अब दुःख नहीं है

राजेश आज बहुत परेशान है, क्योंकि जिस माँ ने उसे पैदा किया व लालन-पालन कर इतना बड़ा आदमी बनाया, आज वह माँ मरणासन्न अवस्था में पड़ी परेशान हो रही है। उसे वह सहन नहीं कर पा रहा है। उसने उनके हाथों को पे्रम से पकड़ा। अम्माँ कुछ कहना चाह रही थीं, पर उनके गले में से आवाज नहीं निकल पा रही थी। पास में ही उसके पिता बहुत दुःखी होकर बैठे थे। बड़ी मुश्किल से माँ ने अपने तकिए के नीचे से रिकॉर्ड किए एक कैसेट को निकालकर राजेश को दिया। राजेश ने तुरंत उस कैसेट को चलाकर सुना।

‘‘प्यारे राजेश, तुम्हें व तुम्हारी पत्नी और तुम्हारे पैदा होनेवाले बच्चे को मेरा आशीर्वाद!

‘‘जलते दीये में पहले तेल समाप्त होगा या बत्ती, पता नहीं, वैसी ही हालत में अब मैं व तुम्हारे पिताजी हैं। अब मुझे लग रहा है, तुम्हारे पिताजी के पहले मैं ही इस दुनिया से कुछ दिनों में चली जाऊँगी। मैं अब बिल्कुल भी बात करने में समर्थ नहीं हूँ। अभी तक मैं तुमसे आमने-सामने बात करने में हिचकिचाती रही। पर उन बातों को मैंने कैसेट में रिकॉर्ड कर दिया। मैं अभी मर जाऊँ तो सुहागिन, फूल, कुमकुम और माँग में सिंदूर के साथ चली गई, ऐसा संसार बोलेगा। परंतु तुम्हारे पिताजी, जो सीधे-सादे व बच्चों जैसे मनवाले इनसान को अकेले छोड़कर जाने का दुःख मुझे परेशान कर रहा है। तू हमारा इकलौता बेटा है। तूने हम वृद्धों के लिए सब सहूलियत कर दी हैं। आरामदायक चीजें तुमने इतनी दी हैं कि सचमुच में हमें बहुत खुशी है। फिर भी कभी-कभी तू हमारे ऊपर कठोरता के साथ झल्लाता है और गुस्से से बोलता है तो तुम्हारे स्वभाव को जानकर मैं उसे ज्यादा महत्त्व नहीं देती तथा उसे साधारण बात सोच छोड़ देती हूँ। ऐसे समय में कभी-कभी तुम्हारे पिताजी का मन बुरी तरह आहत हो जाता है, उनका मन बुरी तरह टूट जाता है। ऐसा कई बार हुआ। इसे मैंने कई बार महसूस किया, उनको कई बार सांत्वना देकर मैंने उनके मन का समाधान किया।

‘‘तुम अपने कर्तव्य को पूरा करते हो, पर तुम तुम्हारे अप्पा के सही व न्यायोचित अपेक्षाओं को समझकर वैसा ही चले, इसलिए ही तुम्हें समझाने व सही बात बताने के लिए ये बातें मैंने इस टेप में रिकॉर्ड कर तुम्हें दीं।

‘‘मोबाइल, टी.वी., रिमोट, कंप्यूटर, इंटरनेट, वॉशिंग मशीन, ए.सी. आदि आधुनिक साधनों के बारे में समझकर उन्हें उपयोग करना हमें नहीं आता। इसलिए तुम हम पर नाराज होते हो। हम बड़ी उम्र के लोगों को समझ आए, ऐसे बताओ, इतनी सहनशक्ति तुममें नहीं है। पर क्यों? तुम जब छोटे बच्चे थे, उस समय तुम्हारे पिताजी तुम्हारी पढ़ाई में आनेवाली कठिनाइयों को कितने सहनशील होकर तुम्हें कहानियों के द्वारा, उदाहरणों के द्वारा समझाते थे। वे बातें तो अब भी तुम्हें याद होंगी।

‘‘अशक्त हो चले हमें तुम ‘आपके हाथ कितने गंदे हैं?आपने कितने गंदे कपडे़ पहने हैं? घर पर कोई मेहमान आए तो आप थोड़ी देर शांति से क्यों नहीं रहते? आपको सभ्यता से बात करना नहीं आता।’ ऐसी बातें कहकर हमारी कई कमियाँ निकालते रहते हो।

‘‘तुम जब बच्चे थे, तब नहाने के लिए मना करते। तुम बेहद जिद्दी थे। तुम्हें मनाना आसान नहीं था। तुम्हें कई तरह बहला-फुसलाकर बाथरूम में ले जाकर तुम्हारे अप्पा साबुन लगाकर नहलाते। हम तुम्हें समझाते कि अपने आप रोज नहाना है व अच्छे तथा सुंदर कपड़े पहनना है। दूसरों के साथ तुम्हें कैसे सभ्यता से पेश आना है, हम सब तुम्हें बताते। जिंदगी में जब कभी बिना सोचे अचानक ही कुछ हो जाए तो उस समस्या से कैसे निपटें। तुम्हें सिखानेवाले तुम्हारे वही अप्पा हैं, जिसे भूलकर आज तुम उनसे जब वे असमर्थ शारीरिक अवस्था में हैं, तुम उन्हें अपनी पसंद के विपरीत प्रतिबंधित करने की कोशिश करना क्या न्यायोचित है? हवा के चलने से, पेड़ के पके हुए पत्ते को देख, नई कोंपल फूट रहे हरे पत्ते को क्या उनका मजाक उड़ाना चाहिए?

‘‘उम्र बढ़ने के साथ-साथ पंचेंद्रीय शरीर व मन साथ देने से मना करते हैं। याददाश्त की कमी तथा कान से सुनना कम हो जाता है, आँखों से दिखना कम हो जाता है। याददाश्त की कमी होने के कारण किसी चीज को याद नहीं रख पाते। किसी चीज को तुरंत समझना मुश्किल होता है। याद करने में ही बहुत समय लग जाता है। पैरों की शक्ति कम होने से चलने में ही तकलीफ होती है। लाठी लेकर चलने योग्य हमें तुमको समझना चाहिए।

‘‘तुम जब छोटे बच्चे थे तो पहले पलटते, फिर घुटने चलने लगे, फिर पकड़कर खडे़ हुए व डगमगाते चलते तो हम कितने खुश होते व तुम नीचे गिर न पड़ो। अतः सँभालने के लिए पास में खडे़ रहते। उम्रदराज हम भी आज उसी तरह एक बच्चे ही हैं। इसे तुम्हें महसूस करना चाहिए राजेश!

‘‘एक विशेष समय के बाद; पके हुए फल जैसे हम अधिक, और अधिक जीना नहीं चाहते। हम क्या करें, जो नियति में लिखा है, उतने दिन तो जीना ही पडे़गा और इस जिदंगी को धकेलना भी पडे़गा। जो हम कर रहे हैं। यदि अनजाने में भी हम तुम्हारे साथ गलत ढंग से पेश हो जाएँ तो भी तुम सदा अच्छे रहो, यही हमारा मन चाहता है और भगवान् से यही प्रार्थना करते हैं।

‘‘हमारी मृत्यु भी तुम्हारे सामने हो, जब तुम पास रहो व तुम्हारे गोद में ही होनी चाहिए, यही हमारी प्रार्थना है।

‘‘तुम्हें एक लड़का या लड़की पैदा होने के बाद ही अर्थात् तुम एक बाप बनोगे तब ही तुम माँ-बाप के महत्त्व, उनकी महिमा व कर्तव्य के बारे में जानोगे व समझोगे, राजेश बेटा!

‘‘हमें हमेशा तुम्हारा प्यार चाहिए, तुम्हारा सहारा चाहिए। हम तुम्हारी विनम्र बातें सुनना चाहेंगे। तुम हमारे इकलौते बेटे हो, हम तुमसे नहीं बोलेंगे तो किससे बोलकर इस सच्चे प्यार को अधिकार के साथ पा सकेंगे? समझो राजेश!

‘‘जब तक रहें, मुसकराहट के साथ हमसे प्यार का व्यवहार कर हमारी यात्रा शांति से करने में हमारी मदद करो। पहले मैं रवाना हो रही हूँ। कम-से-कम वे तो अपने पोता या पोती के मन की इच्छा पूरी कर उसे ममत्व से प्यार दे पाएँ। मेरे पास वे सुरक्षित पहुँच सकें, इसके लिए तुम उनकी मदद करो। करोगे न राजेश?’’

टेप बजकर बंद हो गया।

राजेश की आँखें भर आईं और उसने अपनी अम्माँ का सिर अपनी गोद में रख लिया। अपने अप्पा को भी एक हाथ से प्यार से कसकर पकड़ लिया। उसकी अम्माँ मुश्किल से एक हाथ से राजेश को व दूसरे हाथ से अपने पति को छूते हुए स्वयं अपने बेटे से जो कहना चाहती थी, उसे कह दिया। सोच-संतोष के साथ शांतिपूर्वक आँखें बंद करती है।

उसकी जान आनंद के साथ अलग होती है। ‘‘अब दुःख नहीं है।’’ कहकर उसकी आत्मा को शांति मिलती है।

—मूल: वाई. गोपाल कृष्णन
—अनुवाद: एस. भाग्यम
बी-४१, सेठी कॉलोनी,
जयपुर-३०२००४
दूरभाष : ०९३५१६४६३८५

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