अब भुगतो

आज ग्रामसभा में अच्छी-खासी उपस्थिति थी। हो भी क्यों न, नए सरपंच को कार्य सँभाले एक वर्ष पूर्ण हो चुका है। इस एक वर्ष में क्या-क्या हुआ और क्या-क्या होना चाहिए था, सभी इस बात का लेखा-जोखा जानना चाहते हैं। लोगों के चेहरों पर एक किस्म का आक्रोश चस्पा है, जिससे साफ जाहिर है कि वे नए सरपंच के कार्यकाल से कतई संतुष्ट नहीं हैं।

सचिव ने जैसे ही काररवाई आरंभ होने की सचूना दी, लोगों की खुसर-फुसर एकबारगी थम गई। परंतु यह खामोशी मानो तूफान के आने की सूचना थी। शीघ्र ही लोगों ने सरपंच पर हमला बोल दिया—‘‘इस एक साल में क्या किया है तुमने? न नालियाँ, न टूटी सड़कों की मरम्मत, न पीने के पानी की माकूल व्यवस्था। चारों ओर गंदगी का अंबार, कीचड़-ही-कीचड़! ढोली घोड़े की तरह बैठे रहते हो। काम के न करम के, नहीं कर सकते हो तो इस्तीफा दे दो। कुरसी से चिपककर क्यों बैठे हो? चिपकू कहीं के।’’

सरपंच कुछ देर तक तो चुपचाप सुनता रहा। फिर अकड़कर बोला, ‘‘सब हो जाएगा, सरकारी काम है, सरकारी चाल से होगा। तुम्हारे कहने से नहीं होगा। तुम कौन होते हो मुझ पर इस तरह चिल्लानेवाले?’’

‘‘अच्छा, हम कौन हैं?अरे, हमारे वोटों के बल पर ही तुम गाँव के सरपंच हो। तुम्हीं आए थे नाक रगड़ते हुए हमारे दरवाजे पर।’’

‘‘अब तुम रगड़ो अपनी नाक। तुम्हारे वोट के बल पर नहीं, नकदनारायण के बल पर जीता हूँ। मैंने सौ-सौ में खरीदा है तुम्हें, याद है?मुझ पर तुम्हारा कोई एहसान नहीं है।’’

सभा में सन्नाटा पसर गया। लोग धीरे-धीरे खिसकने लगे। अंत में रह गए सचिव और सरपंच। सचिव से रहा नहीं गया, पूछा, ‘‘सरपंच साहब, जनता को इस तरह फटकारना क्या अच्छी बात है?’’

‘‘ये इन्हीं लखणों के हैं। पिछले चुनाव में मैंने इनसे वादा किया था ग्राम विकास, ईमानदारी और नई-नई योजनाएँ लाने का। नतीजा?मैं हार गया, क्योंकि मैंने पैसा नहीं खर्च किया, अपने उसूलों पर अड़ा रहा। अब भुगतो?’’

लाल मादड़ी

नाथद्वारा-३१३३०१ (राजस्थान)

दूरभाष : ९८२९५८८४९४

हमारे संकलन