कहाँ गई चेतना!

कहाँ गई चेतना!

चेतना कुछ दिनों से स्कूल नहीं आ रही थी। कक्षा-अध्यापक ने सभी बच्चों से चेतना के बारे में पूछताछ की, लेकिन कोई भी उसके न आने के बारे में नहीं बता पाया। चेतना का घर गाँव से काफी दूर एक सुनसान जगह पर था। उस तरफ इन बच्चों का जाना ही नहीं होता था। चेतना अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थी। उसके पिता दूसरे राज्य के नागरिक हैं और माँ इसी इलाके की निवासी। उसके पिता बहुत साल पहले इस गाँव में ईंटें डालने के लिए आए थे। चेतना की माँ और पिता ने यहीं शादी कर ली। लेकिन गाँववालों ने चेतना की माँ को ईंटें डालनेवाले के साथ शादी करने के कारण गाँव से निकाल दिया था। चेतना के पिता ने जोड़-तोड़ करके गाँव से बाहर इस सुनसान इलाके में मकान बनाने लायक थोड़ी सी जमीन ले ली थी। वे अब बढ़ई बन गए और माँ घर में ही अपने परिवार व गाय का खयाल रखती थी।

चेतना जहाँ पढ़ने-लिखने में अव्वल थी, वहीं स्कूल के अन्य कार्यक्रमों में भी आगे ही रहती। इसलिए सभी अध्यापक उसे खूब चाहते थे। लेकिन जब चेतना काफी दिनों से स्कूल नहीं आई तो अध्यापकों को उसकी फिक्र होने लगी। सब उसकी पढ़ाई के लिए चिंतित हो रहे थे, क्योंकि इस बार उसकी दसवीं की बोर्ड की परीक्षाएँ थीं। स्कूल के मुध्याध्यापक ने चेतना की गैरहाजिरी का कारण जानने के लिए गणित के अध्यापक और हिंदी की अध्यापिका को चेतना के घर भेज दिया।

चेतना के घर का पता पूछते-पूछते आखिरकार दोनों अध्यापक उसके घर तक पहुँच ही गए। उन्होंने देखा, घर के आँगन के एक पेड़ के नीचे बैठी चेतना किताब खोलकर कुछ पढ़ रही है। यह देखकर उन्हें बहुत अच्छा लगा।

जब दोनों अध्यापक चेतना के सामने पहुँचे तो उन्हें देखकर चेतना जहाँ हैरान सी रह गई, वहीं बहुत खुश भी हुई। अध्यापकों ने जब उससे स्कूल न आने का कारण पूछा तो वह उदास हो गई। उसने बताया कि कुछ दिन पहले उसके पिता का एक्सीडेंट हुआ, जिसमें उनकी टाँग में बहुत ज्यादा चोट आई है। डॉक्टरों ने उन्हें डेढ़ महीने के सख्त आराम की सलाह दी है। इसी दौरान माँ को भी टाइफाइड ने इतनी बुरी तरह से जकड़ा कि वे चलने-फिरने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाती थीं। वे बहुत कमजोर हो गई थीं। डॉक्टर ने उन्हें भी पूरी तरह से आराम करने के लिए कहा है। माता-पिता के स्वस्थ होने तक अब घर का सारा काम, पशुओं की देखभाल सब मुझे ही करना है। बस सर, इसलिए मैं स्कूल नहीं आ पाई।

‘‘परंतु चेतना, तुम्हारी पढ़ाई का क्या होगा? तुम्हें पता है न कि इस बार तुम्हारी बोर्ड की परीक्षाएँ हैं।’’ अध्यापिका चेतना को समझाते हुए बोलीं।

‘‘जी मैम, इसीलिए मैं खाली समय में घर पर ही सभी विषयों के अगले अध्याय स्वयं पढ़ने-समझने की कोशिश करती रहती हूँ। जो बात मुझे समझ नहीं आती, उसे मैं एक अलग कॉपी में लिख रही हूँ। उन्हें मैं स्कूल में अध्यापकों से पूछूँगी।’’ चेतना का चेहरा आत्मविश्वास से लबालब था। वह आगे बोली, ‘‘सर, मैंने गणित के कुछ प्रश्न नोट किए हैं। यदि आपके पास थोड़ा सा समय हो तो क्या आप मुझे इन्हें समझा सकते हैं?’’

‘‘अरे चेतना! यह भी कोई पूछने की बात है भला। लाओ, कॉपी इधर दो। मैं तुम्हें समझाता हूँ।’’ गणित के अध्यापक खुशी-खुशी बोले।

चेतना के अपने आप इस तरह से पढ़ने की बात सुनकर दोनों शिक्षकों को बहुत प्रसन्नता हो रही थी। चेतना के लिए अब उनकी सारी चिंताओं का समाधान हो चुका था।

गणित के अध्यापक आत्मीयता के साथ चेतना को उसके पूछे प्रश्नों को समझाने के लिए बैठ गए। प्रश्नों को देखते हुए वे बोले, ‘‘अरे चेतना, बेटा, तुम तो हमारे स्कूल में चल रहे सिलेबस से काफी आगे का पढ़ रही हो। शाबाश बेटा! तुमने तो हमारी सारी परेशानियों को दूर कर दिया।’’

‘‘अरे चेतना, भई सच में तुम तो कमाल हो! घर की इस तरह की परेशानियों के बावजूद तुमने पढ़ाई नहीं छोड़ी। यह तो हम सब के लिए खुशी की बात है।’’ हिंदी की अध्यापिका ने कहा।

‘‘मैम, पढ़ाई को छोड़ने की बात तो मैं कभी नहीं सोच सकती। मुझे अपनी पढ़ाई पर ही तो भरोसा है। मैं खूब पढ़ना चाहती हूँ। पढ़-लिखकर अपने माता-पिता का खोया सम्मान उन्हें वापस दिलाना चाहती हूँ।’’ चेतना की बातें उसकी दृढ इच्छाशक्ति का परिचय करवा रही थीं।

इतने में चेतना की माँ चाय लेकर आ गई। वह दोनों अध्यापकों से बोली, ‘‘मैडमजी, हमने इसे इतना कहा कि हमारी फिक्र छोड़। हम अपना खयाल रख लेंगे। तुम सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। लेकिन यह कहाँ मानी! बोलती है, तुम पढ़ाई की फिक्र छोड़ो। पढ़ाई मैं कर लूँगी। बस आप एक बार अच्छे हो जाओ, फिर मैं स्कूल भी चली जाऊँगी। अब इसे कौन समझाए? इसकी सेवा ही है, जो मैं आज अपने बिस्तर से उठ पाई हूँ। भगवान् ऐसी बेटी सबको दे।’’ बात करते-करते माँ की आँखें भर आई थीं।

अध्यापिका ने चेतना की माँ के कंधों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘सच में ऐसी बेटी सबको मिले।’’

कुछ ही समय बाद दोनों अध्यापक चेतना को जल्द ही स्कूल आने की बात कहकर और तनाव-मुक्त होकर लौट चुके थे।

गाँव व डाक-महादेव, तहसील-सुंदर नगर

जिला-मंडी-१७५०१८ (हि.प्र.)

दूरभाष : ०९८०५४०२२४२

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