RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
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मकान के किराए का सवालग्लोबल गाँव मेरे गाँव में अब कोई कुआँ नहीं रहा सभी कुएँ भर दिए गए हैं पूछने पर पता चला कि जिन्हें पीने का पानी चाहिए था, कुएँ उन तक चलकर नहीं जाते थे और जिन्हें मौत चाहिए वे स्वयं चलकर कुएँ तक आ जाते थे इसलिए सभी कुएँ भर दिए गए हैं। पता यह भी चला है कि पीने को पानी और जीने के लिए मौत की सुविधा अब घर में कर दी गई है मेरा गाँव अब कितना ग्लोबल हो गया है! आलोचक कविता की तारीफ के लिए आलोचक बार-बार हिम्मत जुटाए नए उदाहरण दें अन्य भाषाओं के कवियों संग पंजाबी कविता को मिलाए, उसकी तुलना करे, कितना जोर लगाए कवि को कुछ समझ आए, कुछ न आए लेकिन उसके कविता के पाठ को फूल-पत्ते लगाना कवि को अच्छा लगे, मानो कोई कारीगर शादी में डालनेवाले, पहननेवाले जेवर पर झाल चढ़ाए उसे चमकाए जिसे देखते ही होनेवाली दुलहन शर्म करे, मुसकाए। कवि को आलोचक, कविता का निकटवर्ती संबंधी नजर आए मामा, चाचा, बुआ अथवा फूफड़ कहीं कविता पर वह कब्जा ही न जमा लें, कवि को बस यही भय खाए। कबाड़खाना प्रतिदिन घर में वह किसी वस्तु को खोजता है घर की वस्तुओं में से जो अपनी जगह टिकी हैं अथवा खिसक गई हैं अपनी जगह से कमीज की तह में से जेब की रेजगारी पैसे वही चीज नहीं मिलती, जिसकी उसे तलाश थी घर से बाहर आते ही कहता—‘कबाड़खाना’ मित्र तक जाता है, गुमशुदा वस्तु की बात करता मित्र के यहाँ नहीं मिलती, उसमें से मित्र दिखना हट जाता बाहर आकर कहता—‘कबाड़खाना’ अपने पुराने दफ्तर जाता, फिरकी से घूमते हैं कर्मचारी देखता है नहीं मिलती वस्तु बाहर आते चिल्लाता है—‘कबाड़खाना’ फिर खरीदता दारू की शीशी एक ही साँस में पीता शीशी बनी रहती खामोश और गुमशुदा वस्तु नदारद फेंकता है शीशी, सबका सुनने की मुद्रा में चीखता—‘कबाड़खाना’ घर आते ही याद आते बच्चे और पत्नी न जाने क्यों पहले स्मरण नहीं आए सब तभी आता है उसे भोजन का खयाल मकान के किराए का सवाल मालिक-मकान की बदतमीजी का हाल इन्हीं सवालों के घेरे में खाट पर लुढ़क जाता वह बेहाल पत्नी चिल्लाती कहती है—‘कबाड़खाना।’ —गुरदेव चौहान |
अप्रैल 2024
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