शक

शक

बात यों हुई। मेरी पत्नी फिलोमिना अभी सो ही रही थी, कि मैं तड़के ही अपने औजार लेकर ‘बायलर’ की मरम्मत करने चल दिया। दो घंटे काम में लगे और एक घंटा आने-जाने में, यानी ठीक तीन घंटे बाद मैं लौटा। मेरा मकान और दुकान, दोनों एक ही मोहल्ले में एक ही जगह हैं।

जैसे ही मैंने मोहल्ले में कदम रखा था कि किसी ने मुझे पुकारा। मुझे ‘फेडी’ ने पुकारा था। यह औरत मेरे मकान के सामने रहती थी और गठिया से बेचारी की टाँगें सूजकर ऐसी हो गई थीं, जैसे हाथी की हों। वह बाजार करके घर लौट रही थी। उसका सामान मैंने उठा लिया। रास्ते में उसने मुझसे पूछा, ‘‘फिलोमिना कहाँ है?’’ मैंने कहा, ‘‘घर पर, और कहाँ होगी?’’

‘‘ठीक ही तो है।’’ उसने जवाब दिया। उसके तौर-तरीके से मुझे कुछ संदेह हो गया और एक क्षण रुककर मैंने पूछा, ‘‘क्यों, बात क्या है?’’

‘‘मुझे तो तुम पर तरस आता है।’’ उस बदसूरत औरत ने जवाब दिया, ‘‘समय बदल गया है। मेरे जमाने में पुरुष निश्चिंत होकर घर से निकल सकता था। तब वह जैसा अपनी पत्नी को छोड़कर जाता था, लौटकर वैसा ही पाता था। परंतु अब...।’’

‘‘अब क्या?’’

‘‘अब वैसा समय नहीं रहा।’’ और वह अपना सामान लेकर चलने को तैयार उठ खड़ी हुई। सुहावनी सुबह की सारी खुशी मेरे लिए जहर बन गई। मैंने उसे रोककर कहा, ‘‘सारी बात मुझे बतानी पड़ेगी। फिलोमिना का इस बात से क्या संबंध है?’’

उसने कहा, ‘‘मैंने तो तुम्हें चेतावनी दे दी है। बाकी बातें जाकर पूछो, एडलिसा से। और यह कहकर वह इस तेजी से चल दी, मानो उसकी टाँगों में कभी कोई रोग था ही नहीं।

एडलिसा भी उसी मोहल्ले में रहती थी। तुंरत मैं उसके घर की तरफ चल दिया। पहले उसी से मेरी शादी होनेवाली थी। इसलिए मैंने सोचा कि वह जल-भुनकर फिलोमिना के बारे में कह रही है कि जब मैं दुकान पर चला जाता हूँ, तब वह कुछ ऐसे काम करती है, जो भली औरतों को नहीं करने चाहिए?

वह बोली, ‘‘नहीं, मैंने तो जो सुना, कह दिया।’’

‘‘किससे सुना तूने?’’

‘‘गिएनिना से।’’

मैं गुस्से में भरा हुआ उसके दरवाजे से लौटा। मुझे विश्वास नहीं होता था कि फिलोमिना ऐसी है, क्योंकि विवाहित जीवन के इन तीन वर्षों में मैंने हमेशा उससे भरपूर प्यार पाया था। लेकिन अब मैं मारे क्रोध और ईर्ष्या से जल रहा था। फेडी और एडलिसा की बातों के कारण मुझे लग रहा था कि उसका यह सारा प्रेम महज एक दिखावा था।

गिएनिना एक दुकान में काम करती थी। अपने शांत और विचारपूर्ण ढंग से बडी गंभीरता से वह ग्राहकों से निबट रही थी। मैंने बहुत आहिस्ता से उससे पूछा, ‘‘फिलोमिना के बारे में यह बात तुमने फैलाई है?’’

‘‘फिलोमन मेरी सबसे गहरी सहेली है। भला मैं उसके बारे में ऐसी बातें फैलाऊँगी? मैंने एडलिसा से कह दिया था कि मैं खुद इस पर विश्वास नहीं करती। मुझसे तो कहा था विसेंजिना ने, और वही-का-वही मैंने दोहरा दिया था।’’

और अब मैं सीधा विसेंजिना की लॉण्ड्री पहुँचा। वह कपडों पर लोहा (प्रेस) कर रही थी। मैंने उसे बाहर बुलाया। वह कुछ हद तक मुझ पर मुग्ध थी। बड़ी खुश होकर वह बाहर निकली, परंतु मेरा सवाल सुनकर उसे घोर निराशा हुई।

बोली, ‘‘यह भी अच्छी रही। अब तो दो औरतों का आपस में बात करना ही मुश्किल हो गया।’’

‘‘तो तूने ही फैलाई है यह बात?’’

‘‘मुझे तो अफसोस है तुम्हारे लिए, लेकिन मैं क्यों किसी के बारे में ऐसी बातें बनाने लगी। मुझसे तो एग्नेस ने कहा था और उसे तो उस पुरुष का नाम भी मालूम है।’’

अब मुझे विश्वास हो गया कि फिलोमिना मुझे धोखा दे रही है। कैसी विडंबना थी कि मेरी पत्नी और वह भी पर-पुरुष के साथ? अच्छा यही था कि मेरे पास कोई भारी औजार नहीं था, नहीं तो मैं फिलोमिना को जान से मार देता।

एग्नेस एक सिगरेटवाले की दुकान पर नौकर थी। सभी जानते थे कि यह सत्रह वर्ष की लडकी पैसे के लिए सबकुछ कर सकती थी बल्कि कुछ भी कर सकती थी। मैंने उससे अपनी पत्नी के प्रेमी का नाम पूछा। पहले तो उसने आनाकानी की, लेकिन जब मैंने उसे एक हजार ‘लिरा’ (इटली की मुद्रा) का नोट दिखाया, तो उसका चेहरा चमकने लगा। यह नोट मुझे सुबह ही अपने काम के मेहनताने के रूप में मिला था।

नोट को मेरे हाथ से खींचकर वह बोली, ‘‘उसका नाम है मारियों। मुझे बताया है, तुम्हारे घर की चौकीदारिन ने।’’

तो यह सच निकला। कुछ घर छोड़कर ही मेरा घर था। मैं ‘मारियों’ नाम दुहराते हुए अपने घर की ओर चला। तब तक कितने ही ‘मारियों’ मेरी आँखो के सामने घूम गए। दूधवाला मारियों, बढ़ई मारियों, कसाई का बेटा मारियों। मारियों, मारियों, मारियों—सारे रोम में लाखों मारियों होंगे। मेरे मुहल्ले में ही सैकड़ों मारियों होंगे। मैं अपने घर पहुँचकर सीधा चौकीदारिन की कोठरी में गया।

उस बुढि़या से मैंने छूटते ही पूछा, ‘‘तूने ही यह बात उड़ाई है कि मैं जब घर से चला जाता हूँ, तो फिलोमिना किसी मारियों को घर बुलाती है?’’

वह नाराज होकर तुरंत बोली, ‘‘उड़ाई नहीं है किसी ने। तुम्हारी पत्नी ने स्वयं कहा है। उसने आकर मुझसे कहा, ‘मारियों’ नाम का ऐसी-ऐसी शक्लवाला पुरुष यहाँ आएगा। तब अगर मेरा पति घर में हो, तो उससे लौट जाने को कह देना और अगर मेरा पति बाहर गया हो, तो उसे ऊपर भेज देना। इस वक्त वह तुम्हारे घर में मौजूद है।’’

‘‘मौजूद है अभी?’’

‘‘हाँ, कोई एक घंटा हुआ, जब वह यहाँ पहुँचा था।’’

मैं सीढि़याँ लाँघता हुआ, तीसरी मंजिल पर भागते हुए अपने घर में पहुँचा। फिलोमिना ने मेरे जोर-जोर से खटखटाने पर दरवाजा खोला। आज स्वाभाविक शांति उसके चेहरे पर नहीं थी। वह डरी हुई थी, घबराई हुई भी, ‘‘मैं जब घर में नहीं होता, तो मारियों तुमसे मिलने आता है?’’

उसने कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन मैं चिल्लाया, ‘‘मुझे सब मालूम हो गया है।’’ और मैं अंदर जाने लगा, लेकिन वह मेरा रास्ता रोककर बोली, ‘‘नाराज होने की कोई बात नहीं है। तुम इस बात को, और इसे नहीं समझते। थोड़ी देर में लौटकर आना।’’

अब मैं अपने को नहीं रोक सका, एक भरपूर चपत उसके गाल पर मार दी, ‘‘अच्छा, मैं कुछ नहीं समझता? क्या बात है!’’ फिलोमिना को धक्का देकर मैं तेजी से घर में घुस गया।

‘‘मारियों, सामने बैठा कॉफी पी रहा था, लेकिन यह न बढ़ई था, न कसाई का बेटा, न मोची। जितने मारियों मेरे ध्यान में आए थे, उनमें से कोई भी नहीं था यह। यह था फिलोमिना का भाई मारियों, जो चोरी के अपराध में दो साल के लिए जेल गया हुआ था।’’ मैंने अपनी पत्नी से कहा था, ‘‘खबरदार, वह चोर मेरे घर में पाँव न रखे, न ही तुम्हारे मुँह से मैं कभी उसका नाम सुनूँ।’’

पर चोर था तो क्या, आखिर वह फिलोमिना का भाई भी तो था। इसलिए उसने मेरी अनुपस्थिति में उसे बुलाया था।

मेरा गुस्सा देखकर मारियों उठ खड़ा हुआ और चलने लगा। बोला, ‘‘आखिर बात क्या है? मुझे कोई प्लेग तो नहीं हो गया है। हल्ला क्यों मचा हुआ है?’’

फिलोमिना बाहर खड़ी सुबकियाँ ले रही थी। मैं अपने किए पर लज्जित था। मैंने मारियों से कहा, ‘‘नहीं, नहीं। आज तुम यहीं रहो, यहीं भोजन करना। क्यों ठीक है न, फिलोमिना?’’

वह आँखें पोंछती हुई अंदर आई और बोली, ‘‘हाँ, अगर तुम इजाजत दो तो।’’

तब मैं मारियों को लेकर अपनी दुकान पर गया। रास्ते में सबसे पहले चौकीदारिन से उसका परिचय कराया, ‘‘यह मेरा साला है मारियों, दो साल से मिलान में काम कर रहा था। अब से यह हमारे पास ही रहेगा।’’ फिर यह परिचय सारे रोम से कराया।

तो कुछ इस तरह से या कहूँ यों गुजरा वह दिन, मनहूस दिन ही कहूँगा उसे, क्योंकि सिर्फ एक हजार लिरा ही नहीं गँवाया, मैंने एक चोर को भी अपने घर में बसाया।

अपर महानिदेशक
दूरदर्शन एवं आकाशवाणी महानिदेशालय
संसद मार्ग, नई दिल्ली-११०००१
—राजशेखर व्यास

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