एकमात्र दिवस

महिला दिवस पर कुछ परिचित साहित्यकारों ने मुझे बधाई देने के लिए फोन किए। मैंने अनमने मन से फोन उठाया, ‘‘बधाई!’’ किस बात की बधाई?’’ मैंने अनजान बनकर पूछा।

‘‘अरे! आज तो आपका दिन है।’’ मेरी ओर से औपचारिक या अनौपचारिक उत्तर न पाकर कुछ पल सन्नाटा रहा।

‘‘मैडम, हमने सोचा था कि आज के दिन आप बहुत खुश होंगी, पर आप तो...?’’

‘‘तीन सौ चौंसठ दिन बधाई देकर किसे खुश करना चाहते हैं?’’ कहते-कहते मैंने फोन रख दिया।

आज का दिन जरूरत से ज्यादा ही बोझिल हो गया। दूसरे के होंठों पर आई हँसी भी मानो मेरा मजाक उड़ा रही थी।

एक बार खयाल आया कि फिर किसी ने फोन किया तो...? क्यों न रिसीवर उतारकर ही रख दिया जाए। फिर सोचा कि क्यों न अपनी दीदी से बात कर लूँ! ‘‘दीदी, आप इतनी बड़ी डॉक्टर हैं, आज तो आपके पास बधाई देने के लिए बहुत सारे फोन आए होंगे?’’

‘‘हाँ।’’

‘‘मैंने आपको बधाई देने के लिए नहीं, बल्कि एक प्रश्न पूछने के लिए फोन किया है। क्या कोई पुरुष यह विश्वास दिला सकता कि सिर्फ आज...सिर्फ एक दिन कहीं कोई दुष्कर्म नहीं होगा?’’

‘‘कोमल, तुम यह संवेदनशील प्रश्न अपनी डायरी में नोट कर लो।’’ डॉक्टर दीदी के जवाब में ठंडापन था।

इधर हमारी बातचीत चल रही थी और उधर सिर्फ साठ किलोमीटर दूर दुष्कर्म की घटना घट रही थी।

अगले दिन समाचार-पत्रों की सुर्खियों में पहले पन्ने पर खबर थी कि ‘महिला दिवस पर इंदौर के मॉल में नौ साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म।’

महिला दिवस पर इस खबर को क्या समझा जाए—बधाई या महिला दिवस का तोहफा?

‘शिवनंदन’, ५९५, वैशाली नगर
(सेठीनगर), उज्जैन-४५६०१० (म.प्र.)
दूरभाष: ०७३४-२५२५२७७
कोमल वाधवानी ‘प्रेरणा’

हमारे संकलन