरज में पड़ जाएँगे। शुरू-शुरू में वह कुछ भरोसेमंद कहानियाँ और कविताएँ लिखता रहता था, लेकिन बाद में यकायक वह रंगमंच से गायब हो गया। पहले उसे ‘प्रजावाणी’ पत्रिका के दीवाली कथा-स्पर्धा में प्रथम पुरस्कार और एक बार फिर उसी पत्रिका के कविता-स्पर्धा में द्वितीय पुरस्कार दो बार मिले थे। हमने आग्नेय के बारे में सुना है। मगर यह नैऋत्य कौन है, लोग इसके बारे में जानने के लिए उत्सुक थे, तभी वह चल बसा। मगर उसे हुआ क्या था? o सपना मानो जल्दी में थी, आते ही उसके सामने बैठकर मुसकराई। वह थकी हुई लग रही थी। ‘‘थकी हुई हो।’’ नैऋत्य ने कहा। ‘‘यहाँ-वहाँ घूमना। बहुत देर से इंतजार कर रहे हैं? सॉरी।’’ ‘‘मैं तुम्हारे लिए जिंदगी भर इंतजार करने के लिए तैयार हूँ, फिर आधा घंटा इंतजार करना कोई बात नहीं है।’’ ‘‘देखिए, मैं एक सप्ताह में शादी करके जानेवाली हूँ, मेरे सामने आपको ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए। इसलिए मैंने आने से इनकार किया था। फिर भी आपने कहा कि यह आखिरी बिदाई है और आने के लिए आग्रह किया। कृपा करके मेरे दिल दुखानेवालों बात मत कहिएगा।’’ उसने व्यानिटी बैग से आईना निकाला और चेहरे को ठीक कर लिया। ‘‘कॉफी के लिए ऑर्डर करूँ?’’ ‘‘मैंने अब कॉफी छोड़कर चाय पीना शुरू कर दिया है।’’ ‘‘कल-परसों तक तुम कॉफी चाहनेवाली थीं?’’ ‘‘रमन को चाय पसंद है।’’ ‘‘रमन कौन है?’’ ‘‘मेरा होनेवाला पति, आपको मैंने बताया नहीं?’’ नैऋत्य को यह सुनकर बहुत ही दुःख हुआ और वेदना से कराहा, जैसे अपनी ही जीभ काट ली हो। ‘‘उसकी इच्छा-अनिच्छा के लिए तुम अपने आपको सँवारने की कोशिश कर रही हो?’’ ‘‘पति-पत्नी को ऐसे ही रहना चाहिए न?’’ उसकी हर बात उसके दिल को गहराई से काट रही थी। ‘‘आप ऐसा चेहरा क्यों बना रहे हैं। मुझे अच्छा नहीं लगता, मन उदास हो जाता है। मैंने कहा था कि मेरे सामने ऐसा मत किया करें, ऐसे रहेंगे तो मैं नहीं आऊँगी?’’ ‘‘ठीक है, तुमने कहा था। मैंने भी मान लिया था। मगर मेरे चेहरे पर मेरा पूर्ण नियंत्रण अब नहीं रहा। मन के उदास रहते चेहरे पर हँसी कैसे लाई जा सकती है? मैं तो अभिनेता नहीं हूँ, लेखक हूँ।’’ कॉफी और चाय आकर सामने बैठ गए। ‘‘आपको शादी में बुलाने की मुझे बड़ी इच्छा थी। मगर न बुलाने का निश्चय किया है। वहाँ पर आपके चेहरे का अंदाजा लगाना भी मुझसे नहीं हो सकता।’’ ‘‘तुम्हारी शादी में निमंत्रित होकर आना, मैं भी इसका अंदाजा नहीं लगा सकता।’’ ‘‘आप न जाने क्या-क्या सपने देख रहे थे!’’ ‘‘साक्षात् सपना जब मेरे सामने बैठी है तो मुझे सपना देखने की जरूरत नहीं थी।’’ ‘‘फिर भी आप अपनी कहानी और कविताओं में मुझे लाए हैं। अब आपसे मेरी एक प्रार्थना है।’’ ‘‘जो चाहे माँग सकती हो।’’ ‘‘मैं विशेष वस्तु की माँग नहीं करती हूँ। आगे से अपने साहित्य में मुझे छोड़ देना चाहिए। उसमें मेरा नाम होना नहीं चाहिए। यह प्रेम और प्यार के बारे में लिखना बंद कर दीजिए। आपको लिखने केलिए दूसरी चीज नहीं है क्या?’’ ‘‘भग्न-प्रेम? आशा-भंग? निरर्थकता?’’ ‘‘ये कुछ नहीं चाहिए। और एक बात।’’ ‘‘बताओ।’’ ‘‘शादी करने के बाद, एक सप्ताह में हम अमरीका चले जाएँगे।’’ ‘‘अमरीका?’’ ‘‘जी हाँ, अमरीका। मैं कहाँ हूँ, ढूँढ़ते हुए मत आना।’’ ‘‘अमरीका मेरी कल्पना और सोच के बाहर है। डरो मत।’’ ‘‘मुझसे दूर रहने के लिए ही तुम अमरीका जा रही हो न?’’ ‘‘ऐसी बात नहीं है। पिताजी अमेरिकन दामाद चाहते थे। रमन वहाँ पर नौकरी कर रहे हैं।’’ फिर उसने जरा रुककर कहा, ‘‘और एक बात। मुझे पत्र नहीं लिखिए। पहले आप ढेर सारे पत्र लिखते थे, मानो सिर्फ बातें ही काफी नहीं हैं।’’ ‘‘उन पत्रों का तुमने क्या किया?’’ ‘‘जला दिए।’’ ‘‘जला दिए?’’ ‘‘जी हाँ, जला दिए। वे सब राख हो गए।’’ ‘‘एक अक्षर भी नहीं बचा, ऐसे...?’’ ‘‘एक अक्षर भी नहीं बचा, ऐसा ही...’’ ‘‘हाय भगवान!’’
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अप्रैल 2024
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