ट्रांसफर

“रीमा, बहुत-बहुत बधाई हो! आज तुम्हारा सपना पूरा हो गया। तुम्हारा चुनाव आई.ए.एस. के लिए हो गया। तुम अब सारी चिंता छोड़ दो। जहाँ तुम्हारी पोस्टिंग हो वहाँ चली जाना और मैं भी ट्रांसफर लेकर वहाँ पहुँच जाऊँगा।’’ कहकर रोहन ने फोन रख दिया।

फोन रखते ही रीमा सोचने लगी, ‘मेरा एक महीने पहले ही पथरी का ऑपरेशन हुआ है। मैं पिछले एक महीने से अपनी माँ के घर पर अपने बेटे सोनू के साथ रह रही हूँ। मेरी बीमार माँ अपने घुटने के दर्द को भूलकर हम दोनों का खयाल रख रही थी। रोहन ने एक बार भी नहीं पूछा कि वो कैसी हैं? या सोनू कैसा है? ऐसा नहीं है कि मुझे अपने सपने के पूरा होने की खुशी नहीं है, पर क्या बिना अपनेपन, मान-सम्मान, प्यार-परवाह के जिंदगी की ऐसी ऊँचाइयों को पाना व्यर्थ नहीं है।’

माँ भी पूरे मोहल्ले में लड्डू बाँट आई। ‘‘ले रीमा, लड्डू खा। अब तो तू अफसर बन गई है, मेरी बेटी जीती रह।’’ कहकर माँ ने रीमा को गले लगा लिया और फिर वह रसोई में व्यस्त हो गई। रीमा यादों की पोटली खोलकर गुजरे हुए हर एक लम्हे को गौर करने लगी। सात साल पहले रीमा का विवाह रोहन से हुआ था। दोनों की जिंदगी एक-दूसरे को जीवनसाथी के रूप में पाकर खुश हो गई थी। सबकुछ अच्छा ही चल रहा था। शादी के बाद फिर से नौकरी शुरू की। एच.डी.एफ.सी. बैंक में अच्छी पोस्ट पर कार्यरत थी। पर साथ-ही-साथ सरकारी नौकरी को लेने की तैयारी भी चल रही थी। रोहन एम.एन.सी. में अच्छा कमा रहा था।

जब भी रीमा कहती कि यह नौकरी छोड़कर सरकारी नौकरी की तैयारी कर लूँ तो वह कहता, ‘कहाँ हैं सरकारी नौकरी, बिना नौकरी छोड़े तैयारी करती रहो।’ फिर जब सोनू पैदा हुआ तो उसने नौकरी छोड़ दी और बस बच्चे और अपनी परीक्षा की तैयारी में लगी रही। कभी रोहन गुस्से में कहता, ‘कितना खर्चा हो रहा है। कम-से-कम अपना खर्चा खुद उठा रही थीं।’ रोहन ने कभी भी रीना को कोई फैसला नहीं लेने दिया था। हमेशा उसके हर कार्य में उसकी रोक-टोक बनी रहती। बाहर घूमने-फिरने पर भी बंदिशें थीं। जब सास गाँव से आती तो वह केवल उन्हीं की सुनता, ऐसी कितनी ही बातों पर दोनों का झगड़ा हो चुका था।

क्यों एक स्त्री घर का मर्द बनकर भी हमेशा कमजोर ही रहती है। या अपने अहम की पूर्ति करता पुरुष महिला को हमेशा कमजोर बनाए रखता है। पर अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु उसे आजादी तो दी, मगर बंदिशों का पट्टा भी बाँध दिया। एक पालतू कुत्ते की तरह, जिसे घर से निकाला तो जाएगा, पर गले में पट्टा भी बाँध दिया जाएगा, ताकि घर का मालिक उसे समय-समय पर गुलामी का एहसास कराता रहे।

‘‘रीमा, चल उठ, थोड़ा घूम आ दोस्तों के साथ, पार्टी कर, सोनू को भी ले जा।’’

‘‘हाँ माँ, जा रही हूँ। अपनी सबसे बड़ी खुशी मनाने।’’

एक माह बाद रोहन का फोन आया कि ‘मैं भी सिरसा आ रहा हूँ। नौकरी से त्याग-पत्र आज दे दूँगा।’

‘‘कोई जरूरत नहीं है रोहन, तुम वहीं रहो। अभी मेरी ट्रेनिंग है, फिर नौकरी के लिए दुबारा ट्रांसफर हो सकता है। सोनू और माँ को साथ ले आई हूँ। परेशान मत होना।’’

‘‘पर रीमा, मैंने सोचा था कि अब कोई बिजनेस शुरू करूँगा। तुम घर सँभाल लेना।’’

नहीं रोहन, तुम पुरुष हो, घर की जिम्मेदारी तुम्हारी है। मैं तो केवल तुम्हारा हाथ बँटा रही हूँ।’’ कहकर रीमा ने फोन रख दिया। और रोहन हैरान सा फोन ही देखता रह गया; सोचने लगा कि क्या वह रीमा से ही बात कर रहा था!

एक्स १८०५, राजगढ़ कॉलोनी
गली नं.१६, दिल्ली-११००३१
दूरभाष : ९८९९४९६९८६
—स्वाति ग्रोवर

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