RNI NO - 62112/95
ISSN - 2455-1171
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फिर एक महाभारत रच दोहे युग द्रष्टा! हे युग स्रष्टा हे युग संस्थापक! युगाधार! तेरी महिमामय प्रभुता को युग-युग तक युग का नमस्कार। तुम कर्म बने तुम धर्म बने युग के संरक्षक मर्म बने, करके संस्कृति का पोषण तुम युगवीर बने, युगधीर बने। कितने दुर्योधन दुःशासन घूमने निरंतर सड़कों पर, कितनी द्रौपदियाँ नग्न हुईं कितनी मर मिटीं जलीं अब तक। तांडव फैला बंदूकों का अपहरण रोज होता रहता, रक्षक ही आज बने भक्षक यह कैसा आर्यावर्त बना? साक्षी है कुरुक्षेत्र अब भी कंसों का शासन चलता है, पापों की नित बहती नदियाँ दुष्टों की झोली भरती है। देवों की देव मंदिरों की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं, पुतले जलते आदर्शों के ठहरा सा लगता है जीवन। रथ तो अब भी चलते रहते पथ राजनीति के होते हैं, गुमराह हुई जनता सारी हम सब विवेक खो बैठे हैं। अपराधों की भरमार यहाँ व्यवहार हुआ व्यापार सभी, जिसका सिक्का चल जाता है बस कृष्ण वही बन जाता है। रोती है मानवता पल-पल सभ्यता भटकती है दर-दर, आँसू भी सूख गए बहकर पुरुषत्व चढ़ा बलिवेदी पर। हे वासुदेव! हे जगवंदन है कहाँ सुदर्शन चक्र आज? दुष्टों का, घोर शत्रुओं का है कहाँ छिपा विध्वंस आज? क्या कोई अर्जुन नहीं रहा गांडीव उठाए कंधे पर, सारथी कृष्ण सा नहीं बचा रथ का संचालन करने को? हे कर्णधार! हे ब्रह्मरूप हे परमपिता! हे परमेश्वर, ले रहे परीक्षा क्यों अब तक धीरज की कठिन प्रहारों में। लुट रहा राष्ट्र घुटती साँसें अन्यायों अत्याचारों से, धरती पर हा-हाकार मचा भूखे, नंगे, बेचारों से। हे कृष्ण! चले आओ अब तो फिर एक महाभारत रच दो, भूली-भटकी मानवता को फिर कर्म भूमि दिखला जाओ। हे सत्स्वरूप! हे वंदनीय पथ बतला दो चलने भर को, निस्स्वार्थ रहें सेवा पथ पर जीवन को सार्थक बना सकें। बी-३/२०१, निर्मल छाया टॉवर्स |
अप्रैल 2024
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