सपनों का प्रतीकात्मक अर्थ

सपनों का प्रतीकात्मक अर्थ

प्रतीक एक ऐसी प्रेषण प्रक्रिया है, जिसके द्वारा प्रस्तुत सत्य के आधार पर किसी समतुल्य अप्रस्तुत सत्य का भाव संपे्रषण अथवा प्रत्यक्षीकरण होता है। प्रतीक स्वयं में अपना एक व्यापक अर्थ लिये होता है। प्रतीक कविता में एक नई अर्थवत्ता का बोध कराते हैं और भाषण में एक नई शक्ति आ जाती है। किंतु स्वप्न में ये किस भाव का संप्रेक्षण करते हैं या व्यापकता को निहित किए रहते हैं, इसका विश्लेषण निहायत जरूरी है। यहाँ यह भी प्रश्न उठता है कि स्वप्न क्या प्रतीक हैं या किसी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को लिये हुए व्यक्ति अचेतन अवस्था में प्रस्तुत होते हैं। अरस्तू जैसे महान् चिंतक स्वप्न को भूत-भविष्य का निर्धारक मानते हैं। जब भावना और सत्ता के समन्वय से प्रतीक का जन्म होता है।

विश्व के विलक्षण स्वप्नदृष्टा सिगमंड फ्रायड ने २४ जुलाई, १८९५ की रात एक जीवंत सपना देखा कि वह बहुत बड़ी दावत दे रहे हैं। उस विशाल दावत में उनकी एक मरीज भी थी, जो उनसे बात कर रही थी, मेरी तबीयत के बारे में जितना आप जनते हैं, मैं कहीं उससे ज्यादा बीमार हूँ। नींद खुलने पर उन्होंने वह पूरा स्वप्न अपनी डायरी में दर्ज कर लिया और फिर इसे इंगित विवरणों का अध्ययन, चिंतन, मनन करना शुरू किया तथा लग गए इस स्वप्न का गोपनीय रहस्यमय अर्थ अभिप्राय ढूँढ़ने। कुछ दिनों के बाद उन्हें लगा कि उन्होंने उस स्वप्न का अर्थ ढूँढ़ लिया। शायद उनके मन की सुप्त इच्छाएँ स्वप्न में उनके सामने प्रकट हो गई थीं। मसलन उनकी मनोचिकित्सक शिष्या, जो बीमार थी, और अधिक रुग्णता की स्थिति में पहुँच गई थी। कहने का तात्पर्य है कि स्वप्न कभी-कभी यथार्थ की सूचना भी दे देते हैं और कभी भावी घटनाओं से सचेत भी करते हैं। मेरे लिए स्वप्न भावी घटनाओं के सूचक॒हैं।

सपने आज अध्ययन का एक खास विषय बन गए हैं। पश्चिमी देशों में इस पर काफी खोजकार्य चल रहा है, आखिर हम सपने क्यों देखते हैं? प्रयोगशालाओं से लेकर आदमी के निद्राकक्षों तक उसके प्रति जागृति पैदा हो गई है, चर्चाएँ हो रही हैं।

सत्रहवीं सदी में फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक रेने विसकार्त्ते ने स्वप्न के संबंध में अपने तर्क पेश किए थे कि बुद्धि सदैव सोचती रहती है, जो अर्धचेतन या अवचेतन अवस्था में दिखाई देता है। किंतु लॉक इस मत के विरुद्ध थे। यदि विसकार्त्ते की बात मान ली जाए कि रात में जो कुछ सपना देखा जाता है, वह एक निश्चित विचार, चिंतन, मनन का परिणाम है। जबकि लॉक का मत इसके विरुद्ध था। यदि विसकार्त्ते की बात मान ली जाए कि रात में जो सपने देखे जाते हैं, वे निश्चित विचार, चिंतन तथा मनन के परिणाम होते हैं, तब लॉक का कथन कि जब शरीर सो रहा होता है, आत्मा विचार-निमग्न होती है और ज्यों ही नींद खुलती है, सुप्तावस्था में सोची हुई बातें भुला जाती हैं। मेरा मानना है कि सभी स्वप्न भूलते हैं, कुछ सपने नींद के बाद भी याद रहते हैं। स्वप्न प्रायः तब दिखाई देते हैं, जब व्यक्ति सुप्तावस्था या अर्धचेतन, अवचेतन अवस्थाओं में होता है। यानी दिन में मन-मस्तिष्क में कुछ विचार अपूर्ण से रह जाते हैं या जो भविष्य के लिए परियोजित होते हैं, वे स्वप्न में जीवंत हो उठते हैं। इसका तात्पर्य है कि आत्मा और शरीर दोनों मिलकर ‘चिंतन’ का कार्य करते हैं।

प्रसिद्ध विचारक मनीषी लॉक के उक्त मत से असहमति जताते हुए लिस्नज ने कहा, ‘‘हर व्यक्ति की अपनी अलग सत्ता है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से भिन्न है, दोनों का स्वभाव, विचार, विश्वास, सभी कुछ अलग हैं, इसलिए सुप्तावस्था में जब व्यक्ति अकेले होता है, वह एकदम अलग बात सोचता है, इसलिए स्वप्न की बातें सभी व्यक्तियों के लिए प्रतीक नहीं हो सकतीं, परंतु ‘चिंतन’ चेतन रूप में प्रकट हो सकता है, जिसे स्वप्न कह सकते हैं।’’

दार्शनिक हीगल और कांट भी स्वप्न में सोच को आकार ग्रहण करने के साथ को स्वीकारते हैं, नींद में भूल की संभावनाएँ अधिक होते हुए भी सही बातें सोच सकने की संभावना है। दार्शनिक कांट की बात बड़ी निराली है। वे कहते थे, ‘बिना स्वप्न के आदमी सो नहीं सकता। स्वप्न सोने की क्रिया का एक अंगमात्र है।’ (Anthropoligie...KANT)

होमर ने स्वप्न को ‘विलक्षण, अग्राह्य’ कहकर छोड़ दिया था, उस पर विश्व के अनेक वैज्ञानिक विचार कर रहे हैं। स्वप्न शोधकर्ता सपनों के वैज्ञानिक विकास के बारे में जानकारी के लिए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में संदर्भ ढूँढ़ते हैं और उन संदर्भों के तथ्यों-तर्कों को कसौटी पर परखने का प्रयास करते हैं। ‘स्वप्न प्रतीकों की भाषा प्रायः रहस्यमयी होती है। स्वप्न हमारे अनुभवों का व्यापक और जरूरी हिस्सा हैं। स्वप्न निष्कारण और अर्थहीन नहीं होते। उनका निश्चित ही कोई अर्थ और लक्ष्य होता है। चूँकि स्वप्न की उत्पत्ति में शारीरिक उत्तेजकों का हाथ रहता है, अतः इन्हें मस्तिष्क का नींद के समय का जीवन कह सकते हैं, ऐसा जीवन जो हमारे जाग्रत् जीवन से समानता रखता है। इनमें हमारी आंतरिक इच्छाएँ प्रतीकात्मक रूप में प्रकट होती हैं।’ (लंबी कविताओं की नाभि कृति : ‘अग्निहोत्र सपनों’ में, डॉ. राहुल, पृ. १४१) कवि जीवन प्रकाश जोशी स्वप्न में ही अग्निहोत्र करते हैं। यह जीवन का कितना बड़ा सच/स्वप्न है।’ यह कविता चेतन अनुभवों की वस्तुनिष्ठता को जन्म, मृत्यु, प्रेम, मातृत्व, परिवर्तन, रूपांतरण, भयावह, आपत्ति, अनर्थ या विध्वंस संकट, उतार-चढ़ाव आदि आद्य-रूपों में व्यक्त करती है। ये सारे आद्य अनुभव प्रतीकों-मिथों से जुड़कर अनुभवों को सुरक्षा का भाव प्रदान करते हैं। (‘अग्निहोत्र सपनों में’, का संरचनात्मक अनुशीलन/डॉ. विजया, पृ. ९७) यों ये सभी प्रतीक आर्केटाइप स्वर के हैं। स्वप्न तो सभी देखते हैं, लेकिन अमीरों के स्वप्न भी स्वर्णिम और गरीबों के सपने दीनता के होते॒हैं।

स्वप्न पर अनेक आर्टिकल्स और पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें स्वप्न के कारणों, प्रकारों, देखे स्वप्नों के समय का फल, शुभ-अशुभ स्वप्न पर गहराई से विवेचन किया गया है। सेन फ्रांसिस्को के पास स्वप्न-पुस्तकों का एक पुस्तकालय है, स्वप्नों पर आधारित चित्रशालाएँ हैं, असंख्य स्टीकर वहाँ औषधिशास्त्र व्यवसायी की अँधेरी गुफाओं में बंद रहने के कारण जो अज्ञात थे, अब बाहर आ गए हैं। जुंगियन सिद्धांतवादी राबर्ट बोसनक कहते हैं, ‘हर आदमी के लिए स्वप्न देखना जरूरी है।’

भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है—

यथा स्वप्नं भयं शोकं विषादं भयमेव च।

न विभुन्वति दुर्मेधा धृतिः सापार्थ तामसी॥ (१८/३५)

अर्थात् निद्रा, स्वप्न, आलस्य, प्रमाद ये तमोगुण की अधिकता होने पर होते हैं। तम ही अज्ञान का कारण है, जिसपर तमोगुण आ जाए, वह तामस स्वभाव का हो जाता है। पतंजलि ने निद्रा को मन की एक वृत्ति माना है, ‘अभाव प्रत्ययात्नवम्बना वृत्तिर्निद्रा।’ (यो.सू. १/१०) ज्ञान के अभाव की यह प्रतीति जिस भावना से हो रही होती है, उस चित्तवृत्ति का नाम निद्रा है। कुछ विद्वान इसे चित्त की वृत्ति मानकर स्वप्न ‘सुषुप्ति मन की अवस्था’ विशेष मानते हैं। निद्रा की पूर्व अवस्था तंद्रा तथा निद्रा की प्रगाढ़ अवस्था सुषुप्ति होती है। निद्रा अवस्था में ही स्वप्न दिखाई देते हैं। कभी-कभी स्वप्नावस्था में जब कदाचित् स्वाप्तिक वृत्ति प्रभाव डाल देती है तो स्वप्न सार्थक भी हो जाते हैं। कभी-कभार चित्त पूर्वजन्म के संस्कारों को अहंकार द्वारा खींच लेता है। स्वप्न में उथल-पुथल मचती है। यह संस्कार भी स्वप्न रूप में उभर आता है। बहुत से स्वप्न ऐसे होते हैं, जो दिनचर्या के कारण मन में बसे रहते हैं, पर प्रस्तुत नहीं हो पाते, वे ही स्वप्न रूप में प्रकट होते हैं। ऐसे सपनों में कुछ निरर्थक व कुछ सार्थक होते हैं। चरक में महर्षि अग्निवेश लिखते हैं—

सर्वेन्द्रियव्युपरतौ मनोऽनुपरमस्तदा।

विषयेभ्यस्तदा स्वप्ने नानारूप प्रपश्यति॥ (अष्टांग सं. २-९)

यानी जब सब इंद्रिया उपरत (विषयों से निवृत्त) हो जाती हैं, परंतु मन नहीं हो चुका होता, तो वह नाना प्रकार के स्वप्न देखता है। स्वप्न देखने के अनेकशः कारण हैं—

१. श्रुत : सुना हुआ का स्वप्न में आ जाना।

२. दृष्ट : जिसे हम जाग्रत् अवस्था में प्रत्यक्षतः देख चुके हों।

३. अनुभूत : जिसका हमने कभी अनुभव किया हो।

४. प्रार्थित : जो इच्छित हो।

५. कल्पित : जिस विषय की कल्पना की हो।

६. भाविक : जो शुभ-अशुभ फल से भविष्य की चेतावनी देते हैं।

७. दोषज : जो वात, पित्त, कफ दोषों या रोगों के कारण हों।

इनके अतिरिक्त कुछ दारुण स्वप्न भी होते हैं, जो मृत्यु अवस्था के पूर्व आते हैं, उस समय मनोवह स्रोत त्रिदोष से परिपूर्ण होते हैं।

कुछ लोगों का विश्वास है कि सपने सदियों से हमें झूठे दिलासा देते आ रहे हैं। सपने सच नहीं होते। फ्रायड के पैदा होने से ४००० वर्ष पूर्व मिस्र के पुजारियों ने स्वप्नों की व्याख्या करने का प्रयास किया था, किंतु वे किसी एक निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाए। अरस्तू ने तब कथा था—‘यह एक सचेत करनेवाली अवस्था है (वार्निंग सिस्टम)।’ आज का अध्ययन ऐसा दावा न करे, लेकिन देश-विदेश में सर्वत्र सपनों के प्रति जागृति है। बहुतेरे लोग स्वप्न देखकर अपने दैनिक कार्यक्रमों में बदलाव कर लेते हैं।

स्वयं द्वारा देखे गए सपनों का जिक्र मैं आगे करूँगा। यहाँ यह बतला देना जरूरी है कि जो लोग स्वप्न को किसी होनेवाली घटना या परिस्थिति का प्रतीक (सूचक) मानते हैं, उनके इस विश्वास के साथ ‘अंधविश्वास’ का भी मेल कहा जा सकता है कि जिस चीज की जानकारी न हो, उसके प्रति विश्वास बनता है, वह या तो विगत अनुभव के आधार पर या धार्मिक भावनावश होता है। धर्म बहुत व्यापक शब्द है। यहाँ मैं धर्म शब्द की व्याख्या न कर प्रसंग से जुड़कर कहना चाहूँगा कि धार्मिक भावनाएँ हमें आस्था से जोड़ती हैं। आश्वस्त करती हैं। धर्म की शक्ति सत्य है और यही असली शक्ति है। मन निर्मल होने से सोच भी निर्मल होती है। धर्म तर्क का नहीं, आत्मा का विषय है।

कहते हैं, एक बार एक अमरीकी जज ने स्वप्न देखा कि उसने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है और कुछ दिनों बाद वाकई किसी ने उसकी पत्नी की हत्या कर दी। स्वप्न के बारे में मैंने अनेक व्यक्तियों से चर्चा की। उनके देखे स्वप्नों के बारे में सुना, अपने देखे सपनों के बारे में भी उन्हें बताया। अनेक व्यक्ति प्रतिदिन स्वप्न में एक-दूसरे को मारते पीटते हैं, भागते हैं, झगड़ते हैं, परंतु उनका इरादा ऐसा कुछ भी नहीं होता, फिर उन्हें ऐसे आपराधिक सपने क्यों दिखाई देते हैं? ये आपराधिक मनोवृत्तियाँ प्रायः व्यक्ति के मन में दबी रहती हैं। वे स्वभावतः वैसा नहीं कर पाते, लेकिन स्वाभिमान का भाव उन्हें बेचैन किए रहता है, जो किसी क्रिया की प्रतिक्रिया स्वरूप उभर आता है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि ऐसे देखे सपने बिल्कुल अर्थहीन होते हैं, कदापि नहीं। हाँ, कुछ सपने निरर्थक हो सकते हैं, किंतु कई सपने दूर-दराज के क्षेत्रों, संबंधों, सरोकारों में घटित होते मिल जाते हैं।

महाकवि जयशंकर प्रसाद के पड़ोस में बाबू राघवेंद्र नारायण सिंह, जो काफी धनाढ्य जमींदार थे, से मेरे पिताजी का पारिवारिक संबंध था। उन्हीं के यहाँ रहकर मैंने उच्च शिक्षा हासिल की थी। आर्थिक विपन्नता के दिनों में भी वे पिताजी की मदद करते रहे। बडे़ दयालु प्रकृति के थे। साठ-सत्तर कारिंदे थे। घरेलू नौकर-चाकर दिनभर उनकी सेवा शुश्रूषा में लगे रहते थे। काशी के जिला कलेक्टर भी उनका मान-सम्मान करते थे। केंद्रीय रेलमंत्री पं. कमलापति त्रिपाठी का भी उनके यहाँ आना-जाना था। प्रदेश के विधायक श्री ऋषि नारायण शास्त्री उनकी कोठी पर ही अकसर रहते थे। मेरे पिता श्री राजाराम श्रीवास्तव की बीमारी के दौरान बाबू साहब ने इलाज का सारा खर्च वहन किया था। सन् १९७७ के जाडे़ में मैंने स्वप्न देखा कि बाबू साहब का देहावसान हो गया। सुबह होते ही मैं भावुक हो रो पड़ा। फिर दोपहर में घर पर एक पत्र लिखा, जिसमें सारी बातें लिखीं। दो सप्ताह बडे़ बाबू राधेमोहन श्रीवास्तव का पत्र आया कि बाबू साहब की मृत्यु दो सप्ताह पहले ही हो गई। तुम्हारा स्वप्न बिल्कुल सही रहा।

अनेकशः देखे स्वप्न मुझे अब भी याद हैं, परंतु उनमें से एक-दो का ही जिक्र मुनासिब होगा। ७ मई, २०१० की रात के अंतिम पहर में देखा कि मेरी दादी सफेद साड़ी पहने कहीं से आ रही हैं। घर में जाती हैं, फिर हम बच्चों को बुलाती हैं। मेरी आँख खुल जाती है। आशंका से मेरा मन विचलित हो गया। अपशगुन भरा स्वप्न था, क्योंकि सफेद वस्त्र में किसी को देखना ‘मृत्यु’ का सूचक है। ८ मई को फोन आया कि माँ की तबीयत बहुत खराब है। हमने अपना आरक्षण कराया १० मई को इलाहाबाद जाने का। प्रयागराज एक्सप्रेस से हम चल दिए। सुबह साढे़ चार बजे दुबारा छोटे भाई का फोन आया कि माँ की मृत्यु रात में ही हो गई। हम बिलख पडे़। माँ का पूरा जीवन आँखों के सामने चलचित्र सा घूम गया। उफ, सपने भी कितने सच होते हैं!

कभी-कभी सपने इतने प्रभावी, इतने अंतरंग और विलक्षण होते हैं कि मैं अवाक् रह जाता हूँ। कई सगे-संबंधियों, नाते-रिश्तेदारों और इष्ट मित्रों के देह-त्याग से पूर्व शादी-ब्याह, दक्षिण दिशा में यात्रा, मृत्यु पूर्व (माँ) व्यक्तियों (उनकी आत्माओं) को स्वप्न में दिखने भर से मुझे किसी अनहोनी का आभास हो जाता है। अभद्र स्वप्न देखकर मैं परिवारजनों को भी सचेत सतर्क कर देता हूँ। और स्वप्नानुसार दो-चार दिन में कहीं-न-कहीं कुछ शुभ-अशुभ समाचार सुनने को मिल ही जाता है। कभी-कभार सपने इतने डरावने होते हैं कि मन भूत-प्रेत, किसी तरह के आतंक, भय अर्थात् रोमांचित कर देते हैं। रात में अँधेरे कमरे में जाना हो तो दहशत बैठ जाती है। ऐसे सपने अकसर सुनी-सुनाई बातों पर परखे जाते॒हैं।

शुभ फल देनेवाले

गंगा, सरस्वती नदी, विष्णु, शंकर-पार्वती, राधा-कृष्ण, चंद्रमा-हिरण, तोता, फलदार वृक्ष, सूर्य, वणिक, गरुड, भरा घड़ा, धर्मराज, लक्ष्मी, राम-लक्ष्मण, कोयल, मोर, मछली, शंख, सर्प, गाय आदि देखना कार्य की सिद्धि, शत्रु का नाश, मनोकामना की पूर्ति, पुत्र-पौत्र लाभ, संतान-सुख, यश का लाभ, विजय, स्त्री-सुख, यात्रा में सफलता के सूचक हैं।

अशुभफल सूचक

हनुमानजी, शूकर (सुअर), कुत्ता, मित्र, लाल पक्षी, मृत्यु (यमदूत); सूना मंदिर, कुश्ती, गधा, ठेला गाड़ी, अंधा व्यक्ति, दारती, मुरगा, चंचला स्त्री, चोर, तस्कर, सियार, बिल्ली आदि का स्वप्न में दर्शन आदि अशुभ फल देनेवाले हैं।

इसी प्रकार निम्नांकित वस्तुओं को स्वप्न में देखने से शुभ की सूचना या चिह्न मिलते हैं—शिवलिंग, सूर्य, चंद्रमा का प्रकाश, श्वान, पानी में, समुद्र में तैरना, युद्ध में जय, अग्नि का पूजन, रथ पर चढ़ना, माला, मुकुट पहनना, सारस पर सवारी करना आदि। इनमें से किसी का भी स्वप्न प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष भूमि का लाभ देता है।

प्रतीक शास्त्र में जो स्वप्न-प्रतीक दिए गए हैं, उसके अनुसार बैल, हाथी, मंदिर, वृक्ष या नौका पर चढ़ना, किसी को हाथ में वीणा लिये हुए देखना, भोजन करते हुए, रोते हुए दिखाई पडे़ तो एक-डेढ़ सप्ताह के भीतर निश्चित ही अर्थ-लाभ होता है। यदि स्वप्न में बिष्टा (मल) देखें, रक्त देखें, हाथी, राजा, सुवर्ण या टूटा सींग देखें तो कुटुंब की वृद्धि होती है। यदि सागर में तैरता हुआ देखें या अपने से नीचे वंश में जन्म लेता हुआ देखें तो वह राजा होता है। स्वप्न में मनुष्य का मांस भक्षण करते देखें तो—

१. पैर खाते हुए—मणि लाभ हो।

२. बाहु खाते हुए—हजार मणि प्राप्त हों।

३. सिर खाते हुए—राज्य प्राप्त।

४. स्वप्न में जूता देखें—कहीं यात्रा करनी पडे़।

५. नौका पर चढे़ नदी पार करें—प्रवास।

६. दाँत या केश उखड़ जाए—धन हानि, रोग-व्याधि आदि।

बृहस्पति कृत ‘स्वप्नाध्याय’ में स्वप्न देखने के समय का विधान और फल इस प्रकार वर्णित है—रात्रि बारह बजे के पूर्व स्वप्न अल्प फलवाले होते हैं। स्वप्न देखने के बाद यदि निद्रा न आए तो उस स्वप्न का फल मिल जाता है। पुनः शयन के बाद यदि शुभ या अशुभ स्वप्न आए तो पूर्व स्वप्न का फल बाधित हो जाता है। अशुभ स्वप्न रात्रि के अंतिम पहर में दिखे तो उसका उपाय शीघ्र कर लेना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र पाठ, शिव-आराधना मंगलकारी है।

बाणभट्ट ने अपने उपन्यास ‘कादंबरी’ में लिखा है, ‘निशावसान दृष्टा स्वप्ना अवितथ फलाश्च भवेत।’ अर्थात् रात्रि के अंतिम पहर में देखे स्वप्न निश्चित फलवाले होते हैं। यदि रात्रि के द्वितीय पहर में स्वप्न देखें तो छह महीने में फल मिलेगा। रात्रि के तीसरे पहर का तीन महीने में और अरुणोदय के समय देखने से दस दिन के भीतर फल प्राप्त होगा। ये स्वप्न अशुभ फलवाले माने गए हैं—

सोना, रुपया, लालपट या गेरुआ हो प्राप्त।

गंध कूप, श्मशान पर, भोजन करें समाप्त॥

नृत्य करें पिशाच संग, हँसे मशाल ले हाथ।

सिर मुंडन, जंगल घुमैं, करें प्रेत का साथ॥

मालिश कर जल में डूबैं, देखें काला सर्प।

बैठ गधे, घृतपाण से, करो नहीं मन दर्प॥

जूते गायब होते ही, बुझता जीवन दीप।

चिरजीवी विभूतियाँ भी हों, मृत्यु समीप॥

यही नहीं, स्वप्न भविष्यवाणी भी करता है—

१. यदि आप स्वप्न में भोजन, घृत, तेल दर्शन करते हैं तो मधुमेह रोग होनेवाला है।

२. यदि बरसात में भीग रहे हैं या समुद्र, नदी, तालाब आदि जल के स्वप्न देख रहे हैं तो समझो कफ, पित्त रोग होनेवाला है।

३. यदि अंगारे, जलती चीजें या आग देख रहे हैं तो चर्मरोग अवश्यंभावी है।

४. आँधी-तूफान के स्वप्न देखने से वात रोग होता है।

५. स्वप्न में काँटेदार वस्तुएँ, अस्त्र-शस्त्र छाती पर रखे देख रहे हैं तो कैंसर (विद्रधि) हो सकता है।

६. भूत-प्रेत के साथ नृत्य करने से उन्माद रोग हो जाता है।

७. स्वप्न में काला सर्प देखने से कुछ-न-कुछ हानि की संभावना होती है।

८. बदन पर मक्खी बैठे देखने से प्रमेह रोग होगा।

रामचरितमानस के सुंदरकांड में लंका की अशोक वाटिका में रह रही सीता को त्रिजटा राक्षसी का स्वप्न-वर्णन आया है। वह स्वप्न फल कितना यथार्थपरक है, देखिए—

त्रिजटा नाम राक्षसी एका। राम चरन रति निपुन बिवेका॥

सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। सतीहि सेइ करहु हित अपना॥

सपने बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी॥

खर आरूढ़ नगन दसतीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा॥

एहि बिधि सो दच्छिन दिशि जाई। लंका मनहु बिभीषन पाई॥

स्वप्न-फल का एक अन्य प्रसंग अयोध्याकांड में आता है, जहाँ स्वप्न में राजा भिखारी और कंगाल स्वर्ग का स्वामी हो जाता है। लेकिन जागने पर लाभ या हानि कुछ भी नहीं है। द्रष्टव्य है—

सपने होइ भीखारि नृप रंकु नाकपति होइ।

स्वप्न विज्ञान में इंद्रियाँ निवृत्त हो जाती हैं, मन ही राजा रहता है। मन पूर्वजन्म से लेकर इस जन्म के संस्कारों, घटनाओं का दर्शन तथा भविष्य-दर्शन कराने की क्षमता रखता है, क्योंकि जब तक आत्मा मुक्त नहीं होती, तब तक यह जन्म-जन्मांतर तक आत्मा के साथ कार्य के रूप में विद्यमान रहता है एवं शुभ-अशुभ कर्मफलों व घटनाओं की स्मृति रखता है। यह संसार ही स्वप्नमय है—जाग्रत् अवस्था में जो सुनते, करते, देखते हैं, वह सब जाग्रत् स्वप्न ही है। विनाशी संसार में सारी महत्त्वाकांक्षाएँ स्वप्न हैं।

स्वप्न में सफेद सर्प देखना लक्ष्मी प्राप्ति का सूचक है। कौवा देखना या काली बिल्ली देखना अशुभ स्वप्न है। विधवा औरत, कलवारिन (तेली) देखना भी शुभकारी नहीं है। स्वप्न में यदि किसी स्वस्थय स्त्री ने देखा कि कोई व्यक्ति नंगी तलवार लेकर उसके पीछे दौड़ रहा है तो यह बहुत कामुक स्वप्न है। इसी प्रकार कुछ लोगों को स्वप्न में जंगल, पहाड़, नदी और अग्नि-शिखाएँ दिखती हैं, ऐसे सपने भूत या प्रेतात्माओं के होती है। यदि किसी ने स्वप्न में देख लिया कि उसे साँप ने काट खाया तो उसके मन में भ्रम बैठ जाता है। परिणामतः सोते-जागते वह साँप का ही स्वप्न देखता रहता है।

स्वप्न की सृष्टि के बारे में अभिनवपाद गुप्त ने विचार व्यक्त किया है कि आत्मा से उत्पन्न होनेवाले विचारों से स्वप्न की सृष्टि होती है। इसलिए स्वप्न संबंधी विषय आत्मा से जुड़ा है, न कि इंद्रियों से। एक ही स्वप्न बार-बार दिखाई नहीं देता है। हर बार के स्वप्न में नयापन होता है। इसलिए सपने सर्वसंवैद्य नहीं होते। यही कारण है कि जाग्रत् अवस्था में हम जो कुछ देखते हैं, स्वप्न उससे सर्वथा भिन्न होते हैं। चूँकि स्वप्न का संबंध आत्मा यानी अंतःकरण से है, इसलिए अंतकरण में देखी गई चीज काल्पनिक नहीं हो सकती। उसका मन-बुद्धि-भावना के संयोग से सत्त्व, रज, तम गुणों से भी संबंध होता है। इसीलिए स्वप्न प्रतीकात्मक होकर भी अपना विशेष महत्त्व रखते हैं।

वैद्यक ग्रंथ ‘शार्ङ्गंधर संहिता’ में स्वप्न पर गहन विचार करते हुए स्वप्न-प्रतीक पर प्रकाश डाला गया है—स्वप्न में नंगा, मुंडन कराए हुए, लाल, काले या सफेद कपडे़ पहने हुए, नाक-कान कटे, विकृतांगी, कुबडे़, हाथी में पाश (फाँसी) शस्त्र लिये हुए, बाँधते, मारते हुए, दक्षिण दिशा की ओर गधा या भैंसा पर बैठे, ऊँट की सवारी किए हुए पुरुष को जो व्यक्ति देखे, वह स्वस्थ हो तो बीमार और बीमार हो तो मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

‘शार्ङ्गघर संहिता’ रोग तथा चिकित्सा का ग्रंथ है। इसमें कुछ खास लक्षण बताए गए हैं। इसीलिए वैद्यक ग्रंथों में इसका बड़ा मान है। अशुभ लक्षण हैं—

उच्च स्थल से स्वयं को जो गिरता दिख जाय।

कुत्ता काटे, आग या जल में जाए समाय॥

मछली निगले स्वप्न में या दीपक बुझ जाय।

तेल, शराब व घी पिये, पूड़ी कचौड़ी खाय॥

नेवला, टूटा पात्र या तिल खरगोश बिलाव।

सूखी लकड़ी अधजली हाँड़ी और अलाव॥

शहनाई, भेरी, मृदंग या दुंदुभि का नाद।

जन एकत्रित हो करें आपस में संवाद॥

मधुर सुभग संगीत या रिक्त कलश हो श्वेत।

पुत्रवती स्त्री हँसे, गूदड़ बोले खेत॥

कुआँ-कुंड-जमीन के भीतर जो घुस जाय।

स्वस्थ व्यक्ति भी रोग शीघ्र प्राप्त हो जाय॥

प्रायः कुछ व्यक्ति दिन में भी स्वप्न देखते हैं, जिसको दिवास्वप्न कहते हैं। दिन में दिखनेवाले स्वप्न निष्फल होते हैं। इनका कोई अर्थ नहीं होता है। रात्रि में आए स्वप्न ही फलदायी और प्रभावी होते हैं। स्वप्न में कुछ वस्तुओं-स्थानों का दिखना शुभफल दायी माना गया है। इन फलों का निर्धारण वर्षों के अनुभव और लक्षणों के आधार पर किया गया है। यथा—

नृप, देवता, स्वमित्र, गौ, जलति अग्नि या कीच।

तीर्थस्थल, ब्राह्मण अचल दिखे स्वप्न के बीच॥

करें सवारी अश्व या हस्ति चढ़ें हर्षाय।

गौरैया शुक-चातकी खंजन मैना गाय॥

श्वेत भवन या चाँदनी, श्वेत पुष्प अरु बैला।

मांस और मछली दिखे या कज्जल सा शैल॥

विष्ठा का लेपन करें, खाएँ कच्चा मांस।

काटे साँप, अलि-जोंक या रोवें लखके फांस॥

भोग करें उस वस्तु का जिसका महानिषेध।

रोगी पावे स्वस्थता, मिले स्वस्थ को मेध॥

शुभ और अशुभ के इतने प्रतीक (लक्षण) हैं कि उन सबको यहाँ देना विषय-विस्तार की दृष्टि से अनुचित जान पड़ता है फिर भी जो प्रतीक दिए गए हैं, वे ज्ञानवर्धन और सचेतता की दृष्टि से पर्याप्त हैं। इनमें अधिकतर दृष्टांत-प्रतीक जो प्रस्तुत किए गए हैं, वर्षों के गहन अनुभव से उद्भूत हैं और कई मेरे जीवन के अनुभव तथा अनुभूति से प्रसूत हैं। मेरे अनुभवों में जीवन-जगत् में घटित घटनाओं के साक्ष्य स्वरूप सच्चाई का दिग्दर्शन होता है। चरक के अनुसार—‘मन की इंद्रियों से व्यक्ति अधकचरी नींद में सफल या विफल कर्मों को देख लेता है। पुरुषों के स्वप्न अकसर यौन संबंधी होते हैं, ऐसी अवधारणा बेबुनियाद है। महिलाएँ भी स्वप्न देखती हैं और उनके फलाफल निष्कर्ष निकलते हैं। २ अगस्त, २०१६ को इन पंक्तियों के लेखक की पत्नी ने भोर ५:३० बजे स्वप्न देखा कि उनके जेठ ललित मोहन स्नान कर रहे हैं और गाँव के १०-१५ व्यक्ति उनके पास खडे़ हैं, स्वप्न को सुबह बताया। यकीनन १३ अगस्त, १६ की रात प्रातः ४ बजे उनके जेठजी का निधन हो गया। (प्रकाशित समाचार अभी तक क्राइम टाइम्स, दिनांक २२-२८ अगस्त, २०१६ दिल्ली।)

यह सत्य है कि मनुष्य के जीवन में अनेक बदलती इच्छाओं में संघर्ष मन के भीतर होता रहता है, जिसको वह पूरा करना चाहता है, पर किन्हीं कारणों से वह उसे पूरा नहीं कर पाता और मन में दबाए रखता है, वे इच्छाएँ या मनोभाव ही अज्ञात मानस अचेतन, अवचेतन अवस्था में स्वप्न-प्रतीक के रूप में दीख पड़ते हैं। सपनों में देखी हुई बातों, घटनाओं आदि का काफी समीक्षण करने के उपरांत मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि स्वप्न की भाषा, दशा और स्थिति पर लाक्षणिक विचार करना निहायत जरूरी है। स्वप्न भले ही प्रतीकात्मक ढंग से अस्पष्ट संकेत देते हों, किंतु जन-जीवन-समाज के साथ संपृक्त करके विचार करें तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि स्वप्न का क्षेत्र बड़ा विस्तृत होता है। इन्हें मिथक नहीं मान सकते। फ्रायड भी पूरी तरह मिथक नहीं मानते। उनके अनुसार सपनों के कई कारण हैं।

स्वप्न को निरा रूढि़वादी विचार या अतृप्त वासना के संकीर्ण दायरे में बाँध देना दिमागी खलल होगा। परंतु जने-जने मतिर्भिन्ना के अनुसार सबकी अपनी-अपनी अवधारणाएँ, संकल्पनाएँ, मान्यताएँ हैं। वे अपनी विचार-शक्ति, कल्पना, इच्छा और तर्क-तथ्य के अनुसार किसी भी विषय को सोचते, चिंतन-मंथन करते हैं। एकमत को किसी पर थोपा नहीं जा सकता, लेकिन सोचने की नई दृष्टि दी जा सकती है। मानव स्वभाव की विशेषता है कि वह कुछ बातों, घटनाओं, स्थितियों को प्रतीक-रूप में सोचता है। इसलिए प्रतीक-रूप में दिखे स्वप्नों को मन की गहराई में जाकर विचार करें तो निश्चित पाएँगे कि स्वप्नों की अपनी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि होती है। सपनों को याद करना चाहिए, परंतु सभी सपने याद भी नहीं रहते। सपने जितनी हमारी जिंदगी से जुडे़ हैं, उससे अधिक हमारी संस्कृति से जुडे़ हैं।

सपने सदा बनते-बिगड़ते, खिलते या धराशायी होते रहते हैं। कह सकते हैं, मानव सभ्यता काल से ही सपने देखता और बुनता आया है। अगर यहाँ स्वप्न-सुंदरियों (ड्रीम गर्ल्स) हैं तो सपनों के सौदागर भी हैं। हमें इन सौदागरों से बचना चाहिए। अनेक पुरुष स्वप्नदर्शी हैं। वे निरंतर सपनों की दुनिया में झिलमिलाते तारों से अपना रंग बिखेरते रहते हैं और दिन में फिर अपने असली रूप में चले जाते हैं। ये जीवित मनुष्यों को सपने दिखाते हैं। हम जिंदगी के बडे़ सपने देखकर या सँजोकर ऊँची उड़ान भरने लगते हैं। यहाँ प्रकारांतर से यह संकेत लाजिमी है कि सपने जिंदगी की हकीकत नहीं, जिन्हें हम देखते हैं। विश्वविख्यात वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. कलाम के शब्दों में ‘सपने वे नहीं, जिन्हें हम देखते हैं, असली सपने वे हैं, जो हमें बेचैन कर देते हैं।’

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