वही लड़की

हीराखंड एक्सप्रेस दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर दौड़ रही थी। खट-र-खट्, खट-र-खट् संगीत के ताल में पेड़-पौधे, बिजली के खंभे, पहाड़-पर्वत सभी ट्रेन की विपरीत दिशा में दौड़ रहे थे। खोरधा रोड स्टेशन की साधारण बोगी की भीड़ अनहोनापन बढ़ा रही थी। भीड़ के बीच एक जीर्ण-शीर्ण बुढि़या भी चढ़ी थी। सीट की जाँच-पड़ताल में बुढि़या की कमजोर आँखें इधर-उधर चलने लगीं। कहीं भी खाली सीट उसकी निगाहों में नहीं आई। उस बुढि़या के लिए खड़े होकर सफर करना हद से ज्यादा तकलीफ भरा था। बुढि़या के कंधे पर एक पुराना बैग लटक रहा था। वह बैग एक युवा के सिर पर झूल रहा था। युवक बार-बार बुढि़या से बैग हटाने का आग्रह कर रहा था। सीट न मिलने पर बुढि़या की अस्थिरता और बढ़ गई थी। खौफ से उसका तन काँप उठा। कोई भी बुढि़या को पास बिठाने के लिए तैयार नहीं था। बुढि़या की नजर सूरत (गुजरात) से लौट रहे पत्ते खेल रहे अनपढ़, अर्द्ध-शिक्षित चार-पाँच लड़कों पर पड़ी। बुढि़या सोच रही थी कि उनके पास सीट मिलना मुमकिन है, पर वे बुढि़या को पास बिठाना नहीं चाहते थे। पास बैठी हुइर् एक लड़की बुढि़या की घबराहट को आत्मसात् कर रही थी। लड़की ने एक बार बुढि़या के बदन को देखकर उन लड़कों की ओर देखा। वे सभी पत्ते खेलने में दिलचस्पी ले रहे थे। किसी दूसरे का दखल देना उन्हें पसंद नहीं था। वे खेल रहे थे, हँस रहे थे और पास बैठी लड़की की खूबसूरती को निहारते हुए मजा ले रहे थे।

ट्रेन निराकारपुर स्टेशन पार कर चुकी थी। बुढि़या की वेदना और बढ़ गई थी। लड़की ने एक बार फिर बुढि़या के दर्द भरे शरीर की ओर देखा। लड़के वहाँ बैठी हुई लड़की तथा खड़ी हुई बुढि़या के बीच अटैची रखकर, उसके ऊपर चादर बिछाकर पत्ते खेल रहे थे। लड़की बुढि़या को देखकर कुछ सोच रही थी। कुछ सोचने के बाद उसके लबों पर एक हल्की सी मुसकराहट फूट पड़ी। वह बुढि़या को बुलाकर बोली, ‘‘मौसी! आप यहाँ आइए, मेरे पास बैठिए।’’

लड़की की इसी शराफत से लड़कों को गुस्सा आ गया। वे एक-दूसरे को ताकते हुए लड़की पर क्रोध प्रकट करने लगे। एक युवक ने दूसरे युवक से कानाफूसी में कहा, ‘‘साली ज्यादा शराफत दिखा रही है।’’ दूसरे युवक ने लड़की को गला फाड़कर सुनाया, ‘‘यहाँ बैठने के लिए जगह कहाँ है? बुढि़या क्या हमारे सिर पर बैठेगी?’’ तीसरे युवक ने अन्य दो की बात का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘बुढि़या को अंदर बिल्कुल मत आने देना। देखते हैं, कोई हमारा क्या बिगाड़ लेगा?’’

बुढि़या ने लड़की के पास जाने में प्रबल तत्परता दिखाई, परंतु युवाओं के नाज-नखरे से बुढि़या को वैसे ही खड़ी रही देखकर लड़की ने उसे फिर अपने पास बिठाने को बुलाया। इस बार हिम्मत समेटती हुई बुढि़या ने जब लड़की के पास बैठने के लिए कदम बढ़ाए, तब सभी युवाओं ने अपनी उँगलियों के इशारे से उसे निर्देश दिया, ‘‘ठहर बुढि़या! हमारा खेल खत्म हो जाए। हम ब्रह्मपुर उतर जाएँ। उसके बाद चैन से बैठना।’’

बुढि़या ने दीनता भरे स्वर में युवाओं से विनती की, ‘‘बाबू साहब! मैं भी ब्रह्मपुर तक जाऊँगी।’’

ट्रेन अपने वेग से चली जा रही थी। बुढि़या का आपाद-मस्तक और हल्का सा तन ट्रेन की खट-र-खट् खट-र-खट् संगीत की धुन में झूल रहा था।

बुढि़या एक बार फिर युवाओं से विनती करती हुई बोली, ‘‘मैं तुम्हारे खेल में बिल्कुल अड़चन नहीं डालूँगी। मुझे थोड़ा बैठने दो।’’ बुढि़या के अनुरोध से बार-बार खेल में एकाग्रता भंग हो रही थी, परेशान होकर एक युवक ने गुस्से में कह डाला, ‘‘ऐ बुढि़या! खेल खत्म हो जाए, फिर तेरे बैठने की बात सोचेंगे।’’

बोगी के दूसरे कोने में बैठे हुए एक नौजवान और एक बुजुर्ग बुढि़या और लड़की के साथ हो रही युवाओं की बहस को खेल समझकर दिल्लगी कर रहे थे।

लड़की ने तीसरी बार उन लड़कों से विनती भरे स्वर में कहा, ‘‘मौसी को थोड़ा सा बैठने दीजिए।’’

लड़की की तीसरी गुजारिश पर भी लड़कों ने जवाब नहीं दिया। उन्होंने जान-बूझकर उसकी गुजारिश को लापरवाही में टाल दिया, इस बात को समझती हुई लड़की ने इस बार कुपित स्वर में कहा, ‘‘मौसी को मेरे पास आने देंगे या नहीं। नहीं तो मुझे यह अटैची हटानी पड़ेगी।’’

उनमें से एक मोटे से साँवले युवक ने गुस्से में जवाब दिया, ‘‘ऐ छोकरी! यदि हो सके तो हमारी इस अटैची को एक बार हाथ लगाकर तो देख।’’

लड़की भी कहाँ छोड़नेवाली थी। जवाबतलब करनेवाली लड़की ने भी जवाब दिया, ‘‘तो फिर क्या कर लोगे? यह लो मैं अभी यहाँ से अटैची हटाकर मौसी को बैठने की इजाजत देती हूँ।’’ कहती हुई लड़की ने दोनों अटैची के ऊपर रखी चादर हटा दी। पत्ते चादर से सरसराते हुए खिसकने लगे। उसी वक्त लड़की ने अटैची को सीट के नीचे ढकेलते हुए बुढि़या को हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचते हुए अपने पास बुलाया।

सभी युवा सम्मिलित स्वर में पागलों की भाँति प्रलाप करने लगे, ‘‘ऐ छोकरी! औरत होकर बड़ी मर्दानगी दिखा रही है। ब्रह्मपुर स्टेशन आने दे, हम तुझे अपनी असली मर्दानगी दिखा देंगे।’’ लड़की ने व्यंग्यात्मक अट्टहास करते हुए कहा, ‘‘ब्रह्मपुर स्टेशन पर चार-पाँच लड़कों का मिलकर एक लड़की पर जुल्म ढहाकर खिसक जाना, किस तरह की मर्दानगी है? धिक्कार है तुम्हारी मर्दानगी पर।’’

क्रोधित लड़की के वाक्यबाणों की झिड़कन से लड़के बिल्कुल निश्चल पड़ गए। यहाँ तक कि दूसरों की लड़ाई में मजा ले रहे नौजवान और बुजुर्ग इस बात को जानने के लिए बेकरार हो उठे थे कि इसका नतीजा क्या होगा। लेकिन लड़कों के नरम रवैये से दोनों के मन में फुरती नहीं थी। घटना का खात्मा इतनी सहजता से हो जाएगा, उन्हें इसका अंदाजा नहीं था। लड़की की इस निराली साधना को देख, वे सभी उसके बदन को टुकुर-टुकुर देख रहे थे। ट्रेन इस वक्त ब्रह्मपुर स्टेशन पर पहुँच चुकी थी।

लड़कों के ट्रेन से उतरने से पहले लड़की ने इतना जरूर कहा कि आपके खेल में अड़चन डालने की वजह से मैं दुःखी हूँ। शर्मसार लड़के बिना कोई जवाब दिए ही ट्रेन से उतर गए। लड़की ने बुढि़या का हाथ पकड़कर उसे प्लेटफॉर्म पर उतार दिया। लड़की की सीट के पास खाली जगह देखते ही बगल में बैठा नौजवान और बुजुर्ग फटाफट वहाँ अपनी-अपनी सीट दबोचने लगे। लड़की के पास बैठने से सफर सुहाना हो जाएगा, यह सोचकर वे दोनों मन-ही-मन खुश हुए। बुजुर्ग ने अपनी तरफ लड़की से कहना शुरू किया, ‘‘मैडम! आपकी अक्ल और हिम्मत की कद्र किए बिना मैं नहीं रह सकता। आपकी फटकार से जीर्ण होकर लड़के ऐसे ठंडे पड़ गए कि और जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा सके। बेचारे कान-सिर सहलाते उतरकर चले गए। आप शायद कोरापुट जाएँगी। हम भी अपने भानजे के लिए लड़की देखने कोरापुट जा रहे हैं। यह मेरा भानजा वीरेंद्र है। मैं उसका मामा प्रभु प्रसाद पाढ़ी। संक्षेप में मैं ओडि़शा में पी.पी.पी. के नाम से मशहूर हूँ। हमारी पार्टी अब सत्ता में है। मुझे किसी भी बात की कोई परवाह नहीं। वे लोफर छोकरे यदि ज्यादा कुछ बोलते तो मैं छत्रपुर के एस.पी. को मोबाइल से बता देता। अभी तो मेरे दोस्त का बेटा भी इसी जिले का कलेक्टर है। वह तो सबकुछ सँभाल लेता। मेरा भानजा वीरेंद्र अभी नारी सशक्तीकरण से संबंधित एक अंतरराष्ट्रीय एन.जी.ओ. का कर्णधार है। ओडि़शा के सभी बुद्धिजीवी वर्गों में उसकी बहुत जान-पहचान है। यानी वह एक लेखक की हैसियत से वाकिफ है। उसके द्वारा लिखी गई ‘नारी सशक्तीकरण’ पुस्तक फिलहाल देश के कई विश्वविद्यालयों की पाठ्यक्रम में प्रचलित है।’’

मामा की खुशामदी की बातों से भानजे का सीना फूला न समाया। लड़की की प्रतिक्रिया जानने के लिए वीरेंद्र लड़की को निहारते हुए कुटिल मुसकान के साथ मुसकराया। ऐसे मनोहर परिवेश के बीच मामा और भानजे की ट्रेन यात्रा और रसपूर्ण हो उठी।

विजयनगरम् स्टेशन से कुछ और मुसाफिर उसी बोगी में चढ़े थे। नए मुसाफिरों के बीच तीन लड़के थे। तीनों के कंधे पर कॉलेज युवाओं की भाँति बैग लटक रहे थे। वे एक अजब-गजब की वेशभूषा में थे। शेर की चमड़ी सी जींस-शर्ट पहने हुए थे। उनके टी शर्ट पर भद्दे नारे छपे हुए थे। उनके नाज-नखरों से वे सब छात्र से नहीं लग रहे थे।

उनके बीच पिंटू नाम के लड़के की आँखों के लेंस पर लड़की की परछाईं आते ही उसने अपने दूसरे साथियों से चिल्लाकर कहा, ‘‘अरे बंटी, बबलू, यहाँ बैठने की जगह खाली है। अरे, यहाँ बैठते हैं, आ जाओ!’’ यह कहते हुए पिंटू उसी लड़की के पास सटकर बैठ गया। दरवाजे के पास खड़े बंटी एवं बबलू भी वहीं आ गए। युवाओं के ऐसे प्रवेश से मामा और भानजे का मन फीका पड़ गया। उनके बैठने के ढंग से नाराज मामा बोल उठा, ‘‘ओ बाबू साहब! आगे काफी खाली जगह है। यहाँ भीड़ में क्यों बैठोगे।’’ मामाजी की बातों से गुस्सा होकर बंटी ने कहा, ‘‘मौसा, तुम और ज्यादा बक-बक मत करो। आजकल यह सारी सलाह बहुत सस्ती हो गई है। तुम अपनी सलाह को कहीं और बेचना। मौसा, तुम क्यों नहीं उधर चले जाते, खिड़की की तरफ पान की पीक फेंकने में भी आसानी होगी। उसके साथ खुली हवा भी मिल जाएगी।’’

यह कहते हुए बंटी मामा के पास बैठ गया। मामा ने प्रलाप भरे स्वर में कहा, ‘‘अरे! क्या मेरे सिर पर बैठोगे?’’

बंटी ने विद्रूपता भरे स्वर में संवाद छेड़ा, ‘‘हाय! मैं क्या करूँ, मुझे बूढ़ा मिल गया।’’ बंटी के ऐसे तीखे ताने से मामाजी थोड़े शर्मसार और तौहीन महसूस कर वीरेंद्र की ओर देखने लगे। परंतु वीरेंद्र उन दुराचारी लड़कों को कुछ कह सकने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। उनके बैठ जाने के बाद मामा और भानजे का सफर जैसे जहरीला हो गया।

ट्रेन अपनी गति से आगे बढ़ रही थी। कुछ समय के नीरव अंतराल के बाद मीटू ने लड़की की ओर तिरछी नजर डालते हुए पूछा, ‘‘आप शायद कोरापुट तक जाएँगी।’’

लड़की ने अपनी भलमनसाहत से उत्तर दिया, ‘‘हाँ, मैं कोरापुट लौट रही हूँ।’’

लड़के ने फिर पूछा, ‘‘आप क्या करती हैं?’’

लड़की ने उत्तर दिया, ‘‘मैं कुछ नहीं करती। पुलिस एस.आई. इंटरव्यू देने भुवनेश्वर गई थी। इस गाड़ी में लौट रही हूँ।’’

तीनों लड़कों ने एक-दूसरे की ओर देखा। इसका मतलब लड़की अकेली है। फिर भी शक से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने एक बार फिर लड़की से पूछा, ‘‘क्या आप अकेली इंटरव्यू देने गई थीं?’’ वीरेंद्र ने लड़कों की बातों में दखल देते हुए कहा, ‘‘लड़कियों के अकेले ट्रेन में सफर करने की बात शायद आपको अटपटी-सी लग रही है। नारी सशक्तीकरण के दौर में आप महिलाओं को इतना कमजोर क्यों समझते हैं? मैंने अपनी किताब में नारियों की इस नई शक्ति के वैशिष्ट्य का बारीकी से वर्णन किया॒है।’’

मामा, भानजे और तीनों लड़कों के बीच लड़की के अकेले ट्रेन सफर को लेकर जो कहा-सुनी होती रही, उससे लड़की को थोड़ी-सी शर्म-हया भी महसूस हुई। उसके अकेले आने से इनका क्या वास्ता है? इसे लेकर उनके बीच इतनी बहस क्यों चल रही है? वह कुछ समझ नहीं पा रही थी।

बेटी ट्रेन में अकेले इंटरव्यू देने भुवनेश्वर जाएगी। बिटिया के पापा इस बात पर राजी नहीं थे। वे बेटी के साथ भुवनेश्वर आने की जिद कर रहे थे। लेकिन बेटी ने अपने पापा को यह समझाया था कि क्या हर पल एक आदमी का एक औरत की हिफाजत में रहना निहायत ही जरूरी है? क्या औरत के पास अपना कोई एतबार नहीं है? औरत को भी भगवान् ने अक्ल और ताकत दी है। वह भी आदमी की भाँति हर मोड़ पर अपने आपको उसी साँचे में ढालती हुई चल सकती है। वह आनेवाली हर कठिनाई का मुकाबला कर सकती है।’’

पापा साथ में आएँ, लड़की को यह बिल्कुल मंजूर नहीं था। बेटी की तर्क भरी बातों से वे चुप रह गए थे।

लड़की को सोच में डूबे हुए देख बंटी ने पूछा, ‘‘आप क्या सोच रही हैं? अकेलापन महसूस कर रही हैं क्या? आप फिलहाल अकेली नहीं हैं। हम आपके साथ हैं। आपका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। आप कौन सा इंटरव्यू देने गई थीं? मेरे पापा एक उच्च पदाधिकारी हैं। उनकी सिफारिश से आप अपना काम हासिल कर सकेंगी। आप ट्रेन से उतरने के बाद हमारे साथ आइए। स्टेशन के निकट ही हमारा एक होटल है। मैं वहाँ फोन से अपने पापा से आपके इंटरव्यू के बारे में बता दूँगा, आप हमारे साथ चलेंगी न?’’

लड़के के अजब सुझाव पर लड़की कोई जवाब न देकर चुप रही। मान-न-मान मैं तेरा मेहमान तरकीब से लड़की के साथ दोस्ताना बढ़ाने पर लड़कों की सभी कुटिल चेष्टाओं के प्रयोग होते देख मामा-भानजे मन-ही-मन बेचैन तो हो रहे थे, लेकिन कुछ कर नहीं पा रहे थे।

लड़के के इस अप्रासंगिक प्रस्ताव से लड़की क्रोधित हो उठी। इन लड़कों के साथ उसका क्या लेना-देना? इन्हें तो वह पहचानती तक नहीं। फिर भी इनका जोर-जबरदस्ती ऐसे सुझाव देने का सबब क्या है? लड़की ने अपने मनोबल को दृढ करते हुए लड़कों से कहा, ‘‘थैंक्स फॉर योर प्रपोजल! मैं ट्रेन से उतरकर सीधा सुनावेड़ा जाऊँगी। वहाँ मेरे माँ-पापा बेचैनी से मेरे लौटने का इंतजार कर रहे होंगे।’’

बंटी ने लड़की को दिलासा देते हुए समझाने की कोशिश की, ‘‘आप एक आधुनिक और आजाद किस्म की लड़की हैं। हरेक बात माँ-बाप को बताकर उन्हें परेशान करना जरूरी तो नहीं।’’

लड़की इस बार उनकी बातों पर गौर न करते हुए, अनसुनी-सी होकर खिड़की से बाहर की ओर देखती रही।

लड़की की उनके प्रति लापरवाही देखकर मिंटू ने कहा, ‘‘इधर देखिए मैडम! उस अँधेरे पहाड़-पर्वत से आपको क्या मिलेगा? आप हमारे साथ होटल जरूर जाएँगी।’’ अन्य दो लड़के मिंटू के साथ हाँ-में-हाँ मिलाते हुए ‘‘मैडम हमारे साथ जरूर जएँगी न। नहीं जाने से हम थोड़े ही न छोड़ेंगे। जोर-जबरदस्ती ले जाएँगे। मैडम बाहर से ही मना कर रही हैं, लेकिन मन-ही-मन एकदम खुश हैं।’’

लड़कों के अश्लील बरताव से लड़की भयभीत होकर मदद की उम्मीद में घबराती हुई मामा और वीरेंद्र की तरफ निहारने लगी। लड़की की बेचैनी देखकर मामा और भानजे लड़कों से कहने लगे, ‘‘तुम सब सज्जन परिवार के बच्चे हो या नक्सल? यदि लड़की तुम्हारे साथ होटल जाना नहीं चाहती है तो उसके साथ इतनी जबरदस्ती क्यों?’’

मामा और वीरेंद्र की ओर तीनों लड़कों ने लाल आँखें दिखाकर कहा, ‘‘तुम क्यों कबाब में हड्डी बनते हो? यह हमारा आपस का मामला है। तुम कौन होते हो हमारे बीच सिर खपाने वाले। जान लो, नतीजा अच्छा नहीं होगा।’’

ठीक इसी वक्त रेलवे पुलिस के दो जवान उसी बोगी से गुजर रहे थे। लड़की ने उन बदतमीज लड़कों के खिलाफ पुलिस को इत्तिला करने की सोची। लेकिन पुलिस को देखते ही बंटी ने मगन होकर कहा, ‘‘अरे नागा मामा आप!’’

लंबे और काले शरीरवाले पुलिसवाले ने कहा, ‘‘बंटी बाबू, आप इस टे्रन में। तुम्हारे साथ यह लड़की कौन है?’’

दूसरे साथी पिंटू ने फटाफट कहा, ‘‘हमारी गर्लफ्रेंड।’’

जी.आर.पी. पुलिस नागा रेड्डी ने दूसरे साथी पुलिस को बताया, ‘‘यह कॉलोनी के साधुबाबू के बेटे।’’

दोनों पुलिसवाले बंटी के साथ हाथ मिलाकर बोगी की भीड़ के बीच आगे की ओर बढ़ गए। दोनों पुलिसवालों के ओझल होते ही लड़कों की बदनिगाहें फिर लड़की पर केंद्रित हो गईं। लड़की के करीब बैठे बंटी ने लड़की के कंधे पर हाथ रखकर कहा, ‘‘फ्रेंड, तुम ऐसे गुस्सा क्यों करती हो?’’

बंटी की घिनौनी हरकत को देखकर लड़की गुस्से में आगबबूला हो उठी। उसकी आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा। आवेश में अपने को न सँभालती हुई लड़की ने शक्ति से बंटी के गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया।

बंटी तिलमिलाते हुए उसी पल अपनी जेब से एक चाकू निकालकर चिल्लाया, ‘‘यह तूने क्या किया, हरामी छोकरी?’’

धारदार चाकू देखकर पास बैठे मुसाफिर काँपने लगे। हर मुसाफिर पर निशाना साधते हुए बंटी जोर से चिल्लाया, ‘‘सब यहाँ से कहीं और जाएँगे या नहीं! मैं कहता हूँ जाओगे या नहीं?’’ कहते हुए उसने बगल में बैठे मामा एवं वीरेंद्र को भौंह से उस जगह छोड़ने का निर्देश दिया। बंटी की जबरदस्त धमकी से मामाजी की नेतागीरी एवं वीरेंद्र की बहादुरी पर पानी फिर गया। मामा और भानजे फटाफट अपनी जगह से उठकर दूसरी ओर चल पड़े। उनका पथ-अनुसरण करते हुए साथी यात्री एक-एक करके अपनी-अपनी सीट छोड़कर चले गए। सबके दूसरी ओर चले जाने के बाद तीनों ने लड़की पर जुल्म शुरू कर दिए। शहर के बिजली के खंभों की आलोकमालाओं से लड़की ने अंदाज लगाया कि ट्रेन किसी शहर में प्रवेश कर रही है। ट्रेन स्टेशन के नजदीक है, ऐसा सोचते हुए लड़की ने बड़ी होशियारी से चेन खींच दी। स्टेशन से सामान्य दूरी पर ट्रेन के अटक जाने पर लड़की ने जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया। घटना के बारे में जानने के लिए दूसरी बोगी के यात्री उतरकर उस बोगी के आस-पास जमा हो गए। घटना की जाँच-पड़ताल करने के लिए जी.आर.पी. (रेलवे) पुलिस दल-बल के साथ दौड़ी आई। तीनों आरोपी के साथ पुलिस लड़की को भी ले गई थी। दूसरी जगह बैठे मामा और वीरेंद्र खिड़की की ओर से घटना का जायया ले रहे थे। लड़के के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज होने के बाद पुलिस ने लड़के को लॉक-अप में डालते हुए लड़की को छोड़ दिया। लड़की इस बार इंजन के पीछे साधारण बोगी में चढ़ी। मामा और वीरेंद्र ने लड़की को दोबारा ट्रेन पर लौटते देखा नहीं था। उन्होंने सोचा कि तीनों लड़कों के साथ लड़की को भी पुलिस ने सलाखों के पीछे डाल दिया।

आधे घंटा ठहरने के बाद ट्रेन ने फिर अपने निर्धारित रास्ते पर दौड़ना शुरू किया। मामा और वीरेंद्र ठीक दोपहर तक कोरापुट स्टेशन से उतरकर सीधा मध्यस्थ बांक बाबू के घर पह ुँचे थे। दिन के तीसरे पहर में बांक बाबू के साथ लड़की देखने के लिए सीमीलीगुड़ा लड़की के घर चल पड़े।

‘बिटिया नुमाइशी’ के कुछ पल पहले चाय-नाश्ते का मजा लेते हुए ट्रेन सफर के तजुरबे को बयाँ कर मामा और भानजे खिल-खिलाकर हँस उठे। अंत में उन्होंने कहा, ‘‘बहरहाल, हम न होते तो उस लड़की का न जाने क्या होता?’’

पापा उसके साथ जाने की जिद कर रहे थे, यह सोचकर लड़की ने उस समय ट्रेन में घटी घटना के बारे में कुछ नहीं बताया।

चाय-नाश्ते के बाद पिता ने अंदर आकर कहा, ‘‘बेटी, तू अभी तक तैयार नहीं हुई, वे लोग तुझे देखने आए हैं।’’

बेटी बोली, ‘‘बापू! मैं ट्रेन सफर से हारी-थकी लौटी हूँ और जो जनाब मुझे देखने आए हैं, मैं ट्रेन में उन्हीं के साथ आ रही हूँ। टे्रन में हमारी अच्छी तरह जान-पहचान हो चुकी है। वे मुझे अब और कितना देखेंगे? मामाजी ओड़ीशा के एक प्रभावशाली नेता हैं और वीरेंद्रजी एक बाहादुर एवं हिम्मतवाले नौजवान। मेरा इंटरव्यू बेहतरीन हुआ है। मेरा विश्वास है कि मैं निश्चय ही सफल रहूँगी। जब तक मैं स्वावलंबी नहीं बनती, तब तक आप मेरे लिए विवाह-प्रस्ताव नहीं लाएँगे। मुझे जोर से नींद आ रही है। बापू डिस्टर्ब न कीजिए। मैं अभी आराम से सोना चाहती हूँ।’’

बापू समझते थे, बिटिया के जिद्दीपन को। इसके अलावा उन्होंने सोचा, जब वे लोग ट्रेन में ही मेरी बिटिया के नाज-नखरे और गतिविधियों को अच्छी तरह से देखकर आए हैं, तो और देखने के लिए बाकी क्या रह गया?

लड़की के बापू मेहमानों से केवल इतना ही बोल पाए, ‘‘हुजूर! मुझे यह मालूम नहीं था कि आप सब कल से मेरी ही बिटिया के साथ एक ही ट्रेन में, एक ही सीट पर भुवनेश्वर से अंतरंग वार्त्तालाप करते हुए आए हैं। मेरी बिटिया बोल रही थी कि मामाजी तो एक प्रभावशाली नेता हैं। उनका सभी कोतवाली में पर्याप्त प्रभाव है और भानजे वीरेंद्र बाबू भी नारी सशक्तीकरण के एक सशक्त प्रवक्ता हैं। उन्हें शायद इसी साल नारी-सशक्तीकरण कृतियों पर ईनाम मिलेगा। बिटिया बोल रही थी कि वीरेंद्रजी अपार साहसी और वीर पुरुष हैं। कितनी भी बड़ी समस्या का सामना क्यों न करना पड़े, फिर भी वे दूसरों के मददगार बन सकते हैं। दोनों का एक-दूसरे के बारे में सबकुछ जान लेने के बाद यह ‘बिटिया नुमाइशी’ की रस्म क्या जरूरी है?’’

पत्नी के बुलाने की आवाज सुनकर वे अंदर की तरफ चल पड़े। मामा और भानजे (वीरेंद्र) अपनी जगह से उठते हुए एक पल के लिए हक्का-बक्का रह गए। दोनों एक-दूसरे को टुकुर-टुकुर देखते रह गए। दोनों की जुबान से समवेत स्वर अपने आप गूँज उठा—‘क्या वही॒लड़की!’

अध्यापक, हिंदी विभाग

आसिका विज्ञान महाविद्यालय

जिला—गंजाम-७६११११

(ओडि़शा)

दूरभाष : ०९७७८६११०६९

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