RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
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दिव्य आत्मा बेटियाँकहते हैं—मारनेवाले से बचानेवाला बलवान होता है क्योंकि बचानेवाला खुद भगवान् होता है फिर मैं आपसे पूछता हूँ, मुझे यह बताएँ क्यों हो रही हैं गर्भ में कन्या भू्रण हत्याएँ? इस सवाल के जवाब पर हमें रात भर नींद नहीं आई करवटें बदलते हुए रात बिताई भोर की मस्ती में पलकें अलसाईं झुकीं और हमें नींद आई क्या देखते हैं, हम गर्भ के सागर में गोते लगा रहे हैं सामने एक भ्रूण में कन्या के दर्शन पा रहे हैं क्या जो सृष्टि का शृंगार है कन्या, जो कभी सीता तो कभी दुर्गा का अवतार है फिर हमें उसे मारने का क्या अधिकार है? उसने मुझे देखा और मुसकराई, बोली— रे कवि! तुम यहाँ? मैंने कहा—हाँ, तुमने वो कहावत नहीं सुनी जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि और हाँ अब तुम भी पृथ्वी पर उजागर हो जाओगी एक नए संसार से जुड़ जाओगी। उसने मुझे बताया, मैं उसी संसार में जाने के लिए यहाँ जप कर रही हूँ, अपनी जननी की सुरक्षा के लिए व्रत और तप कर रही हूँ। जननी, जिसके गर्भ में पलता है सृष्टि की रचना का महान् बीज मंत्र मैंने टोका—हाँ, उसी बीज मंत्र को बाहर निकालकर फेंक देता है अदना सा एक मानवीय यंत्र उस समय तुम्हारा भगवान् कहाँ सोता है? कहते हैं, मारनेवाले से बचानेवाला बलवान होता है उसने मुझे बताया, मेरा भगवान् तो यहाँ मेरी हर समय रक्षा करता है मेरे गर्भ का कवच बनकर मेरी सुरक्षा करता है मैं भी उस परमपिता परमेश्वर की प्यारी संतान हूँ विधि का विधान हूँ, रचना हूँ, मंत्र हूँ जीवित संयंत्र हूँ मुक्त मुसकराती हूँ, धरती पर आती हूँ सपने सजाती हूँ, नया घर बसाती हूँ। तभी वहाँ साक्षात् मौत का शिकंजा आया गर्भ के सागर में जैसे भूचाल आया उसने झट उस कन्या के भू्रण को वहीं धर दबाया तब मुझे उसकी चीख सुनाई दी जो उसके अंतःकरण से आई थी सुनो कवि! तुम यह जानना चाहते हो जिसको बनानेवाला भगवान् होता है फिर उसका यहाँ क्यों बलिदान होता है? मैं अपनी जननी की इच्छा के लिए खुद को बलिदान कर देती हूँ क्योंकि वह मेरी माँ है और मैं उसकी बेटी हूँ।
कन्या के उस भू्रण ने, माँ से करी पुकार। मैं भी तेरी लाड़ली, माँ मुझको मत मार॥ जन्म दिया तो माँ तेरा, दूँगी कर्ज उतार। तेरी बगिया में खिलूँ बनकर नई बहार॥ जैसे चिडि़या बाग की, पिंजडे़ में संसार। बड़ी हुई तो बाँध दी, गई पिया के द्वार॥
माना लड़के से तेरा चले वंश-परिवार। मगर वंश जो पालती, उसका ही संहार॥ सुनो कवि! जब यह संहार समय की तराजू पर तुलता है तब धरती भूकंपित होती है प्राकृतिक आपदाओं का तांडव-दौर शुरू होता है ज्वालामुखी फूटता है, सागर की लहरों का कहर टूटता है काँप-काँप जाती है धरा, जैसे फूट जाता हो पाप का घड़ा इसलिए कहती हूँ, समय-चक्र चलने दो सृजन को मचलने दो गर्भ के मंदिर में दीपशिखा जलने दो और गर्भ का मंदिर तो उस मंदिर से भी महान् होता है, जिसमें सृष्टि का निर्माण होता है जिसको बनानेवाला स्वयं भगवान् होता है। दिव्य आत्मा बेटियाँ, करो नहीं संहार। लेने दो हर कोख से बेटी को अवतार॥ बेटी माने है धरा, धरा अर्थ आधार। बेटी से ही सृष्टि का, होता है शृंगार॥ कोख-लोक उस परम का, जिसमें प्रभु का वास। अंधकार के बीच में, जगमग हुआ प्रकाश॥ कथा व्यथा उस भ्रूण की, जिसका है बलिदान। बेटी मिलती भाग्य से, होता कन्यादान॥ |
मार्च 2024
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