धूप की उष्मित छुवन से...

धूप की उष्मित छुवन से...

: एक :

मेरे दिल में तेरा ही नाम है, शुभ अक्षरों में खुदा हुआ,

फिर क्या पता किस हेतु तू चुपचाप मुझसे जुदा हुआ।

मुझे है पता कि हूँ आदमी मामूलियत से बना हुआ,

इतरा रहा है घमंड से, बता तू कहाँ का खुदा हुआ।

हलचल भरा है जिगर मेरा, कहने को क्या-क्या उमड़ रहा,

पर बात है जाने न क्या, मुँह मेरा कब से मुँदा हुआ।

दिया क्या-क्या प्यारे जहान ने मुझको कि मैं हूँ हँसी बना,

कितना किया, करता रहा, अब तक न कर्ज अदा हुआ।

कब तक रहेगा बना भँवर गलियों में कलियों पर झूमता,

अब घर को अपने सँभाल तू अब तो है शादीशुदा हुआ।

: दो :

रस्ते में रोशनी तेरी मुसकान हो गई,

पहचान थी न तुझसे यों पहचान हो गई।

कितना मैं चला, चलता रहा, राह कठिन थी,

देखा जो तुझे राह वो आसान हो गई।

अब तक तो उदासीन-सी थी मुझसे ये दुनिया,

जाने क्या हुआ आज कदरदान हो गई।

था रात का तमस न रहा सूझता कुछ भी,

लेकिन ये शमा मेरी मेहरबान हो गई।

आई थी खुशी घर मेरे रहने के वास्ते,

दो दिन के लिए हाय वो मेहमान हो गई।

धड़कन से भरा आदमी खाता रहा ठोकर,

पत्थर से बनी मूर्ति लो भगवान हो गई।

पलभर को नहीं चैन से सो पाया आदमी,

सपनों से आज नींद परेशान हो गई।

रोती रही अकेली पड़ी रागिनी उसकी,

लोगों के स्वर मिले तो वो सहगान हो गई।

: तीन :

अब तो यारों उठे हैं, बहुत सो लिए,

झूठे ख्वाबों के संग हम बहुत हो लिए।

अब तो ताजा हवाओं से बातें करें,

बंद हैं खिड़कियाँ जो उन्हें खोलिए।

अपने भीतर में ही खोजें अपनी हँसी,

दूसरों की हँसी हँस बहुत रो लिए।

अब तो किरणों के संग राह में चल पड़ें,

रात का खौफ ऊपर बहुत ढो लिए।

बैठे गुमसुम से हैं आप क्यों राह में,

पूछता है समय अब तो कुछ बोलिए।

डाँटकर झूठे रहबर से कह दीजिए,

घोला अब तक तो अब मत जहर घोलिए।

: चार :

पेड़ हैं कुछ खुश समझकर आ रहा ऋतुराज है,

भर रही पंखों में चिडि़यों के नई परवाज है।

हो रही महसूस है खुशबू हवाओं में मधुर,

दिख रहा कुछ आज फूलों में नया अंदाज है।

धूप की उष्मित छुवन से फूल-सी खिलती त्वचा,

बज रहा जैसे दिशाओं बीच कोई साज है।

खुल गई सिमटी हुई फसलों के फूलों की हँसी,

उग रही कंठों में गाँवों की नई आवाज है।

भूल जाओ कल तलक के वक्त की नाराजगी,

दोस्त बन खुशियाँ लुटाता देख लो दिन आज है।

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