खोंइछा में मॉरीशस

खोंइछा में मॉरीशस

दक्षिण भारतीय हिंदी लेखिका ललितांबा दीदी का फोन आया था। मैं विश्व हिंदी सम्मेलन में भाग लेने के लिए मॉरीशस जा रही हूँ। और भी कई लोग जा रहे हैं। आप चलें तो अच्छा लगेगा।

मैंने सकुचाते हुए पूछा था—दीदी, मार्ग व्यय, ठहराव इत्यादि?

एक अच्छी-खासी राशि का अनुमान था। मेरी आँखों के सामने संस्कार पब्लिक स्कूल, जाजपुर के बालक-बालिकाओं के चेहरे उभर आए थे—‘प्रशांत, तुम्हारी पोशाक गंदी क्यों है? कल दूसरी साफवाली पहनकर आना।’

‘बड़ी माँ, दूसरी कमीज नहीं है।’

‘और भूमि, यश, विक्रम, तुम तीनों के जूते कहाँ गए?’

‘जूते फट गए। माँ कहती है, अगली पगार मिलेगी तब...’

मेरे भीतर त्वरित निर्णय जगा था—इतने पैसों की व्यवस्था इन बच्चों के लिए कर पाऊँ तो...

मॉरीशस भ्रमण की बात पानी का बुद्बुद् बनकर विलीन हो गई थी, मेरा जाना संभव नहीं है।

लगभग एक महीने के बाद, भारत सरकार के विदेश मंत्रालय से पत्र प्राप्त हुआ था—आपको ११वें विश्व हिंदी सम्मेलन में विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लेना है। भारत भर के बीस हिंदी विद्वान् विश्व हिंदी सेवा सम्मान के लिए चयनित किए गए हैं, उनमें आपका नाम भी है। कुछ औपचारिकताएँ पूरी करनी होंगी।

देवालय में बैठी देवी माँ की प्रतिमा मंद स्मित थी—

यं यं चिन्तयति कामं, तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।

मेरी प्रपितामही के नैहर के कई मरद मानुस बलिया गाजीपुर से मॉरीशस ले जाए गए थे। उन लोगों के विषय में वे ढेर सारी बातें बताया करती थीं। मेरे मन में एक ललक बचपन से समाई हुई थी—

एक बार मॉरीशस जा पाती! अपने गिरमिटिया पुरखों के स्मृति चिह्नों को देख पाती, अग्रज अभिमन्यु अनत की प्राण-वेदना को अपने भीतर अनुभूत कर पाती।

१६ अगस्त, २०१८, एयर मॉरीशस की उड़ान जे.के. ७७४५ सभी प्रतिनिधियों के लिए सुनिश्चित थी। रात्रि एक बजे दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय विमानपत्तन पर सभी एकत्र होने लगे। मन को आर्द्र करनेवाला दुस्सह शोक संवाद मिला—भारतरत्न, हिंदी के अनन्य सेवी श्री अटल बिहारी वाजपेयी दिवंगत हो गए! इक्यावन कविताओं वाले उनके संकलन की समीक्षा मैंने लिखी थी। उस समीक्षा को पढ़कर उन्होंने मेरे पास पत्र लिखा था।

तय हुआ, उद्घाटन सत्र माननीय अटलजी के लिए श्रद्धांजलि का सत्र होगा।

इस ११वें विश्व हिंदी सम्मेलन का केंद्रीय विषय था—‘हिंदी विश्व और भारतीय संस्कृति।’

गोस्वामी तुलसीदास नगर का स्वामी विवेकानंद सभागार सुरुचिपूर्ण ढंग से सजा हुआ अतिथियों की अभ्यर्थना के लिए प्रस्तुत था। हिंदी माँ के साधकों का अनूठा सम्मिलन! भारतीय और मॉरीशस के महत्त्वपूर्ण संस्थानों द्वारा हिंदी के सांस्कृतिक आयाम से जुड़ी प्रदर्शनी की शृंखला का विशिष्ट महत्त्व था। हिंदी की आंतरिक समृद्धि का स्रोत भारतीय अध्यात्म और गरिमा बोध दुर्लभ ग्रंथों के रूप में वहाँ साकार था। भारत से राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, हिंदी अकादमी, प्रकाशन विभाग, केंद्रीय हिंदी संस्थान, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा, प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रकाशन मंत्रालय, डायमंड पॉकेट बुक्स, वैज्ञानिक तकनीकी शब्दावली आयोग, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, प्रभात प्रकाशन सहित अनेक संस्थानों के स्टॉल सजे थे। मॉरीशस से कला संस्कृति मंत्रालय, विश्व हिंदी सचिवालय, महात्मा गांधी संस्थान, हिंदी प्रचारिणी सभा, रामायण सेंटर सहित अनेक साहित्यिक, सामाजिक संस्थानों के क्रियाकलापों का एकत्र प्रमाण इस मेले में विद्यमान था। किसे देखूँ, किस-किस को गहूँ वाली मनःस्थिति थी।

मॉरीशस के सर शिवसागर रामगुलाम विमानपत्तन पर विश्व हिंदी सम्मेलन का विशाल विज्ञापन पट, स्थान-स्थान पर सूचना एवं सहयोग केंद्र, वैमानन अधिकारियों और व्योम बालाओं का भावभीना आतिथ्य, बड़ों के लिए विनम्रता भरा सम्मान भाव! हमारे भोजपुरिया गाँवों की संस्कृति यहाँ तरोताजा दिखाई दी।

कुल चार दिनों का प्रवास और देखने, समझने, अनुभव करने के लिए कितना कुछ! पहला दिन, गंगा तालाब का सुरम्य दृश्य और गंगा मइया की महाआरती में सम्मिलित होने का सुयोग, ऋषिकेश से पधारे पुरोहितजी का दृप्त मंत्रोच्चार। मॉरीशस का गंगा तालाब घाट काशी के मेरे प्रिय अस्सी घाट का स्मरण दिला रहा था। मेरी पितामही गंगा मइया की स्तुति गाती भाव विभोर हो उठती थीं। उनके सुरीले कंठ से कढ़े भोजपुरी सोहर के बोल मेरी चेतना में गूँजने लगे थे—

गंगाजी के ऊँच अररिया, तिरियवा एक तप करे हो

ए गंगा मइया अपनी लहर हमें देइत त हम डूबि मरितीं हो।

निःसंतान स्त्री की कोख भरनेवाली गंगा मइया के प्रति अटूट श्रद्धा भाव मॉरीशस के लोगों में है और इस गंगा तालाब का जल सर्वतोभावेन प्रदूषण रहित है।

हिंदी की संवेदनशील लेखिका संप्रति गोवा की राज्यपाल माननीया मृदुला सिन्हा, पाटशाणीजी सहित अनेक गण्यमान्य हिंदीसेवी यजमान की भूमिका में थे। ११वें विश्व हिंदी सम्मेलन का शुभ प्रतीक चिह्न बनानेवाला इंदौर का युवा रुचित विस्मय सुख से पूरित था। मैंने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा था, ‘देख रहे हो, यही तो हिंदी माँ का वैभव है।’ इस गंगा तालाब पर शताब्दियों से संरक्षित, संवर्धित भारतीय संस्कृति की जगमगाहट है। याद आईं महीयसी महादेवीऌ—

यह मंदिर का दीप, इसे नीरव जलने दो।

उद्घाटन वाले दिन हिंदी की सुपरिचित भारतीय लेखिका कुमुद शर्मा और मॉरीशस की हिंदी रचनाकार ने शालीनतापूर्वक मंच सँभाला। विश्व हिंदी सम्मेलन के दो शुभ प्रतीक चिह्न, भारत का मयूर और मॉरीशस का डोडो दोनों मिले, एक जोड़ एक ग्यारह हो गए। इतनी हृदयग्राही कल्पना किसी भारतीय युवा शिल्पी की ही हो सकती थी।

भारतीय नारी संस्कृति की गरिमा से भरी-पूरी श्रीमती सुषमा स्वराज मंचासीन गण्यमान्य अतिथियों के बीच बैठी अपनी शालीनता, अपने सौहार्द का परिचय दे रही थीं। मॉरीशस के प्रधानमंत्री श्री प्रवीण जगन्नाथ, मानव संसाधन मंत्री श्रीमती लीला देवी दूकन लछुमन सहित महाममि केशरी नाथ त्रिपाठी, श्रीमती मृदुला सिन्हा, श्री एम.जे. अकबर जनरल वी.के. सिंह, श्री किरण जिजिजू आदि ने उद्घाटन सत्र का भार सँभाला। अब बारी थी हिंदी माँ के लाडले बेटे अटलजी के भाव-विह्वल स्मृति तर्पण की! पुण्यात्मा की चिर शांति के लिए सजल मौन! और स्वदेशी, विदेशी विद्वानों द्वारा हिंदी की अमर विभूति अटलजी का पुण्य स्मरण। यादों के कितने ही झरोखे खुलते चले गए, समय कैसे बीता, पता ही नहीं चला। स्क्रीन पर हँसते, मुसकराते काव्यपुरुष की विविध भाव भंगिमाएँ! विश्व हिंदी परिवार द्वारा दी गई ऐसी भावांजलि। नरेंद्र्र कोहली, सरिता बुधू, कमल किशोर गोयनका, चित्रा मुद्गल, चित्रा देसाई, ओम निश्चल, सच्चिदानंद जोशी, अनंत विजय, प्रभात कुमार, दामोदर खड़से, सी. भास्कर राव, प्रेम श्ांकर त्रिपाठी, सुशीला गुप्ता सबका सान्निध्य, सबकी भाव साम्यता।

विविध सत्रों में लोकसंस्कृति, प्रौद्योगिकी, हिंदी शिक्षण, सांस्कृतिक चिंतन, हिंदी चलचित्र जगत्, प्रवासी साहित्य, बाल साहित्य जैसे विषयों पर व्यापक अनुशीलन का प्रावधान था। हिंदीप्रेमी अपनी अभिरुचि के अनुरूप विषयों का चयन करते समानांतर सत्रों में भाग लेते देखे जा सकते थे। भोजन कक्ष में आरा, पटना, बनारस, कोलकाता सहित देश के कोने-कोने से पहुँचे बंधु-बांधव मिले। भारतीयता ही वहाँ सबकी एकमात्र पहचान थी।

समापन-सत्र के पश्चात् प्रमुख स्थलों को देखने के वैकल्पिक प्रस्ताव सामने आए। विश्व हिंदी सचिवालय, महात्मा गांधी संस्थान, आप्रवासी घाट! मेरा पूरा वजूद आप्रवासी घाट की माटी का स्पर्श पाने के लिए अधीर था। अपना देस मुलुक, गाँव घर छोड़कर रोजी-रोटी की तलाश में सात समुंदर पार ले जाए गए हमारे गिरमिटिया पुरखों की करुणासिक्त स्मृति को पोर-पोर में धारण करता आप्रवासी घाट। आठ रुपल्ली पगार का प्रलोभन देकर जुल्मी फिरंगी पानी के जहाज में भर-भरकर भोजपुर जनपद सहित भारत के अनेक भागों से ग्राम पुरुषों को इस अज्ञात, अनाम टापू पर ले आए। कागज पर अँगूठे का निशान और सैकड़ों वर्षों की गुलामी का बदहाल जीवन जीने के लिए विवश बँधुआ मजदूर का कलंक अपने माथे पर ढोते सीधे-सादे हमारे पुरखे! हिंदुस्तान जहाज के निचले हिस्से में सिमटे, अमानवीय यंत्रणा झेलते उन निश्छल प्राणों का हाहाकार सुनने वाला कोई नहीं था। सुदूर निर्जन टापू के पाषाण-खंडों से जूझते, फिरंगियों का कषाघात, भूख-प्यास से अधिक अपमान की दुस्सह पीड़ा! रामचरितमानस की एक अर्धाली है—

सबतें सेवक धरम कठोरा...

यह कैसी सेवकाई? इतना भयंकर जुल्म! अपने खून-पसीने से सींचा हमारे पुरखों ने इस माटी को। मॉरीशस के कथासम्राट् अभिमन्यु अनत की वेदना हिंद महासागर की लहरों पर तरंगायित, कितनी अँधेरी रातें पार करती, उन पुरखे-पुरनियों की यंत्रणा सहेजती भींगी आँखों से अतीत को निष्पलक निहार रही है—

पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।

रामायण की पोथी, तुलसी का बिरवा,  सत्तू पिसान की गठरी  संग लिये आए थे हमारे पूर्वज! गाँव-जवार की याद रेत बनकर आँखों में उनींदापन भर जाती। पहाड़ों की तलहटी में उग आई  झोंपडि़यों में ढोल, झाल, करताल बजाते तुलसी की चौपाइयों में अपने गहन अवसाद का अनोखा उपचार ढूँढ़ते अदम्य जिजीविषा के सूत्र तलाशते हमारे परिजन, पुरजन।

आप्रवासी घाट से विदा की शाम मॉरीशस की हमारी अंतिम शाम थी। संग्रहालय के मुख्य द्वार पर एक वयोवृद्ध सज्जन मिले, खाँटी भोजपुरी में अपना परिचय देते हुए मुझसे पूछ बैठे—

अपने कहँवा से आइल बानीं?

मैंने बताया, गाजीपुर मेरे पुरखों का गाँव है। बक्सर मेरी जन्मभूमि है, राँची (झारखंड) से आई हूँ।

उनकी भाव विह्वलता देखने लायक थी।

बक्सर...? हमार गउँवा तिवारीपुर रहे।

मैं विस्मय जडि़त, यही गाँव तो मेरा भी है। ग्राम-तिवारीपुर, डाक-दहिवर, जिला-बक्सर।

ममता के ताग पाट बटोरती वे पनियाई आँखें।

ए बहिनी, हमरा आपन दादा-परदादा के गाँव देखे के बड़ मन बा!

ऐसा लगा, श्रावन पूर्णिमा के ठीक पहले कोई बिछुड़ा हुआ बड़ा भाई मिल गया हो और इस मॉरीशस नइहर से विदा लेते वक्त आँचल में अक्षत, दूब, हल्दी की गाँठ नहीं, न जाने कितनी अनमोल स्मृतियाँ अपने साथ सहेजकर भारत वापस जा रही हूँ।

आप्रवासी घाट आँखों से ओझल हो जाए, इसके पहले कहना चाहती हूँ, ‘हमारी स्वर्गोपम भारतीय संस्कृति अपनी पूरी आन-बान-शान के साथ इस नन्हे द्वीप में पुष्पित, पल्लवित है। मानसमय, तुलसीमय इस लघु भारत की माटी का श्रद्धानत अभिवादन!

नइहर का खोंइछा

कल ही भारत से आई हूँ

मैं गिरमिटिया की बेटी हूँ

आना तो था बरसों पहले

पर बहुत देर से आई हूँ।

यह माटी मेरा नइहर है

भावज, भाई ये मेरे हैं

कितने आँसू, कितनी करुणा

कितनी-कितनी फरियादें हैं।

घर, आँगन, खेत बधार छोड़

श्रीजी रोटी की आस लिये

रामायन की पोथी तुलसी का

बिरवा अपने साथ लिये।

सत्तू पिसान की गठरी थी

गिलट के थे थोड़े गहने

भोले-भाले वे ग्रामपुरुष

उस दाँवपेंच को क्या जानें?

आरा, छपरा, बक्सर, बलिया,

निज देस छोड़ परदेस चले,

थी आठ रुपल्ली की पगार

बेबस थे वे स्वीकार चले।

पहिला जहाज सागर तट पर

बँधुआ श्रमिकों की थी टोली

सामने अगम पर्वत श्रेणी

मन में महमह चइता, होली।

पीछे छूटे परिजन, पुरजन

थीं अँखियाँ नम, जिनगी भारी

हँसिया, कुदाल, गैंता, खुरपी

पाथर पाथर क्यारी क्यारी।

उनको तो फसल उगानी थी

गन्ना, गेहूँ, मड़ुआ, सरसों

दिन कटा, अँधेरी रात कटी

पल-छिन गिनते, बीते बरसों।

कागद पर छाप अँगूठे की

अनुबंध लिखा था, कौन पढ़े

काले मन के वे गोरे थे

पुरखे सहमे, सिसके, निहुरे

थे राम रमइया हियरे में

गीता, पुराण ने दुःख बाँटा

चौपाल सजी सबके दुअरा

करते हर व्यथा-कथा साझा।

मैं हूँ गिरमिटिया का बेटा

अभिमन्यु अनत के नयन सजल

वह लाल पसीना पुरखों का

था स्वाभिमान केवल संबल।

फिर धीरे-धीरे दिन बहुरे

बंधक साँसें आजाद हुईं,

सोहर गाती, माटी हुलसी

तुलसी की चौपाई बिहँसी।

संस्कृति का नया सूर्य दमका

सागर तट पर उगती लाली,

गन्ने के रस में सराबोर

पत्थर पर उपजी हरियाली।

यह नव विहान मॉरीशस का

घर घर में शोभित देवालय,

गंगा तालाब, पानी निर्मल

गातीं बहिनें कजरी, झूमर,

संरक्षित, पुष्पित, लघुभारत

सबके सपनों का मॉरीशस!

छलके थे आँखों में आँसू

ए बहिनी, मन में आस यही

कब देखूँ अपनी देस भूमि

पुरखों की प्यारी जन्म भूमि

पावन माटी का दरस परस

पाना है मुझको एक बार।

मोती जैसे वे नयन बिंदु

लाई हूँ आँचल में सँभाल

नइहर का ऐसा शुभ खोंइछा

हर बिटिया को कर दे निहाल।

मोराबादी,
राँची-८३४००८
दूरभाष : ९४३११७४३१९
—ऋता शुक्ल

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