बाबू गुलाब राय व निरालाजी के पत्र

बाबू गुलाब राय व निरालाजी के पत्र

छतरपुर राज्य के महाराजा सर विश्वनाथ सिंह जूदेव चैतन्य महाप्रभु के गौडि़या संप्रदाय में दीक्षित थे। वे स्वयं बँगला नहीं जातने थे, किंतु संप्रदाय के नाते बंगाली वैष्णव साहित्य से बहुत प्रेम करते थे। वे महाकवि चंडीदास वर्णित स्वयंभूति की नायिका के वर्णन में विशेष रुचि रखते थे और इस नाते वे महाकवि चंडीदास की पदावली का हिंदी पद्यानुवाद कराना चाहते थे। बाबू गुलाबरायजी उनके प्राइवेट सेक्रेटरी थे। महाराजा साहब ने बाबूजी को ऐसे विद्वान् को खोजने का भार सौंपा, जो महाकवि चंडीदास की पदावली का हिंदी पद्यानुवाद कर सके। बाबूजी ने महाराजा साहब को बता दिया कि श्री निरालाजी खड़ी बोली में कविता करते हैं, पर उनकी कविता बड़ी सरस संगीतमय होती है। विद्याव्यसनी और धार्मिक सिद्धांतों के रसिक और मर्मज्ञ महाराजा ने कविवर निरालाजी को बुलाने की आज्ञा दे दी। बाबूजी ने निरालाजी से इस विषय में जो पत्राचार किया, वह इस प्रकार है। बाबूजी ने निराजाजी को ७ अक्तूबर, १९२७ को पत्र लिखा था—

श्रीमन्

लाला शिवपूजन सहाय से ज्ञात हुआ है कि आप बँगला और ब्रजभाषा के अच्छे ज्ञाता हैं और ब्रजभाषा में कविता करते हैं।

श्री महाराजा साहिब को एक ऐसे विद्वान् की आवश्यकता है। वे श्री चंडीदासजी के ग्रंथों का पद्यानुवाद कराना चाहते हैं। कृपया तार द्वारा सूचित कीजिए कि आप यहाँ आ सकते हैं या नहीं और आ सकते हैं तो कब? और कृपया यह भी लिखिए कि यहाँ आने के लिए आपके क्या टर्म्स होंगे। उत्तर बहुत शीघ्र देने की कृपा कीजिए।

भवदीय

गुलाबराय

प्राइवेट सेक्रेटरी

दूसरा पत्र २१ अक्तूबर, १९२७ को लिखा निरालाजी को—

श्रीमन्

यह पंडित श्री हरे कृष्णा मुखोपाध्याय श्री महाराज साहिब की ओर से आपसे मिलेंगे। आपके पास ये पुस्तकें हैं, जिनका अनुवाद ब्रज भाषा में होना है। कृपया पुस्तकें देख लीजिएगा और उनसे बातचीत करके अनुवाद का थोड़ा नमूना, चाहे इन्हीं की मार्फत, चाहे स्वतंत्र रूप से श्री महाराज साहब बहादुर के अवलोकनार्थ भेज दीजिएगा। फिर जैसी श्री महाराज साहिब की आज्ञा होगी, उससे सूचना दी जावेगी।

भवदीय

गुलाबराय

प्राइवेट सेक्रेटरी

श्री निरालाजी ने बाबूजी की प्रार्थना स्वीकार की और छतरपुर आए। वे बाबूजी के घर पर ठहरे थे। दुपहर में वे बाबूजी के साथ महाराजा साहिब के महल गए। वे एक-दो पदों का अनुवाद करके ले गए थे। रसज्ञ महाराज ने अनुवाद सुनकर उनकी सराहना की। वहाँ निरालाजी को टाइफाइड का ज्वर हो गया। बाबूजी और उनके सहयोगी पं. रामनारायण शर्मा को उनके इलाज की व्यवस्था करनी पड़ी थी। डॉक्टर भट्टाचार्य के उपचार से जब वे ठीक हो गए तो अपने गाँव लौट॒गए।

निरालाजी ने जो अनुवाद किया था, उसका एक अंश—

मूल कविता—श्याम नाम

सइ-केवा सुनाइलो श्याम नाम।

कानेर भितर दिया, मरमे पशिलगो

आकुल करिल मोर प्राण॥

 

ना जानि कतेक मधु, श्याम नामें आछेगो,

बदन छाँडि़ते नाहि पारे।

जपिते-जपिते नाम अवश करिल गो,

केमने वा पासरिव तारे॥

नाम परतापे जार, ऐछन करिलगो,

अंगेर परशे किवा हय।

जेखाने वसति तार, नयने देखिया गो,

युवती धरम कईछे रय।

 

पासरिते करि मने, पासरा ना जाएगो,

कि करिये कि ह्वे उपाय।

कहे द्विज चंडीदासे कुलवती कुलनाशे,

आपनार यौवन याचाय॥

(राग कामोद) निराला

अनुवाद—स्याम नाम

स्याम नाम किन आनि सुनायो,

पल छिन कर ल परत मोहि आली!

स्रवनन मगु घँसिगो, बसिगौ उर,

विकल कियो मो मन बनमाली॥

स्रवत सुधा, लवलीन मीन सम,

नाम नीर नहिं त्यागन चाहौं।

जपत बिबस भो, मो मन तन धनि

पावन हित चित सौं अवगाहौं॥

नाम प्रतापहिं यह गति भइ जब,

अंग परस रस धों किमि होई।

बसत जहाँ वह लखि नयनन सों,

निज कुल धरम जुवति किमि गोई॥

भूलन चाहौं भूलि सकौं नहिं,

अब कहु कौन उपाय रह्यौ री!

चंडिदास वारी कुलवती तन,

जोबन बनवारी लह्यो री॥

(ललित किशोरी छंद)

 

उसके बाद बाबूजी ने फिर एक पत्र ८ मार्च १९२८ को निरालाजी के कुशल समाचार पूछने के लिए लिखा था, पत्र इस प्रकार है—

प्रियवर,

बहुत दिन से आपके कुशल समाचार नहीं मिले। आशा है कि आप कुशल से होंगे। आप आजकल घर पर ही हैं या और कहीं। और क्या कर रहे हैं? आजकल हम लोग खजुराहो में हैं। पं. रामनारायणजी अभी तक नेत्र रोग से पीडि़त रहे। अब जरा अच्छे होते जाते हैं।

कुशल समाचार शीघ्र भेज दीजिएगा।

भवदीय

गुलाबराय

श्री निरालाजी ने गढाकोला मगरायर उन्नाव से १२ अप्रैल, १९२८ को बाबू गुलाबरायजी को जो पत्र लिखा था, वह इस प्रकार है—

गढ़ाकोला, मगरायर, उन्नाव

१२.४.२८

श्रीमान सेकरेटरी साहब, सादर।

इधर महीने भर चित्रकूट रहा। कल लौटा हूँ। यहाँ आपके दो कृपा-पत्र मिले। लज्जित हूँ, उत्तर समय पर नहीं दे सका। मेरे इस मशहूर मर्ज की दवा शायद इस जीवन में न होगी। क्षमा!

आपसे पत्र-व्यवहार न रहने पर भी आपके प्रसन्न लेखों से मुझे पत्र-प्राप्ति ही का आनंद मिलता रहा है। छोटे पंडितजी (पंडित रामनारायण शर्मा) का सान्निपातिक-विकार क्या खासा मनोरंजन हुआ।

अभी तक मैं खूब प्रसन्न रहा। स्वास्थ्य भी बहुत कुछ सुधर चला था, इधर तीन-चार रोज से कुछ अस्वस्थ हूँ। प्रबंधों के अलावा अब उपन्यास, नाटक लिखने का विचार कर रहा हूँ। श्रीगणेश दो-एक रोज में करूँगा। इधर ‘रेखा’ कविता पुस्तक की रचना में पड़ा था। निस्संग जीवनवाले के लिए आनुषंगिक नियम और कानून क्या, अब सबकुछ मनभाता हुआ करता है।

श्रीमान लालाजी का (शायद स्वर्गीय लाला कन्नोमलजी धौलपुर निवासी का) अंग्रेजी ‘एट द फीट ऑफ गॉड’ का संस्कृत अनुवाद कुछ दिनों में आपके पास भेजता हूँ। अभी तक विशेष अवसर नहीं मिला, प्राणों की संपूर्ण स्वीकृति भी नहीं हुई थी। आप उनके पास भेज दीजिएगा।

सम्मान्य मिश्रजी (शायद पंडित शुकदेव बिहारी मिश्र से अभिप्राय है, वह वहाँ उन दिनों दीवान थे) और भट्टाचार्य महाशय (वह उन दिनों स्टेट-सर्जन थे, उन्होंने निरालाजी की चिकित्सा की थी) को सविनय नमस्कार।

आपकी कविता बहुत साफ आई। (मैंने छतरपुर में कुछ कविताएँ भी लिखी थीं, वे श्री रामनारायणजी के ही पास होंगी। उनका कोई साहित्यिक महत्त्व नहीं हैं। यह निरालाजी की गुणग्राहकता और प्रोत्साहन-प्रवृत्ति है, जो उन्होंने उसकी प्रशंसा की है।)

मैं जब रस-ग्रहण करता हूँ, उस समय गुंजार नहीं करता। इति सुप्रभात! (अंग्रेजी गुड मॉर्निंग का शब्दानुवाद) रामनारायणजी को पृथक् लिखता हूँ।

सविनय

निराला

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