सदा प्रसन्न राजकुमार

सदा प्रसन्न राजकुमार

एक था शहर। वहाँ की सुंदर और भव्य इमारतें सबका ध्यान आकर्षित करती थीं। वहाँ लगी ‘सदा प्रसन्न राजकुमार’ की प्रतिमा लोगों के आकर्षण का विशेष केंद्र थी। राजकुमार की प्रतिमा बड़ी और भव्य होने के कारण शहर के सुख-दुःख देखती रहती थी। प्रतिमा पर सोने का पतरा चढ़ा हुआ था। उसकी दोनों आँखों में कीमती रत्न जड़े थे और तलवार की मूठ पर एक लाल रत्न दमकता रहता था। सब लोग उस प्रतिमा को ‘सदा प्रसन्न राजकुमार’ के नाम से पुकारते॒थे।

एक दिन एक नन्हीं चिडि़या उड़ती हुई वहाँ  आई। उसके संगी-साथी मिस्र की ओर उड़ान भर चुके थे। वह पीछे रह गई थी। वह अपने संगी-साथियों का इंतजार करने लगी और वहाँ की प्राकृतिक शोभा को निहारती रही। रात बढ़ने के साथ-साथ वातावरण में ठंडक बढ़ने लगी थी। चिडि़या रात बिताने के लिए सब ओर देखने लगी। आखिर वह सदा प्रसन्न राजकुमार की बड़ी सी प्रतिमा को देखकर उड़कर वहाँ आ गई। वह राजकुमार के पैरों के बीच आ बैठी। वह सुरक्षित स्थान था और उसे ठंड व हवा से बचा रहा था। तभी एक बूँद चिडि़या के पंख पर गिरी। आसमान साफ  था, बादल नहीं थे। चिडि़या ने यह सोचकर आसमान की ओर नजर उठाई तो आसमान तारों से भरा नजर आया। तभी दूसरी बूँद भी उसके ऊपर आकर गिरी। चिडि़या हैरानी से इधर-उधर देखने लगी। यह क्या रहस्य है...तभी उसकी नजर राजकुमार की आँखों पर पड़ी तो वह दंग रह गई, राजकुमार की आँखों के आँसू ही उसके पंखों पर गिर रहे थे। चिडि़या बोली, ‘आप तो सदा प्रसन्न राजकुमार हैं, आपकी आँखों में आँसू?’ राजकुमार की प्रतिमा बोली, ‘हाँ, जब मैं जीवित था तो सदा खुश रहता था, लेकिन मरने के बाद जब मेरी प्रतिमा यहाँ लगा दी गई तो मैंने जाना कि जीवन में लोगों के पास बहुत दुख हैं। मैं यहाँ से लोगों के दुःख देखता हूँ तो मेरी आँखें भर आती हैं। अभी मैंने देखा कि शहर में एक सँकरी गली में एक खँडहर मकान है। उसमें एक महिला अपने बेटे के साथ रहती है। वह सिलाई करके अपना पेट भरती है। उसका बेटा बहुत बीमार है और उसके पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। मैं उसकी सहायता करना चाहता हूँ, पर मैं यहाँ से हिल नहीं सकता। प्यारी चिडि़या, नन्हीं चिडि़या, क्या तुम मेरी मदद करोगी?’ तुम मेरी तलवार के मूठ का लाल रत्न उसे दे आओ। इससे वह महिला अपने बेटे का इलाज कराकर जरूरत का सामान खरीद लेगी।’ चिडि़या बोली, ‘राजकुमार, मुझे मिस्र जाना है। मेरे संगी-साथी मेरा इंतजार कर रहे होंगे। पहले ही बहुत देर हो चुकी है।’ राजकुमार बोला, ‘प्यारी चिडि़या, नन्हीं चिडि़या, बस आज यहाँ रुक जाओ।’ राजकुमार को विनती करते देख चिडि़या बोली, ‘ठीक है, मैं आज रुक जाती हूँ और उन लोगों की मदद करती हूँ।’ इसके बाद चिडि़या ने अपनी चोंच से तलवार की मूठ का लाल रत्न निकाला और उसे उस महिला के घर में छोड़ आई। राजकुमार अब प्रसन्न था। अगले दिन सुबह राजकुमार की सोने की प्रतिमा धूप में चमचमा रही थी। चिडि़या बोली, ‘अलविदा राजकुमार!’ यह सुनकर राजकुमार बोला, ‘प्यारी चिडि़या, नन्हीं चिडि़या, बस आज-आज और रुक जाओ। मेरी अभी एक ऐसे व्यक्ति पर नजर पड़ी, जिसके कपड़े फटे हुए हैं, वह ठंड से काँप रहा है, उसे एक नाटक लिखकर देना है, पर उसके पास लकडि़याँ नहीं हैं, जिन्हें जलाकर वह ठंड में काम कर सके। मेरी आँखों में दो हीरे जड़े हैं। तुम एक हीरा निकालकर उस व्यक्ति को दे आओ। इससे उसका काम चल जाएगा।’ चिडि़या उछलकर बोली, ‘नहीं...नहीं राजकुमार। तब तुम उस आँख से कैसे देखोगे?’ राजकुमार बोला, ‘मैं एक आँख से भी सब देख पाऊँगा।’ चिडि़या के बहुत मना करने पर भी राजकुमार नहीं माना और चिडि़या ने दुःखी मन से राजकुमार की एक आँख का हीरा निकालकर उस व्यक्ति तक पहुँचा दिया।’ अगले दिन चिडि़या ने अपनी उड़ान भरने की तैयारी की। वह बोली, ‘अलविदा राजकुमार! यहाँ ठंड बढ़ती जा रही है। अब मुझे जाना होगा।’ राजकुमार बोला, ‘नन्हीं चिडि़या, बस आज-आज और रुक जाओ। मैंने अभी शहर के चौक पर एक नन्हीं बच्ची को देखा है। वह ठंड से काँपती हुई रो रही है। उसकी माचिस गीली हो गई है। अब उसकी गीली माचिस कौन खरीदेगा? तुम मेरी दूसरी आँख का हीरा निकालकर उसे दे आओ।’ चिडि़या सिर हिलाते हुए बोली, ‘नहीं राजकुमार! मैं दूसरी आँख बिल्कुल नहीं निकालूँगी। इस आँख के निकलने के बाद तो आप बिल्कुल नहीं देख पाएँगे।’ राजकुमार की जिद के आगे उसकी एक न चली। बहुत ही दुःखी मन से चिडि़या ने राजकुमार की दूसरी आँख निकालकर बच्ची की मदद की। वह राजकुमार के पास भरे मन से लौटी और राजकुमार की दशा देखकर रो पड़ी। अगले दिन चिडि़या के पंखों की फड़फड़ाहट सुनकर राजकुमार हैरानी से बोला, ‘अरे नन्हीं चिडि़या! तुम अभी तक गई नहीं।’ चिडि़या बोली, ‘मैं अब तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी?’ राजकुमार बोला, ‘धन्यवाद प्यारी चिडि़या, तुम वास्तव में मेरी दुःख-सुख की साथी हो। अब तुम मेरे शहर में जगह-जगह जाकर लोगों के दुःख-दर्द और तकलीफें मुझे बताया करो।’ चिडि़या शहर में उड़कर जाती और लोगों के दुःख-दर्द राजकुमार को बताती। लोगों की दुःख-तकलीफें सुनकर राजकुमार का मन बेहद द्रवित हो उठता था। एक दिन वह चिडि़या से बोला, ‘तुम मेरी सोने की परत को काटकर गरीब लोगों में बाँट दो। इससे उनके दुःख कम होंगे।’ चिडि़या राजकुमार की बातें मानती रही। फिर एक दिन ऐसा भी आया, जब राजकुमार के पास बाँटने के लिए कुछ न बचा। अब सर्दी काफी बढ़ गई थी। चिडि़या थर-थर काँपती रहती थी, फिर भी वह राजकुमार को छोड़कर नहीं गई। एक दिन ज्यादा ठंड को महसूस कर राजकुमार बोला, ‘नन्हीं चिडि़या, अब तुम मिस्र जा सकती हो। यहाँ ठंड बहुत बढ़ गई है।’ चिडि़या का बदन ठंड से अकड़ गया था। उसके पंखों में बर्फ  जम गई थी। वह राजकुमार के कंधे पर बैठी थी। वह बोली, ‘अलविदा राजकुमार।’ और राजकुमार के पैरों पर गिरी। राजकुमार समझ गया कि नन्हीं चिडि़या ने उसे सदा प्रसन्न रखने के लिए अपने प्राण निछावर कर दिए हैं। अपनी नन्हीं दोस्त की मौत से राजकुमार का हृदय धक से रह गया और वह फटकर दो टुकड़ों में बँट गया। रोने और दुःख प्रकट करने के लिए अब सदा प्रसन्न राजकुमार के पास न ही भाव बचे थे और न ही शरीर।

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