पाञ्चजन्य के प्रश्न, अटलजी के कालजयी उत्तर

मुसलिम समुदाय का बड़ी संख्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ संवाद और भाजपा के साथ जुड़ाव दिखने लगा है। अभी तक राष्ट्रभावी विचारधारा के विरोधी यह कहते थे कि चाहे कुछ भी हो जाए, पर मुसलिम समाज इस विचारधारा और इससे जुडे़ संगठनों के निकट नहीं आएगा। इस बदलाव के पीछे आप क्या कारण मानते हैं?

यह तो बदले हुए वक्त का तकाजा है। मुसलिम समाज भी यह समझ रहा है कि उसे यहीं रहना है और यहीं अपना भविष्य बनाना है। या तो हमेशा झगड़ा करते रहें और तनाव का संबंध बना रहे। या भाईचारे के साथ आगे बढें। वे भाईचारे के रास्ते पर बढ़ रहे हैं। यह अच्छी बात है।

जब एक वोट से सरकार गिर गई, उस समय मन में क्या भाव थे? क्या थी वेदना?

सरकार एक वोट से गिर गई, इसका इतना दुःख नहीं था। चिंता इस बात की थी कि राजनीति पूरी तरह नकारात्मक और पूरी तरह निषेधात्मक हो गई है। भाजपा के विरोध के नाम पर सेकुलरवादी मोर्चा खड़ा करने का जोर-शोर से ऐलान किया गया था। लेकिन उसे भी विवाद में मुद्दा नहीं बनाया गया। अगर लोकसभा में सेकुलरवाद पर तर्कसंगत बहस होती तो वह समझ में आ सकता था। केवल दोषारोपण के लिए, देश के विभिन्न भागों में छिटपुट घटनाओं का उल्लेख कर दिया। जब सत्ता पक्ष की ओर से तथ्य सामने रखे गए तो उन्हें समझने की तैयारी भी विपक्ष में दिखाई नहीं दी। उनके लिए मानो वह एक कर्मकांड था, जिसे पूरा करने के लिए वे एकत्र हुए थे। क्या संसार के सबसे बडे़ लोकतंत्र में राजनीति इसी तरह से चलेगी?

मार्क्सवादियों की भूमिका पर आप क्या सोचते हैं?

उनका आचरण उनके अब तक के व्यवहार के अनुरूप ही रहा है। वे नहीं चाहते कि राष्ट्रवाद प्रखर हो, देश में स्थिरता रहे, देश लोकतांत्रिक तरीके से समृद्धि की ओर आगे बढे़।

कहा जाता है कि आप हिंदुत्व से अलग हट रहे हैं?

गलत कहा जाता है। भारत का शक्तिशाली और समृद्ध होना ही हमारी मूल विचारधारा है। यही भारतीयता है। सुरक्षा की दृष्टि से हमने एक ऐसा राष्ट्र बनाया है, जो किसी भी तरह की चुनौती का सामना करने में पूरी तरह समर्थ है। हम ऐसा देश बनाना चाहते हैं, जो अविजेय हो। यह हमारी पहले से ही मूल प्रेरणा रही है। पिछली सरकारों के समय तीन लड़ाइयाँ हुईं और तीनों में हमने चोट खाई। पर हमने कारगिल में ऐसा नहीं होने दिया। उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, उन्होंने इस लड़ाई में पाकिस्तान की फौजों ने हमारे हाथों कैसे मार खाई, इसका वर्णन किया है। उनको तब अमेरिका ने रातोरात वाशिंगटन बुला लिया था। वे गए। पर हमने जाने से मना कर दिया। नवाज शरीफ ने उस साक्षात्कार में कहा कि बिल क्लिंटन ने वाजपेयी को बुलाया, लेकिन वाजपेयी ने मना कर दिया। तो यह स्थिति कैसे आई कि अमेरिका बुला रहा है और हम मना कर रहे हैं? हम अपनी ताकत पर डटे रहे और दुनिया ने माना। यही है हमारी भारतीयता, यही है हमारी राष्ट्रीयता। यह हमारी राष्ट्रीयता का ही अंग है कि हम एक ऐसा देश बनाना चाहते हैं कि जिसमें, दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, राम राज काहू नहिं व्यापा की बात फलीभूत हो।

अपनी सरकार के कार्यकाल का कोई ऐसा क्षण बताइए, जो आपको सर्वाधिक आनंद देता है।

लंबी-चौड़ी सूची है। क्या-क्या बताएँ? लेकिन भारत को परमाणु शस्त्रों से सज्ज करना (पोखरण) सबसे तृप्तिदायक मानता हूँ।

आपकी सरकार से क्या अपेक्षा करें? इसके साथ ही अपने मित्रों और कार्यकर्ताओं से क्या अपेक्षा है?

देश को अच्छे शासन की जरूरत है। शासन अपने प्राथमिक कर्तव्यों का पालन करे, हर नागरिक को बिना किसी भेदभाव के सुरक्षा दे, उसके लिए शिक्षा, उपचार और आवास का प्रबंध करे। इसकी बड़ी आवश्यकता है। पिछले ५० साल में यह कार्य जिस गति से होना चाहिए था, नहीं हुआ। लोग अच्छी सरकार भी चाहते हैं और स्वच्छ सरकार भी चाहते हैं। जहाँ मजबूती और कठोरता की आवश्यकता होगी, वहाँ हमारी सरकार मजबूती दिखाएगी और जहाँ समझा-बुझाकर समस्याओं के समाधान निकालना संभव हो तो वहाँ उस दिशा में प्रयत्न किए जाएँगे। रही बात कार्यकर्ताओं की, तो मेरा अनुरोध है कि वे हमारी सरकार और उसके क्रियाकलापों के संबंध में तत्काल कोई राय न बनाएँ। जिन परिस्थितियों में हम सत्ता ग्रहण करने जा रहे हैं, वे परिस्थितियाँ बड़ी जटिल हैं। गत ५० वर्षों की साधना और संघर्ष हमें वर्तमान स्थिति तक पहुँचाने में समर्थ हुए हैं। लोगों का प्रेम हमारा पाथेय है। कार्यकर्ताओं का सहयोग हमारी पूँजी है। हमें विश्वास है कि हम समय की कसौटी पर खरे उतरेंगे।

हम यह जानना चाहते हैं कि अटलजी अपने आपको किस रूप में याद किया जाना पसंद करेंगे?

टेढ़ा सवाल है। लोग याद करेंगे भी या नहीं करेंगे, इसके बारे में मुझे संदेह है। कोई याद करे, इसकी क्या जरूरत है।

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