अलादीन और गवैया गदहा

अलादीन और गवैया गदहा

एक था अलादीन, उसके सपने थे रंगीन, उसके पास में था जादुई चिराग, जिसको घिसते ही चिराग का देव प्रकट हो जाता। आते ही कहता, ‘‘कहो मेरे आका!’’ अलादीन जैसा कहता, चिराग का देव कर डालता, खूब लंबी-लंबी सैर कराता। मगर उस बार ऐसा नहीं हुआ। चिराग के देव ने आते ही कहा, ‘‘क्षमा करो मेरे आका! इन दिनों मेरी ताकत हवा हो गई है, उसे लेने के लिए में अपने वतन जाना चाहता हूँ। ताकत आते ही मैं वापस लौट आऊँगा। जाने से पहले मैं तुम्हें एक जादू की बीन देता हूँ। बीन का जादू ऐसा है कि जो भी इसकी आवाज सुनेगा, झूम-झूमकर नाचने लगेगा। बीन यदि किसी और के हाथ में आ गई तो इसमें से गधे के रेंकने की आवाज सुनाई देने लगेगी।’’ जादू की बीन अलादीन को सौंपकर देव गायब हो गया।

अलादीन के हाथों में जादू की वह बीन थी। बीन का जादू देखने के लिए उसने बीन बजा दी। बीन बजाते ही बीन की आवाज जहाँ तक जिसके भी कान में पड़ी, वही नाचने लगा। घर में बैठी उसकी बूढ़ी माँ भी नाचने लगी। पिंजरे में बंद तोता भी टें-टें करके उछलने लगा। अलादीन ने बीन बजाना बंद कर दिया। समझ गया, बीन का जादू कमाल का है, अब मैं इसके साथ अपना नया सफर शुरू कर सकता हूँ।

अलादीन ने अपने नए सफर पर जाने की तैयारी शुरू कर दी अपनी रंग-बिरंगी पोशाक पहनी, सिर पर मखमली टोपी और कंधे पर थैले में रखी वह जादू की बीन, साथ में देव का चिराग। बस यही थे उसके सफर के साथी।

बूढ़ी माँ ने पूछा, ‘‘अलादीन, कब तक लौटकर आओगे? तुम एक बार निकले नहीं कि महीनों की छुट्टी।’’

‘‘अरी माँ, चिंता मत कर! जैसे ही चिराग के देव की ताकत लौट आएगी, मैं भी लौटकर आ जाऊँगा।’’

बाहर निकलते ही रास्ते में बड़ी भीड़ थी। भीड़ में से निकल पाना मुश्किल था। आज के दिन बाजार में अकसर भीड़ बढ़ जाती है। बाहर से व्यापारियों के झुंड-के-झुंड आते और अपने घोड़ों पर लदा सामान बेचकर निकल जाते हैं।

अलादीन ने क्या सोचा था और क्या हुआ! सोचा था, बीन की आवाज सुनते ही नाचनेवाले नाचते रहेंगे और अलादीन उनके बीच में से निकल जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सभी व्यापारियों ने अलादीन को पकड़ लिया और अपने होनेवाले नुकसान को गिनाने लगे।

लो बेटा, और बजाओ बीन, अच्छी मुसीबत गले लग गई।

फैसला हुआ कि जब तक व्यापारियों का नुकसान पूरा नहीं हो जाता, अलादीन उनके साथ रहेगा। चलो, सफर ऐसा ही शुरू हुआ। अलादीन व्यापारियों के साथ आगे बढ़ गया।

शाम होते ही अलादीन व्यापारियों के साथ किसी कस्बे में रुक गया। रात यहीं बितानी थी। अलादीन बीन को अपने थैले में रखकर आराम से सो गया। किंतु व्यापारियों को नींद कहाँ थी? वे तो इसी ताक में थे कि अलादीन सो जाए और हम इसकी जादू की बीन लेकर रफूचक्कर हो जाएँ। उनका विचार था कि यह जादू की बीन किसी राजदरबार में हमें अच्छा इनाम दिला सकती है।

इनाम के लालच में व्यापारियों का दल जादू की बीन लेकर रात में आगे निकल गया। सुबह तक वे एक नए शहर में पहुँच गए। कोतवाल से मिलकर व्यापारियों ने बताया, हमारे पास एक जादू की ऐसी बीन है कि सुननेवाले नाचने लगते हैं। तुम हमें अपने राजा से मिलवाकर इसकी अच्छी कीमत दिलवाओ। उसमें से हम तुम्हें भी हिस्सा देंगे।

कोतवाल ने जब जादू की बीन का जादू देखने की इच्छा की तो व्यापारियों में से, जिसके पास जादू की बीन थी, ने बीन बजा दी।

तब तक उसका जादू बदल चुका था। अब जादू की बीन में से गधे के रेंकने जैसी आवाज निकलने लगी और पास में कहीं गधे थे तो वे भी रेंकते हुए दौड़कर दुल्लती झाड़ते हुए आ गए। व्यापारियों को चारों ओर से घेर लिया गया। यह देखकर कोतवाल का गुस्सा तो सातवें आसमान पर था, उसने सभी को पकड़कर हवालात में बंद कर दिया। उनके साथ में गधों को भी ढकेल दिया।

और बजाओ जादू की बीन और दिखाओ इसका जादू! बीन का जादू तो चल गया। बीन चुरानेवाले सभी सौदागर हवालात के अंदर और उनके साथ में एक नहीं कई गधे भी, जिनकी दुल्लती की मार से वे अधमरे से हो गए।

जादू की बीन तो व्यापारियों के पास थी और असली बीनवाले, यानी कि अलादीन की तलाश शुरू कर हुई। सौदागरों ने अपना अपराध कबूल कर लिया और बता दिया कि यह बीन अलादीन की है और हमने उसे दूर छोड़ दिया है।

इधर अलादीन की तलाश में शहर कोतवाल ने अपने सिपाहियों को भेज दिया और उधर हवालात में एक नया ही नजारा देखने को मिला। हुआ ऐसा कि रैंकते हुए गधे की आवाज को सुनकर जिस सौदागर के पास जादू की बीन थी, गुस्से में आकर उसने वह बीन गधे के खुले हुए मुँह में डाल दी। बीन सटाक से गधे के अंदर गई और वहीं अटक गई। रेंकते हुए गधे की अवाज बंद! अब बीन की आवाज में से गधे की आवाज निकलने लगी। धत तेरे की! गधे के गले में अटकी जादू की बीन को बाहर निकालने की सभी ने कोशिश की, लेकिन बीन गधे के गले से बाहर नहीं निकली।

सिपाहियों ने अलादीन को ढूँढ़ निकाला। शाम होने तक वे उसी शहर में आ गए, जहाँ हवालात में सौदागर बंद थे। शहर कोतवाल के सामने अलादीन था और उसने हवालात में बंद सौदागरों को देखते ही कहा, ‘‘हाँ, कोतवाल साब! ये ही वे व्यापारी हैं, जो मेरी जादू की बीन चुराकर भाग निकले। अच्छा किया, जो आपने इन्हें पकड़कर हवालात में डाल दिया।’’

व्यापारियों को हवालात में से बाहर निकाला।

‘‘बीन कहाँ है?’’

‘‘उसे तो गधे ने अपने गले में अटका लिया।’’ डरते-डरते एक व्यापारी ने कहा।

‘‘क्या कहा, बीन गधे के गले में अटक गई।’’

‘‘हाँ, माई-बाप! हमें क्षमा करो, इसमें हमारी कोई गलती नहीं है। गधे ने मुँह खोला और बीन उछलकर उसके गले में चली गई और अटक गई।’’

जानवरों का डॉक्टर बुलाया, पर बीन गधे के गले में ही अटकी रही। अलादीन ने भी उस गधे को देखा, जिसके गले में जादू की बीन अटकी थी। उसने अपने हाथों को गधे के गले में घुमाया-फिराया, हाथ का स्पर्श पाते ही बीन का जादू पहले जैसा हो गया। सुननेवाले नाचने लगे। गधे ने अपनी गरदन उठाई और उसने रैंकने की कोशिश की, लेकिन यहाँ तो रेंकने के बजाय उसके गले में से बीन की आवाज सुनाई देने लगी और सुननेवाले नाचने लगे।

आज से यह गधा अलादीन का नया दोस्त बन गया, जिसके गले में जादू की बीन अटकी थी। गधेवाले को कोतवाली की ओर से मुँहमाँगी रकम दे दी गई और गधा अलादीन के साथ आगे बढ़ गया। अलादीन के कहने पर सौदागरों को भी हवालात से छोड़ दिया गया।

अपनी यह कहानी कहाँ से शुरू हुई और कहाँ जाकर पहँुच गई? अलादीन से चली और एक ऐसे गधे से जुड़ गई, जिसके गले में जादू की बीन अटकी थी और यह गधा भी अलादीन को अपना मालिक मानकर उसके इशारों को समझने लगा। जब अलादीन हाथ की थपकी गले के आस-पास देता तो गधा गरदन उठाकर रेंकने लगता। रेंकने के साथ ही बीन की आवाज सुनाई देने लगती। आवाज सुनकर सभी झूमने और नाचने लग जाते। अलादीन के गधे की प्रशंसा दूर-दूर तक फैल गई। एक दिन गायकों की एक टोली अलादीन से जा टकराई।

 ‘‘सुना है, आपका गधा गाता है तो उसके गले से बीन की आवाज सुनाई देती है।’’ गायकों की टोली में से एक ने पूछा।

‘‘हाँ, आपने ठीक सुना है। मेरा गधा रेंकता नहीं, गाता है।’’

‘‘यों कहिए कि यह गवैया गधा है।’’

सुनकर अलादीन मुसकराया, ‘‘हाँ, आप ठीक कहते हैं।’’

‘‘तो फिर क्यों न आप भी हमारे साथ शाही संगीत के मुकाबले में चलिए।’’

‘‘मैं समझा नहीं।’’

‘‘समझाना क्या है। हमारे संगीतकारों और गायकों की टोली राजा के दरबार में शाही मुकाबले में भाग लेने जा रही है। जिसका गाना सभी पसंद करेंगे, राजा उसे एक वर्ष के लिए अपने यहाँ शाही मेहमान बना लेता है। इनाम अलग से मिलता है। हम जानते हैं कि इस मुकाबले में आपका गवैया गधा जीत जाएगा। जीत गया तो शाही मेहमान बन जाएगा। शाही मेहमान बन गया तो हम सभी उनके मेहमान बन जाएँगे।’’ अलादीन उनकी बातों में आ गया और शाही मुकाबले के लिए राजदरबार में पहुँच गया। कलाकारों का पूरा जमघट था, एक-से-एक नामी और बड़ा गायक अपनी कला का प्रदर्शन करने आया था। लेकिन अलादीन के गधे ने सभी को परास्त कर दिया, उसे संगीत का प्रथम पुरस्कार मिला।

गधे को शाही सम्मान मिल गया। गधे के साथ अलादीन और उसके साथियों को भी राजमहल में आतिथ्य-सत्कार मिलने लगा। गधे की देखरेख में नौकर-चाकर सुबह नाश्ते में हरी-हरी घास देते, जिससे गधा जल्दी ही मोटा हो गया। अलादीन और उसके साथी गवैये भी राजकीय सम्मान पाकर आनंदित थे।

अलादीन को पता चला कि राजा और पड़ोसी राजा के आपस में संबंध मधुर नहीं हैं, जबकि पड़ोसी राज्यों को मिलकर रहना चाहिए। इसी में दोनों की भलाई है। राजा ने अलादीन को समझाया, ‘‘तुम्हारा सोचना तो अच्छा है, लेकिन हम चाहते हुए भी अपने पड़ोसी राज्य से मधुर संबंध नहीं बना सकते। कारण यही है कि उसे अपनी ताकत का बड़ा घमंड है। हम दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं, लेकिन वह अपना हाथ पीछे खींच लेता है और हमें युद्ध के लिए ललकारता है। लेकिन हम युद्ध नहीं, शांति चाहते हैं।’’

अलादीन को जब यह खबर मिली कि पड़ोसी राजा की बेटी के जन्मदिवस की तैयारियाँ जोरों पर चल रही हैं तो अलादीन भी अपने गवैये गधे के साथ राजकुमारी के जन्मदिन पर पड़ोसी राजा के यहाँ पहुँच गया। नगर भर में यह खबर फैल गई कि पड़ोसी राजा ने हमारे राजा से दोस्ती के लिए अलादीन को भेजा है, वही अलादीन, जिसके साथ में गानेवाला गधा है। अलादीन और गवैये गधे को देखने के लिए पूरा नगर जैसे थम सा गया।

रंग-बिरंगी पोशाक में सजा अलादीन और उसका गवैया गधा सभी का भरपूर मनोरंजन कर रहे थे। नगरवासियों के साथ उसे राजा के दरबार में लाया गया। राजा समेत सभी दरबारी खूब खुश थे।

शहजादी को तो पता नहीं कि उसे क्या मिल गया। अलादीन और उसके कारनामे यहाँ पहले से चर्चित थे। यह वही अलादीन है, जिसके पास जादुई चिराग का देव है और चिराग का देव, अलादीन जो चाहता है, पलक झपकते ही कर देता है।

भरी सभा में शहजादी ने अलादीन के गले में वरमाला डाल दी। शहजादी की सालगिरह के दिन उसे अपनी पसंद का वर भी मिल गया। पड़ोसी राजा आपस में मिल गए। उनकी दोस्ती जिंदाबाद हो गई। अलादीन को राजकुमारी मिल गई। खूब धूमधाम से उनकी शादी हो गई। विदाई के समय एक चमत्कार और हुआ कि गधे के गले से अचानक जादू की बीन गायब हो गई।

अलादीन समझ गया कि आज मेरे जादुई चिराग के देव की ताकत भी वापस लौट आई है। बस उसने अपना जादुई चिराग निकाला। चिराग के घिसते ही देव हाजिर। आते ही बोला, ‘‘कहो मेरे आका!’’

‘‘चिराग के देव! मुझे राजकुमारी के साथ दूर फूलों की घाटी की ओर ले चलो, जहाँ हर समय फूलों की सुगंध हवा को महकाती रहती है। उसके बाद ही मैं अपने घर लौटना चाहूँगा।’’

‘‘जो हुक्म मेरे आका।’’ इतना कहते ही हवा में मखमल का कालीन बिछाया, कालीन पर अलादीन और राजकुमारी को बिठाया, कालीन को अपनी हथेली पर रखा और देखते-देखते हवा में उड़ने लगा।

फूलों की घाटी में किसी राजा-रानी का शासन नहीं था। यहाँ शासन था परिंदों का। परिंदे दूर-दूर से उड़कर आते, दिनभर फूलों की घाटी में समय बिताते और शाम होते ही उड़कर अपने-अपने घोंसलों की ओर चले जाते।

इन परिंदों में ऐसे भी थे, जो इनसान की बोली बोलते, इनमें तोता राजा और मैना रानी की जोड़ी थी। दिन निकलते ही तोता-मैना की जोड़ी दूर कहीं से उड़कर फूलों की घाटी में आ जाती। फूलों की सुरक्षा में वे दिन भर इधर-से-उधर और उधर-से-इधर पंखों पर दौड़ते रहते।

कभी कहीं फूलों पर कोई संकट आ जाता तो उसके लिए सभी परिंदों को इकट्ठा करके जी-जान से फूलों की रक्षा करते। फूलों की घाटी में एक नियम यह भी था कि अचानक इस घाटी में कोई आ जाता तो वहाँ के परिंदे उसे घेरकर तोता-मैना के सामने ले आते। जैसा वे कहते, परिंदे करते।

अलादीन और राजकुमारी के फूलों की घाटी में आते ही परिंदे टें-टें करके चारों ओर इकट्ठा होने लगे। बोलनेवाले परिंदों ने अलादीन की जानकारी ली। अलादीन ने बता दिया कि वह यहाँ कुछ दिनों तक ठहरेगा और बिना फूलों को नुकसान पहुँचाए यहाँ से चला जाएगा।

तोता-मैना को अलादीन के आने की खबर मिल चुकी थी। अलादीन के बारे में वे पहले से जानते थे। अलादीन जब तक चाहे, यही रह सकता है। हम जानते हैं कि अलादीन को फूलों से उतना ही प्यार है, जितना हम फूलों से करते हैं।

अलादीन चाहता था कि मैं इन फूलों के लिए ऐसा कुछ करके जाऊँ, जिससे यहाँ की घाटी के परिंदे हमेशा उसे याद रखें।

अलादीन को मैना ने बताया, ‘‘दिन में तो हम अपनी पूरी ताकत से धुएँ के उस राक्षस को भगा देते हैं, जिसके आते ही कोमल-कोमल नन्हे फूल मुरझा जाते हैं। राक्षस उनकी खुशबू समेटकर हवा में ही कहीं खो जाता है। हम चाहते हुए भी रात में उसका मुकाबला नहीं कर सकते। क्योंकि रात होते ही हम सभी यहाँ से उड़कर दूर चले जाते हैं।’’

‘‘धुएँ का काला राक्षस रात में निकलता है। आज के बाद तुम्हें उस राक्षस की चिंता नहीं करनी होगी।’’ अलादीन ने कहा।

‘‘हाँ, समझ लो, अलादीन और उसके चिराग के देव की ताकत उसे हमेशा के लिए यहाँ से दूर, बहुत दूर पहुँचा देगी।’’

रात होते ही धुएँ के राक्षस को चिराग के देव ने अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया, ‘‘कहो मेरे आका, मेरे लिए क्या हुक्म है?’’

‘‘दुष्ट काले धुएँ के राक्षस को सात सुमंदर पार पहुँचाकर आओ, ताकि यह दुबारा यहाँ आकर इन फूलों की खुशबू से खिलवाड़ न कर सके।’’

‘‘जो हुक्म मेरे आका!’’ कहकर चिराग का देव काले धुएँ के राक्षस को अपनी मुट्ठी में पकड़कर हवा में खो गया। फूलों की घाटी को हमेशा के लिए उस दानव से मुक्ति मिल गई। फूलों की घाटी के परिंदों ने अलादीन को उपकार करनेवाला फरिश्ता मान लिया।

आज अलादीन की विदाई का समय आ गया। फूलों की सुंदर घाटी में खूब जमकर उत्सव मनाया गया। चिराग का देव उसके साथ था। चिराग के देव ने पहले मखमली कालीन अपनी हथेली पर बिछाया, फिर उस पर अलादीन और राजकुमारी को बिठाकर मुसकारते हुए धीरे-धीरे आकाश की ओर जाने लगा।

चिराग के देव को अलादीन बता चुका था कि आज मैं अपनी बूढ़ी माँ के पास जाना चाहता हूँ, जो अब तक मेरे इंतजार में पलकें बिछाए बैठी है। उसे इंतजार था कि बेटा अलादीन आते ही कहेगा, ‘‘माँ मैं आ गया!’’

आवाज के साथ ही बूढ़ी आँखों में खुशी की चमक आ गई। माँ की दोनों बाँहें उसे अपने गले से लगाने के लिए बैचेन हो उठीं।

प्रसन्नता से गले से लगाए अलादीन को उसकी बूढ़ी माँ ने आँसुओं से भिगो दिया। ‘‘माँ, तुम्हारा अलादीन अब हमेशा तुम्हारे पास रहेगा।’’

कहानी खत्म। और हाँ, जानते हो बच्चो! तुम्हारी यह जादुई कहानी आज से पैंतालीस साल पहले लिखी गई थी, तब हमें बच्चों की कहानियाँ लिखने में बड़ा मजा आता था। आज भी काल्पनिक कहानियाँ पढ़ने में मजा आता है।

लक्ष्मीपुरी, सराय हकीम, अलीगढ़-२०२००१

दूरभाष : ०९८९७०६७२७६

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