कड़वा सच

कड़वा सच

घरेलू डॉक्टर के निर्देशानुसार मैं अपनी गरदन के नीचे आइसपैक लगाकर सोई थी, दिनभर के काम से मेरा शरीर सुबह अकड़ जाता था, मैं अपने शरीर के दर्द पर कम ही ध्यान रखती थी, लेकिन मुझे आज निर्मल के पसंद का खाना बनाना था, वह रातभर पढ़ता था और मुझे उसे उसकी पसंद का खाना परोसना चाहिए, इसलिए सुबह जल्दी उठकर मैं भोजन बनाकर उसे सरप्राइज देना चाहती थी, क्योंकि निर्मल अब सी.ए. फाइनल की परीक्षा की तैयारी कर रहा था।

दरअसल, मैं अपनी मनोदशा व शारीरिक व्याधि के बारे में घरवालों को बताकर परेशान नहीं करना चाहती थी और निर्मल ने बताया कि नवंबर माह में उसकी परीक्षा होने के बाद वह टे्रनिंग पर जाकर छह माह में पूरी करेगा। अब वह बड़ा हो गया था और उसके रिश्ते व सगाई का भी समय आ गया था!

निर्मल मेरा बेटा बड़ा समझदार व सहनशील तथा स्नेह देनेवाला पुत्र मुझे कभी भी बेटी की कमी महसूस नहीं होने देता और मेरे हर कार्य में मदद करता था।

लेकिन मेरे पड़ोस की मेरी सहेलियाँ कहती हैं कि बेटा-बेटा होता है और बेटी-बेटी होती है, उनकी इन बातों से मुझे कभी-कभी क्रोध व दुःख भी होता है। मेरा बेटा, जो बेटी की तरह मेरा खयाल रखता और कहता कि आप अपनी पसंद का खाना बनाओ, जो भी आप बनाएँगी, वह मेरी पसंद का होगा। वह मुझे एक बेटी का सुख देने के लिए हमेशा तत्पर रहता था; लेकिन सगाई होने के बाद जब बहू घर पर आई तो उसका रवैया बदल गया और वह मुझसे दूर-दूर रहने लगा तो मैंने पूछने की कोशिश करनी चाही, लेकिन मैं पूछ न पाई।

मेरे पति भी उसके व्यवहार से नाराज होने लगे। अब वह अपनी व्यक्तिगत बातें अपनी पत्नी से करने लगा और हमसे दूर-दूर रहने लगा। क्या यही जीवन का ‘कड़वा सच’ है?

ऐसे कई सवाल मुझे खाए जा रहे हैं और मेरी मानसिक स्थिति खराब होती जा रही है। अतः मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ, क्या न करूँ?

जब मैं और ज्यादा बीमार हुई तो मुझे आई.सी.यू. में एडमिट किया गया था। यहाँ से पूर्ण स्वस्थ हुई तो मेरे बेटे (निर्मल) ने आकर मुझे सारी बात बताई कि मैं ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा था। अपनी पत्नी, जो किसी की बेटी है, मैं उसे भी दुःखी व अपनी जन्मदात्री माँ को भी दुःखी नहीं करना चाहता था, इसलिए मैं दोनों से सामान्य व्यवहार रखने की कोशिश कर रहा था। मुझे अब पता चला कि बेटे को ‘वंश-वृद्धि’ का द्योतक क्यों माना गया है। कभी-कभी आज भी मुझे अपने पुत्र के बचपन की आदतों को सोचकर हँसी आ जाती है।

मकान नं. ३५०, बाली रोड, लुनावा

गाँव-लूणावा, तहसील-बाली,

जिला-पाली (राज.) 

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