प्रतिभा

आर्टिस्ट युगोर सेविच, जो एक अफसर की बेवा के मकान में अपनी गरमी की छुट्टियाँ बिता रहा था, सुबह के अवसाद से ग्रस्त अपने बिस्तर पर बैठा हुआ था। ऐसा लग रहा था कि बाहर शरद ऋतु की शुरुआत हो चुकी है। गहरे, आवारा बादलों की मोटी परतों ने आसमान को ढक रखा था; हवा ठंडी और तेज थी और दरख्त शोकाकुल, विलाप करते एक ही दिशा में झुके हुए थे। वह पीली पत्तियों को हवा में और जमीन पर चारों ओर उड़ते हुए देख रहा था। गरमी के मौसम को अलविदा! एक कलाकार की नजर से देखें तो कुदरत की यह गहरी उदासी अपने तरीके से बहुत ही खूबसूरत और काव्यमय है, लेकिन युगोर सेविच इस खूबसूरती को देखने के मूड में कतई नहीं था। उबाऊपन उसे जकडे़ हुए था। उसे तसल्ली केवल इस बात की थी कि कल सुबह वह वहाँ नहीं होगा। पलंग, कुरसी, मेज, फर्श, सभी पर तकिये, मुडे़-तुडे़ बिस्तर, डिब्बे इधर-उधर बिखरे हुए थे। फर्श पर झाड़ू नहीं लगी थी, खिड़कियों से सूती परदे उतार लिये गए थे। कल वह शहर जानेवाला था।

उसकी बेवा मालकिन बाहर थी। कल शहर जाने के लिए घोड़ा-गाड़ी किराए पर तय करने लिए कहीं गई थी। अपनी सख्त मिजाज माँ की गैर-मौजूदगी का फायदा उठाते हुए बीस साल की बेटी कात्या काफी समय से उस युवा के कमरे में बैठी हुई थी। कल पेंटर वहाँ से जानेवाला था और वह उसे बहुत कुछ कहना चाहती थी। वह बातें करती रही, मगर उसे लगा कि अब तक उसे जो कहना था, उसका दसवाँ हिस्सा भी नहीं कह पाई है। छलछलाई आँखों से उसने उसके झबरीले सिर को गौर से, उत्साह और विषाद से उसे देखा। युगोर सेविच बेहद झबरीला था, वह जंगली जानवर की तरह लगता था। उसके बाल कंधों तक लटक रहे थे, दाढ़ी का फैलाव गरदन, उसके नथुनों, कानों तक था; उसकी आँखें मोटी लटकती हुई भौंहों में छिप सी गई थीं। वह सब इतना घना और उलझा हुआ था कि अगर कोई मक्खी या झींगुर उसके बालों में फँस जाए तो उसे उस जादुई-झाड़ी से बाहर निकलने का रास्ता ही न मिले। जम्हाई लेते हुए युगोर ने कात्या की बातों को सुना। वह थका हुआ था। जब कात्या बच्चों की तरह रोने लगी, उसने अपनी लटकती हुई भौंहों को सिकोड़ते हुए तीखी नजरों से उसकी तरफ देखा और भारी-गहरी आवाज में कहा—

‘‘मैं शादी नहीं कर सकता।’’

‘‘क्यों नहीं?’’ कात्या ने धीमे से पूछा।

‘‘क्योंकि एक पेंटर के लिए, और वास्तव में जिस व्यक्ति का जीवन कला को समर्पित है, उसके लिए शादी का प्रश्न ही नहीं उठता है। एक आर्टिस्ट को आजाद रहना चाहिए।’’

‘‘परंतु मैं किस तरह तुम्हें बाधा पहुँचाऊँगी, युगोर सेविच?’’

‘‘मैं अपनी बात नहीं कर रहा हूँ। मैं एक सामान्य बात कह रहा हूँ, प्रसिद्ध लेखकों और कलाकारों ने कभी शादी नहीं की।’’

‘‘और तुम भी प्रसिद्ध हो जाओगे—इसे मैं अच्छी तरह से समझ रही हूँ। लेकिन तुम खुद को मेरी जगह रखकर देखो, मैं अपनी माँ से डरती हूँ। वह सख्त मिजाज और चिड़चिड़ी है। जब उसे मालूम पडे़गा कि तुम मुझसे शादी नहीं कर रहे हो कि तुम्हारे और मेरे बीच कुछ नहीं है, तो मेरी खैर नहीं! ओह, मैं कितनी असहाय हूँ! और तुमने अब तक कमरे का किराया भी नहीं दिया है।’’

‘‘लानत है उसे! मैं किराया दे दूँगा।’’

युगोर सेविच उठा और इधर-उधर घूमने लगा।

‘‘मुझे विदेश जाना ही होगा।’’ उसने कहा और आर्टिस्ट ने उसे बताया कि विदेश जाना बहुत ही आसान है। आर्टिस्ट को कुछ नहीं करना है, बस एक पेंटिंग बनाकर उसे बेचनी भर है।

‘‘बेशक!’’ कात्या ने हामी भरी। ‘‘इन गरमियों में तुमने कोई पेंटिंग क्यों नहीं बनाई?’’

‘‘तुम समझती हो कि मैं इस खलिहान जैसी जगह पर काम कर सकता हूँ?’’ आर्टिस्ट ने अनमनेपन से कहा, ‘‘और यहाँ मुझे मॉडल कहाँ मिलेगी?’’

नीचे किसी ने जोर से दरवाजा खटखटाया। कात्या जो मिनट-दर-मिनट अपनी माँ के वापस आने का इंतजार कर रही थी, फुरती से कूदी और चली गई। आर्टिस्ट अकेला रह गया। काफी समय तक वह कुरसियों और बेतरतीब फैले सामान के बीच रास्ता बनाता इधर-उधर चहल-कदमी करता रहा। उसने बेवा को बरतनों को खड़खड़ाते और किसानों को जोर-जोर से गाली देते हुए सुना, जो उससे घोड़ागाड़ी का किराया दो रूबल माँग रहे थे। युगोर सेविच घृणा से खीजकर अलमारी के पास रुका और वोदका की सुराई पर नाक-भौं चढ़ाते हुए कुछ समय तक नजरें गड़ाईं।

‘‘आह, तुझे खत्म कर दूँगी!’’ उसने बेवा को कात्या से गाली-गलौज करते हुए सुना। ‘‘तू नरक में जाए।’’

आर्टिस्ट ने एक गिलास वोदका पी, उसके अंदर जो बैचेनी थी, वह धीरे-धीरे गायब हो गई। उसने महसूस किया कि उसके भीतर का सबकुछ उसके अंदर मुसकरा उठा है। वह खयालों में खो गया, उसने एक काल्पनिक तसवीर बनाई कि कैसे वह महान् बनेगा। वह अपनी भविष्य की पेंटिंग्स की कल्पना तो नहीं कर पाया, परंतु साफ-साफ देख रहा था कि अखबार उसके बारे में क्या लिखेंगे, किस तरह दुकानें उसके फोटोग्राफ बेचेंगी, कि उसके ईर्ष्यालु यार-दोस्त उसे किस प्रकार तवज्जो देंगे। उसने कल्पना में जो तसवीर खींची, उसमें खुद को एक शानदार ड्राइंग-रूम में सुंदर और उसे बेहद प्यार करनेवाली युवतियों के बीच पाया। लेकिन वह तसवीर धुँधली थी, क्योंकि उसने अपने जीवन में अब तक ड्राइंग-रूम नहीं देखा था। खूबसूरत और बेहद चाहनेवाली महिलाओं की तो बात ही क्या, वह कात्या के सिवाय किसी दूसरी इज्जतदार लड़की को जानता तक नहीं था। जो लोग जिंदगी के बारे में कुछ भी नहीं जानते, वे अकसर किताबों से जीवन की तसवीर बनाते हैं, लेकिन युगोर सेविच का किताबों से भी कोई नाता नहीं था। एक बार उसने ‘गोगोल’ को पढ़ने की कोशिश की थी, पर दूसरे पृष्ठ तक आते-आते उसे नींद आ गई थी।

‘‘वह नहीं जलेगा, धत्त!’’ चाय की केतली को सेट करने के लिए बेवा नीचे झुकी। ‘‘कात्या, मुझे कुछ कोयले उठा दो।’’

स्वप्निल आर्टिस्ट ने अपनी आशाओं व सपनों को किसी और से साझा करने की एक तड़प महसूस की। वह नीचे रसोई में गया, वहाँ मोटी बेवा और कात्या केतली से उठते कोयले के धुएँ के बीच गँदले स्टोव को दुरुस्त करने में लगी हुई थीं। वहाँ वह बडे़ से मटके के पास रखी हुई बेंच पर बैठ गया और सोचने लगा, ‘आर्टिस्ट होना बहुत अच्छी बात है! मैं जहाँ चाहूँ, वहाँ जा सकता हूँ, जो चाहूँ कर सकता हूँ। उसे न ऑफिस में और न ही बाहर काम करना पड़ता है। मेरे ऊपर न कोई बॉस है और न अफसर...मैं खुद ही अपना बॉस हूँ और इन सबके साथ मैं मानवता के लिए अच्छा काम कर रहा हूँ।’

डिनर के बाद वह आराम करने के लिए शांत-चित्त हो गया। वह अमूमन सूर्यास्त तक सोता था। लेकिन इस समय ठीक डिनर के बाद उसे लगा कि कोई उसकी टाँग खींच रहा है। कोई उसका नाम ले रहा है, जोर-जोर से हँस रहा है। उसने आँखें खोलीं और देखा, उसका दोस्त युक्लेकिन, लैंडस्केप पेंटर था, वह गरमियों में हमेशा बाहर कोस्ट्रोमा जिले में चला जाता था। ‘‘साले!’’ वह खुशी से चिल्लाया, ‘‘यह मैं क्या देख रहा हूँ?’’

उसके बाद शुरू हुआ हाथ मिलाना, सवाल-जवाब का सिलसिला।

‘‘...अच्छा, क्या तू कुछ लेकर आया है? मुझे लगता है, तूने तो फटाफट सौ से ऊपर स्केच बना लिये होंगे।’’ युगोर सेविच ने युक्लेकिन को अपने बक्से में से सामान निकालते हुए देखा और कहा, ‘‘हाँ मैंने कुछ बनाया है और तेरा कैसा चल रहा है? इधर कुछ पेंट किया है?’’

युगोर सेविच ने पलंग के पीछे छलाँग लगाई, झिझकते हुए उसने फ्रेम की हुई धूल और मकड़ी के जालों से ढका एक कैनवास निकाला।

‘‘इसे देख, खिड़की पर एक लड़की अपने मंगेतर से जुदाई के बाद तीन बैठकों में। अभी थोड़ा काम बाकी है।’’

इस तसवीर में कात्या का हल्के हाथ से बनाया हुआ खाका था, वह खुली खिड़की में बैठी थी, जहाँ से बगीचा और नीले रंग का आकाश दिखाई दे रहा था। युक्लेकिन को तसवीर पसंद नहीं आई।

‘‘हूँह! खिंचाव है...और चेहरे पर भाव भी।’’ उसने कहा, ‘‘अलग होने का एहसास भी है, लेकिन...लेकिन वह झाड़ी चीख रही है, भयंकर रूप से चीख रही है।’’

सुराई को बीच मैदान में लाया गया। शाम होते-होते एक और होनहार नौसिखिया, ऐतिहासिक पेंटर कोस्टीलियोव युगोर सेविच से मिलने आ गया। उसका वह दोस्त पास की विला में रहता था, करीब पैंतीस साल का। उसके बाल लंबे थे, उसने शेक्सपियर-कॉलर की कमीज पहनी हुई थी और उसका तौर-तरीका स्तरीय था। वोदका को देखते ही उसने नाक-भौं सिकोड़ी, छाती में दर्द की शिकायत की, पर दोस्तों के इसरार पर नरम पड़ते हुए एक गिलास पी गया।

‘‘मेरे दोस्तो, मैंने एक विषय के बारे में सोचा है।’’ उसे नशा चढ़ने लगा था। ‘‘मैं कुछ नया पेंट करना चाहता हूँ—हेरेड या क्लेपेंटीयन, या इसी तरह का कोई दुर्जन, तुम समझ रहे हो न? और उसके विरुद्ध ईसाइयत की अवधारणा। एक तरफ रोम, तुम समझ रहे हो न और दूसरी तरफ ईसाइयत...मैं आत्मा दरशाना चाहता हूँ, तुम समझ रहे हो न, प्रेतात्मा के विरुद्ध आत्मा।’’

और सीढि़यों के नीचे बेवा लगातार चिल्ला रही थी—‘‘कात्या, मुझे ककड़ी दे। ओ! शैतान की आँत, सिदोरोव के वहाँ से थोड़ा क्वास ले आ।’’

पिंजरे में बंद भेडि़यों की तरह तीनों दोस्त कमरे के एक कोने से दूसरे कोने तक आगे-पीछे कदमताल कर रहे थे। वे बिना दिल खोले बातें कर रहे थे। तीनों ही उत्तेजित थे, बातों में बह गए। उनको सुनने पर ऐसा लगता था कि आनेवाला कल, प्रसिद्धि, पैसा उनके हाथों में था। और उनमें से किसी एक को भी ऐसा नहीं लगा कि समय हाथ से निकलता जा रहा है, कि हर पल जीवन अपनी समाप्ति की ओर बढ़ रहा है, कि काफी हद तक वे जीवनयापन के लिए दूसरों पर निर्भर हैं, कि अभी तक उन्होंने कुछ भी हासिल नहीं किया है; कि वे सभी बडे़ ही कठोर नियम से बँधे हुए हैं, जिसके अनुसार एक सौ होनहार आरंभकर्ताओं में से केवल दो या तीन ही किसी पोजीशन तक पहुँच पाते हैं और बाकी सब इस दौड़ से बाहर हो जाते हैं, इस खेल में तोप के लिए ईंधन का किरदार निभाते हुए नष्ट हो जाते हैं...वे मग्न और खुश थे और भविष्य को बहादुरी के साथ अपने सामने देख रहे थे।

दोपहर एक बजे कोस्टीलियोव ने अलविदा कहा और अपने शेक्सपियर-कॉलर को सीधा करते हुए घर चला गया। लैंडस्केप पेंटर युगोर सेविच के यहाँ सोने के लिए रुक गया। सोने के पहले युगोर सेविच ने मोमबत्ती उठाई और पानी पीने के लिए नीचे रसोई की तरफ गया। अँधेरे में तंग गलियारे में एक बक्से पर कात्या बैठी हुई थी और उसने हाथों को घुटनों को घेरते हुए पकड़ रखा था, वह ऊपर की तरफ देख रही थी। एक आनंदमयी मुसकान उसके जर्द, कमजोर चेहरे पर बिखरी हुई थी, पर उसकी आँखें दमक रही थीं।

‘‘तुम हो, क्या सोच रही हो?’’ युगोर सेविच ने उससे पूछ।

‘‘मैं सोच रही हूँ कि तुम प्रसिद्ध कैसे होगे?’’ उसने धीमी आवाज में कहा, ‘‘कल्पना कर रही हूँ कि तुम प्रसिद्ध आदमी कैसे बनोगे?...मैंने तुम्हारी सारी बातें सुन ली हैं। मैं सपने देख रही हूँ और सपने देख रही हूँ...’’

कात्या खुशी के मारे हँसी, रोई और अपने हाथ श्रद्धा के साथ अपने आराध्य-देव के कंधों पर रख दिए।

१५२, टैगोरनगर, हिरणमगरी सेक्टर

उदयपुर-३१३००२ (राजस्थान)

दूरभाष : ९९८३२२४३८३

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