मणिपुर का लोकसाहित्य

मणिपुर का लोकसाहित्य

भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्याँमार और तिब्बत—पाँच देशों की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अवस्थित है। असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम—इन आठ राज्यों का समूह पूर्वोत्तर भौगोलिक, पौराणिक, ऐतिहासिक एवं सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। पर्वतमालाएँ, हरित घाटियाँ और सदाबहार वन इस क्षेत्र के नैसर्गिक सौंदर्य में अभिवृद्धि करते हैं। जैव-विविधता, सांस्कृतिक कौमार्य, सामूहिकता-बोध, प्रकृति-प्रेम, अपनी परंपरा के प्रति सम्मान भाव पूर्वोत्तर भारत की अद्वितीय विशेषताएँ हैं। सांस्कृतिक दृष्टि से पूर्वोत्तर भारत अत्यंत समृद्ध है। इस क्षेत्र के निवासियों को प्राचीन ग्रंथों में किरात की संज्ञा दी गई है। किरात शब्द का उल्लेख सर्वप्रथम यजर्वेद में मिलता है। इसके उपरांत अथर्ववेद, रामायण एवं महाभारत में भी उन मंगोल मूल की जनजातियों की चर्चा मिलती है, जो भारत की उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की घाटियों व कंदराओं में निवास करती हैं। बह्मपुत्र घाटी का संबंध किरात से है। भारत के विख्यात योद्धा राजा भगदत्त पूर्वोत्तर के थे। महाभारत काल से पूर्वोत्तर का गहरा संबंध है। माना जाता है कि पांडवों ने अपना अज्ञातवास इसी क्षेत्र में व्यतीत किया था। अनेक उच्छृंखल नदियों, जल-प्रपातों, झरनों और अन्य जल-स्रोतों से अभिसिंचित पूर्वोत्तर की भूमि लोकसाहित्य की दृष्टि से भी अत्यंत उर्वर है।

मणिपुर अपने शाब्दिक अर्थ के अनुरूप वास्तव में मणि की भूमि है। इसे ‘देवताओं की रंगशाला’ कहा जाता है। सदाबहार वन, पर्वत, झील, जलप्रपात आदि इसके नैसर्गिक सौंदर्य में चार चाँद लगा देते हैं। अतः इस प्रदेश को भारत का मणिमुकुट कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है। यहाँ की लगभग दो-तिहाई भूमि वनाच्छादित है। प्रदेश के पास गौरवशाली अतीत, समृद्ध विरासत और स्वर्णिम संस्कृति है। मणिपुर की प्रमुख भाषा ‘मैतेई’ है, जिसे मणिपुरी भी कहा जाता है। मैतेई भाषा की अपनी लिपि है—मीतेई-मएक। इसके अतिरिक्त राज्य में २९ बोलियाँ हैं, जिनमें प्रमुख हैं—तड़ खुल, भार, पाइते, लुसाई, थडोऊ (कुकी), माओ आदि। इन सभी भाषाओं की वाचिक परंपरा में लोक साहित्य का विस्तृत भंडार उपलब्ध है। मणिपुर में निम्नलिखित आदिवासी समुदाय रहते हैं—ऐमोल, अनल, अंगामी, चिरु, चोथे, गंगते, हमार, लुशोई, काबुई, कचानगा, खरम, कोईराव, कोईरंग, कोम, लम्कांग, माओ, मरम, मरिंग, मोनसंग, मायोन, पाईते, पौमई, पुनरुन, राल्ते, सहते, सेमा, तांगखुल, थडाऊ, तराव इत्यादि।

मणिपुर पर्व-त्योहारों एवं उत्सवों की भूमि है। यहाँ बारह माह में तेरह त्योहार मनाए जाते हैं। मंत्रमुग्ध कर देनेवाले संगीत-नृत्य त्योहारों के प्रमुख अंग हैं। प्रदेश में अनेक प्रकार की नाट्य शैली प्रचलित हैं। लोक नाटकों को फागीलीला, सुमंगलीला आदि नामों से संबोधित किया जाता है। फागीलीला हास्य नाटक है, जिसमें सामाजिक विद्रूपताओं पर प्रहार किया जाता है। नाटक अथवा जात्रा यहाँ के सामाजिक जीवन से प्रेरणा ग्रहण करते हैं। महिला जात्रा, बाल जात्रा, इशेई लीला (संगीत जात्रा), इपोम (हास्यपरक लीला) इत्यादि सुमंगलीला की नाट्य शैलियाँ यहाँ खूब प्रचलित हैं।

मणिपुरी लोकगीतों को खुनुंग इशेई कहा जाता है। इन लोकगीतों में जीवन के सभी पहलू शामिल होते हैं। हर्ष-विषाद, आशा-आकांक्षा, प्रेम-घृणा आदि मानवीय भावनाओं को प्रकट करनेवाले इन लोकगीतों की अनेक शैलियाँ प्रचलित हैं। भिन्न-भिन्न आदिवासी समूहों की गायन शैली में भी पर्याप्त भिन्नता है। हल चलाते समय, फसल काटते समय अथवा अन्य कार्य करते समय मणिपुरी अनेक श्रमगीत गाते हैं। श्रमगीतों को लौटरोल, फिशा इशेई, हिजिन हिराव आदि नामों से पुकारते हैं। मणिपुर में संस्कार गीतों, उपासना गीतों, त्योहार गीतों, फसल गीतों आदि की उन्नत परंपरा है। संस्कार गीतों को औगरी, खेमको, अहोंगलोन इत्यादि नामों से पुकारा जाता है। अनेक मिथक गीत, ऋतु संबंधी गीत, वीरगाथात्मक गीत भी प्रचलित हैं। यहाँ असंख्य प्रकार के प्रणय गीत और उसकी अनेक शैलियाँ भी प्रचलित हैं।

मणिपुर अपने आध्यात्मिक गीतों के लिए भी प्रसिद्ध है। आध्यात्मिक गीतों में चैतन्य महाप्रभु के जीवन दर्शन का उल्लेख होता है। मनोहर साई रामकरताल के साथ गाया जानेवाला कर्णमधुर संगीत है। लाई हराओबा में द्विअर्थी संवादों द्वारा श्रोताओं का मनोरंजन किया जाता है। खुल्लोंग इशेई मेतेई समुदाय का श्रमगीत है। इस गीत का केंद्रीय विषय प्रेम होता है। खेतों में काम करते समय यह गीत गाया जाता है। लाई हराओबा इशेई मणिपुर का उत्सव गीत है। पर्व-त्योहार या उत्सव के अन्य अवसरों पर मणिपुरी लोग उत्सव गीतों द्वारा अपने हर्ष को अभिव्यक्त करते हैं। थाबल चोंगबैशई नृत्य के समय इसी नाम के गीत भी गाए जाते हैं। धोब, नुपी पाला आदि गीतों में गायक अपनी आत्मा उड़ेल देते हैं। मणिपुरी समाज में नृत्य भी एक प्रकार की उपासना और ईश्वर-प्राप्ति का एक साधन है। यहाँ नृत्य एक पवित्र कर्म माना जाता है। इसे प्रस्तुत करने के लिए कुछ सुनिश्चित नियम होते हैं। जहाँ नृत्य की प्रस्तुति हो, वह स्थान पवित्र होना चाहिए। मणिपुरी समाज में धर्म के साथ नृत्य का गहरा जुड़ाव है। जीवन के सभी अवसरों, यथा जन्म, विवाह, श्राद्ध आदि पर नृत्य की परंपरा विद्यमान है।

लाई हराओबा सृष्टि की उत्पत्ति की अवधारणा पर आधारित लोकनृत्य है। इसमें उमंगलाई (वन के देवी-देवता) की उपासना की जाती है। डोल जात्रा का त्योहार फाल्गुन माह में मनाया जाता है। इस अवसर पर पाँच दिनों तक थाबलचोंगबा नृत्य किया जाता है। इस नृत्य में महिला-पुरुष सभी भाग लेते हैं। नर्तक दल के सभी सदस्य एक-दूसरे के हाथ पकड़कर नृत्य करते हैं तथा घर-घर जाकर चंदा वसूलते हैं। नुपा पाला नृत्य पुरुषों द्वारा सामूहिक रूप में किया जाता है। तूनगन लम, हेग, नागा तूना, गन लम इत्यादि आदिवासी समुदाय के नृत्य हैं। बाँस नृत्य चूड़ाचाँदपुर के लुशाई समुदाय का लोकनृत्य है। यह बालिकाओं द्वारा किया जाता है। रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों से सुसज्जित बालिकाओं द्वारा प्रस्तुत बाँस नृत्य नयनाभिराम होता है। मणिपुर में रासलीला बहुत लोकप्रिय है। चार प्रकार के रास प्रमुख हैं—महारास, कुंजारास, वसंत रास और नित्य रास। दिबास रास गोपियों द्वारा साड़ी पहनकर किया जाता है। उदुखोल में भगवान् श्रीकृष्ण की बाललीला को नृत्य और आध्यात्मिक संगीत द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। गौरलीला आठ-दस वर्ष के बालकों द्वारा किया जाता है। खंबा और थोइबी नृत्य लाईहराओबा के दौरान किया जाता है। इसमें प्रेमकथा का वर्णन किया जाता है।

मणिपुरी पर्वत-शिखरों एवं सुदूर जंगलों में प्राकृतिक जीवन जीते हैं, जहाँ गीत गाते झरनों, बलखाती नदियों, वन्य-जीवों और नयनाभिराम पक्षियों का उन्मुक्त संसार है। जीवन सरल और स्वच्छंद है। यहाँ जीवन की कोई आपाधापी नहीं, समय की कोई चिंता नहीं, कोई कोलाहल नहीं तनावरहित जीवन, न्यूनतम आवश्यकताएँ, भविष्य की चिंता से मुक्त। इन परिस्थितियों में इनके उर्वर मस्तिष्क में कल्पना की ऊँची उड़ान उठती है। फलतः लोकसाहित्य का सृजन होता है। मणिपुरी लोकसाहित्य में जीवन का राग-रंग, आशा-आकांक्षा, हर्ष-विषाद, सबकुछ समाविष्ट है। लोककंठ में विद्यमान समृद्ध मणिपुरी लोकसाहित्य को संरक्षित, संकलित और प्रकाशित करने की महती आवश्यकता है।

 

उपनिदेशक (राजभाषा), केंद्रीय भूमि जल बोर्ड

जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय

भूजल भवन, एन.एच.-४

फरीदाबाद-१२१००१

दूरभाष : ९८६८२०००८५

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