RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
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एकात्म मानवएकात्मवाद के मंगलपथ पर, मानव का कल्याण है, अखिल विश्व को यह भारत के चिंतन का वरदान है। मनुज मात्र की गरिमा कुंठित हो न किसी भी तंत्र से, सामाजिक समरसता खंडित हो न व्यक्ति स्वातंत्र्य से। धर्माधारित हों समाज में अर्थ-काम के नीति-नियम, प्रकृति के प्रति नतमस्तक हो, भोग करें रखकर संयम। व्यक्ति-समाज-सृष्टि-परमेश्वर से यह रचित विधान है। एकात्मवाद के मंगलपथ पर... ... धनी-दरिद्री, ज्ञानी-मूरख, गोरे-काले, उच्च-अधम, सबकी अपनी-अपनी सत्ता, कोई किसी से क्योंकर कम। सब समष्टि के अंगभूत, सबका अधिकार बराबर है, कर्मयोग से कोई अधिपति, कोई सेवक-चाकर है। सारे मानव परम ब्रह्म की, सर्वश्रेष्ठ संतान हैं। एकात्मवाद के मंगलपथ पर... ... जाति, पंथ, भाषा से निर्मित राष्ट्रीयता कृत्रिम है, राज्यतंत्र की सीमाएँ भी, अंतिम नही अंतरिम हैं। राष्ट्र सनातन सत्ता है, संस्कृति उसकी निर्माता है, जन्मभूमि, जन, परंपरा से इसका गहरा नाता है। भारत की यह राष्ट्र कल्पना विश्व शांति का प्राण है। एकात्मवाद के मंगलपथ पर... ... तेरे सुख में मेरा सुख है, अपना सुख सबके सुख में, काँटा अगर पैर में चुभता, आँखें भर आती दुःख में। भोजन का रस लेती जिह्वा, पोषित होते हैं तन-मन, तन की इस एकात्मता से संचालित सारा जीवन। यही सनातन सत्य जगत् का, यही आत्मविज्ञान है। एकात्मवाद के मंगलपथ पर... ... उद्गम अलग-अलग नदियों के, अलग-अलग हैं पंथ-प्रवाह, चलते-चलते पा लेतीं सब, महासिंधु की दुर्गम थाह। विविध रूप में झलक रहा वह एक तत्त्व अविनाशी है, इसीलिए संघर्ष, द्वंद्व सब, मिथ्या है, आभासी है। यही अखंडित हिंदू-दृष्टि है, यही सत्य संधान है। एकात्मवाद के मंगलपथ पर, मानव का कल्याण है, अखिल विश्व को यह भारत के चिंतन का वरदान है। —इंदुशेखर तत्पुरुष |
मार्च 2024
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