चित्रा और पाँच भाई

एक गाँव था। गाँव में चित्रा नाम की एक लड़की रहती थी। एक छोटा सा मकान था। वह अपने पाँच भाइयों के साथ रहती थी। बहन-भाई एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। चित्रा घर का सारा काम करती थी। नदी से पानी लाती, खाना बनाती। उसके भाई उनके छोटे से खेत में काम करते थे। सुबह नाश्ता करके दोपहर के भोजन के लिए सब्जी-रोटी लेकर जाते थे। दिन ढलने तक खेत में मेहनत करते और शाम को घर आते।

एक दिन चित्रा के भाई नाश्ता करके और खाना लेकर खेत पर गए। चित्रा नदी से पानी ला रही थी। इतने में एक पंचरंगी तोता आकर उसके कंधे पर बैठा। उसने चित्रा से पूछा, ‘‘क्या मैं तुम्हारे घर आ सकता हूँ? मुझे बहुत भूख लगी है।’’

चित्रा ने कहा, ‘‘आओ न! निश्चिंत होकर आओ।’’

‘‘तुम मुझे क्या-क्या खिलाओगी?’’

‘‘भिगोई हुई दाल, हरी मिर्च और खेत से अमरूद के पेड़ पर से अमरूद लाकर खिलाऊँगी।’’

तोता चित्रा के साथ घर आया। इसके बाद वह हर रोज आने लगा। उसकी और चित्रा की अच्छी दोस्ती हो गई। चित्रा उससे गपशप करती रहती। उसके भाइयों को भी उसका यह नया दोस्त पसंद आया। शाम को चित्रा के भाइयों के घर आने के बाद तोता हमेशा की तरह अपने ठिकाने राजा के बगीचे में लगे पेड़ पर चला जाता था।

राजा की रानी स्वरूपा देवी बहुत खूबसूरत थी और उसकी बेटी शिल्पा भी बहुत सुंदर थी। रानी तथा राजकन्या समझती थीं कि शिल्पा जैसी सुंदर लड़की इस दुनिया में कोई नहीं है। शिल्पा के पिताजी के राज्य से वैशाली का साम्राज्य बहुत बड़ा था। वैशाली नरेश का बेटा विजय कुमार ने निश्चय किया था कि वह दुनिया की सबसे ज्यादा खूबसूरत लड़की से शादी करेगा। रानी को भरोसा था कि शिल्पा की शादी युवराज विजय कुमार से होगी। रानी और राजकन्या कभी-कभी बगीचे में जाती थीं। वहाँ के पंचरंगी तोते से पूछतीं—

‘‘तोते-तोते घूमते हो दुनिया भर में,

बोलो-बोलो कौन है सुंदर इस जहाँ में?’’

तोता कहता, ‘‘दुनिया में सबसे सुंदर तुम्हारी कन्या शिल्पा रानी।’’ जब तोता ऐसा कहता तो वे दोनों खुश हो जाती थीं। शिल्पा को अपनी सुंदरता का घमंड था। एक दिन कुछ अलग ही घटना घटी। तोते के चित्रा को देखने के कुछ दिन बाद रानी और शिल्पा बगीचे में आईं। उन्होंने हमेशा की तरह सवाल पूछा, पर तोते ने हमेशा की तरह जवाब नहीं दिया। उसने कहा, ‘‘दुनिया में सुंदर है शिल्पा; लेकिन उससे ज्यादा सुंदर है चित्रा।’’

तोते ने सही कहा था। चित्रा बहुत सुंदर थी। रानी और राजकन्या को गुस्सा आया। रानी ने सोचा, अगर विजय कुमार को यह बात मालूम हो गई तो वह शिल्पा से शादी नहीं करेगा। चित्रा से करेगा। नहीं-नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। रानी ने सिपाहियों को हुक्म दिया, ‘‘चित्रा को पकड़कर ले आओ और ध्यान रहे कि यह बात किसी को मालूम न हो!’’

दूसरे दिन चित्रा के भाई खेत पर चले गए। चित्रा पानी लाने नदी पर गई। तोता सीटी बजाता उसके आगे-आगे उड़ रहा था। सिपाहियों ने उसे देखा—‘‘राजकन्या से ज्यादा खूबसूरत लड़की यही होगी!’’ उन्होंने चित्रा को उठाकर घोडे़ पर बैठाया। घोड़ा दौड़ पड़ा। चित्रा भाइयों को पुकारने लगी, लेकिन वे बहुत दूर खेत में काम कर रहे थे। सिपाही चित्रा को ले गए, तब तोता खेत पर गया। उसने चित्रा के भाइयों को बताया कि सिपाही चित्रा को पकड़कर ले गए हैं।

‘‘लेकिन क्यों? उसने ऐसा कौन सा अपराध किया है?’’ भाई पूछने लगे।

‘‘चित्रा राजकन्या से ज्यादा खूबसूरत है, यही उसका अपराध है।’’ सब भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। उन्होंने निश्चय किया कि कुछ भी हो जाए, चित्रा को छुड़ाकर लाना ही है। खेत का काम छोड़कर वे राजधानी की ओर भागने लगे। वे दोपहर से भाग रहे थे। अब वे थक गए थे। सामने नदी दिखाई दी। बड़ा भाई बोला, ‘‘हम लोग यहाँ रुकेंगे। थोड़ा आराम करेंगे। साथ लाया हुआ खाना खाएँगे। फिर हमें दौड़ने के लिए ताकत मिलेगी।’’ सबने हाथ-मुँह धोए। रोटी की पोटली खोली। वे खाने ही जा रहे थे कि एक बूढ़ा वहाँ आ गया। उसने कहा, ‘‘मैं बहुत दिनों से भूखा हूँ। मैं बूढ़ा हो गया हूँ। मेहनत नहीं कर सकता। कभी खाने को मिलता है, कभी नहीं। तुम मुझे थोड़ी रोटी दो!’’ बडे़ भाई ने कहा, ‘‘दादाजी, मेरे हिस्से की रोटी आप खा लीजिए। वैसे भी मुझे भूख नहीं है। सुबह नाश्ता जरा ज्यादा ही हुआ था।’’ बूढे़ ने रोटी खाई, लेकिन उसका पेट भरा नहीं। फिर दूसरे-तीसरे सभी भाइयों ने अपनी रोटी उसे दी। सब रोटियाँ खाने के बाद डकार लेते हुए बूढ़ा बोला, ‘‘बच्चो, आज मेरे कारण तुम्हें भूखा रहना पड़ा।’’

‘‘नहीं-नहीं दादाजी, आप ऐसा मत कहिए। आप कितने दिनों से भूखे थे। हमने सुबह पेट भर नाश्ता किया था।’’ दूसरा भाई बोला, ‘‘पता नहीं, अब ऐसा नाश्ता कब नसीब होगा?’’ तीसरे ने आह भरी, ‘‘क्यों? ऐसा क्यों कह रहे हो?’’ बूढे़ ने पूछा तो उन्होंने पूरी घटना सुना दी। बूढ़ा सोच में पड़ गया। फिर बोला, ‘‘बच्चो, तुमने मेरी भूख मिटाई है, अब मैं तुम्हारे काम आऊँगा। मैं तुम एक-एक को ऐसी शक्ति दूँगा कि उसका उपयोग तुम अपनी बहन को ढूँढ़ने और छुड़ाने में कर सकोगे। लेकिन काम पूर्ण होने के बाद मेरी दी गई शक्तियाँ तुम्हें लौटानी होंगी।’’

सब भाइयों ने कबूल किया। फिर उन्होंने बडे़ भाई के सिर पर हाथ रखकर कहा, ‘‘तुम कितना भी बोझ लेकर पंछी की तरह उड़ते हुए कहीं भी आ-जा सकोगे।’’ दूसरे भाई के सिर पर रखकर कहा, ‘‘तुम्हारे हाथ लोहे जैसे मजबूत होंगे। तुम्हारे मुक्के से दीवार भी गिर जाएगी।’’ तीसरे से कहा, ‘‘तुम्हारा सारा शरीर इस्पात का होगा। किसी भी शस्त्र का तुम पर कोई असर नहीं होगा।’’ चौथै से कहा, ‘‘तुम कुल्ली करके जिस दिशा में पानी डालोगे, वहाँ नदी बन जाएगी।’’ पाँचवें से कहा, ‘‘तुम जिस व्यक्ति का स्मरण करोगे, वह व्यक्ति कहाँ है, इसका तुम्हें पता चल जाएगा तथा वह ठिकाना तुम्हें दिखाई देगा।’’ सब भाइयों ने बूढे़ को प्रणाम किय। ‘‘यशस्वी भव!’’ आशीर्वाद देकर बूढ़ा चला गया।

छोटे ने आँख बंद कर ली और अपनी बहन का स्मरण किया। उसकी आँखों के सामने एक दृश्य आया—राजमहल की उत्तर दिशा में एक पहाड़ है। उसके चारों ओर खाई है। खाई में पानी है। पहाड़ पर एक महल है। महल के पीछे के एक अँधेरे कमरे में चित्रा को रखा गया है। वह रो रही है और अपने भाइयों को पुकार रही है। महल के चारों तरफ सिपाही पहरा दे रहे हैं। उनके हाथ में नंगी तलवारें हैं।

बडे़ भाई ने कहा, ‘‘आइए मेरे कंधे पर बैठ जाइए।’’ बडे़ भाई के एक-एक कंधे पर दो-दो भाई बैठे। बडे़ भाई ने हाथ फैलाए। वे उड़ने लगे। छोटा राह दिखाने लगा। वे महल के पीछे उतरे। दूसरे भाई ने अपने सख्त हाथों से मुक्के मार-मारकर दीवार गिराना शुरू किया। फिर वे उस कमरे में गए, जहाँ चित्रा को बंदी बनाकर रखा था। अपने भाइयों को देखकर चित्रा बहुत खुश हुई। उसी समय पहरेदार सिपाही तलवारें लेकर दौडे़। बाकी भाइयों को पीछे ढकेलकर तीन नंबर का भाई सामने आया। सिपाहियों ने तलवार से उस पर वार किए। चित्रा ने डर से आँखें बंद कर लीं। सिपाहियों की तलवारें उस पर वार कर रही थीं। लोहे पर पटके जाने जैसी खण-खण आवाज आ रही थी। उसने अकेले ही सब सिपाहियों को मार गिराया। खाई के दक्षिण में राजमहल था। रानी और राजकन्या की चित्रा पर नजर थी। चित्रा के भाई आए और उन्होंने मार-पीट शुरू की, यह देखकर रानी ने सेना की एक टुकड़ी को चित्रा के भाइयों को बंदी बनाने के लिए भेजा। सैनिकों ने खाई पर पुल बनाए। पुल पर से सेना पहाड़ पर जाने लगी। चौथे भाई ने वहाँ हौद से पानी लेकर कुल्ली की और वह पानी राजमहल के सामने डाला। पानी गिरते ही राजमहल से पानी उठने लगा। बडे़ भाई ने कहा, ‘‘चलो, जल्दी करो, सब लोग मेरे कंधे पर बैठ जाओ।’’ भाई उसके कंधे पर बैठे और चित्रा उसकी पीठ पर बैठी। बडे़ भाई ने ऊँची छलाँग लगाई। वह उड़ने लगा। ऊँचे आसमान में उड़ते हुए उसने देखा। पानी के सैलाब के साथ राजा, रानी, राजकन्या, सिपाही सब बह गए। महल के छत के ऊपर से पानी बहने लगा और पहाड़ डूब गया।

जहाँ बूढ़ा मिला था, वहाँ सब आ गए। बूढ़ा एक पेड़ के नीचे बैठा था। सब भाई-बहन ने उन्हें प्रणाम किया।

‘‘दादाजी, आपके आशीर्वाद से और आपकी दी हुई शक्तियों के सहारे हम कामयाब हुए। हमारा काम हो गया है। आप अपनी शक्ति वापस ले लीजिए।’’ दादाजी उनके सिर पर हाथ रखा और शक्ति वापस ले ली।

चित्रा ने कहा, ‘‘दादाजी, आप अकेले मत रहिए। हमारे साथ चलिए।’’

दादाजी ने कहा, ‘‘बेटी, तुम जैसे संकट से घिरे लोगों की मदद करने मुझे जाना ही होगा।’’ दादाजी चले गए। चित्रा और उसके भाई घर लौटे।

चित्रा की खूबसूरती के चर्चे विजय कुमार तक पहुँचे। उन्होंने चित्रा के लिए रिश्ता भेजा। विजय कुमार की शादी चित्रा से हुई। चित्रा के भाई अलग-अलग पद पर अधिकारी बनकर काम करने लगे। राज्य की रक्षा का काम ज्यादा सतर्कता से होने लगा!

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