दीवाली पर निबंध मत लिखाइए

दीवाली पर निबंध मत लिखाइए

जब हम छोटी कक्षाओं में पढ़ते थे तो गधे, घोडे़ और गाय पर निबंध के साथ-साथ दीवाली पर भी निबंध लिखवाया जाता था। इसलिए दीवाली के बारे में हमें बचपन से ही पता है कि वह कैसे मनाई जाती है। दीवाली मनाने के बारे में अब मैं अपनी पत्नी व बच्चों को बताने में बड़ा डरता हूँ। मैं तो चाहता हूँ कि उन्हें पता ही नहीं चले और दीवाली निकल जाए, परंतु दीवाली इतने शोर-शराबे से आती है कि बच्चे न तो फुलझड़ी-पटाखों के बारे में भूल पाते हैं और न ही पत्नी नई साज-सजावट व साड़ी-शृंगार को विस्मृत कर पाती है। बस, अपने राम का तो कचूमर निकलकर रह जाता है। पिछले दिनों से बडे़वाले ने दीवाली पर निबंध लिखाने की जिद पकड़ रखी थी और मैं था कि उसे इसके बारे में दीवाली के बाद बताना चाहता था।

बाद में सच का पता चला कि बालक मुझे बना रहा था और चिढ़ा रहा था। वह वास्तव में दीवाली के बारे में जानता था, परंतु मुझे परेशान करने की दृष्टि से वह दीवाली पर निबंध लिखाने के लिए जोर डाल रहा था। इसका पता मुझे उसे दीवाली से पहले बाजार में ले जाने पर हुआ। उसने रेडीमेड कपडे़ की दुकान के सामने खडे़ होकर अपने लिए ‘जींस’ लेने की जिद की। मैंने कहा, ‘‘बेटा थोडे़ दिन ठहरो, अगले माह दिला देंगे।’’

वह बोला, ‘‘डैडी श्री, आप मुझे क्यों बना रहे हैं। दीवाली तो इस माह में है और नए कपडे़ लाएँगे अगले माह में। नए कपडे़ दीवाली पर पहनने की बात दीवाली के निबंध में स्पष्ट रूप से कही गई है।’’ हारकर मुझे चार सौ रुपए की जींस उसे खरीदकर देनी पड़ी।

खिलौनों और पटाखों की दुकान पर भी उसने वही आलम पेश किया तो वहाँ भी डेढ़ सौ रुपए की बलि देनी पड़ी और मैं फटाफट घर लौट आया। हाथ-पाँव काँप रहे थे और साँस फूल रही थी। समझ में नहीं आया कि बालक को बिगाड़ा किसने? मैंने बच्चे को बुलाकर इत्मीनान से पूछा, ‘‘देखो टिंकू, हम तुम्हें चॉकलेट लाकर देंगे, जरा यह तो बताओ बेटा कि तुम्हें दीवाली पर निबंध किसने लिखाया?’’

चॉकलेट के चक्कर में उसने सत्य उगल दिया, ‘‘मम्मी ने।’’

‘‘मम्मी ने! लेकिन उसने तो मुझे इनकार किया है। जरा बताओ उस निबंध में और क्या-क्या लिखाया है?’’

‘‘हाँ...हाँ...मुझे यह निबंध पूरी तरह याद है। दीवाली पर नए कपडे़ आते हैं। महिलाएँ नई-नई साड़ियों में सज-सँवरकर दीपदान करती हैं। इससे पहले घरों में रंग-रोगन व पेंट किए जाते हैं। घरों में चद्दरें व तकिए बदले जाते हैं। खिड़कियों पर नए परदे लगाए जाते हैं।’’

मैं बीच में ही बोला, ‘‘देखो बेटा, तुम्हारी मम्मी को दीवाली का निबंध लिखाना नहीं आता। असलियत तो यह है बेटा, इसका आध्यात्मिक व सांस्कृतिक महत्त्व नहीं समझाया तुम्हारी मम्मी ने। उसने तो आजकल होनेवाला दिखावा लिखा दिया, वरना भगवान् राम जब रावण को मारकर अयोध्या में आए तो नगरवासियों ने देसी घी के दीपक जलाए थे।’’

‘‘पता है पापाश्री! अब देसी घी नहीं रहा, इसलिए मोमबत्तियाँ जलाई जाती हैं, इसलिए तो हमें पूरे घर को सजाने के लिए दो सौ कैंडल लानी हैं।’’ टिंकू ने कहा।

मैं बोला, ‘‘नहीं, तुम समझे नहीं। दीवाली अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है तथा हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का आईना है। कहने का तात्पर्य यह है कि घरों की साफ-सफाई हो तथा आदमी अपने अंदर सत्य का उजाला भरने का संकल्प ले, फिर यह कार्तिक की अमावस्या को मनाई जाती है।’’

‘‘मेरी समझ में नहीं आता कि आपने पहले तो दीवाली के निबंध के बारे में कुछ नहीं बताया और जब मम्मी ने लिखवा दिया तो मीन-मेख निकाल रहे हैं। अब आप यह कहेंगे कि दीवाली पर मिठाई भी बाजार से नहीं लाई जाती है।’’ टिंकू ने व्यंग्य किया।

मैं बोला, ‘‘देखो, तुम्हें तुम्हारी मम्मी ने बहका दिया है तथा घर में अशांति का खतरा पैदा हो गया है। मिठाई सौ रुपए किलो है, क्या खाकर लाएँगे बाजार से। मैं कहता हूँ, इस बार घर में ही बना लो।’’

तभी पत्नी आ धमकी, छूटते ही बोली, ‘‘क्या हुआ, बाजार हो आए? मेरी साड़ी लाए?’’

हाथों के तोते उड़ गए, अटकता सा बोला, ‘‘ऐसा था कमले (कमला), आज तो टिंकू ने खाली करा दिया, कल शायद बोनस मिल जाएगा तो हम दोनों बाजार चले चलेंगे।’’

‘‘मैं साफ कहे देती हूँ। बोनस के भरोसे दीवाली नहीं मनेगी और जो भी लोन ले सकते हो, ले लो।’

‘‘फेस्टीवल एडवांस है, उधर तुम्हारे दोस्त दीपक से हजार-दो हजार उधार मार लाओ, वरना गत वर्ष की तरह दीवाली फीकी रह जाएगी। फिर मुझसे मत कहना कि दीवाली अधूरी रह गई, लक्ष्मीजी नहीं आईं।’’

मैंने कहा, ‘‘तुम व्यर्थ की बातें कर रही हो। महँगाई में दीवाली का अर्थ क्या रह जाता है। फिर तुमने दीवाली का जो निबंध टिंकू को लिखाया है, वह भी उल्टा-सीधा लिखा दिया है। वह नई चद्दरों, तकियों, गिलाफों तथा नए परदों की माँग के साथ महँगी दुकान से मिठाई लाने की माँग कर रहा है।’’

‘‘करेगा क्यों नहीं? पड़ोस में कम धूम मच रही है क्या? वर्माजी ने सारे घर का कायाकल्प करके धर दिया है। सारी कॉलोनी में हम अकेले ही बचे हैं, जो फटीचरों की तरह रह रहे हैं। बारह महीने का त्योहार है, गरीब-से-गरीब भी इसे उत्साह से मनाता है।’’

तभी टिंकू बोला, ‘‘हाँ, दीवालीवाले निबंध में यह भी लिखा गया है कि इसे लोग पूरे उत्साह और उमंग से मनाते हैं।’’

मैं बोला, ‘‘लेकिन आप लोगों ने ज्यादा जोर डाला तो मेरा बी.पी. लो आ जाएगा तथा उमंग व उत्साह दोनों हवा हो जाएँगे। मैंने तुमसे कहा भी था कि बच्चों को सांस्कृतिक विरासत तथा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ही बताना, परंतु तुमने भौतिक आवश्यकताओं की भावभूमि में दीवाली का निबंध लिखा दिया।’’

‘‘लेकिन इस मरे निबंध को पकड़कर क्यों बैठ गए हैं? दीवाली वर्षों से मनाई जाती रही है।’’

‘‘अरे भागवान्, परीक्षक बच्चों से परीक्षा में दीवाली का निबंध आजकल इसलिए नहीं लिखाता, क्योंकि उसके अपने बच्चे दीवाली की माँगें उठा सकते हैं।’’

‘‘लेकिन दीवाली की खरीद को आप टालने पर क्यों तुले हैं? जगह-जगह सेल के खेल चल रहे हैं। दीवाली की विशेष छूटों का लाभ क्या हम नहीं ले पाएँगे?’’ पत्नी बिलबिलाई।

मैं बोला, ‘‘देखो टिंकू, दो मिनट बाहर जाओ, मैं तुम्हारी मम्मी से बात करना चाहता हूँ।’’

‘‘आप यही तो बात करेंगे कि टिंकू को दीवाली की खरीद से अलग रखो, वरना यह सारा मासिक बजट ऐसा बिगाडे़गा कि वर्ष भर याद रहेगा।’’ टिंकू बोला।

‘‘नहीं बेटा, तुम जाओ, घर की कई बातों में बच्चों को बीच में नहीं बोलना चाहिए।’’

टिंकू अनमना सा चला गया और मैंने पत्नी के चरण छू लिये और बोला, ‘‘कमले, ये लो दीवाली की खरीद के कुल एक हजार रुपए, इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कर सकता।’’

पत्नी ने एक हजार रुपए पर्स के हवाले किए और बोली, ‘‘कोई बात नहीं, आप ज्यादा-से-ज्यादा कोशिश करें, वरना आपकी माली हालत को देखते हुए मेरी साड़ी, सजावट के लिए तो ये पर्याप्त हैं। बाकी दीवाली-पूजन की व्यवस्था आप स्वयं झेलें।’’

‘‘इस बार हम पूजन स्थगित कर देंगे। वर्षों से कर रहे हैं, हम रोशनी देखने निकल जाएँगे, मेहमान-दोस्तों को मिठाई खिलाने से बच जाएँगे।’’

‘‘यह आपका निजी मसला है। आप तो जाकर अपना पुराना कुरता-पाजामा धोबी से धुला लें, आपके नए कपडे़ तो आने से रहे।’’ पत्नी ने कहा और तभी टिंकू आकर बोला, ‘‘डैडीश्री, दीवाली पर निबंध लिखने का कोई महत्त्व तो है नहीं, फिर यह लिखवाया क्यों जाता है?’’

मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। मैं बोला, ‘‘देखो बेटा, क्रॉस-क्वेश्चन मत किया करो। दीवाली पर निबंध तो लिखो, लेकिन जिद मत करो, अब तुमने लिख लिया तो लिख लिया, परंतु उसे याद मत करो।’’

‘‘हाँ डैडीश्री, इसी में फायदा है।’’

‘‘इसलिए तुम जाओ और दोस्तों में जाकर खेलो। मुझे ये दो-चार दिन कुछ ज्यादा ही टेंशन के हैं, हो सके तो कोई दर्द-निवारक टिकिया मुझे लाकर दो।’’ मैंने कहा।

पत्नी मुझे नींद की गोली दे गई और उल्लू का पट्ठा टिंकू दीवाली का निबंध जोर-जोर से याद करने लगा। मेरे ऊपर नींद की गोली का कोई असर नहीं हुआ। मैं अपनी धड़कन रोके आज भी दीवाली के निकल जाने की प्रतीक्षा में हूँ। मेरा तो सभी से यही कहना है कि वे बच्चों को दीवाली का निबंध कभी न लिखावें, वरना दीवाली जी का जंजाल बन जाएगी।

—पूरन सरमा
१२४/६१-६२, अग्रवाल फार्म,
मानसरोवर,
जयपुर-३०२०२० (राजस्थान)
दूरभाष : ०९८२८०२४५००

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