वह अद्भत, शानदार प्राणी

वह अद्भत, शानदार प्राणी

मैं सोच रहा हूँ—क्या वह अभी भी जिंदा होगा और पहले से बड़ा हो गया होगा या फिर अब तक मर चुका होगा। उसके साथ थोड़ी छेड़खानी तो की थी, कहीं उसे चोट तो नहीं पहुँची थी? वह पानी से बाहर भी तो बहुत देर तक रह लिया था। इससे पहले कोई इतना सुंदर, विशाल, भव्य रंगोंवाला, संपूर्ण ज्यामितीय आकार का चमकता समुद्री शिलन भी तो नहीं देखा था। अब तक मैंने केवल पॉलिश किए हुए शंख-सीप देखे थे, जिनका इसके साथ कोई मेल नहीं बैठता है। भारत में मरीना-तट पर सुंदर आकार और विशाल समुद्री शैल देखे थे। सिंगापुर तथा ऑस्ट्रेलिया में भी अनेक प्रकार के समुद्री-शैल बिकते हुए देखे थे। अपने ड्राइंग-रूम की शोभा बढ़ाने के लिए सिंगापुर से एक सुंदर सीप खरीदकर भी लाया था, परंतु उसकी चमक इसके सामने कुछ भी नहीं थी।

पूरा शंख-शैल मेरी हथेली के बाहर तक निकल रहा था, निकट से देखने पर उसके अंदर का कीट बिना हलचल किए वहाँ था। वह स्वयं के बनाए हुए मजबूत किले में असहाय सा लग रहा था। मेरी पत्नी रीता ने समुद्र तट पर घूमते हुए, सफेद चमकीली रेत से इसे बहुत सावधानी से उठाया था और अपनी खुशी को साझा करने के लिए दौड़कर आई थी। प्रकृति की इस सुंदर रचना के लिए हम दोनों आश्चर्यचकित थे और असीमित प्रसन्नता का अनुभव हो रहा था। हम दोनों को ही इसे अपने साथ, लक्षद्वीप के सुदूर तटों से एक स्मरण के रूप में अपने घर दिल्ली ले जाने का विचार आया।

लक्षद्वीप द्वीप समूह अरब सागर के बीच स्थित है। इसमें ३६ मुख्य द्वीपों, कई छोटे द्वीपों, कोरल, एटोल और प्रवाल-भित्ति होते हैं। इन प्रवाल-भित्तियों में से प्रत्येक द्वीप और उनके चारों ओर समुद्र, एक अनूठा रंग और सौंदर्य प्रदान करते हैं। ३६ द्वीपों में से केवल १० द्वीपों—अगाटी, अमिनी, एंड्रोट, बित्रा, चेतलाट, कदमत, कल्पनी, कवारती, किलातन और मिनिकॉय में ही आदिवासी बसे हुए हैं। प्राचीन ज्वालामुखीय संरचनाओं पर आधारित लक्षद्वीप १२ एटोल, ३ रीक्स और ५ जलमग्न तटों के साथ भारत का सबसे छोटा राज्य क्षेत्र है। प्रकृति प्रेमियों के लिए यह एक दर्शनीय गंतव्य स्थान है, इसकेहरे-भरे परिदृश्य अविश्वसनीय समुद्री जीवन, नरम चाँदी के समुद्र तट और पानी के खेल सैलानियों को आमंत्रित करते हैं।

उस दिन हम लक्ष-दीप समूह के बंगारम द्वीप में थे। हम दोनों के लिए भारत के दक्षिण-पश्चिमी द्वीप समूह की यह पहली यात्रा थी। यह द्वीप प्रकृति का सबसे सुंदर और बेझिझक उपहार, जिसने अपने प्राकृतिक रूप को बनाए रखा है। भारत सरकार की तरफ से इस स्थान की पहचान को बनाए रखने के लिए भरपूर प्रयास हो रहे हैं। वहाँ पर पर्यटकों को जाने के लिए पूर्व में स्वीकृति लेनी पड़ती है। जनवरी का महीना सबसे अच्छा होता है। पर्यटकों के रहने के लिए आई.टी.डी.सी. का एक होटल है।

इस छोटे से प्रदूषण रहित द्वीप में खजूर और ताड़ी के पेड़, जल जीव और मुश्किल से १०० आदिवासियों की आबादी है। यह अभी भी आधुनिक सभ्यता से अछूता है। ताड़ी और खजूर, मछलियाँ तथा बारिश का पानी ही इन आदिवासियों के जीवन का सहारा रहा है, लेकिन अब कोचीन (मुख्य भूमि) से आलू, चावल और कुछ अन्य खाद्य पदार्थों की आपूर्ति हो जाती है, जिससे उनकी जीविका अच्छी चलती है। पर्यटकों के आने से कुछ और सुविधाएँ भी मिलने लगी हैं, लेकिन रहन-सहन में कोई बदलाव नहीं आया है।

दिल्ली से कोचीन की तीन घंटे की हवाई यात्रा एयर इंडिया से पूरी की, यात्रा बहुत सुगम थी। वहाँ से कावारत्ती एक छोटे जहाज जिसमें कुल १४ व्यक्ति ही बैठ सकते थे, से की। इस तरह के हवाई जहाज में बैठने का यह पहला अवसर था। सभी को खिड़कीवाली सीट मिली थी। इतनी ऊपर से भी समुद्र तट पर स्वच्छ, सफेद, चमकती रेत, पारदर्शी जल में कछुए की दुर्लभ प्रजातियाँ और बहु रंगीन मछली और अनेक समुद्री जीव व वनस्पतियाँ दिखाई दे रही थीं, वह भी बिना किसी दूरबीन की सहायता से। यह अनूठा अनुभव किसी को भी मंत्रमुग्ध कर सकने में सक्षम था। यात्रा तो डेढ़ घंटे की थी, पर समय का पता ही नहीं चला, कुछ ही देर में हवाई जहाज नीचे आने लगा। मन में यह विचार आया कि अभी वह समुद्र के ऊपर चक्कर लगाता रहे। ऐसे निराले, सुंदर जीव तो किसी एक्वेरियम में भी नहीं देखे थे। प्रकृति की छटा निराली थी। अब प्लेन नीचे उतर चुका था।

इस यात्रा पर जाने का सौभाग्य मुझे एक संसदीय समिति के साथ जाने के कारण मिला था। समय-समय पर हमारे संसदीय सदस्य (कानून निर्माता) किसी बहाने भारत भ्रमण को जाते हैं, जिसमें सरकार द्वारा दी जानेवाली सेवाओं का प्रथम दृष्टि अवलोकन, जिसमें दूरसंचार सेवाएँ और वहाँ की जनता की समस्याएँ, हिंदी भाषा का प्रचलन और कार्यान्वयन तथा विभिन्न विभागों और मंत्रालयों के साथ अन्य मुद्दों पर चर्चा होती है। इसकी मेजबानी करने की जिम्मेदारी पब्लिक सेक्टर उपक्रम के ऊपर ही होती है। हमारे लोक-प्रतिनिधियों, माननीय सांसदों का भारत सरकार के खजाने की लागत पर दौरे का उद्देश्य स्थानीय लोगों के साथ बातचीत करना है, ताकि उन्हें सामना करनेवाली कठिनाइयों को समझना और सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं में सुधार करना हो सके। प्रत्येक वर्ष ही संसदीय समितियों के लिए इन यात्राओं का आयोजन किया जाता है, जिसमें लगभग १० दिनों में ३ से ४ दर्शनीय स्थानों पर यह कार्यक्रम चलता है। हमारे कानून निर्माता अपने पति/पत्नी के साथ आते हैं। रहने, स्थानीय परिवहन और अन्य सुविधाओं के लिए इन यात्राओं का बोझ सरकारी पी.एस.ई. ही वहन करती है, जो अपनी अगली यात्रा तक कम-से-कम अपनी स्मृति को जीवित रखने के लिए उदारता से उपहार दे देते हैं। इससे उनके निष्पादन के बारे में कोई नकारात्मक रिपोर्टिंग सुनिश्चित नहीं होती है। पत्रकारों और मीडिया कर्मियों को बातचीत करने की अनुमति नहीं है और इस तरह की बैठकों की रिपोर्ट गोपनीय रखी जाती है। हालाँकि, हाल ही में इन पी.एस.ई. पर प्रतिबंध लगाया गया है कि कोई महँगे उपहार नहीं दिए जाएँगे और पूरे व्यय को संसदीय मामलों के मंत्रालय द्वारा वहन किया जाएगा। इसने केवल पी.एस.ई. (सार्वजनिक उपक्रम) के शीर्ष अधिकारियों का जीवन ही मुश्किल बना दिया है।

दिसंबर २००३ के दौरान प्रशासनिक मंत्रालय से एक प्रतिनिधि के रूप में एक ऐसी संसदीय समिति के साथ जाना चाहता था, जो विभाग पी.एस.ई. के स्थानीय अधिकारियों के साथ संबंध स्थापित करने के लिए था। इससे मुझे एक मौका मिला, जिसमे मुझे सांसदों को दिए गए आराम और उपचार का आनंद मिला। वहाँ पर परंपरागत तरीके से भव्य स्वागत हुआ। ढोल-नगाड़े बजाते हुए आदिवासी तरह-तरह से सुसज्जित थे। मेरी पत्नी डॉ. रीता को भी अच्छे तरीके से सामाजिक तौर पर बातचीत करने और कार्टून निर्माताओं की पत्नी के साथ मिलने का अच्छा अवसर मिला, जो शीघ्र ही आत्मीयता में बदलता दिखा। रीता ने उन्हें बहुत ही मिलनसार और व्यावहारिक पाया, भले ही एक ब्यूरोक्रेट और राजनीतिज्ञ के बीच बहुत अंतर होता है, परंतु पत्नियों के बीच यह अंतर नहीं दिखाई दिया। वहाँ पर परंपरागत तरीके से भव्य स्वागत हुआ।

उस दिन लक्ष्यद्वीप समूह के बंगारम द्वीप में हमारा आखिरी दिन था। हम अगले दिन सुबह वापस लौट रहे थे। हम प्रकृति के साथ जितना अधिक संभव हो, उतना समय व्यतीत करना चाहते थे, सफेद रेत से भरा विशाल समुद्र तट और पानी के प्राणियों के बीच अलौकिक अनुभूति। जब मैं स्नॉर्कलिंग का आनंद ले रहा था, रीता ने रिसॉर्ट से कुछ दूर तट से एक लंबा सफर तय किया। रेत पर पानी से १० मीटर की दूरी बनाए वह बहुत दूर निकल गई थी, पर झूठ बोलते हुए कहा कि वह पास ही तो गई थी। उसकी चाल और चेहरे से कुछ पढ़ने की कोशिश करनी चाही। वह अवश्य इस अद्भुत प्राणी को लेकर दूर से आ रही थी। इसको पाकर कोई भी आकर्षित हो गया होता, प्रकृति का सृजन कितना सुंदर और रहस्यमय होता है! एक परिपूर्ण सर्पिल का आकार, अनेक रंग से सुशोभित, लगभग तीन इंच लंबा दो इंच के अधिकतम व्यासवाला कितने समय में बना होगा, कैसे यह आकार और छटा गढ़ी गई होगी। यह एक विभिन्न रंगों से निर्मित, जिसमें हरे से आसमानी रंग के बिखरते धब्बे, हलके चेरी रंग के आधार लिये, पूर्ण ज्यामातीय डिजाइन के साथ युवा शंख लग रहा था। मुझे याद नहीं है कि यह कितने और रंगों का था। यह सिर्फ आकर्षक और मनमोहक था।

फिर रीता ने मेरे हाथ से लेकर इसे पानी में डुबो दिया, लेकिन कोई हलचल नहीं हुई। उसने इसे फिर से उठाया, इसे अच्छी तरह से देखा और फिर से उसे मेरी हथेली में रख दिया। थोड़ी देर हथेली में रखने के बाद सोचने पर विवश हो गया और अनिर्णीत रहा कि आगे क्या करना है?

अपने साथ इस प्राणी को ले जाने के लिए विभिन्न विचार आ रहे थे, क्या यह जीवित है? क्या यह कृत्रिम वातावरण में और नल के पानी में जीवित रहेगा और कितने समय तक? यदि यह पहले से ही मर चुका है, तो क्या कुछ समय बाद यह सड़ जाएगा? क्या हम शैल से कीट को हटा दें, यदि ऐसा है तो क्यों और क्यों? क्या शैल से जीव को निकालने के लिए हम स्थानीय लोगों को विश्वास में ले सकते हैं? क्या प्राकृतिक उत्पादों को द्वीप से बाहर ले जाने की अनुमति है। ये संदेह, सवाल और आशंकाएँ थीं। इन विचारों का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं था और समय समाप्त हो रहा था, जगह नई थी।

मैं रिसॉर्ट के सेवाकर्मी से पूछने के लिए गया, वह मेरी बात समझने का प्रयास कर रहा था। उसने पास खड़े सेवा-प्रबंधक की तरफ देखा और धीरे से मुसकराते हुए अंदर के कीट को हटाने के लिए कुछ टिप की अपेक्षा दिखाई। समुद्र के जीवों का भक्षण करनेवालों के लिए यह आम बात लगी। उसने बताया कि वह इस शंख को गरम पानी में डालेगा, जिससे कीड़ा बाहर आ जाएगा और फिर शंख को अंदर से साफ कर देगा। थोड़ा सा विचार करने के बाद हमने किसी के प्राण न लेने के विचार से अपने को रोक लिया और सेवा प्रबंधक से शैल वापस ले लिया।

हम समुद्र तट पर वापस लौट आए। संध्या का समय हो चुका था, हल्की ठंडक और समुद्र में उछाल आ रहा था। कुछ पर्यटक अपने परिवारों के साथ अभी भी समुद्र तट पर थे। प्रकृति की इस दुर्लभ देन को हथेली पर रखते हुए अंतिम बार सराहा और पूरी शक्ति से जितना दूर हो सकता था, समुद्र में फेंक दिया और वापस रिसोर्ट की तरफ चल पड़ा। अब मन में संतोष था। इतने अंतराल के बाद भी विचार आ ही जाता है कि शंख-शैल में जंतु जीवित है और अपने पूर्ण आकार में बढ़ रहा है? हालाँकि मुझे इसका कभी पता नहीं चलेगा। पर उस समुद्री जीव की याद पीछा नहीं छोड़ती।

—राकेश कुमार

डी-२ सेक्टर-४८

नोएडा-२०१३०१

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