दीपों का त्योहार दीवाली

दीपों का त्योहार दीवाली

शरद ऋतु अपने आप में सर्वाधिक सुखद होती है। शरद ऋतु का सौंदर्य श्री का सौंदर्य है। लक्ष्मी का सौंदर्य है, सीता और राधारानी का सौंदर्य है। शरद का सौंदर्य ही शारदा का सौंदर्य है। श्री का यह सौंदर्य न तिजोरियों में बंद होता है और न उल्लू की सवारी करता है, यह तो प्रकाश की एक धारा निरंतर जीव-जगत् के बाहर-भीतर फैलाता रहता है। शरद ऋतु का पावन मास है—कार्तिक। पूरा कार्तिक ही पर्व-त्योहारों का महीना है। कार्तिक-स्नान का अपने आप में बड़ा महत्त्व है। नवरात्र और दशहरा यानी विजयादशमी के बाद दीपावली पर्व आता है। दीपावली अकेला नहीं, पर्वों का समूह है, इसलिए लोग इसे पंच-महोत्सव, यानी पाँच दिन तक चलनेवाला महोत्सव भी कहते हैं। दीपावली अँधेरे पर उजाले की विजय का पर्व है; तमस में ज्योति के पदार्पण का पर्व है; बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व है; दुर्गुणों पर सत्गुणों की विजय का पर्व है। दीपावली के एक महीना पहले से घरों, दुकानों, कार्य-स्थलों की साफ-सफाई, लिपाई-पुताई और रंग-रोगन करना शुरू हो जाता है। कहा गया है कि जहाँ स्वच्छता है, वहाँ लक्ष्मी का वास है।

‘लक्ष्मी तंत्र’ ग्रंथ में उल्लेख आया है कि देवताओं के राजा इंद्र ने पूछा कि ‘देवी लक्ष्मी, आपकी कृपा कैसे प्राप्त की जा सकती है?’ तो माता लक्ष्मी ने बताया कि ‘देवेंद्र, जो मेरी प्राप्ति की इच्छा रखते हुए स्वच्छ तन, स्वच्छ मन तथा स्वच्छ वातावरण से युक्त परिवेश में मेरी पूजा-आराधना करता है, मैं उस सेवक पर ही प्रसन्न होती हूँ। निःसंदेह जो गृहस्थ सात्त्विक मन से, अपनेपन के साथ पूजा-अर्चना करता है, वह अपने जीवन की दरिद्रता को मिटा सकता है।’ ‘ब्रह्म पुराण’ में भी बताया गया है कि कार्तिक अमावस्या की अँधेरी रात्रि में लक्ष्मीजी स्वयं भूलोक में आती हैं और चहुँ ओर विचरण करती हैं। जो घर या स्थान अधिक स्वच्छ, शुद्ध, सात्त्विक एवं प्रकाशयुक्त होता है, वहाँ वे अपनी कृपा बरसाती हैं। गंदे तथा अंधकार वाले घर में वे झाँकती भी नहीं हैं, अतः क्या शहर, क्या गाँव, हिंदू घरों में खूब साफ-सफाई कर दीपक की रोशनी से चहुँओर जगमग कर दिया जाता है। सभी को अपने घर में लक्ष्मीजी को बुलाने की तीव्र आकांक्षा रहती है। लक्ष्मीजी मात्र धन की स्वामिनी ही नहीं, वे ऐश्वर्य, सुख-शांति एवं समृद्धि देनेवाली भी हैं। सभी हिंदू परिवार उनके इंतजार में पलक-पाँवडे़ बिछाए रहते हैं।

इस अवसर पर साफ-सफाई से एक दूसरा फायदा यह भी होता है कि बरसात के बाद कीडे़-मकोडे़ काफी संख्या में बढ़ जाते हैं; घरों में टूट-फूट, शीलन आदि से वातावरण अस्वास्थ्यकर हो जाता है। दीपावली के बहाने अच्छी साफ-सफाई कर घरों को प्रकाशित किया जाता है, जिससे वातावरण स्वास्थ्यप्रद हो जाता है। एक ओर तो दीपक अंतर्मन को आलोकित करते हैं, दूसरी ओर दीपकों के प्रकाश में कीट-पतंगे सब नष्ट हो जाते हैं, इसीलिए दीपावली में दीपमालिका सजाई जाती है।

यह त्योहार कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुरू हो जाता है, इसे ‘धनतेरस’ कहते हैं; इसी दिन को भगवान् धन्वंतरि के प्रादुर्भाव के रूप में मनाया जाता है। आयुर्वेद शास्त्र के प्रणेता भगवान् धन्वंतरि का उद्भव समुद्र-मंथन से इसी दिन हुआ था। धनतेरस को यमुना में स्नान तथा यम के नाम पर दीपदान किया जाता है। तेल का दीपक जलाकर मुख्य द्वार पर रखा जाता है, इससे परिवार को अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता है, ऐसी मान्यता है। इस दिन धातु के बरतन, आभूषण आदि खरीदना भी शुभ माना जाता है। क्या गरीब क्या अमीर, सब हिंदू इस दिन कुछ-न-कुछ अवश्य खरीदते हैं।

अगले दिन नरक चतुर्दशी होती है, इसे छोटी दीवाली भी कहते हैं। इस दिन सायं को हिंदू परिवारों में कहीं पर चौदह तो कहीं पर एक दीया जलाया जाता है और रामसेवक हनुमान को तेल तथा सिंदूर चढ़ाना शुभ माना जाता है। यह उनको अत्यंत प्रिय है। द्वापर में इसी दिन भगवान् कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था, ऐसा भी माना जाता है। कालांतर में इस दिन महावीर जयंती भी मनाई जाने लगी और यह जैन संप्रदाय का भी पर्व बन गया।

आश्विन शुक्ल पक्ष की दसवीं को रावण पर विजय प्राप्त करने के ठीक बीसवें दिन भगवान् राम के अयोध्या लौटने पर और उनके राज्याभिषेक के पावन अवसर पर अमावस्या को घर-घर में दीप जलाए गए। दीवाली के रूप में प्रतिवर्ष हमारे राम की वापसी होती है और हम दीपोत्सव मनाते हैं। दीपावली को ही आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती को मोक्ष प्राप्त हुआ था। यह घर में नवान्न आने का भी पर्व है। अतः सायं को नवान्न के रूप में गुड़ से निर्मित विभिन्न खाद्य वस्तुएँ, खाँड़ के खिलौने, बताशे, मिष्टान्न के साथ धान से बनी खील, लाई, चूड़ा आदि से गणेश और लक्ष्मी की पूजा बडे़ भक्तिभाव से की जाती है। घर-द्वार, कुआँ-बावड़ी, मंदिर-देवालय यहाँ तक कि कूड़ाघर में दीपक जलाकर प्रकाश किया जाता है, इससे एक ओर लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं, तो दूसरी ओर कीडे़-मकोड़े आदि नष्ट हो जाते हैं। हिंदू अपने नाते-रिश्तेदार, मित्र एवं अड़ोस-पड़ोस में मिठाइयों तथा उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं। इससे आपसी प्रेम-सौहार्द की वृद्धि होती है। बच्चों के लिए यह विशेष खुशी का पर्व है, जो हफ्ते से पहले ही पटाखे चलाना शुरू कर देते हैं।

दीपावली वैसे तो सभी हिंदू परिवार बडे़ उल्लास के साथ मनाते हैं, पर प्रमुख रूप से इसे वैश्यों का त्योहार कहा जाता है। इस दिन व्यापार की पुरानी बही बदलकर नई शुरू की जाती है। वे बही की पूजा करते हैं। इस अवसर पर श्री-श्री इतने हजार मिति, सुदी, बदी लिखकर गणेशजी केनाम से खाता खुलवाया जाता है। गणेश के नाम लिखे रुपयों में कोई काट-छाँट या छेड़-छाड़ नहीं की जाती। इसके बाद शुभ-लाभ एवं रिद्धि-सिद्धि लिखे जाते थे। बाईं ओर शुभ केनीचे जो अर्जित किया, वह लिखा जाता था तथा लाभ के नीचे जो कमाया, वह लिखा जाता था। बही पर गणेषाय नमः, श्रीलक्ष्मी नमः तथा अन्य देवता-उपदेवताओं के नाम लिखे जाते थे।

इस दिन सायं को लक्ष्मीजी और गणेशजी की साथ-साथ पूजा के कारण जो भी रहे हों, परंतु यह बात सर्वविदित है कि आज भी लक्ष्मीजी का पूजन सुख-समृद्धि एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए तथा गणेशजी की पूजा उस समृद्धि एवं ऐश्वर्य को सात्त्विक एवं लोक-कल्याणकारी बनाए रखने के लिए ही की जाती है। धन-संपत्ति और समृद्धि अहंकार बढ़ानेवाली नहीं, परोपकारार्थ और जन-कल्याण के लिए होनी चाहिए। दीपावली पूजा का मंतव्य यही है। हिंदू समाज में ऐसी मान्यता है कि भगवान् राम के सिंहासनारूढ़ होने पर अयोध्यावासियों ने घर-घर दीप जलाकर पूरी अयोध्या नगरी को रोशन-प्रकाशित किया तथा स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर खुशियाँ मनाईं; अतः उसी खुशी में दीपावली की परंपरा आज तक चली आ रही है। दीपावली की रात्रि के बाद, यानी ब्रह्ममुहूर्त में दलिद्दर भगाने की प्रथा आज भी है। घर के कोने-कोने में जाकर घर की बड़ी-बूढ़ी सूप पटकती या बजाती हैं और कुछ लोकगीत गुनगुनाते हुए घर से दरिद्रता को भगाती हैं। दीवाली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, इसे हमें कभी नहीं भूलना चाहिए और इस सीख को जीवन में उतारना चाहिए। यदि हर व्यक्ति दीवाली के दिन यह व्रत ले कि उसके जीवन में सच्चाई और ईमानदारी का ही वास होगा तो हमारा देश दुनिया में सबसे आगे बढ़ सकता है।

ठीक अगले दिन, यानी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पर्व मनाया जाता है। भगवान् कृष्ण ने इसी दिन दंभी इंद्र की पूजा बंद करवाकर गोवर्धन और गाय की पूजा शुरू कराई थी। इसी दिन इंद्र के कोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए भगवान् कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उँगली पर धारण कर इंद्र का मान-मर्दन किया था। ब्रजवासी इस पर्व को बडे़ हर्ष-उल्लास के साथ मनाते हैं। घर-घर में गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है। सायं में खीर-पूरी और अनेक पकवान बनाकर पूरे परिवार के साथ गोवर्धन यानी गिरिराज भगवान् की पूजा कर परिक्रमा की जाती है। उत्तर भारत में मथुरा पुरी के पास स्थित गिरिराज पर्वत (गोवर्धन) की परिक्रमा वर्ष भर चलती रहती है। इसकेअलावा व्यवसायी तथा हस्त-कर्मकार और नाना पेशा करनेवाले इस दिन विश्वकर्मा की पूजा भी करते हैं और अपना कारोबार इस दिन बंद रखते हैं।

इसके अगले दिन द्वितीया को भाई-बहन के आपसी प्रेम-सौहार्द का पर्व ‘भैया दूज’ मनाया जाता है। कहा जाता है कि सबसे पहले महालक्ष्मीजी ने राजा बलि को राखी बाँधकर उसे भाई बनाकर भगवान् विष्णु को वहाँ से मुक्त कराया था। एक वरदान के कारण विष्णुजी राजा बलि के पहरेदार बन गए थे। अतः इस दिन बहनें भाई को नारियल (गोला), मिठाई के साथ तिलक करती हैं और उनकी दीर्घ आयु की कामना करती हैं। भाई भी कपड़ा, उपहार तथा नकद राशि देकर बहन का सम्मान करता है और बहन की सदा मदद करने का वचन देता है। इस दिन बहनें अपने भाई के घर जाती हैं या भाई ही बहन के घर आ जाते हैं, तब बहन भाई का रोली-अक्षत से तिलक कर नारियल, मिष्टान्न आदि भेंट करती है। जो भाई दूर या परदेस मेें होते हैं तो बहनें उनके नाम से नारियल को तिलक कर रख लेती हैं और सुविधानुसार बाद में अपनी दौज भेंट करती हैं। भैया दूज केदिन बाजारों तथा बस, रेल आदि में खूब भीड़ रहती है।

वर्तमान में दीपावली के बहाने अपने धन-वैभव की नुमाइश होने लगी है। पर्यावरण को बरबाद करनेवाली दमघोंटू आतिशबाजी का चलन कब-कैसे शुरू हो गया, कहा नहीं जा सकता। हाँ, अपनी संपन्नता की धाक जमाने का यह भी एक जरिया बन गया है। दीपावली तो वातावरण को स्वास्थ्यकर बनाने का पर्व है। लालची दुकानदार तथा मिलावटखोरों ने दीवाली की मिठाई को भी जहरीला बना दिया है। दूध से बननेवाली मिठाइयों में सबसे ज्यादा मिलावट की जा रही है। इस मौके पर मिठाइयाँ खाना भी बीमारियों को आमंत्रण देना है। कुछ लोग इस दिन जुआ खेलकर इस त्योहार की गरिमा को ठेस पहुँचाते हैं, यह पर्व तो व्यसनों तथा बुराइयों को दूर भगाने का पर्व है। दीपावली पर्व पर हम केवल दीपक जलाते हुए ही न रह जाएँ, बल्कि अपने-अपने आंतरिक जीवन तथा बाह्य जीवन में जो अज्ञान है, अभाव है, अशक्ति है, असोच है, उसे भी पूरी ताकत लगाकर दूर करें या कर सकें तो दीपोत्सव मनाना सार्थक हो सकेगा।

आई-१२४, ७० फुटा रोड
प्रेमनगर, किराड़ी, दिल्ली-११००८६
दूरभाष: ९९९००५०९२०
—आनंद शर्मा

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