संगीतकार जेनको

दुनिया में वह पतला-दुबला आया था। चारपाई के इर्दगिर्द खड़े पड़ोसियों ने माँ और बच्चे को देखकर अपने सिर हिलाए। उन सबमें से अधिक अनुभवी—लोहार की पत्नी ने अपने ढंग से बीमार जच्चे को सांत्वना देनी शुरू कर दी।

‘‘तुम आराम से लेटी रहो,’’ उसने कहा, ‘‘और मैं पवित्र मोमबत्ती जलाती हूँ। तुम्हारा सबकुछ समाप्त हो चुका है; विनीत प्यारी, तुम्हें दूसरी दुनिया के लिए तैयारी करनी होगी। किसी को जाकर पुजारी को बुला लाना अच्छा रहेगा ताकि वह तुम्हें अंतिम धर्म-विधि की शिक्षा दे सके।’’

‘‘और नन्हे का तुरंत बपतिस्मा करना चाहिए,’’ दूसरी ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें बताती हूँ कि पुजारी के आने तक यह जीवित नहीं रहेगी और यह सुखकर होगा कि बिना बपतिस्मा किया हुआ भूत कहीं मँडराता न फिरे।’’

उसने बोलते हुए मोमबत्ती जलाई, शिशु को लिया, उसे पवित्र पानी का छींटा दिया, तब तक उसने अपनी आँखें नहीं झपकाईं; साथ ही ये शब्द कहे, ‘‘मैं पिता के नाम पर तुम्हारा बपतिस्मा करती हूँ और तुम्हें जॉन का नाम देती हूँ; पिता के बेटे और पवित्र भूत के नाम पर (मरनेवाले के लिए प्रयोग की जानेवाली अस्पष्ट प्रार्थनाओं के साथ)। और अब, ओ ईसाई आत्मा, विदा हो जाओ, चली जाओ इस संसार से और जहाँ से आई थी, वहीं लौट जाओ। आमीन।’’

ईसाई आत्मा इस संसार को छोड़कर जाने की जरा भी इच्छा नहीं रखती थी; इसके विपरीत, उसने अपनी टाँगों को, जितनी जोर से मार सकती थी, मारना शुरू कर दिया और रोने लगी—इतनी अच्छी आवाज में कि वहाँ बैठी औरतों को वह बिल्ली के बच्चों की बोली प्रतीत होती॒थी।

पुजारी बुलाया गया था। उसने अपना कर्तव्य निभाया और चला गया। माँ मरने की बजाय रोग-मुक्त हो गई और एक सप्ताह के बाद अपने काम पर चली गई।

शिशु का जीवन धागे पर लटक रहा था। वह कठिनाई से साँस लेता प्रतीत हो रहा था, परंतु जब वह चार वर्ष का हुआ तो छत पर कोयल तीन बार बोली जो पोलैंड के अंधविश्वासियों के अनुसार एक शुभ शकुन था और उसके बाद परिस्थितियाँ इस प्रकार बदलीं कि वह दस वर्ष का हो गया। वह पतला और कोमल था; उसका शरीर ढीला और गाल खोखले थे। सूखी घास की तरह उसके बाल उसकी स्पष्ट और उभरी हुई आँखों पर गिरते थे—आँखों में दूर की दृष्टि थी जैसे वह दूसरों से छिपाई गई चीजों को देखती हों।

सर्दियों में बच्चा चूल्हे के पीछे सिकुड़कर बैठा था; सर्दी के कारण कोमलता से रोता था—कभी-कभी भूख से भी, जब ‘मम्मी’ के बरतन या अलमारी में खाने के लिए कुछ नहीं होता था। गरमियों में वह छोटी सफेद कमीज में, जो कमर पर रूमाल से बँधी होती थी, इधर-उधर दौड़ता-फिरता था; सिर पर तिनकों की बनी टोपी होती थी। सन जैसे उसके बाल छिद्रों से बाहर झाँकते थे और उसकी दृष्टि पक्षी की तरह इधर-उधर झपटती थी। उसकी माँ, विनीत जीव, जो कठिनाई से गुजर करती थी, और एक अद्भुत छत के नीचे चिडि़या की तरह रहती थी, निस्संदेह लोक व्यवहार से उसे प्यार करती थी, फिर भी बहुत बार उससे झगड़ती और उसे प्रायः ‘चेंजलिंग’ कहा करती थी। आठ वर्ष की आयु में उसने अपना जीवन जीना आरंभ कर दिया; कभी भेड़ों के झुंड को चराता, कभी जंगल में खुंबियों के लिए निकल जाता—जब घर में खाने के लिए कुछ भी न होता। वह केवल परमात्मा को धन्यवाद देता कि इन साहसी यात्राओं में कोई भेडि़या उसकी चीर-फाड़ नहीं करता था। वह विशेषतया अकाल प्रौढ़ लड़का नहीं था और गाँव के तमाम बच्चों की तरह बुलाए जाने पर मुँह में अंगुली डालने की उसकी आदत थी। पड़ोसियों ने भविष्यवाणी की थी कि वह अधिक समय तक जीवित नहीं रहेगा या यदि वह जीवित रहता है तो भी अपनी माँ को आराम नहीं दे पाएगा क्योंकि वह कभी भी कठोर परिश्रम करने के योग्य नहीं होगा।

उसमें एक विशेष अनोखापन था। कौन कह सकता है कि इस असमान स्थान में यह उपहार क्यों दिया गया, परंतु संगीत को प्यार किया जाता है और उसका प्यार उत्कंठा थी। वह प्रत्येक वस्तु में संगीत सुनता था; वह हर ध्वनि पर ध्यान देता था और वह जितना बड़ा हुआ, उसने स्वर-ताल की ओर उतना ही अधिक ध्यान दिया। यदि वह पशुओं की देखभाल करता अथवा मित्रों के साथ जंगल में बेर इकट्ठे करने जाता, वह खाली हाथ लौटता और तुतलाकर कहता, ‘‘ओ मम्मी, वहाँ कितना सुंदर संगीत था। वह बजा रहा था—ला-ला-ला!’’

‘‘मैं तुम्हारे लिए भिन्न धुन बजाऊँगी, अरे, निकम्मे बंदर।’’ उसकी माँ क्रोध से चीखती और उसे करछुल से मारती थी।

छोटा बच्चा चीखता और संगीत को दोबारा न सुनने का वचन देता, परंतु जंगल के बारे में और अधिक सोचता था कि वह कितना सुंदर था और ऐसी आवाजों से भरा था जो गाती और गूँजती थीं। कौन था, क्या गाता और गूँजता था, वह ठीक तरह नहीं बता सकता था। चीड़ के पेड़, जंगली वृक्ष, भोजपत्र के पेड़, सारिका पक्षी, सभी गाते थे; सारे-का-सारा जंगल गाता था और प्रतिध्वनियाँ गाती थीं—चरागाहों में घास के तिनके गाते थे, कुटी के पीछे उद्यान में चिडि़याँ चूँ-चूँ करती थीं; चैरी के पेड़ खड़खड़ाते और कर्कश आवाज करते थे। शाम को वह समस्त प्यारी आवाजें सुनता था जो केवल देहात में ही सुनाई देती हैं और वह सोचता था कि सारा गाँव धुन से गूँज रहा था। उसके साथी उसपर हैरान होते थे क्योंकि वे इस प्रकार की सुंदर आवाजें नहीं सुनते थे। जब वह घास उछालने का काम करता तो सोचता था कि पवन उसके डंडे के काँटों से गुजरकर गाती है! निरीक्षक जब उसे निकम्मा खड़े देखता, बालों को माथे से पीछे किए हुए, हवा के संगीत को काँटे पर उसे सुनता पाता तो उसके स्वप्न को तोड़ने और उसे होश में लाने के लिए पट्टी की कुछ चोटें मारता था, परंतु इससे कोई लाभ न होता। अंत में पड़ोसियों ने उसका नाम ‘संगीतकार जेनको’ रख दिया।

रात के समय जब मेढक टर्राते, चरागाहों के पार कर्कश आवाजवाले पक्षी चीखते, दलदल में बगुले झपटते और भेड़ों के पीछे मुरगे बाँग देते तो बच्चों को नींद नहीं आती थी; वह इन्हें खुशी से सुन नहीं सकता था और परमात्मा ही जानता है कि वह इन सब आवाजों में मिली हुई किन अनुरूपताओं को सुनता था। उसकी माँ उसको अपने साथ गिरजा नहीं ले जा सकती थी क्योंकि वहाँ जब भी बाजा बजता तो बच्चे की आँखें धुँधली और गीली हो जाती थीं या फिर खुलकर चमकने लगती थीं जैसे कि दूसरी दुनिया ने उन्हें प्रकाशयुक्त कर दिया हो!

चौकीदार, जो रात को गाँव में गश्त लगाता था और तारे गिनता था अथवा जागते रहने के लिए कुत्तों से धीमी आवाज में बातें करता था, ने कई बार जेनको की छोटी सफेद कमीज को अँधेरे में कलबरिया की ओर तेजी से उड़ते देखा था। बच्चा कलबरिया में नहीं जाता था, परंतु दीवार के साथ झुककर सुना करता था। अंदर संगीत पर जोड़े, प्रसन्नतापूर्वक घूमते थे और कभी-कभी एक आदमी चीखता—‘‘हुर्रे!’’ पाँव पटकने की आवाज और लड़कियों की कृत्रिम आवाजें सुनाई देती थीं। सारंगी कोमलता से कल-कल कर रही थी और बड़े बाजे के गहरे स्वर गूँज रहे थे, खिड़कियाँ रोशनी से उत्साहित थीं और नाचघर में लकड़ी का हर तख्ता चर-चर करता प्रतीत होता था, गाता और बजाता मालूम होता था और जेनको इन सबको सुनता था। वह ऐसी सारंगी को पाने के लिए क्या कुछ नहीं देता, जो ऐसी ध्वनि पैदा करती है—ऐसा संगीत उत्पन्न करती है! काश! यह कहीं मिलती, किसी तरह उसे बना पाता? यदि उसको हाथ में लेने की आज्ञा दे दे तो...? परंतु नहीं, वह सुनने से अधिक कुछ नहीं कर सकता था और उसने तब तक सुना जब तक चौकीदार ने अँधेरे में उसे आवाज नहीं दी—

‘‘ओ छोकरे, जाओ अपने बिस्तर पर।’’

फिर छोटे, नंगे पाँव अपने कमरे की ओर बढ़ते और वायलिन की आवाज उनके पीछे-पीछे आती।

यह उसके लिए महान् अवसर होता जब वह फसल की कटाई पर अथवा किसी विवाह पर सारंगी को बजते सुनता। ऐसे अवसरों पर वह अँगीठी के पीछे सरक जाता और रात को बिल्ली की आँखों की तरह अपनी चमकीली बड़ी आँखों से सामने देखता हुआ, कई दिनों तक एक शब्द भी नहीं बोलता था।

अंत में उसने एक पतले तख्ते से सारंगी बनाई और उसमें घोड़े के बालों के ‘तार’ लगाए, परंतु वह इनती सुंदर नहीं बजती थी, जितनी कलबरियावाली। तारें नरमी से टन-टन की आवाज करती थीं; वह मक्खियों अथवा बौने की तरह भिनभिनाती थीं। फिर भी वह उसे प्रातः से रात तक बजाता था, भले ही ठोकरों और मुक्कों से नीला-पीला हो जाता था, लेकिन कर भी क्या सकता था, वह तो उसका स्वभाव बन गया था।

बच्चा पतला और पतला होता गया; उसके बाल घने होते गए, उसकी आँखें अधिक घूरनेवाली हो गईं और आँसुओं से तैरने लगीं; उसके गाल और छाती पहले से खोखली हो गई। वह कभी भी और बच्चों की तरह नहीं लगा; वह अपनी छोटी विनीत सारंगी की तरह था जो कठिनाई से सुनी जाती थी। इससे अधिक, फसल से पहले वह भूखा रहता था और मुख्यतः कच्चे शलजमों को खाकर जीता था या फिर अपनी इच्छाओं पर गुजर करता था—उसकी वायलिन के प्रति तीव्र इच्छाएँ। ओह! इन इच्छाओं का बुरा फल मिला!

ऊपर किले में एक सिपाही के पास सारंगी थी जो अपनी प्रेमिका और साथी नौकरों को खुश करने के लिए शाम को बजाया करता था। जेनको प्रायः बेलों में खिसककर संगीत सुनने या कम-से-कम सारंगी को एक नजर देखने के लिए नौकरों के बड़े कमरे के दरवाजे तक पहुँच जाता था। सारंगी दरवाजे के ठीक सामने दीवार पर लटकी होती। जब बच्चा उसको देखता था, उसकी सारी आत्मा उसकी आँखों में आ जाती थी—वह अलभ्य खजाना था जिसको प्राप्त करने में वह असमर्थ था, भले ही वह उसे पृथ्वी पर अत्यंत मूल्यवान वस्तु समझता था। उसको एक बार अपने हाथ से छूने या फिर इसको पास से देखने की मूक लालसा उसमें उभरी। यह विचार आते ही विनीत बचकाना दिल खुशी से उछल पड़ा।

एक शाम नौकरों के बड़े कमरे में कोई नहीं था। वहाँ का परिवार काफी समय से विदेश में रह रहा था, घर खाली था और सिपाही अपनी प्रेमिका के साथ कहीं गया हुआ था। जेनको बेलों में छिपा, कई मिनटों तक आधे खुले दरवाजे से अपनी इच्छा के लक्ष्य को देखता रहा था।

पूर्णिमा का चाँद आकाश में तैर रहा था; उसकी रश्मियाँ कमरे में रोशनी की धाराएँ फेंक रही थीं और सामनेवाली दीवार पर गिर रही थीं। धीरे-धीरे वे उस स्थान की ओर बढ़ीं जहाँ वायलिन लटक रही थी और उसपर पूरी तरह से गिरीं। अँधेरे में बच्चे के लिए वह साज के चारों ओर चाँदी का प्रभामंडल सा प्रतीत हो रहा था। वह साज को इस प्रकार प्रकाशित कर रहा था कि जेनको देखकर चुँधिया गया; तारें, गरदन और दिशाएँ स्पष्टतया नजर आ रही थीं, खूँटियाँ जुगनुओं की तरह चमक रही थीं और कमान जादूगर के चाँदी के डंडे की तरह था। वह कितना सुंदर था—लगभग जादू का! जेनको ने भूखी आँखों से देखा। सींखचे की बेल से सटा, अपने हड्डीदार घुटनों पर कोहनियाँ टेकीं, वह खुले मुँह से निश्चल इस एक वस्तु को देख रहा था। अब उसे डर ने घेर लिया और अगले क्षण शांत न करने योग्य इच्छा ने उसे आगे बढ़ाया। क्या यह जादू था या नहीं था? वायलिन अपनी यशस्वी किरणों के साथ उसके पास आती हुई जान पड़ती थी, उसके सिर पर मँड़राने के लिए!

केवल पुनः तेजी से चमकने के लिए, एक क्षण के लिए यश पर अँधेरा छा गया। जादू, यह वास्तव में जादू था! इतने में पवन चरचराई, वृक्ष खड़खड़ाए, बेलों ने कोमलता से कानाफूसी की और बच्चे को ऐसा लगा कि वह कह रही हो—‘जाओ, जेनको जाओ, वहाँ कोई नहीं है, जेनको जाओ।’

रात साफ और चमकीली थी। बाग में जोहड़ के पास बुलबुल ने गाना शुरू किया—धीरे-धीरे फिर जोर से ऊँचे-ऊँचे। उसका गीत कह रहा था—‘जाओ, साहस करो, उसे छू लो।’ एक ईमानदार काला कौआ बच्चे के सिर पर कोमलता से उड़ा और काँव-काँव करने लगा—‘नहीं, जेनको नहीं।’ कौआ उड़ गया, परंतु बुलबुल रह गई और बेलें अधिक स्पष्टता से चिल्लाईं, ‘वहाँ कोई नहीं है।’

सारंगी अब भी चाँद की किरण के रास्ते में लटक रही थी—झुकी हुई आकृति कोमलता से और ध्यानपूर्वक निकट आती गई और बुलबुल कहती रही, ‘जाओ, जाओ, उसे ले लो।’

दरवाजे के रास्ते पर सफेद कमीज टिमटिमाई। काली बेलों से वह जल्दी से छिपाई न जा सकी। किनारे पर कोमल बच्चे की दुःखी तेज साँस सुनाई देती थी। एक क्षण के बाद सफेद कमीज लुप्त हो गई और केवल एक नंगा पाँव अभी तक सीढि़यों पर खड़ा था। एक बार काला कौआ पुनः पास से काँव-काँव करता उड़ गया—‘नहीं, नहीं’; जेनको पहले ही अंदर जा चुका था।

जोहड़ में मेढक जैसे एकाएक मौन हो गए थे वैसे ही एकाएक टर्राने लगे मानो किसी चीज ने उन्हें डरा दिया हो। बुलबुल ने गाना और वृक्षों ने कानाफूसी करना बंद कर दिया। इस बीच जेनको अपने खजाने की ओर धीरे-धीरे बढ़ा, परंतु डर ने उसे पकड़ा हुआ था। बेलों की छाया में उसने अपने को सुरक्षित पाया, मानो जंगल की झाडि़यों में जंगली पशु हो—अब वह फंदे में फँसे जंगली पशु की तरह काँपा। वह शीघ्रता से हिलडुल रहा था—उसकी साँस छोटी थी।

पूरब से पश्चिम तक चमकती गरमियों की बिजली मकान को थोड़ी देर के लिए जगमगा देती थी और विनीत जेनको लगभग अपने घुटनों और हाथों पर काँपते हुए अपने सिर को आगे सारंगी के पास दबाए हुए नजर आता था, परंतु गरमियों की बिजली रुक गई, एक बादल चाँद के आगे से गुजरा और फिर अँधेरे में कुछ भी दिखाई या सुनाई नहीं दिया।

फिर थोड़ी देर के बाद, अँधेरे में एक धीमी दर्द भरी आवाज सुनाई दी, मानो किसी ने अकस्मात् तार को छू दिया हो और उस समय कमरे के कोने से कर्कश उनींदी आवाज आई, ‘‘कौन है वहाँ?’’

दीवार के साथ दियासलाई ने रगड़ खाई, छोटी ज्वाला निकली और फिर—‘ओ, परमात्मा!’ फिर कठोर गालियाँ, मुक्कों की बौछार, बच्चे की चीख-पुकार; ‘ओह, परमात्मा के लिए!’ कुत्तों का भौंकना, खिड़कियों के सामने लोगों का बत्तियाँ लिये हुए इधर-उधर भागना, सारे घर में कोहराम मच गया।

दो दिन के बाद विनीत जेनको न्यायाधीशों के सामने खड़ा था। क्या उसको चोरी के लिए अभियुक्त ठहराया जाए? वस्तुतः।

जैसे ही वह कटघरे में खड़ा हुआ, न्यायाधीश और मकान मालिक ने दोषी को देखा—मुँह में अंगुली डाले, भयानक छोटी, दुर्बल, गंदी, पराजित आँखों से घूरता हुआ और बता पाने में असमर्थ कि वह वहाँ क्यों और कैसे पहुँचा था या वे लोग इसके साथ क्या करनेवाले थे, खड़ा था।

न्यायाधीश ने सोचा कि ऐसे छोटे हतभाग्य व्यक्ति पर मुकदमा कैसे चलाया जा सकता है, जो केवल दस वर्ष का है और कठिनाई से अपनी टाँगों पर खड़ा हो सकता है? उसे जेल भेजा जाए या क्या...? बच्चे के साथ ज्यादा कठोरता से पेश नहीं आना चाहिए। क्या यह उचित नहीं रहेगा कि इसे चौकीदार के हवाले कर दिया जाए और वह इसे कुछ कोड़े मारे, ताकि यह पुनः चोरी न करे और मामला यहीं समाप्त हो जाए!

‘‘ठीक है, बहुत अच्छा विचार है।’’

स्टाच चौकीदार को बुलाया गया।

‘‘इसको ले जाओ और चेतावनी के तौर पर कोड़े लगाओ।’’

स्टाच ने अपना बेढंगा बड़ा सिर हिलाया और अपने बाजू के नीचे कुत्ते के पिल्ले की तरह जेनको को लेकर खलिहान की ओर चल दिया।

या तो बच्चे ने सारे मामले को समझा नहीं या फिर वह बोलने से डर रहा था; किसी भी हालत में वह बोला नहीं और एक भयभीत पक्षी की तरह अपने चारों ओर देखता रहा। वह जान भी कैसे सकता था कि वे इसके साथ क्या करना चाहते थे? जब स्टाच ने उसे पकड़ा, खलिहान के फर्श पर लिटाया और उसकी छोटी कमीज को बेंत से ऊपर उठाया तो जेनको चीखा ‘‘मम्मी।’’ और हर कोड़े पर चिल्लाया, ‘‘मम्मी, मम्मी।’’ परंतु हर बार धीमे और दुर्बलता से; कुछ कोड़े खाने के बाद वह चुप हो गया और मम्मी को पुकारना बंद कर दिया।

विनीत टूटी हुई सारंगी!

भद्दे, दुष्ट स्टाच! बच्चे को क्या किसी ने इस तरह से कभी पीटा है? विनीत बच्चा हमेशा से दुबला और पतला रहा था और कठिनाई से साँस उसके शरीर में थी।

अंत में उसकी माँ आई और बच्चे को अपने साथ ले गई, उसे उठाकर ले जाना पड़ा। अगले दिन जेनको नहीं जागा और तीसरे दिन तख्ते पर घोड़े के कपड़े से ढके उसके प्राण पखेरू शांति से उड़ गए!

वह लेटा हुआ था, खिड़की के सामने उगे चैरी के पेड़ पर अबाबील चिडि़या बोल रही थी; खिड़की के शीशे से होती हुई सूर्य की किरण आ रही थी और बच्चे के भोथरे बालों और रक्तहीन चेहरे को चमका रही थी। ऐसा प्रतीत होता था कि बच्चे की आत्मा को स्वर्ग में जाने के लिए किरण रास्ता बना रही थी।

उसके लिए, उसके अंतिम समय में वह चौड़े और सौर पथ से जाएगा इसके विपरीत कि जीवन में कँटीले रास्ते पर चलता। व्यर्थ पड़ी हुई छाती अब भी कोमलता से ऊपर-नीचे हो रही थी और ऐसा लगता था कि बच्चा खिड़की से आती हुई बाहरी दुनिया की प्रतिध्वनियों के प्रति अभी भी सचेत था। शाम हो गई थी; घास सुखाने के बाद किसान-लड़कियाँ गाती हुई पास से लौट रही थीं; पास में नदी मंद-मंद शब्द उत्पन्न कर रही थी।

जेनको ने अंतिम बार गाँव की संगीतमयी प्रतिध्वनियों को सुना। घोड़े के कपड़े पर उसकी बगल में सारंगी पड़ी थी जो उसने लकड़ी के पतले तख्ते से बनाई थी। एकाएक मरते हुए बच्चे का चेहरा चमक उठा और उसके होंठ—सफेद होंठ धीमे से बोले, ‘‘मम्मी!’’

‘‘बोलो मेरे बच्चे।’’ माँ ने सिसकियाँ भरते हुए कहा।

‘‘मम्मी, परमात्मा मुझे स्वर्ग में असली सारंगी देगा।’’

‘‘हाँ, हाँ, मेरे बच्चे।’’ माँ ने उत्तर दिया। वह अधिक कुछ न कह सकी क्योंकि उसके दिल में एकाएक दुःखमयी शोक उमड़ पड़ा था। वह केवल बड़बड़ाई, ‘‘जीसू, मेरे जीसू!’’ और मेज पर सिर रखकर रोने लगी—इस तरह रोने लगी जैसे मृत्यु ने उसका खजाना लूट लिया हो!

और यह ऐसे हुआ। जब उसने सिर उठाकर बच्चे की ओर देखा तो छोटे संगीतकार की आँखें खुली थीं, परंतु उसकी आकृति गंभीर, पवित्र और कठोर थी। सूर्य की किरण लुप्त हो चुकी थी।

‘‘परमात्मा तुम्हें शांति प्रदान करे, नन्हें जेनको।’’

 

अगले दिन बेरन और उसका परिवार इटली से किले में लौट आया। औरों के साथ घर की बेटी और उसका मंगेतर भी था।

‘‘इटली कितना रमणीय देश है!’’ भद्र पुरुष ने कहा।

‘‘हाँ, और वहाँ के लोग! वह कलाकारों का देश है। इसको जानकर उनके गुणों को प्रोत्साहित करना आनंददायक है।’’ युवा महिला ने उत्तर दिया।

जेनको की कब्र पर बबूल के पेड़ खड़खड़ा रहे थे।

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