रंगपट्टम से बेंगलुरु

रंगपट्टम से बेंगलुरु

मैसूर से बस द्वारा हम श्रीरंगपट्टम पहुँचे। कावेरी नदी के मध्य बने टापू पर यह शहर बसा हुआ है। श्रीरंगपट्टम ऐतिहासिक तीर्थ है। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मैसूर राज्य के शासक हैदरअली एवं टीपू सुल्तान के अधिकार क्षेत्र में था यह। इतिहास के पृष्ठों में पिता-पुत्र की अद्वितीय वीरता एवं पराक्रम की सच्ची कहानियाँ स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं।

श्रीरंगपट्टम के ऐतिहासिक अवशेष अतीत के वैभव के साक्षी हैं। अंग्रेजों से बड़ी बहादुरी से लड़े थे हैदरअली एवं टीपू सुल्तान। हमने मन-ही-मन उन बहादुरों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया और शहर परिभ्रमण के लिए चल पड़े। टीपू सुल्तान का वह बड़ा सा किला, जो एक पठार पर अवस्थित है, हमारे लिए सर्वाधिक आकर्षण का विषय था। फ्रांसीसियों के साथ मिलकर यहीं अंग्रेजी सेना से भिड़ गया था टीपू सुल्तान। उसने कई अंग्रेजों को बंदी बनाकर इसी किले के तहखाने में रखा था। परंतु ‘घर का भेदी लंका ढाहे’ कहावत को चरितार्थ करते हुए भारतीयों की ही मदद से अंग्रेजों ने किले की दीवार तोड़कर टीपू पर हमला बोल दिया था। टीपू ने आखिरी मोरचा ‘वाटर गेट’ पर लिया था और लड़ते-लड़ते वहीं गिर पड़ा था। हमने उस स्थान की मिट्टी का तिलक किया और गर्व से टीपू सुल्तान को स्मरण किया।

इसमें संदेह नहीं कि किले के बाहर ही बहुत-कुछ देखने लायक है, वहाँ दरियादौलत एक सुंदर महल है, जिसमें ग्रीष्मकाल में टीपू सुल्तान निवास करता था। महल की बनावट, मीनाकारी एवं सजावट देखते ही बनती है। साथ में लगा हुआ शानदार बाग इमारत की शोभा में चार चाँद लगा देता है। यहीं पर है जुम्मा मसजिद, जिसमें टीपू सुल्तान नमाज अदा करता था। इसकी ऊँची मीनारें दूर से ही यात्रियों को आकर्षित करती॒हैं।

हैदरअली एवं टीपू सुल्तान की मजारों पर बना मकबरा भी अपना अलग आकर्षण रखता है। विशेष रूप से मकबरे का  ‘गुंबद’ शिल्पकला के लिए विख्यात है। यहाँ का रंगनाथ स्वामी का विख्यात मंदिर भी दर्शनीय है। मंदिर में शेषशायी भगवान् विष्णु की भव्य एवं विशाल प्रतिमा है। परिक्रमा-पथ भी बड़ा है। मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं। हमने मंदिर की परिक्रमा की और भगवान् विष्णु को श्रद्धावनत हो शीश झुकाया। यह मंदिर सांप्रदायिक सद्भावना का भी प्रतीक है। कहते हैं, हैदरअली एवं टीपू सुल्तान विष्णु भगवान् को भक्तिभाव से प्रणाम किया करते थे। वे कट्टर नहीं थे। इस देश की मिट्टी के प्रति उनमें पर्याप्त संवेदनशीलता॒थी।

श्रीरंगपट्टम से जब हम बेंगलुरु पहुँचे तो साँझ ढल रही थी। धीरे-धीरे सारा शहर रोशनी से जगमगा उठा। सचमुच बेंगलुरु एक लुभावना शहर है। पहले इसे बगीचों का शहर कहा जाता था, परंतु आज प्रकृति की गोद में किलकारियाँ भरते इस शहर की रूपरेखा बदल गई है और अब यह व्यस्त जीवन में चहकता महानगर है। कारोबार, व्यवसाय, कारखाने द्रुतगति से बढ़ते जा रहे हैं। एक हजार मीटर की ऊँचाई पर बसे इस शहर की जलवायु एवं मौसम पूरे वर्ष सुहावना बना रहता है। विज्ञान और टेक्नोलॉजी का तो यह केंद्र है।

१५३७ ई. में केंपगौडा नामक एक छोटे से राजा ने इस शहर का निर्माण कराया था। उसने मिट्टी से निर्मित दीवारों के घेरे के अंदर एक किला बनवाया। दो शताब्दी बाद हैदरअली और उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने किले का जीर्णोद्धार कराया। केंपगौडा ने गाबी-पुरत में गाबी गंगाधरेश्वर मंदिर तथा वसवनकुडी में वसवा (नंदी) का मंदिर भी बनवाया था, जिसे आज ऐतिहासिक मंदिर होने का गौरव प्राप्त है।

हमने एक जैन धर्मशाला में डेरा जमाया और शहर घूमने निकले। सुनियोजित ढंग से बसाया गया बेंगलुरु शहर बाग-बगीचों से भरा-पूरा है। सड़कों के दोनों तरफ छायादार वृक्ष लगाए गए हैं। शानदार बड़ी-बड़ी इमारतों में खूबसूरती से सजी-धजी दुकानें, भव्य कॉम्प्लेक्स और रेस्तराँ-होटल। चहल-पहल, भीड़भाड़, चमक-दमक में खोए लोग। रौनक-ही-रौनक! छोटी जगहों में रहनेवालों के लिए तो यह शहर आश्चर्यजनक तथा भ्रमित कर देनेवाला प्रतीत होता है। फैंसी वस्त्रालयों एवं सुंदर साड़ीघरों में आकर्षक ढंग से रखी सुंदरियों की मूर्तियाँ सजीव होने का भ्रम पैदा करती हैं, जिन्हें देख अवधी के कवि रमई काका की ये पंक्तियाँ बरबस स्मरण हो आती हैं—

एक दिन गयो अमीनाबादै में
कछु कपड़ा लेन बजाजै में,
माटी की एक सुघर मेहरिया
ठाढि़ रही दरवाजे में,
मैंने समझा मलकिन होगी
झट मोल-भाव पूछन लागा
उत्तर न पावा तो टटोलन लागा,
वह निकली माटी की मूरत
मैंने कहा धोखा होइगा।

अमीनाबाद (लखनऊ) के बाजार में जो धोखा रमई काका को हुआ था, वही धोखा बेंगलुरु में हमें हुआ। एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में जाने के लिए विद्युत्-चलित सीढि़याँ थीं, जो ऊपर-नीचे दौड़ती रहती थीं, जमे कि गए। साथियों ने कुछ साडि़याँ क्रय कीं और इधर-उधर घूम-घाम अपने कक्ष में आकर हम सो गए।

बेंगलुरु के दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए एक बस से सुबह आठ बजे हम निकले। लाल बाग पहुँचने में अधिक समय नहीं लगा। दो सौ चालीस एकड़ के विस्तृत भू-भाग में फैला लाल बाग विश्वविख्यात है। १७६० में हैदरअली ने इसे बनवाया था और टीपू सुल्तान ने विभिन्न प्रकार के पेड़ों, फूलों, लताओं से प्राकृतिक रूप से मनोरम बनाया था। विविध प्रकार के वृक्ष एवं वनस्पतियों से परिपूर्ण है लाल बाग। रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियाँ, हरी-भरी घास की लॉन तथा अनेक प्रकार के लता-गुल्म। एक बड़ी झील है और मध्य में शीशे का महल है। यहाँ १५ अगस्त तथा २६ जनवरी को फूलों की प्रदर्शनी आयोजित की जाती है। यहाँ एक पक्षी-शाखा तथा मृग-शरणालय भी है, जहाँ पक्षी कूजते और हरिण चौकड़ी भरते रहते हैं! इस सुंदर बाग में विचरण कर हमें अतीव आनंद की अनुभूति हुई।

इसके बाद हम कब्बन पार्क गए। विशालकाय पेड़ों-पौधों के झुरमुटों से भरा यह विशाल उपवन है। यहीं पर ग्रंथालय की लाल इमारत है। पास में ही है विधानसभा भवन, जो आधुनिक स्थापत्य कला का प्रतीक है। होयसलकाल की कला की भी छाप है इसमें। श्वेत पत्थरों से निर्मित यह चार-मंजिली इमारत नवीन एवं प्राचीन स्थापत्य कला की देन है। खिली धूप में जगमगाते गुंबद, कमानें, ऊँचे-ऊँचे स्तंभ, लंबी गैलरियाँ आकर्षक लगती हैं। सबसे ऊँचे गुंबद पर तीन सिंह निर्मित हैं, जिसे हम भारतीय राष्ट्र के प्रतीक के रूप में देखते हैं। भवन के चतुर्दिक् फुलवारियाँ हैं। मंत्रिमंडल-कक्ष का प्रवेश-द्वार चंदन की लकड़ी से बना है, जिसमें तराशी चित्रकारी अनूठी है।

विधानसभा के उत्तर-पश्चिम में बेंगलुरु राजमहल की शानदार इमारत है, जो लंदन के बिंडसर किले का स्मरण दिलाती है। बेंकटप्पा आर्ट गैलरी भी दर्शनीय है। मैसूर राज्य के दरबारी चित्रकार एस.के. बेंकटप्पा के बनाए चित्र एवं वाद्ययंत्र यहाँ प्रदर्शित हैं। लकड़ी की सुंदर मूर्तियाँ एवं नक्काशी भी देखने लायक है।

यहाँ से थोड़ी ही दूर है—विश्वेश्वरैया संग्रहालय। औद्योगिक एवं टेक्नोलॉजी में हुए विकासक्रम का प्रदर्शन अद्भुत है। इंजीनियरिंग उपकरणों के प्रयोग की जानकारी भी यहाँ दी जाती है। पुरातत्त्व संग्रहालय में भी हम गए। इसके कई विभाग हैं—पुरातत्त्व, नृवंश, मुद्राशास्त्र आदि। मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त वस्तुओं का अच्छा संकलन है यहाँ।

इसके बाद हम टीपू का राजमहल देखने गए। इसका निर्माण हैदरअली ने प्रारंभ किया था, जिसे पूरा कराया उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने। आज यह वीरान है, पर कभी ग्रीष्मकाल में टीपू सुल्तान का आवास था, जिसके सभाभवन में उसका दरबार लगा करता था। संपूर्ण इमारत लकड़ी की बनी है। राजमहल के पास है राजा केंपगौडा द्वारा बनवाया गया किला, जिसके अंदर गणेशजी का एक भव्य मंदिर है। इस मंदिर की दीवारों पर भगवान् कृष्ण के जीवन की विविध लीलाएँ उत्कीर्णित हैं। मंदिर की नक्काशी में मुसलिम काल की कला का प्रभाव स्पष्ट है।

केंपगौडा का बनवाया हुआ नंदी एवं कवि गंगाधरेश्वर मंदिर भी अपना ऐतिहासिक महत्त्व रखते हैं और बेंगलुरु पहुँचने वाले पर्यटक इन्हें अवश्य देखते हैं। एक बड़ी चट्टान को काटकर १५ फीट ऊँचे एवं २० फीट लंबे नंदी की विशाल आकृति अपना प्रभाव अवश्य छोड़ती है। सामने गंगाधरेश्वर यानी शिव का कलात्मक मंदिर, जो द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है, देखते ही बनता है।

छावनी (कैंट) क्षेत्र में अवस्थित अलसूर झील में नौका-विहार का अलग आनंद है। किराए पर विभिन्न प्रकार की आरामदेह नावें लेकर झील में संतरण किया जा सकता है। हमने भी इसका आनंद उठाया।

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