द्वारका-सोमनाथ दर्शन

द्वारका-सोमनाथ दर्शन

मैं और मेरी पत्नी वसुधा दक्षिण में रामेश्वरम् व पूरब में जगन्नाथ पुरी धामों के दर्शन कर चुके थे। उत्तर में बदरीनाथजी और पश्चिम के दर्शन शेष थे। सन् २००७ में मेरे पुत्र भारतेंदु ने गरमियों में बच्चों की छुट्टियों में द्वारका जाने की इच्छा प्रकट की। हमने साथ चलने की स्वीकृति दे दी। उसने द्वारका के साथ-साथ गुजरात के अन्य पर्यटन-स्थलों पर जाने का कार्यक्रम निश्चित किया। बच्चों पौत्र भव्य व संकल्प तथा पुत्रवधु अंजना की स्कूल की छुट्टियाँ १६ मई से थीं। भारतेंदु ने २० मई को हिसार से दिल्ली तक टैक्सी से, फिर दिल्ली से अमहदाबाद तक उसी दिन हवाई जहाज से जाने का कार्यक्रम बनाया। अहमदाबाद से द्वारका-सोमनाथ आदि जाने का कार्यक्रम टैक्सी से, ताकि हम सभी पर्यटन-स्थल सुविधापूर्वक देख सकें। जहाँ हमें ठहरना था, वहाँ उसने होटलों तथा गेस्ट हाउस में आरक्षण करा लिया था। दिल्ली से अहमदाबाद तथा लौटने का भी अहमदाबाद से दिल्ली तक हवाई जहाज से आरक्षण करा लिया गया।

हम लोग २० मई को सुबह ९ बजे टैक्सी से दिल्ली के लिए चल दिए थे। दिल्ली में इंदिरा गांधी डोमेस्टिक एयरपोर्ट हम लोग लगभग दोपहर में २:०० बजे पहुँच गए थे। हमें किंगफिशर एयरवेज से शाम ४:०० बजे की फ्लाइट से जाना था। खाना हम लोगों ने हिसार से दिल्ली के रास्ते में एक जगह रुककर खा लिया था। एयरपोर्ट पर चैकिंग की सभी औपचारिकताएँ पूरी कर हम लोग लॉज में ४:०० बजे तक प्रतीक्षा करते रहे। मेरे दोनों पौत्र भव्य और संकल्प के लिए हवाई जहाज यात्रा करने का पहला अवसर था। उन्हें बहुत उत्सुकता थी इस हवाई जहाज के सफर की। ४ बजे से कुछ पहले लाउड स्पीकर पर सूचना मिली कि किंगफिशर से अहमदाबाद जानेवाले यात्री चलने के लिए तैयार हों। हम लोग किंगफिशर की बस में हवाई जहाज से गए और आरक्षण के अनुसार अपनी-अपनी सीट पर बैठ गए! हमारे हवाई जहाज ने ४:१५ पर उड़ान भरी और हम लोग ठीक शाम के ५:३० बजे अहमदाबाद एयरपोर्ट पहुँच गए। अपना सामान लेकर बाहर खड़ी टैक्सी, जो हमारी प्रतीक्षा में खड़ी थी, हम बैठ गए। हम लोग होटल ग्रांड भगवती में ठहरे। वहाँ कुछ देर आराम किया, चाय आदि पी।

शाम को हम लोग लगभग ७:०० बजे बच्चों के मनोरंजन के लिए ‘थ्रिल राइड्स’ देखने गए। यह एक खेल है, जो कंप्यूटर द्वारा एक बड़े परदे पर दिखाया जाता है, जिसमें चलती, दौड़ती कार, अन्य वाहन दिखाई देते हैं। जिन कुरसियों पर बैठकर दर्शक परदे पर चलते-फिरते दृश्य देखते हैं, वे कुरसियों भी हिलती-डुलती हैं और दर्शकों को लगता है कि परदे पर जो भी घटित हो रहा है, वे भी उसमें शामिल हैं। यह बच्चों के लिए बड़ी रोमांचित करने की चीज थी। इसको देखने के बाद हम लोग एक गुजराती भोजनालय में गए, जिसे राजोरू कहते हैं। वहाँ गाँव का सा वातावरण था, रात हो चुकी थी, लालटेन की हल्की रोशनी थी। पेड़ थे, झाडि़याँ थीं, छोटा सा तालाब भी था, इधर-उधर चारपाइयाँ भी पड़ी थीं। लोग चारपाई पर बैठकर वहाँ के लोक-नृत्य तथा लोकगीतों का आनंद ले रहे थे। वहाँ के कार्यकर्ता गुजराती व राजस्थानी कपड़ों में थे। बच्चों के झूलने के लिए पालना था। वहाँ एक जगह कठपुतली व बंदर का तमाशा भी दिखाया जा रहा था। दर्शक पीतल के गिलास में शरबत पी रहे थे। वहाँ चबूतरों के ऊपर झोंपड़ी बनी थीं, उनके भीतर लोग खाना खा रहे थे। हमने भी अपने खाने का ऑर्डर दे दिया था। हमारा नंबर लगभग रात १० बजे आया। पीतल के बरतनों, थाली-कटोरी में खाना परोसा गया। वहाँ हम लोगों ने आसन पर बैठकर भोजन किया। खाना सब गुजरात में जो बनता है वही था, अच्छा लगा। कुछ रोज के खाने से भिन्न था। खाना खाकर हम रात ११:०० बजे होटल वापस आ गए।

दूसरे दिन २१ मई को सुबह होटल में नाश्ता करके टैक्सी में द्वारका के लिए रवाना हुए। हमारा टैक्सी ड्राइवर हिम्मत सिंह राजस्थान का रहनेवाला था। ड्राइवर ने गाइड का भी काम किया। रास्ते में जो कुछ भी आता, उसके बारे में हमें बताता जाता था। हम नेशनल हाईवे एन.एच.-८ ए पर सफर कर रहे थे। रास्ते में हरियाली कहीं नजर नहीं आई। गाँव भी बहुत छोटे-छोटे थे। रास्ते में राजकोट शहर, जहाँ महात्मा गांधीजी रहे थे, वह आया, पर हम रुके नहीं। रास्ते में एक जगह रुककर खाना खाया। द्वारका के रास्ते में जामनगर शहर भी पड़ता है, परंतु हम लोग जामनगर के बाहर-बाहर बाईपास रोड से होकर ४:०० बजे के लगभग द्वारका पहुँच गए। द्वारका में समुद्र के किनारे गायत्री शक्ति (आचार्य श्रीराम शर्मा के गायत्री परिवार द्वारा संचालित) के पहली मंजिल पर बने दो कमरे के एक सेट में रुके। मई के महीने में गरमी तो बहुत होती है, परंतु यहाँ गरमी नहीं लगी, पंखों से काम चल गया। शाम को चाय पीकर हम लोग द्वारकाजी के प्राचीन मंदिर के दर्शन के लिए चल दिए। यह मंदिर भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है, वहाँ मुझे एक स्मारक परिचार मिल गया। उसको मैंने अपना परिचय दिया कि मैं इस विभाग में अधिकारी के पद पर कार्य कर चुका हूँ। उसने हमें मंदिर के दर्शन अच्छी तरह करा दिए। शाम ७:०० बजे आरती होती है, हमने आरती में भाग लिया और प्रसाद ग्रहण किया। इन दिनों पुरुषोत्तम मास चल रहा था, इसलिए महिलाएँ पूजा-पाठ में व्यस्त थीं। यहाँ इस मंदिर में दिन में ३-४ बार शिखर पर नया झंडा लगाया गया था। मंदिर में दर्शन कर हम लोगों ने रात का खाना पकवान भोजनालय में खाया और अपने अतिथि-गृह में आकर सो गए।

तीसरे दिन २२ मई की सुबह ५:०० बजे उठकर हम लोग द्वारकाधीश मंदिर में पुनः दर्शन करने गए। सुबह की आरती देखी। आरती के बाद हम लोग अपने अतिथि-गृह आए, वहाँ नाश्ता करने के बाद ९:०० बजे टैक्सी से बेट-द्वारका के दर्शन के लिए निकले। रास्ते में रुकमणीजी का मंदिर था यह भी भारतीय पुरातन सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है वहाँ दर्शन किए। दर्शन कर हम बेट-द्वारका पहुँच गए। रास्ते में टाटा केमकिल्स का कारखाना पड़ा, जहाँ नमक बनता है। बेट-द्वारका से ३० किलोमीटर दूर है। बेट-द्वारका एक टापू है, जहाँ स्टीमर से जाया जाता है। स्टीमर से हम लोग बेट-द्वारका जा पहुँचे। १५-२० मिनट का रास्ता है। यहाँ कृष्णजी का मंदिर है। जहाँ सुदामाजी कृष्णजी से भेंट करने आए थे। टापू के दूसरे किनारे पर हनुमानजी का एक मंदिर है, वहाँ मोटरसाइकिल रिक्शा से गए थे। हनुमानजी के मंदिर में दर्शन कर हम फिर स्टीमर से ओखा आ गए, जहाँ टैक्सी हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। (ओखा रेलवे स्टेशन है, जो लोग रेल से आते हैं, पहले ओखा ही आते हैं) हम लोग ओखा से द्वारका के लिए एक अन्य रास्ते से आए। रास्ते में नागेश्वर शिवजी का नया मंदिर है। यहाँ दर्शन किए! यहाँ से द्वारका १६ किलोमीटर है। द्वारका ३:३० बजे पहुँचे! रातवाले भोजनालय में ही खाना खाया और फिर अपने अथिति-गृह में आ गए। शाम को समुद्र के किनारे सूर्यास्त तक घूम रहे, बच्चे खेलते रहे। रात को शरशाम होटल में खाना खाकर अपने अतिथि-गृह में आकर सो गए।

चौथे दिन बुधवार २३ मई को सुबह ९:०० बजे हम लोग द्वारका से सोमनाथ के लिए चले। सोमनाथ से पहले रास्ते में पोरबंदर पड़ता है। हम लोग वहाँ कुछ देर रुके। पोरबंदर में पहले हम लोग कृष्णजी के बालसखा सुदामाजी के मंदिर गए, वहाँ दर्शन किए। वहाँ से महात्मा गांधीजी के जन्मस्थान गए, यह एक पुराने जमाने का घर है—यह भी भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है। यहाँ बहुत सफाई मिली, अच्छा लगा। उस पुराने घर के पास एक संग्रहालय है, जहाँ गांधीजी के चित्र लगे हैं। पोरबंदर में खाना खाकर हम लोग सोमनाथ के लिए चल दिए। सोमनाथ दोपहर में ३:३० बजे पहुँचे।

सोमनाथ मंदिर के निकट ही सोमनाथ ट्रस्ट का कार्यालय है, वहाँ से ट्रस्ट द्वारा निर्मित अथिति-गृह में, जहाँ हमें ठहरना था, परमिट लिया, चाबी ली। दो वातानुकूलित कमरों में हमारा आरक्षण था। सामान रखकर सोमनाथ मंदिर के दर्शन के लिए गए। यह मंदिर समुद्र के किनारे बना है। जो प्राचीन मंदिर था, वह तो महमूद गजनवी ने तोड़ दिया था, सबकुछ सोना-चाँदी लूटकर चला गया था। उसके बाद यह मंदिर कई बार बना और तोड़ दिया गया। देश के स्वतंत्र होने के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल की पहल पर इस मंदिर का पुनः निर्माण करने का निश्चय लिया गया। यह मंदिर उनके सामने तो न बन सका, परंतु मोरारजी देसाई तथा कुछ अन्य लोगों के प्रयत्न से सन् १९९५ में बनकर तैयार हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उसका उद्घाटन किया। अभी भी शिल्पकार वहाँ कार्य कर रहे थे। उस परिसर में सरदार वल्लभ भाई पटेल की एक मूर्ति लगी है।

शाम को जब हम मंदिर में गए थे तो शिवलिंग का शृंगार हो रहा था। पूजा-पाठ चल रहा था। ७ बजे आरती हुई, उसे हमने खूब अच्छी तरह देखा। ८:०० से ९:०० बजे तक मंदिर के पीछे लाईट एंड साउंड का कार्यक्रम देखा। उसका टिकट था। उस कार्यक्रम में सोमनाथ मंदिर के बारे में विस्तार से बताया गया। सोमनाथ (शिवजी) के यहाँ स्थापित होने का वर्णन समुद्र के मुख से कहलवाया गया। मंदिर बहुत साफ और सुंदर है। मंदिर की चहारदीवारी पर बैठकर समुद्र की लहरों का आनंद लिया जा सकता है। मंदिर के दर्शन के बाद हम लोग एक रिसोर्ट में खाना खाने गए। वहाँ से लौटकर अथिति-गृह आए और विश्राम किया।

पाँचवें दिन बृहस्पतिवार २४ मई को हम लोग सुबह एक बार पुनः सोमनाथ मंदिर के दर्शन कर चित्र आदि लेकर ९:०० बजे के लगभग (दीव) टापू के लिए टैक्सी से रवाना हुए। डी.यू.आई. में केंद्र सरकार का शासन है। यह एक बहुत अच्छा पर्यटन केंद्र है। द्वारका से सोमनाथ और फिर सोमनाथ से दीव का मार्ग अरब सागर के किनारे चलता है। कहीं समुद्र सड़क के बहुत निकट है, कहीं दूर। रास्ते भर हरियाली-ही-हरियाली मिली। कहीं नारियल के बाग तो कहीं आम के बाग। हमने रास्ते में आम के बाग से आम भी खरीदे। द्वारका से जब पोरबंदर आ रहे थे, रास्ते में एक पहाड़ी घर, जो समुद्र के किनारे है, उस पर हर्षदमाता का मंदिर है। उस पर जाने के लिए ३०० सीढि़याँ चढ़नी पड़ती हैं। हम लोगों ने वहाँ रुककर दर्शन किए।

सोमनाथ और दीव के रास्ते में गिरि फोरेस्ट वाइल्ड लाईफ सेंचुरी में कुछ देर हम रुके। वहाँ हम लोग वन विभाग की बस में बैठकर घूमे। गरमी के कारण वहाँ हरियाली नहीं थी। वहाँ शेर, बारहसिंगा, नीलगाय, मोर आदि देखने को मिले। यह गिर जंगल शेर के लिए विश्व में प्रसिद्ध है, जहाँ हमें बस द्वारा घुमाया गया था, केवल ५ शेर एक पेड़ के नीचे शांत बैठे थे। पता लगा कि ये अस्वस्थ शेर हैं। जहाँ अधिक शेर रहते हैं, उस भाग में पर्यटकों को नहीं ले जाते। इसको देखकर हम लोग दोपहर में २:१५ पर दीव पहुँच गए थे।

दीव में हमारे ठहरने का प्रबंध राधिका बीच रिजोर्ट में था। यह तीन सितारा होटल है। यह होटल सेमिसर्कुलर बीच के किनारे बना है। इसमें दुमंजले दो-दो कमरों के कई सूट (घर) बने हैं। बहुत सुंदर बाग व तैरने का टैंक हैं, डाइनिंग हॉल अलग है। रात को दीवाली की तरह रोशनी होती है, कुछ लोग यहाँ लंबे समय तक भी रहते हैं। हम लोगों ने वहाँ पहुँचते ही खाना खाया, क्योंकि रेस्टोरेंट दोपहर में ३:०० बजे बंद हो जाता है। खाना खाने के बाद हम लोगों ने अपने-अपने कमरों में कुछ देर आराम किया।

४:३० पर मैं और मेरी पत्नी टैक्सी से टीपू का किला देखने गए। यह किला जहाँ हम ठहरे थे, उससे १२ किलोमीटर दूर है और इस टापू के दूसरे छोर पर है। हमारा टैक्सी ड्राइवर हिम्मत सिंह यहाँ पहले भी पर्यटकों को लेकर आ चुका था। वह हमारे गाइड का कार्य करता रहा, जो भी चीज रास्ते में आती, उसके विषय में बताता जा रहा था। यहाँ का किला भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है। यह किला तीन ओर से समुद्र से घिरा है और एक ओर खाई है। किला छोटा ही है। यहाँ किले के एक अधिकारी श्री परमार ने हमें किले के सबसे ऊँचे बुर्ज पर ले जाकर यहाँ का इतिहास बताया। पुर्तगाल से पुर्तगीज १६वीं शताब्दी में यहाँ आकर बस गए थे। ये लोग यहाँ व्यापार की दृष्टि से आए थे। किला देखने के बाद हम लोग सेंट पाउल चर्च देखने गए। यह बहुत बड़ा चर्च है। लकड़ी का बहुत सुंदर काम है। यह देखकर हम लोग शाम ६:३० पर होटल वापस आ गए।

बेटा भारतेंदु, बहू अंजना और दोनों पौत्र भव्य और संकल्प होटल के पास, जो नगाओ बीच है, वहाँ चले गए थे, समुद्र में खूब नहाए। यहाँ समुद्र गहरा नहीं है, लहरें खूब ऊँची-ऊँची उठती हैं, बड़ा सुहावना लगता है। हम लोग रात को ८:३० पर टैक्सी से दीव के बाजार गए, वहाँ एक रेस्टोरेंट में खाना खाकर किला देखने गए। किला तो बंद हो चुका था, फ्लूड लाइट में किला सुंदर लग रहा था। फिर हम लोग चर्च भी गए, बाहर से ही बच्चों को दिखाया, क्योंकि वह बंद हो चुका था। रास्ते में छोटा सा झरना जंपा वाटरफॉल देखा, रोशनी में अच्छा लगा। यहाँ के लोग शराब बहुत पीते हैं। शराब यहाँ सस्ती भी मिलती है। वापस होटल आ गए, कुछ देर बाहर बाग में तथा तैरने के टैंक के पास बैठे। सबकुछ बहुत अच्छा लग रहा था। चारों ओर खूब रोशनी जगमगा रही थी। रात ११:०० बजे हम लोग अपने कमरों में आकर सो गए, बहुत थक चुके थे।

छठे दिन शुक्रवार, २५ मई को हम लोग सुबह ९:०० बजे डी.आई.यू. से अहमदाबाद के लिए चले। लगभग तीन घंटे मुख्य मार्ग पर चलने केबाद १० किलोमीटर पर कुछ हटकर एक जगह है प्रलंग, जो पुराने जहाजों का बंदरगाह पोर्ट है, वहाँ पहुँचे। यहाँ पर २० वर्ष से अधिक पुराने जहाजों को तोड़कर उनके कबाड़ को बेचा जाता है। यहाँ पुराने जहाजों का कबाड़ी बाजार है। यहाँ एक पुराने टूटे हुए जहाज को देखा। प्रलंग आने से पहले मुख्य मार्ग पर एक शहर है ऊना, वहाँ हमने दक्षिण भारतीय जलपान गृह में नाश्ता किया था। प्रलंग से हम लोग भावनगर पहुँचे। वहाँ ३ बजे भोजन किया। वहाँ से अहमदाबाद के लिए चले। रास्ते में जगह-जगह नमक के ढेर लगे थे। ऐसा लगता था, जैसे सफेद नमक के पहाड़ हों। हमारे ड्राईवर ने बताया, यहाँ निरमावाले समुद्र के पानी को खेतों में सुखाकर नमक बनाते हैं। अहमदाबाद आने से पहले मुख्य मार्ग से एक रास्ता लोथल के लिए जाता था। यहाँ भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा उत्खनन किया गया था, जहाँ हड़प्पा संस्कृति के अवशेष मिले थे। शाम हो चुकी, हम वहाँ न जा सके। वह जगह केवल सात किलोमीटर दूर थी। हम लोग फिर नेशनल हाईवे एन.एच. ८ पर सफर कर रहे थे। शाम को ७ बजे हम लोग अहमदाबाद पहुँच गए थे। यहाँ हम लोग किंग्स्टन होटल में ठहरे थे, जो कुछ दिन पहले एक मई को शुरू हुआ था। रात का खाना खाया और सो गए, बहुत थक चुके थे।

सातवें दिन शनिवार २६ मई को हम लोग अक्षय धाम के लिए चले। रास्ते में तिरुपति बालाजी मंदिर, जो दक्षिण भारत में है, उसका प्रतिरूप मंदिर है, वहाँ रुककर हमने दर्शन किए। प्रसाद प्राप्त कर ११ बजे हम लोग अक्षरधाम पहुँच गए। गुजरात में एक संत हुए हैं स्वामी नारायण, जिनकी बहुत मान्यता है, उन्हीं की स्मृति में अक्षरधाम मंदिर बनवाया है। यह बहुत बड़ा मंदिर है, इस मंदिर की विशेषता है प्रत्येक काम में सफाई और व्यवस्था। भारतेंदु और अंजना दिल्ली का अक्षरधाम, जो यहाँ के मंदिर से भी क्षेत्र में बड़ा है, देख चुके थे। यहाँ स्वामी नारायण के जीवन से संबंधित झाँकियाँ थीं तथा एक बड़े हॉल में परदे पर स्वामी नारायण पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म दिखाई गई। यह सब देखकर हम लोग भारतेंदु और अंजना के साथ वहाँ उसी परिसर में बने भोजनालय में गए। वहाँ कूपन लेकर अपनी पसंद का खाना स्वयं लेना होता है काउंटर से। बैठने की अच्छी व्यवस्था है। हमने वहाँ की प्रसिद्ध खिचड़ी, पापड़ व श्रीखंड खाया। सब उचित मूल्य पर था।

खाना खाकर हम साबरमती आश्रम आए। यहाँ गरमी बहुत थी, दोपहर हो चुकी थी, पर्यटक भी बहुत कम थे। यहाँ पर महात्मा गांधीजी रहे थे, उनसे संबधित सब चीजें देखीं, परंतु गांधीजी जितने महान् थे, उसको देखते हुए वहाँ की व्यवस्था बहुत साधारण थी। बस उसे एक स्मारक की दृष्टिकोण से देखा, श्रद्धाजंलि अर्पित की। वहाँ लगभग आधा घंटा ही रुके और होटल वापस आ गए। शाम को अहमदाबाद का बाजार देखा, कुछ खरीदा भी, रात को भोजन कर होटल में आराम किया।

आठवें दिन रविवार २७ मई को होटल में नाश्ता कर सुबह ९:३० बजे एयरपोर्ट पर आ गए। ११:०० बजे एयर सहारा से हमारी बुकिंग थी। ठीक समय पर हवाई जहाज ने उड़ान भरी और १२:३० पर दिल्ली इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर उतर गए। हिसार से टैक्सी हमें लेने आ गई थी। सो हम लोग शाम ५:३० बजे अपने घर हिसार आ गए।

ए-३, ओल्ड स्टाफ कॉलोनी, जिंदल स्टेनलैस लि.

ओ.पी. जिंदल मार्ग, हिसार-१२५००५

दूरभाष : ९४१६९९५४२२

विनोद शंकर गुप्त

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