बिन दिमाग

बिन दिमाग

कुत्तों का चीखना-चिल्लाना और भौंकना सुनकर सभी लोग घरों से बाहर आ गए। कुछ अपनी बालकनी से झाँकने लगे। देखा तो मोहल्ले में कुत्ते पकड़नेवाली गाड़ी आई हुई थी। अवश्य ही किसी ने इन कुत्तों की शिकायत की होगी। सबकी नजरें अपने-अपने परिचित कुत्तों को ढूँढ़ रही थीं, हालाँकि वे उनके पालतू नहीं, गली के ही कुत्ते थे।

कोई कह रहा था, ‘‘अरे! व्हाइटी नजर नहीं आ रही।’’

‘‘कालू भी कहीं दिख नहीं रहा है।’’ चिंतित देसाई आंटी की आवाज आई।

मुझे अचानक चार-पाँच वर्ष पूर्व की घटना याद आ गई। नगर में माननीया राष्ट्रपतिजी के आगमन की खबर से लोग खुश हो रहे थे, क्योंकि इस वजह से हमारे मोहल्ले की टूटी-फूटी सड़कें नई-नवेली हो चमचमाने लगी थीं। इस बीच एक दिन अचानक नगर-निगम की गाड़ी ने इस इलाके के कुत्तों की धर-पकड़ शुरू कर दी।

यह देखकर पड़ोस के बच्चे घबराने लगे कि कहीं हमारे पिल्लों को भी यह गाड़ी पकड़कर न ले जाए। डरे-सहमे सभी बच्चे पार्षद के पास पहुँचे। पार्षद ने भी जानवरों के प्रति बच्चों का प्रेम देखा तो नियम बताया, ‘‘उन पालतू कुत्तों को नहीं पकड़ा जाता है, जिनके गले में पट्टा बँधा होता है, पर तुम्हारे पिल्लों के गले में तो पट्टे नहीं हैं।’’

बच्चों ने अपनी बहनों की बेल्ट, रिबन और हेयरबैंड पिल्लों के गले में पहनाए और निश्चिंत होकर स्कूल जाने लगे। उन्हें क्या पता था कि पिल्लों को इन पट्टों की आदत नहीं है और वे प्रयास कर-करके एक-दूसरे के बंधन नोंच डालेंगे। एक दिन नगर निगम की गाड़ी पिल्लों को पकड़कर ले गई।

स्कूल से लौटने के बाद सारे बच्चे बहुत उदास हो गए। बिना पिल्लों के मोहल्ला साँय-साँय कर रहा था। सब बहुत गुस्से में थे। भला यह भी कोई बात हुई कि पिल्लों को सदा के लिए खोना पड़ गया!

‘‘गाड़ी के अंदर पकड़कर डाला गया कुत्ता जरूर बिन दिमाग होगा।’’ इतने में बबली की जोर की आवाज सुनाई दी तो मैं वर्तमान में लौट आई।

‘बिन दिमाग...।’ शर्ली ने कँपकँपाती ठंड में चार पिल्लों को जन्म दिया था। बच्चों की टोली यह देख चिंतित हो उठी कि इतनी ठंड में ये बच्चे कैसे रहेंगे। अपने-अपने घरों से पुराने कपडे़ व बोरियाँ जुटाकर वे उनके बिछौने तैयार करने लग गए। फिर उनकी देखभाल में जुट गए। सर्द हवाओं में कपडे़ उड़ने लगे तो उन्होंने सोचा, क्यों न पिल्लों के लिए घर बनाया जाए। बच्चों ने आस-पास के बँगलों के कंपाउंड में बेकार पड़ी ईंटें जुटाकर घर बना दिया।

मजे की बात यह थी कि उन पिल्लों का नामकरण-संस्कार भी बच्चों ने बडे़ जोर-शोर से किया था। एक हृष्ट-पुष्ट काले पिल्ले का नाम ‘कालू पहलवान’ रखा गया, सफेद का ‘व्हाइटी’। एक प्यारे से पिल्ले का नाम ‘किशमिश’ और एक भूरे रंग के पिल्ले का नाम ‘बिन दिमाग’।

सभी नामों को सुनकर मैंने अपनी खुशी जाहिर की। साथ ही एक नाम पर विरोध जताते हुए कहा था, ‘‘बिन दिमाग, यह कैसा नाम है? जरूर तुमने अपने दिमाग पर जोर नहीं दिया होगा।’’

निशू ने कहा, ‘‘नहीं मम्मा, यह है ही बिन दिमाग। इसका बिस्तर लगाओ तो सोता नहीं, बल्कि अपने मुँह से उसे चबाता रहता है।’’

उमंग बताने लगा, ‘‘हमारे बनाए घर में जब इसे जाने को कहते हैं तो जाता ही नहीं। जबरदस्ती घुसाओ तो चिल्लाता है। इसे तो सर्दी में रहना पसंद है, परंतु हमारे मेहनत से बनाए घर में नहीं।’’

‘‘इसीलिए तो हमने सर्वसम्मति से इसका नाम भोंदू की जगह ‘बिन दिमाग’ रख दिया।’’ आकाश भी बताने में पीछे क्यों रहता।

देखते-ही-देखते सभी पिल्ले बडे़ हो गए। पहले जो गली की रौनक थे, अब आने-जानेवालों के लिए मुसीबत बन गए। जैसे ही सड़क से मोटर साइकिल या कारें निकलतीं, ये सब मिलकर भौंकने लगते। इतना ही नहीं, दौड़-दौड़कर उनका पीछा भी करते। एक-दो बार तो स्कूटी पर बैठी एक महिला की साड़ी पकड़ ली। घबराकर वह इतनी जोर से चीखी कि आसपास के लोग बाहर निकल आए और कुत्तों को डाँटने लगे। महिला इतनी दहशत में आ गई कि रोने लगी। अब वाहन चालक कुत्तों के भौंकने और पीछा करने के कारण स्पीड बढ़ाकर अपना पीछा छुड़ाने लगे थे।

एक बार एक मोटरसाइकिल सवार ने हिम्मत की और कुत्तों से बचकर आकाश के घर की कॉलबेल बजा दी, ‘‘अपने इन खूँखार कुत्तों को आप बाँधकर क्यों नहीं रखते? आए दिन हमारा पीछा करते हैं। हमारा तो यही रास्ता है। किसी दिन एक्सीडेंट हो गया तो?’’

‘‘भैया, ये हमारे पालतू नहीं कि बाँधकर रखें। ये सब तो गली के कुत्ते हैं। हम क्या करें?’’ आकाश की मम्मी ने पल्ला झाड़ते हुए कहा॒था।

हो सकता है, उसी व्यक्ति ने शिकायत दर्ज करवाई हो। कुत्ते पकड़नेवाली गाड़ी इसी कारण आई हो।

इतने में विश्वकर्मा अंकल की बालकनी से आती कूँऽऽऽकूँऽऽ की आवाज सुनकर सब उस ओर देखने लगे।

‘‘अरे! यह तो बिन दिमाग है, यह तो बड़ा दिमागवाला निकला। इतनी सीढि़याँ चढ़कर ऊपर आकर कैसा छिपा बैठा है। जरूर इसका नाम रखनेवाला ‘बिन दिमाग’ होगा।’’ विश्वकर्मा आंटी ने कहा और नामकरण-संस्कार करनेवाली बाल मंडली की ओर व्यंग्य से देखने लगीं। निशू, आकाश और उमंग तीनों शरमाकर वहाँ से भाग लिये।

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