RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
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हर आँगन में उजियारा होदीपों का मेला दीपों का मेला दीवाली, रात सजी ज्यों तारों वाली। कुमकुम, चंदन और मिष्टान्न, सुमनों से महकी है थाली। प्रेम, एकता, भाईचारा, सारे भेद मिटानेवाली। जुआ खेलना बुरी बला है, कभी न लाए यह खुशहाली। वातावरण शुद्ध रखने को, सजे पटाखों बिन दीवाली। आशाओं का बस वंदन हो, आलोकित पथ, बात निराली। हर आँगन में उजियारा हो, रात किसी की रहे न काली। दीपों का मेला दीवाली, सारे भेद मिटानेवाली। गंगा की पीड़ा पर्वत, घाटी मुझको भाती, गाँवों, शहरों चलती जाती। तीर्थ, घाटों की पटरानी, मन में पवित्र भाव जगाती। मुझको पावन गंगा कहते फिर क्यों दूषित मैं बन जाती? कूड़ा-कचरा मुझमें डलता, मेरी धारा सूख जाती। रूठ रहे हैं मेरे जलचर, मुझको उनकी व्यथा सताती। तुम्हारी आस्था का प्रतीक, पग-पग पर मैं छलती जाती। विषैले रसायन डालो तुम, मेरी घायल होती छाती। विचलित-व्याकुल मैं हूँ रहती, निज पीड़ा सही नहीं जाती। मिलकर मुझे बचाना होगा, तभी रहेगी पावन धाती। प्रदूषण भगाते बादल रिमझिम-रिमझिम पानी बरसाते बादल, धरती की आकर प्यास बुझाते बादल। आसमान में उड़ते आते पक्षियों से, पेड़-पौधों को खूब ही भाते बादल। खुशियों का चहुँओर लगता है मेला, नदी संग अठखेलियाँ दिखाते बादल। गुस्सैल गरमी के तड़पाते दिनों में, मौसम को रंगीन बना जाते बादल। हमारी नाकामियाँ दूर हटाने को, वायु-प्रदूषण को दूर भगाते बादल। बिना भेदभाव अपना सबकुछ लुटाते, इसीलिए स्नेह सभी का पाते बादल। मनभावन सावन रिमझिम-रिमझिम पड़ती फुहार, मनभावन सावन आया है! कूक रही कोयल मतवाली झूम रही हर डाली-डाली, सरिता कलकल स्वर में गाती, चहुँओर फैली हरियाली। मस्त मोर है नाच दिखाता, मनभावन सावन आया है! उमड़-घुमड़कर बादल आते, भर-भर झोली पानी लाते, कैसे-कैसे रंग दिखलाते। इंद्रधनुष कभी सज जाता, मनभावन सावन आया है। हँसते मुखडे़ लगते प्यारे, झूलों को लहराते सारे, जोश-जोश में पेंग बढ़ाते, इनके सभी खेल हैं न्यारे। धूम मची है पकवानों की, मनभावन सावन आया है! २६९८, सेक्टर-४०-सी |
अप्रैल 2024
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