मिर्जा की दृष्टि

जब मैं ग्रांड कायरा में था, तब वहाँ मैंने कई पूर्वदेशीय हस्तलिपियाँ इकट्ठी की थीं, जो अब भी मेरे पास हैं। उनमें से मुझे एक मिली, जिसका शीर्षक था—‘मिर्जा की दृष्टि।’ उसको मैंने प्रसन्नता से पढ़ा। मैं उसे पाठकों को देना चाहता हूँ। मेरे पास उनके मनोविनोद के लिए और कुछ नहीं है। मैं पहली दृष्टि से आरंभ करूँगा, जिसका अक्षरशः अनुवाद मैंने किया है। वो निम्नलिखित है—

अपने पूर्वजों के रीति-रिवाज के अनुसार, चाँद की पंचमीवाले दिन मैंने सदा अपने आपको पवित्र रखा। नहा-धोकर और प्रातःकालीन नमाज पढ़कर मैं बगदाद की ऊँची पहाडि़यों पर चढ़ जाता था, ताकि बाकी का दिन ध्यान और प्रार्थना में व्यतीत कर सकूँ। जब मैं पहाड़ी के शिखर पर हवाखोरी कर रहा था, मैं सहसा मानव जीवन के झूठे अहंकार की गहरी सोच में डूब गया और एक विचार से दूसरे पर जाते हुए मैंने कहा, ‘‘निश्चय ही मनुष्य एक छाया है और जीवन एक स्वप्न।’’ जब मैं ऐसा विचार कर रहा था तो मैंने अपनी नजर चट्टान की चोटी पर डाली, जो मुझसे दूर नहीं थी। वहाँ मैंने एक चरवाहे को हाथ में छोटा सा साज थामे देखा। ज्यों ही मैंने उसे देखा, उसने उसे होंठों से लगाया और बजाना शुरू कर दिया। उसकी ध्वनि अत्यंत मधुर थी और भिन्न-भिन्न स्वरों से बनी थी, कुल मिलाकर वह ऐसी थी, जिसको मैंने कभी नहीं सुना था। उसने मेरे मन में वे दिव्य स्वर भर दिए, जो भले व्यक्तियों की दिवंगत आत्माओं के लिए बजाए जाते हैं। वह पहले-पहल स्वर्ग में पहुँचते हैं, ताकि वे अपने पुराने दुःखों के प्रभाव को नष्ट कर सकें और अपने आपको उस स्थान के आनंद के लिए योग्य बना सकें। मेरा हृदय गुप्त आनंद में पिघल गया।

मुझे बताया गया कि मेरे सामनेवाली चट्टान किसी सुदैव का आश्रय स्थान था और कई लोगों का संगीत से मनोविनोद किया जा चुका था—जो इसके पास से गुजरे थे; परंतु यह कभी नहीं सुना था कि संगीतकार कभी दिखाई दिया हो। जब उसके बजाए हुए स्वर मेरे विचारों को उभार चुके और एक हैरान आदमी की तरह मैंने उसकी ओर देखा, तो उसने मुझे पुकारा और अपना हाथ हिलाकर उस जगह पर आने को कहा, जहाँ वह बैठा हुआ था। मैं आदरपूर्वक उसके निकट गया, जो ऐसे विशिष्ट स्वभाववाले व्यक्ति के योग्य था; और क्योंकि उसके लुभावने स्वरों को सुनकर मेरा हृदय मोहित हो गया था। मैं उसके पैरों पर गिर पड़ा और रोने लगा। दया और सुशीलता की दृष्टि के साथ सुदैव मुझपर हँसा, जिसने उसे मेरी कल्पना के साथ परिचित करवा दिया और मेरी सारी शंका तथा भय, जिनके साथ मैं उसके निकट गया था, दूर हो गए। उसने मुझे भूमि से उठाया और मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मिर्जा, मैंने तुम्हें तुम्हारे स्वगत भाषणों में सुना है; मेरे पीछे आओ।’’

फिर वह मुझे चट्टान की सबसे ऊँचे स्थान पर ले गया और मुझे उसपर बैठाते हुए बोला, ‘‘अपनी आँखें पूरब की ओर करो और मुझे बताओ कि तुम क्या देखते हो?’’

‘‘मैं एक बड़ी घाटी देखता हूँ।’’ मैंने उत्तर दिया, ‘‘और पानी का विचित्र ज्वार-भाटा उसमें उठ-गिर रहा है।’’

‘‘जो घाटी तुम देख रहे हो, वह दुःख की घाटी है, ’’ उसने कहा, ‘‘और पानी का ज्वार-भाटा जो देख रहे हो, यह अनंत काल के ज्वार-भाटे का भाग है।’’

‘‘इसका क्या कारण है,’’ मैंने पूछा, ‘‘कि ज्वार-भाटा, जो मैं देख रहा हूँ, वह एक सिरे पर गहरी धुंध से उठ रहा है और दूसरे सिरे पर गहरी धुंध में लुप्त हो जाता है?’’

‘‘जो तुम देखते हो,’’ उसने कहा, ‘‘वह अनंतकाल का भाग है, जिसको समय कहते हैं और संसार के आदि-अंत तक इसको सूर्य से नापा जाता है। अब परीक्षण करो, यह सागर, जो दोनों सिरों पर अँधेरे से घिरा है, और मुझे बताओ कि तुम इसमें क्या पाते हो?’’

‘‘मैं एक सेतु देखता हूँ,’’ मैंने कहा, ‘‘जो ज्वार-भाटे के बीच में खड़ा है।’’

‘‘वह सेतु जो तुम देखते हो,’’ उसने कहा, ‘‘यह मानव जीवन है, इसपर ध्यान से विचार करो।’’ इसके और ध्यानपूर्वक सर्वेक्षण के बाद मैंने मालूम किया कि इसमें सत्तर संपूर्ण मेहराबें थीं और कई टूटी हुई भी थीं, जिनको यदि संपूर्ण मेहराबों में जोड़ दिया जाए तो इनकी संख्या सौ बनती थी। जब मैं मेहराबों को गिन रहा था, सुदैव ने मुझे बताया,‘‘पहले इस सेतु की एक हजार मेहराबें थीं, परंतु एक भयानक बाढ़ बाकी मेहराबों को बहाकर ले गई और सेतु को घातक स्थिति में छोड़ गई, जैसा कि मैं देख रहा था।’’

‘‘आगे बताओ,’’ उसने कहा, ‘‘तुमने सेतु के ऊपर क्या देखा है?’’

‘‘मैंने लोगों की भीड़ को उसके ऊपर जाते देखा है,’’ मैंने उत्तर दिया, ‘‘और एक काले बादल को इसके दोनों छोरों पर मँडराते हुए देखा है।’’ मैंने देखा कि कई यात्री सेतु से गिरकर ज्वार-भाटे में उसके नीचे से बह गए। आगे परीक्षण के बाद मैंने देखा कि सेतु में छिपे अनंत कूट द्वार थे, जिनपर ज्यों ही यात्री पैर रखते तो उसके बीच में से ज्वार-भाटे में गिर जाते थे और तुरंत लुप्त हो जाते थे। ये गुप्त संकट छिद्र अस्पष्ट रूप से सेतु के प्रवेश द्वार पर बनाए गए थे, ताकि लोगों की भीड़ बादल से जल्दी रास्ता न बना सके, परंतु उनमें से ज्यादातर नीचे गिर जाते थे। वे मध्य में छिछले होते जाते थे, परंतु वे बढ़ते जाते थे और संपूर्ण मेहराबों की सीमा पर जमा हो जाते थे।

कुछ व्यक्ति वास्तव में ऐसे थे, परंतु उनकी संख्या न्यून थी, जो टूटी हुई मेहराबों पर लंगड़ाकर चलना जारी रखते थे, परंतु थककर अथवा लंबी यात्रा के कारण टूटकर वे एक-दूसरे के बाद गिर जाते थे।

मैंने कुछ समय इस अद्भुत ढाँचे के बारे में और उन वस्तुओं के बारे में, जो इसने प्रस्तुत कीं, सोचकर व्यतीत किया। विनोद और प्रसन्नता के बीच कई आकस्मिक शिथिलताओं को और अपने बचाव के लिए उनका अपने पास खड़ी हर वस्तु को पकड़ना देखकर मेरा दिल उदासी से भर गया। कुछ ध्यानमग्न होकर आकाश की ओर देख रहे थे, उन्होंने विचार के बीच ठोकर खाई और दृष्टि से ओझल हो गए। झुंड-के-झुंड उन बुलबुलों की खोज में व्यस्त थे, जो उनकी आँखों में चमकते थे और उनके सामने नाचते थे; परंतु जब उन्होंने सोचा कि वे प्रायः उनकी पकड़ से बाहर थे तो उनका नाचना विफल हो गया और वे नीचे गिरकर डूब गए। चीजों की इस गड़बड़ी में मैंने कुछ व्यक्तियों के हाथों में खड्गों को और कुछ को गोलियों के बक्सों को थामे देखा। कई आदमी कूट द्वारों पर धकेलते हुए सेतु पर इधर-उधर भाग रहे थे; कूट द्वार उनके रास्ते में पड़ते प्रतीत नहीं होते थे और वे उनसे बच सकते थे, यदि उन्हें धकेला न जाता।

मुझे इस उदासी के आलोक में मग्न देखकर सुदैव ने मुझे बताया कि इसपर मैं काफी चिंतन कर चुका था। ‘‘सेतु की ओर से अपनी आँखें हटा लो,’’ उसने कहा, ‘‘और मुझे बताओ कि तुम अब भी कोई चीज देखते हो, जिसके बारे में विचार करते हो?’’ ऊपर देखते हुए मैंने पूछा, ‘‘इसका क्या अर्थ है? वे पक्षियों की महान् उड़ानें हैं, जो सेतु के ऊपर सदा उड़ते रहते हैं और समय-समय पर उसपर आकर बैठ जाते हैं। मैं गिद्धों, काल्पनिक दैत्य-पक्षियों, भूखे कौओं, समुद्री चिडि़यों और दूसरे पंखोंवाले पक्षियों में छोटे पंखोंवाले बच्चों को देखता हूँ, जो बड़ी संख्या में आकर मध्यवर्ती मेहराब पर अपने डंडों पर बैठते हैं।’’

‘‘वह,’’ सुदैव ने कहा, ‘‘ईर्ष्या, लोभ, मूढ़ विश्वास, निराशा और प्रेम हैं, जो मानव जीवन को चिंता और लालसा की तरह कष्ट देते हैं।’’

यहाँ मैंने गहरी ठंडी आह भरी—‘‘काश!’’ मैंने कहा, ‘‘मनुष्य को व्यर्थ ही बनाया होता! उसे दुःख और विनाश कैसे दिए गए! जीवन भर यातना और मृत्यु द्वारा निगलना।’’

मेरे प्रति दया से प्रेरित होकर सुदैव ने मुझे सर्वेक्षण को त्यागने के लिए व्यग्रता से आदेश दिया। ‘‘अब अधिक मत देखो,’’ उसने कहा, ‘‘आदमी के अनंत की ओर जाने में उसके अस्तित्व की पहली स्थिति को मत देखो, परंतु उस घनी धुंध को देखो, जिसके कारण ज्वार-भाटे में मरनेवालों की कई पीढि़याँ पड़ी हैं, जो उसमें गिरती रही हैं।’’

मैंने अपनी दृष्टि को मोड़ा, जैसा आदेश दिया गया था और (अच्छे सुदैव ने अलौकिक शिक्त से इसको पुष्ट कर दिया था अथवा नहीं या फिर धुंध के भाग को हटा दिया, जो पहले आँखों के छेदन के लिए बहुत घनी थी) मैंने दूर सिरे पर उस घाटी को देखा, जो बड़े सागर तक फैली हुई थी, जिसके बीचोबीच वज्रमय चट्टान स्थित थी और उसको दो बराबर भागों में बाँटती थी। बादल अब भी उसके आधे से ज्यादा हिस्से पर मँडरा रहे थे। फलस्वरूप मैं उसमें कुछ भी देख नहीं सकता था, परंतु दूसरे हिस्से में एक बड़ा सागर मेरे सामने प्रकट हुआ, जिसमें असंख्य टापू थे, जो फलों एवं फूलों से लदे थे और छोटे-छोटे चमकते समुद्रों से जुड़े हुए थे। मैं लोगों को शानदार कपड़े पहने, अपने सिरों पर फूलमालाएँ बाँधे वृक्षों से गुजरते हुए, फौआरों के पास लेटे हुए या फूलों की सेजों पर आराम करते हुए देख सकता था; पक्षियों के चहचहाने की व्याकुलता को सुन सकता था और देख सकता था जलप्रपातों को तथा संगीत के साजों को! इस दृश्य को देखकर मेरा हृदय प्रफुल्लित हो गया। मैंने गरुड़ के पंखों की याचना की, ताकि उड़कर उन सुंदर स्थानों पर जा सकूँ; पर सुदैव ने मुझे बताया कि वहाँ जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है, सिवा मृत्यु के द्वार के, जिसको मैं हर क्षण सेतु पर खुलते देखता था। ‘‘वे टापू,’’ उसने कहा, ‘‘जो तुम्हारे सामने ताजा और हरे नजर आते हैं तथा जिनसे सारा सागर चिह्नित प्रतीत होता है, और जहाँ तक तुम उन्हें देख सकते हो, उनकी संख्या सागरतट पर पड़ी रेत के कणों से भी अधिक है। जिन टापुओं को तुम देख रहे हो, उनके पीछे जहाँ तुम्हारी दृष्टि नहीं जाती अथवा जहाँ की कल्पना भी तुम नहीं कर सकते, हजारों टापू हैं। ये मरे हुए अच्छे आदमियों के भवन हैं, जो प्रवीणता प्राप्त उनके गुणों की दशा और श्रेणी के अनुसार उनको इन कई टापुओं में बाँटे गए हैं—टापू भिन्न-भिन्न प्रकार की खुशियों और आनंद से भरपूर हैं, जो उन लोगों की अन्यान्य रुचियों और प्रवीणता के योग्य हैं, जो यहाँ बसाए गए हैं। वहाँ रहनेवालों के अनुसार प्रत्येक टापू स्वर्ग है। ओ मिर्जा! क्या यह निवासस्थान स्पर्धा के योग्य नहीं है? क्या यह इनाम प्राप्त करने के लिए अवसरों को जुटाना, तुम्हें जीवन में दुःखदायी प्रतीत होता है? क्या मृत्यु से डरना होगा, जो तुम्हें ऐसे प्रसन्न अस्तित्व में ले जाती है? मत सोचो कि आदमी को व्यर्थ बनाया गया, जिसके लिए ऐसा अनंत सुरक्षित है।’’

मैंने अवर्णनीय प्रसन्नता के साथ उन टापुओं को घूरा। अंत में मैंने कहा, ‘‘मैं प्रार्थना करता हूँ कि मुझे वे भेद बताओ जो उन काले बादलों, में छिपे हुए हैं, जिन्होंने वज्रमयी चट्टान के दूसरी ओर सागर को ढाँप रखा है।’’

सुदैव के उत्तर न देने पर मैंने उससे पुनः पूछा, परंतु मैंने देखा कि वह मुझे छोड़कर जा चुका था। मैं फिर उस दृष्टि की ओर मुड़ा, जिसके विषय में मैं सोचता रहा था, परंतु गिर-उठ रहे ज्वार-भाटे, मेहराबोंवाले सेतु और रमणीक टापुओं के अतिरिक्त मैंने कुछ नहीं देखा—हाँ, बगदाद की खोखली घाटी मेरे सामने थी, जिसके एक तरफ बैल, बकरियाँ और ऊँट चर रहे थे।

जोसेफ एडीसन

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